इलाहाबाद किला
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प्रयागराज में संगम के निकट स्थित इस किले को मुगल सम्राट अकबर ने 1575 में बनवाया था।
वर्तमान में इस किले का कुछ ही भाग पर्यटकों के लिए खुला रहता है। बाकी हिस्से का प्रयोग भारतीय सेना करती है। इस किले में तीन बड़ी गैलरी हैं जहां पर ऊंची मीनारें हैं। सैलानियों को अशोक स्तंभ, सरस्वती कूप और जोधाबाई महल देखने की इजाजत है। इसके अलावा यहां अक्षय वट के नाम से मशहूर बरगद का एक पुराना पेड़ पातालपुर मंदिर भी है।
निर्माण की कहानी
[संपादित करें]इलाहाबाद किले की स्थापना मुगल बादशाह अकबर ने की थी। हालांकि इस पर इतिहासकारों में मतभेद है। समकालीन लेखक अब्दुल कादिर बदायूंनी ने 'मुंतखवुल-तवारीख' में लिखा है कि किले की नींव सन् 1583 में डाली गई थी। नदी की कटान से यहां की भौगोलिक स्थिति स्थिर न होने से इसका नक्शा अनियमित ढंग से तैयार किया गया था। वे लिखते हैं कि अनियमित नक्शे पर किले का निर्माण कराना ही इसकी विशेषता है। किले का कुल क्षेत्रफल तीस हजार वर्ग फुट है। इसके निर्माण में कुल लागत छह करोड़, 17 लाख, 20 हजार 214 रुपये आयी थी।
- किले में एक जनानी महल है, जिसे जहांगीर महल भी कहते हैं। अंग्रेजों ने भी इसे अपने माकूल बनाने के लिए काफी तोड़फोड़ की। इससे किले को काफी क्षति पहुंची थी। संगम के निकट स्थित इस किले का कुछ ही भाग पर्यटकों के लिए खुला रहता है। बाकी हिस्से का प्रयोग भारतीय सेना करती है। इस किले में 3 बड़ी गैलरी हैं, जहां पर ऊंची मीनारें हैं।
निर्माण का उद्देश्य
[संपादित करें]अकबर ने इस किले का निर्माण मुगलकाल में पूर्वी भारत [वर्तमान में पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार] से अफगान विद्रोह को खत्म करने के लिए किया था। अकबर ने प्रयाग यानी संगम से हटकर एक नए शहर की आधार सिला राखी थी जिसका वर्त्तमान स्वरूप नया इलाहाबाद है क्योकि इस भाग में पूरा पानी भरा रहता था। अकबर ने बंद बनवाकर इस समस्या को दूर किया और एक नए शहर की स्थापना किया जिसको इलाहाबाद नाम दिया। और जमीन को कृषि के लायक बनाया दिया।
अधिपत्य
[संपादित करें]सन् 1773 में अंग्रेज इस किले में आए और सन् 1775 में बंगाल के नवाब शुजाउद्दौला के हाथ 50 लाख रुपये में बेच दिया। सन 1797 में नवाब शाजत अली और अंग्रेजों में एक संधि के बाद किला फिर अंग्रेजों के कब्जे में आ गया। आजादी के बाद भारत सरकार का किले पर अधिकार हुआ। किले में पारसी भाषा में एक शिलालेख भी है, जिसमें किले की नींव पड़ने का वर्ष 1583 दिया है।
किले का स्वरूप
[संपादित करें]किले में एक जनानी महल है, जिसे जहांगीर महल भी कहते हैं। मुगल शासकों ने किले में बड़े फेरबदल कराये और फिर अंग्रेजों ने भी इसे अपने अनुकूल बनाने के लिए काफी तोड़-फोड़ की। इससे किले को काफी क्षति पहुंची।
वर्तमान स्थिति
[संपादित करें]प्रयागराज में माघ मेला के दौरान संगम तट पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। उसी संगम तट पर सम्राट अकबर ने भव्य किले का निर्माण कराया था वह देखने में काफी अद्भुत लगता है
कई शासकों और अंग्रेजों को सुरक्षित रखने तथा आज भी देश की सेना को शरण देने वाले इस किले की अवस्था अब जर्जर हो गई है। इसकी दीवारों पर बरगद, नीम, पीपल आदि ने जड़ें जमा ली हैं। घास-फूंस और झाड़ियां भी फैल गई हैं। दीवारों पर निकले पेड़ पौराणिक अक्षयवट की जड़ों की उपज हैं। इनमें कुछ पेड़ ऐसे भी हैं, जो पक्षियों के कारण दरारों में जम गए हैं। जल्द इन पेड़ों को नहीं काटा गया तो ये किले की दीवारों के लिए खतरा बन जाएंगे। चूंकि किला इस समय सेना के कब्जे में है, इसलिए उसकी इजाजत के बगैर पुरातत्व विभाग सौंदर्यीकरण या मरम्मत भी नहीं करा सकता है।
संरक्षण कार्य
[संपादित करें]सब एरिया कमांडर ब्रिगेडियर आरके भूटानी का कहना है कि दीवारों पर उगे पेड़ काटे जा रहे हैं। इससे साथ ही केमिकल ट्रीटमेंट से उन पेड़ों का समूल भी नाश किया जा रहा है। यह कार्य पिछले छह महीनों से चल रहा है। दीवारों की भी मरम्मत कराई जा रही है और उन्हें भी रासायनिक उपचार दिया जा रहा है। संरक्षण कार्य किले के उन क्षेत्रों में कराया जा रहा है, जहां आम शहरियों का जाना मना है।
सहायक एवं संदर्भ स्रोत
[संपादित करें]- अनुप्रेषित साँचा:प्रयागराज