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ग्वालियर का क़िला

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ग्वालियर दुर्ग
Part of मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश, भारत
ग्वालियर किला
सूचना
प्रकारकिला
नियंत्रकमध्य प्रदेश सरकार
जनप्रवेशहां
नक्शा
ऊँचाई300 to 500 meter
इतिहास
निर्मितपांचवी शदी और छठवीं शताब्दी में
निर्माताराजपूत राजा मान सिंह तोमर
प्रयुक्तहां
सामग्रीबलुआ पत्थर और सूर्खी-चूना
Garrison information
Occupantsकछवाहा, प्रतिहार, तोमर ,।

ग्वालियर दुर्ग ग्वालियर शहर का प्रमुखतम स्मारक है। यह किला 'गोपाचल' (गोप + अचल = गोपाचल) गोप पर्वत नामक पर्वत पर स्थित है। स्थानीय किंबदन्तियों के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण करने वाले पहले राजा ९वीं शताब्दी में

वर्ततमान समय में यह दुर्ग एक पुरातात्विक संग्रहालय के रूप में है। इस दुर्ग में स्थित एक छोटे से मन्दिर की दीवार पर शून्य (०) उकेरा गया है जो शून्य के लेखन का दूसरा सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण है। यह शून्य आज से लगभग १५०० वर्ष पहले उकेरा गया था।[1]

लाल बलुए पत्थर से बना यह किला की नीव सूरजसेन कच्छवाहा ने रखी जिसे बाद में मान सिंह तोमर ने किले का रूप दिया। एक ऊंचे पठार पर बने इस किले तक पहुंचने के लिये दो रास्ते हैं। एक 'ग्वालियर गेट' कहलाता है एवं इस रास्ते सिर्फ पैदल चढा जा सकता है। गाडियां 'ऊरवाई गेट' नामक रास्ते से चढ सकती हैं और यहां एक बेहद ऊंची चढाई वाली पतली सड़क से होकर जाना होता है। इस सड़क के आर्सपास की बडी-बडी चट्टानों पर जैन तीर्थकंरों की अतिविशाल मूर्तियां बेहद खूबसूरती से और बारीकी से गढ़ी गई हैं। किले की तीन सौ पचास फीट उंचाई इस किले के अविजित होने की गवाह है। इस किले के भीतरी हिस्सों में मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूने स्थित हैं। १५वीं शताब्दी में निर्मित गुजरी महल उनमें से एक है जो राजा मानसिंह और रानी मृगनयनी के गहन प्रेम का प्रतीक है। इस महल के बाहरी भाग को उसके मूल स्वरूप में राज्य के पुरातत्व विभाग ने सप्रयास सुरक्षित रखा है किन्तु आन्तरिक हिस्से को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया है जहां दुर्लभ प्राचीन मूर्तियां रखी गई हैं जो कार्बन डेटिंग के अनुसार प्रथम शती ईस्वी की हैं। ये दुर्लभ मूर्तियां ग्वालियर के आसपास के क्षेत्रों से प्राप्त हुई हैं।

ग्वालियर के किले का खाका (plan)

पिछले 1000 वर्षों से अधिक समय से यह किला ग्‍वालियर शहर में मौजूद है। भारत के सर्वाधिक दुर्भेद्य किलों में से एक यह विशालकाय किला कई हाथों से गुजरा। इसे बलुआ पत्थर की पहाड़ी पर निर्मित किया गया है और यह मैदानी क्षेत्र से 100 मीटर ऊंचाई पर है। किले की बाहरी दीवार लगभग 2 मील लंबी है और इसकी चौड़ाई 1 किलोमीटर से लेकर 200 मीटर तक है। किले की दीवारें एकदम खड़ी चढ़ाई वाली हैं। यह किला उथल-पुथल के युग में कई लडाइयों का गवाह रहा है साथ ही शांति के दौर में इसने अनेक उत्‍सव भी मनाए हैं। इसके शासकों में किले के साथ न्‍याय किया, जिसमें अनेक लोगों को बंदी बनाकर रखा। किले में आयोजित किए जाने वाले आयोजन भव्‍य हुआ करते हैं किन्‍तु जौहरों की आवाज़ें कानों को चीर जाती है।

विस्तृत पठन

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  • Tillotson, G.H.R (1987). The Rajput Palaces - The Development of an Architectural Style (Hardback) (अंग्रेज़ी भाषा में) (First ed.). New Haven and London: Yale University Press. p. 224 pages. ISBN 03000 37384. {{cite book}}: Unknown parameter |origdate= ignored (|orig-year= suggested) (help)

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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सन्दर्भ

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