रायगढ़
रायगढ़ दुर्ग | |
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महाराष्ट्र का भाग | |
रायगढ़ जिला, महाराष्ट्र (महाड़ के निकट) | |
Shown within महाराष्ट्र | |
निर्देशांक | 18°14′01″N 73°26′26″E / 18.2335°N 73.4406°E |
प्रकार | Hill fort |
ऊँचाई | 1,356 मीटर (4,400 फीट) ASL |
स्थल जानकारी | |
स्वामित्व | Government of India |
नियंत्रक | मराठा साम्राज्य (1656-1689)
Mughal Empire (1689-1707) मराठा साम्राज्य (1707-1818) East India Company (1818-1857) British Raj (1857-1947) भारत (1947-) |
जनप्रवेश | Yes |
स्थल इतिहास | |
निर्माता | Hirojee indalkar (Deshmukh) |
सामग्री | Stone, Lead |
दुर्गरक्षक जानकारी | |
पूर्व अध्यक्ष | Shivaji |
निवासी | Sambhaji |
रायगढ़ दुर्ग, महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के महाड में पहाड़ी पर स्थित प्रसिद्ध दुर्ग है जिसका प्राचीन नाम रायपुर भी था।
। इसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने बनवाया था और १६७४ में इसे अपनी राजधानी बनाया।
रायगड पश्चिमी भारत का ऐतिहासिक क्षेत्र है। यह मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के ठीक दक्षिण में महाराष्ट्र में स्थित है। यह कोंकण समुद्रतटीय मैदान का हिस्सा है, इसका क्षेत्र लहरदार और आड़ी-तिरछी पहाड़ियों वाला है, जो पश्चिमी घाट (पूर्व) की सह्याद्रि पहाड़ियों की खड़ी ढलुआ कगारों से अरब सागर (पश्चिम) के ऊँचे किनारों तक पहुँचता है।
यह किला सह्याद्री पर्वतरांग मे स्थित है. समुद्रतळ से ८२० मीटर (२७०० फुट ) कि उंचाई पर है. मराठा साम्राज्य पर उसकी एक खास पहचान है. छत्रपती शिवाजी महाराज ने रायगडकिले की विशेषता और स्थान ध्यान मे लेते हुये १७ वी सदि मे स्वराज्य की राजधानी इस किले को बनाई। दुर्ग एक बहुत ही शक्तिशाली दुर्ग है। छत्रपती शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक भी यहीं पर हुआ था।
अंग्रेजों ने इस किले पर १८१८ मे कब्जा करनेके बाद किले को बहुत बुरी तरहसे नेस्तनाबूत किया भारी मात्रा मे किलेको नुकसान पहुँचाया। और वहाँ बहुत सारी लूट भी की।
आजकी तारीख मे ये किला महाराष्ट्र शासन के पुरातत्व विभाग मे संरक्षित स्मारक है। आज यहाँ पर भारी मात्रा मे हर रोज यात्री आते हैं।
- किले पर देखने जैसे स्थान
१. पाचाड का जिजाबाईंका बाडा :बुढ़ापे में जिजाबाई को किले की ठंडी हवा, वातावरण की परेशानी होने लगी इसलिए महाराजने उनके लिए पाचाड के पास एक बाडा बनाया। वो ये मासाहेबा का बाडा। बाडेकी व्यवस्था रखने के लिए कुछ अधिकारी और कर्मचारियों की व्यवस्था भी महाराज ने की। सीढ़ियों का एक सुंदर कुआँ व जिजाबाई को बैठने के लिए पत्थर का आसन की व्यवस्था की गई है।‘तक्क्याची विहीर’
२. खुबलढा बुरूज : किले पर चढाई करते समय एक बुरुज की जगह दिखाई देती है। वो ही ये सुप्रसिद्ध खुबलढा बुरूज। बुरुज के पास ही एक दरवाजा था, उसे ‘चित् दरवाजा’ कहते हैं। यह दरवाजा अब पूर्णरूप से उध्वस्त हुआ है।
३. नाना दरवाजा :इस दरवाजे को ‘नाणे दरवाजा’ एेसा कहा जाता है। नाना दरवाजा इसका अर्थ छोटा दरवाजा। इ.स. १६७४ मई महिने में राज्याभिषेक के समय अंग्रेज वकील हेन्री ऑक्झेंडन इसी दरवाजे से आया था। इस दरवाजे को दो कमान है। दरवाजे के भीतरी बाजू में पहरेदार के लिए दो छोटे कमरे है। उसे देवडा कहते है।
४. मदारमोर्चा या मशीदमोर्चा : चित् दरवाजे से जाने पर आगे रस्तेपर एक सपाटी लगती है। इस खुली जगह के उपर पुरानी टुटी फुटी इमारत दिखाई देती है। उसमें से एक पहरेदार की जगह तो दूसरी ओर अनाज की कोठियाँ है। यहाँ मदनशहा नाम के साधूके शरीर के अवशेष तो एक ओर तोफ भी दिखती है। तसेच पत्थर से खोदी तीन गुहा दिखाई देती है।
५. महादरवाजा : महादरवाजे के बाहर की दोनों बाजू दो सुंदर कमलकृती है।दरवाजे पर रखे इन दो कमलो का अर्थं किले के अंदर ‘श्री और सरस्वती’ रह रही है।‘श्री आणि सरस्वती’ मतलब ‘विद्या और लक्ष्मी’ हे महादरवाजे को भव्य बुरूज है।एक ७५ फूट तो दूसरा ६५ फूट उंचा है।. तटबंदीमें जो उतरते छेद रखे होते है उसे ‘जंग्या’ कहते हैं। शत्रु पर हमला करने के लिए यह छेद रखे होते हैं। बुरुज में दरवाजा यह वायव्य दिशा की ओर खडा है। महादरवाजे से अंदर आने पर पहरेदार की देवडे दिखती है। साथ ही संरक्षण के लिए बनाए गए कमरे भी दिखाई देते है। महादरवाजे से दाईं ओर टकमक सिरे तक तो बाँई ओर हिरकणी सिरे तक तटबंदी बनाई गई है।
६. चोरदिंडी : महादरवाजे से दाँए ओर टकमक सिरेतक जो तटबंदी जाती है उस पर से चल कर जाने पर जहाँ ये समाप्त होती है उस के पास बुरूज में यह चोरदिंडी बांधी है। बुरुज के अंदर दरवाजेतक आने के लिए सीढियॉ है। हत्ती तलाव : महादरवाजा से थोडा आगे आनेपर जो तलाब दिखता है वह हाथी तलाव है। गजशाला से आने वाले हाथी के स्नान के लिए और पिने के लिए इस तलाब का उपयोग होता था।
८. गंगासागर तलाव : हाथी तालाब के पास ही रायगड जिला परिषद की धर्मशाला की इमारते दिखाई देती है। धर्मशाला से दक्षिणे की ओर अंदाजे ५० -६० कदम चलते गए ते जो तालाब आता है वो गंगासागर तालाब है।महाराज के राज्याभिषेक के बाद सप्तसागर और महाना ने लायी तीर्थे इसी तालाब में डाली जाती है। इसलिए इसका नाम गंगा सागर एेसा पडा है।शिवाजी महाराजा के समय शिबंदी के लिए इसका पानी उपयोग में लाया जाता था।
९. स्तंभ : गंगासागर के दक्षिण दिशा में दो ऊँचे मनोरे दिखाई देते है। उसे ही स्तंभ कहते हैं। जगदीश्वर के शिलालेख में जिस किया गया है, वो ये ही हो सकते हैं। वो पहले पाच मजिंला थे। ऐसा कहते हैं। वो द्वादश कोण में होकर बनाते समय ही इस पर कलाकृती की है।
१०. पालखी दरवाजा : स्तंभा के पश्चिम भाग पर ३१ सीढियॉ बनाई गई है। वो चढ़नेपर जो दरवाजा लगता है वो पालखी दरवाजा है। इस दरवाजे से बालेकिले में प्रवेश कर सकते हैं।
११. मेणा दरवाजा : पालखी दरवाजे से ऊपर प्रवेश किया तो चढउतार करनेवाला एक सीधा मार्ग यह मेणा दरवाजे तक ले जाता है। दाएँ हात की ओर जो सात अवशेष दिखते है वो रानियों के महल है। मेणा दरवाजे से बाले किले में प्रवेश करने की सुविधा उपलब्ध है।
१२. राजभवन : राणीवश के सामने बॉेए हात पर दासदासी के मकान के अवषेश दिखाई देते है। इन अवशेषाे के पीछे दूसरी जो समांतर दिवार है उस दिवार के मध्यभाग में दरवाजे से बालेकिले के अंतर्भाग में प्रवेश किया कि जो प्रशस्त चौक लगता है वो ही महाराज का राजभवन है। राजभवन का चौक ८६ फूट लंबा और ३३ फूट चौडा है। १३. रत्नशाळा : राजप्रसादा के पास स्तंभ के पूर्व की ओर की खुली जगह पर एक तलघर है वो ही रत्नलीला है। खलबतखाना मतलब गुप्त बातें करने के लिए बनाया गया कमरा है ऐसा कहा जाता है। १५. नगारखाना : सिंहासन के सामने जो भव्य प्रवेशद्वार दिखाई देता है वही ये नगारखाना है। और यह बालेकिले का मुख्य प्रवेश द्वार है। नगारखाने से सीढियॉ चढकर ऊपर गया तो वह किले के सर्वाधिक उंचे स्थान पर पहुंचता है।
१६. बाजार : नगारखाने से बाई ओर उतरने पर सामने जो खुली जगह दिखाई देती है वह‘होळीचा माळ’है। वही पर शिवछत्रपतीं का भव्य पुतला बनाया गया है। पुतले के सामने जो दो पंक्ति में भव्य अवशेष दिखाई देते हैं वही शिवाजी महाराज के जमाने का बाजार पेठ। दो पंकि में प्रत्येकी २२ दुकाने है। दो पंकि में चालीस फूट चौडा रस्ता है। प्रत्येक बाजार पेठ आज भी हुबेहुब जैसी की वैसी है।
१७. शिरकाई मंदिर : महाराज के पुतले के बाई ओर जो छोटे मंदिर है वो शिरकाई के मंदिर है। शिरकाई यह किले की मुख्य देवता। शिर्के पाचवे शतक से रायगड के स्वामी थे। इनकी याद दिलाने के लिए किले की स्वामिनी शिरकाई का मंदिर किले पर है। लोकमान्य टिलक के जमाने में मावलकर नाम के इंजिनिअरने ये मंदिर बनाया था। वह शिरकाई का मुख्य मंदिर नही। मूर्ती लेकिन प्राचीन है। मुख्य शिरकाई मंदिर राजवाडे से लगकर दाँए ओर होली बादबमाला पर था। वहॉ मंदिर का चबुतरा आज भी है। ब्रिटिश काल में वहॉ शिरकाई का घरटा ये नामफलक था।
१८. जगदीश्वर मंदिर : बाजारपेठे के निचले बाजू में पूर्व दिशा में उतार पर ब्राह्मणबस्ती, ब्राह्मणतालाब वगैरे अवशेष दिखते है। वहॉ से सामने जो भव्य मंदिर दिखता है वो ही महादेवजी का मतलब जगदीश्वर का मंदिर. मंदिर के सामने नंदी की भव्य ओर सुंदर मूर्ती है। पर वर्तमान में यह मूर्ती भग्रावस्था में है। भव्यमंदिर में प्रवेश किया कि भव्य सभामंडप लगता है। मंडप के मध्य भाग में भव्य कछुआ है। मंदिर के मुख्य भाग में हनुमानजी की भव्य मूर्ती दिखाई देती है। मंदिरा के प्रवेशद द्वार की सीढियें के नीचे एक छोटा सा शिलालेख दिखाई देता है। वो इस प्रकार है ‘सेवेचे ठायी तत्पर हिरोजी इदळकर’ इस दरवाजे के दाँए बाजू की ओर दिवार पर एक सुंदर शिलालेख दिखता है वो इस प्रकार है- श्री गणपतये नमः। प्रासादो जगदीश्वरस्य जगतामानंददोनुज्ञया श्रीमच्छत्रपतेः शिवस्यनृपतेः सिंहासने तिष्ठतः। शाके षण्णवबाणभूमिगणनादानन्दसंवत्सरे ज्योतीराजमुहूर्तकिर्तीमहिते शुक्लेशसापै तिथौ ॥१॥ वापीकूपडागराजिरुचिरं रम्यं वनं वीतिकौ स्तभेः कुंभिगृहे नरेन्द्रसदनैरभ्रंलिहे मीहिते । श्रीमद्रायगिरौ गिरामविषये हीराजिना निर्मितो यावच्चन्द्रदिवाकरौ विलसतस्तावत्समुज्जृंभते ॥२॥ इसकी संक्षिप्त में अर्थ इस प्रकार है-’सर्व जग को आनंददायी असा ये जगदीश्वरा का प्रासाद श्रीमद् छत्रपती शिवाजी राजा का आज्ञेने शके १५९६ में आनंदनाम संवत्सर चालू था सुमुहुर्त पर निर्माण किया इस रायगड पर हिरोजी नाम के शिल्पकार ने कुँए, सरोवर, बगीचे, रस्ते, स्तंभ, गजशाला, राजगृहे इत्यादी का निर्माण किया। वह चंद्रसूर्य है तब तक मजे से जिओ।
१९. महाराजांची समाधी : मंदिराचा पूर्वदरवाजापासून थोडा अंतरावर जो अष्टकोनी चौथरा दिसतो तीच महाराजांची समाधी. सभासद बखर म्हणते, ‘क्षत्रियकुलावतंस श्रीमन्महाराजाधिराज शिवाजी महाराज छत्रपती यांचा काल शके १६०२चैत्र (शुद्ध १५ (इसवी1680)या दिवशी रायगड येथे झ़ाला. देहाचे सार्थक त्याणी बांधिलेला जगदीश्वराचा जो प्रासाद त्याचा महाद्वाराचा बाहेर दक्षणभागी केले. तेथे काळ्या दगडाचा चिऱ्याचे सुमारे छातीभर ऊँचाई के अष्टकोनी जोते बांधे है और उपर से वरून फरसबंदी की है। फरसबंदी के नीचे महाराज के अवशिष्टांश रक्षामिश्र मृत्तिकारूप में मिलती है। दहनभूमी के दूसरी तरफ भग्न इमारत के अवशेषाे की एक पंक्ति है। वह शिबंदी का निवासस्थान हो सकता है। उसके दूसरी तरफ उस बस्ती से विलग एेसा एक घर का चौथरा दिखाई देता है। यह घर इ.स. १६७४ में अंग्रेज वकील हेनरी ऑक्झेंडन इनको रहने के लिए दिया था। महाराज की समाधी के पूर्व दिशा में भवानी सिरा है तो दूसरी ओर कोठारे, बारा टंकी दिखाई देते हैं।
२०. कुशावर्त तलाव : होलीचा माल बॉेए हात छोड़कर दाईं ओर का रास्ता कुशावर्त तलाब की ओर जाता है। तलाब के पास महादेवजी का एक छोटा सा मंदिर दिखाई देता है। मंदिर के सामने टूटी अवस्था में नंदी दिखाई देता है।
२१. वाघदरवाजा : कुशावर्त तलाब के पास घळी से उतरते हुए वाघ दरवाजे की ओर जाता है।आज्ञापत्र में लिखा है कि ‘किले का एक दरवाजा थोर आयब है, इसलिए गड चढकर एक दोन – तीन दरवाजे, वैसे ही चोरदिंडा करके रखे। उसमें हमेशा राबत्यास उतना रखकर वरकड दरवाजे और दिंडा चिणून डाले’ ये दूरदर्शीपना रखकर महाराज ने महादरवाजा उसके साथ ही यह दरवाजा बनाया। इस दरवाजान से ऊपर आना असंभव सा ही है परंतु रस्सी लगाकर नीचे उतर सकते है। आगे राजाराम महाराज और उनकी पत्नी झुल्फिरखान का घेरा तेडकर इसी दरवाजे से पलायन किया।
२२. टकमक टोक : बाजारपेठ से नीचे उतर कर सामने के टेपा पर से टकमक सिरेतक जाते आता है। वही पर एक दारूका कोठार के अवशेष दिखाई देते है। जैसे जैसे सिरेतक जाए वैसे वैसेरस्ता रस्ता सँकरा होता जाता है। दाँए हात की ओर का सीधा टूटा हुआ २६०० फूट गहर गड्ढा है।सिरेपर बहुत वेग से हवा आती है। जाते समय जगह सँकरा होने के कारण गडबड न करते हुए सावधानता लेनी चाहिए।शिवराज्यकाल में इस ठिकाने से गुन्हेगारो को सजा मिलती थी।
२३. हिरकणी टोक : गंगासागर के पश्चिम दिशा की ओर जो सँकरा मार्ग माहिरकणी सिरे तक जाता है। हिरकणी सिरेतक से संबंधित हिरकणी गवळणी की एक कथा बताया जाती है। इस बुरुज पर कुछ तोफ भी रखी हई दिखाई देती है। बुरुज पर खड़े हुए तो बाई हात की ओर गांधारी के खोरे, दॉई ओर काल नदीचके खोरे दिखाई देते है। पाचाड, खुबलढा बुरूज, मशीद मोर्चा ये जगह तोफके दागने के है। इस कारण युद्धशास्त्र का और लढाई की दृष्टी से भी खूप महत्त्वपूर्ण और मौके की जगह है।
शिवाजी का राज्याभिषेक रायगड में, 6 जून 1674 ई. को हुआ था। काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगाभट्ट इस समारोह के आचार्य थे। उपरान्त 1689-90 ई. में औरंगज़ेब ने इस पर अधिकार कर लिया।
कृषि और खनिज तटवर्ती कगार बरसाती नदी-घाटियों द्वारा विभक्त हैं, जो इस इलाक़े की अधिकांश कृषि में सहायक हैं। चावल और नारियल यहाँ की प्रमुख फ़सलें हैं और मछली पकड़ना और नमक बनाना महत्त्वपूर्ण समुद्रतटीय उद्यम हैं।
उद्योग और व्यापार तीसरी शताब्दी ई. पू. के आरम्भ से ही कोंकण तट के रायगढ़ क्षेत्र का रोम के साथ व्यापार स्थापित हो गया था। काग़ज़ की लुगदी, रसायन और इंजीनियरिंग का काम यहाँ के प्रमुख उद्योग हैं। खोपोली और पनवेल प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं।
जनसंख्या 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यहाँ की एक बड़ी जनसंख्या बंबई (मुंबई) प्रवास कर गई और इस इलाक़े के उत्तरी भाग का तेज़ी से औद्योगिक विकास हुआ। अलीबाग़ यहाँ का प्रमुख शहर है। रायगढ़ ज़िले की कुल जनसंख्या (2001) 22,05,972 है।
रायगड पर अश्मयुगीन गुहा पुणे से रायगड तक जाने के लिए सीधी बससेवा है। ये बस पुणे से भोरमार्ग वरंधा घाटी से महाडमार्ग पाचाड गाव से रायगड का रोप वे की सुरवाती जगह से पाचाड खिंडी में आती है। यहॉ से उतरकर लगभग १४३५ सीढियॉ चढ़कर गए कि रायगड पहुँचते है।पर इस पाचाड खिंडी में ही रायगड के विरुद्ध दिशा में लगभग ४-५ मिनिट की चढाई पर एक गुफा है। उसे "वाघबीळ' या"नाचणटेपाची गुफा' नये ट्रेकर्स इस गुफाको "गन्स ऑफ पाचाड' ऐसा कहने लगे हैं।
जगभर की गुफा से इस गुफा की रचना पूर्ण अलग है।पाचाड खिंडी से यहॉ तक चढ़कर आनेपर गुफा का एक सिरा दिखता है। इस सिरे से अंदर आने पर सामने आए दृश्य अचंबित करनेवाले है। दो गोलाकृती विशालकाय दो छेद बाजू की दिवार में है वहॉ गए कि पाचाड का भूमीगत किला, पाचाड गाँव और पाचाड से पाचाड खिंड तक आनेवाला घाटी रस्ता अच्छे से देख सकते हैं।
इस गुफा में हमेशा एक के बाद एक आनेवाली ठंडी हवाएँ सारी थकान दूर करती है। यहॉ अश्मयुगीन मानव की बस्ती थी तो आसपास बारमाही पानी का एकादा नैसर्गिक स्थान निश्चित ही होगा। इसकी खोज करनी ही होगी। रायगड देखने सैकडो-हजारो दुर्गयात्रियों को इस बाघबील गुफा की कल्पना नही होती है। अश्मयुगीन मानव के पुराने बस्तीस्थान, ३ मुँह वाली गुफा, वहॉ से दिखाई देनेवाला उत्कृष्ट नजारा, हमेशा रहने वाली ठंडी हवा का आनंद यहॉ भेट देनेवाला ही अनुभव ले सकता है।
शाला महाविद्यालया और अनेक पर्यटन कंपनी की बस टूर्स रायगड पर आयोजित करते है। किलेपर रोपवे से झुले बैठकर जाया जा सकता है। तर हजार-बारासौ सीढियॉ चढकर रायगडापर पोहोच सकते हैं।
किले पर रहने की सुविधा किले पर रहने के लिए उत्तम सुविधा है। किले पर एक धर्मशाला है।एक बड़ा हॉल, छोटे बडे ७ ते ८ कमरें है। रहने की सुविधा बिना शुल्क है।
किले पर खाने की सुविधा किले पर खाने की सुविधा है। परंतु स्वयं की सुविधा अनुसार खाद्यपदार्थ ले जाए। किले पर खाने की सुविधा और विविध प्रकार की दुकानें है। किले पर पानी की सुविधा किलेपर गंगासागर तालाब इत्यादी अनेक पानी के तालाब है।किलेपर जाने के लिए अब कुल दो मार्ग है। यहाँ पानी की बहुत अच्छी सुविधा उपलब्ध है।शुद्ध पानी और फिल्टर किया हुआ पानी मिलता है।
२. यांत्रिक दॊरवाट/रज्जूमार्ग रायगड किल्ल्यासंबंधीची पुस्तके आजचा रायगड (पांडुरंग पाटणकर. २००६) एका राजधानीची कहाणी - दुर्गराज रायगड (उदय दांडेकर) किल्ले रायगड (शंकर अभ्यंकर, १९८०) किल्ले रायगड - कथा पंचविसी (आप्पा परब, २०१५) किल्ले रायगड - प्रदक्षिणेच्या वाटेवर (लेखक - संकलक : आप्पा परब, २००५) किल्ले रायगड स्थलदर्शन (आप्पा परब, २०१२) गडांचा राजा - राजांचा गड - रायगड (प्र. गो. भाट्ये, १९८६) चला, पाहू रायगड (म.श्री. दीक्षित, प्रकाशक : शिवाजी रायगड स्मारक मंडळ, पुणे चला रायगडाला - रायगड मार्गदर्शिका (प्रकाशक : शिवाजी रायगड स्मारक मंडळ, पुणे, १९६८) ‘तो’ रायगड (प्र.के. घाणेकर, १९९१) दुर्गराज रायगड (गजानन आर्ते, १९७४) दुर्गराज रायगड (प्रवीण वसंतराव भोसले, २००६)
इतिहास
[संपादित करें]रायगड किले का प्राचीन नाम रायरी था। पूरब की ओर के देश के लोग इसे पूरब का जिब्राल्टर के नामसे जानते थे। जिब्राल्टर के जैसे ही रायगड पहाडी इलाके में है और अजिंक्य है।
1662 ई. में शिवाजी तथा बीजापुर के सुल्तान में काफ़ी संघर्ष के पश्चात संधि हुई थी जिससे शिवाजी ने अपना जीता हुआ सारा प्रदेश प्राप्त कर लिया था। इस संधि के लिए शिवाजी के पिता कई वर्ष पश्चात पुत्र से मिलने आए थे। शिवाजी ने उन्हें अपना जीता हुआ समस्त प्रांत दिखाया। उस समय शाहजी के सुझाव को मानकर रैरी पहाड़ी के उल्ल श्रृंग पर शिवाजी ने रायगढ़ को बसाने का इरादा किया था। समाधि भी रायगढ़ में ही है। यहाँ उन्होंने एक क़िला तथा प्रासाद बनवाया और वे यहीं निवास करने लगे। इस प्रकार शिवाजी के राज्य की राजधानी रायगड में ही स्थापित हुई। रायगड चारों ओर से सह्यद्रि की अनेक पर्वत मालाओं से घिरा हुआ था और उसके उल्ल श्रृंग दूर से दिखाई देते थे।
राज्याभिषेक
[संपादित करें]शिवाजी का राज्याभिषेक रायगड में, 6 जून 1674 ई. को हुआ था। काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगाभट्ट इस समारोह के आचार्य थे। उपरान्त 1689-90 ई. में औरंगज़ेब ने इस पर अधिकार कर लिया। शिवराज्याभिषेक शिवराज्याभिषेक यह रायगड ने अनुभव किया हुआ सर्वश्रेष्ठ प्रसंग है। महाराज का राज्याभिषेक मतलब महाराष्ट्र का ही नही बल्कि भारत के इतिहास की एक लक्षणीय घटना है। १९ मे १६७४ को राज्याभिषेक विधी पूर्व महाराज ने प्रतापगड की भवानी देवी के दर्शन किए। तीन मन सोने के मतलब ५६ हजार किंमत के छत्र देवीको अर्पण किए। किले पर के राज सभामें ६ जून १६७४, ज्येष्ठ शुद्ध १३ शके १५९६, शनिवार इस दिन राज्याभिषेक मनाया गया। २४ सप्टेंबर १६७४, ललिता पंचमी आश्विन शुद्ध ५, आनंद संवत्सर शके १५९६ इस दिन तांत्रिक पद्धती से राजा ने स्वयं एक ओर राज्याभिषेक कर लिया। इसके पीछे का सच्चा हेतू ज्यादा से ज्यादा लोगों को संतोष मिले यह था।यह राज्याभिषेक निश्चलपुरी गोसावी इनके हातों संपन्न हुआ।
कवी भूषण रायगडा का वर्णन करते है कि- (हिंदी अनुवाद) “ शिवाजीने सर्व किले का आधार और विलासस्थान एेसे रायगड किले पर अपना बस्तीस्थान किया। यह किला बहुत बड़ा और विशाल है कि, उसमें तीनों लोको का वैभव समाया है। किले पर कुँए, सरोवरे, कूप विराजत है। सर्व यवनांओ को जीतकर रायगडा पर राजा शिवाजीने राजधानी बनाई। और लोगो की इच्छा पूर्ण की। जगत में श्रेष्ठ यश संपादन किया। इ.स. १६७५ फरवरी ४, शके १५९६ आनंद संवत्सर माघ व. ५ गुरूवार इस दिन संभाजी राजा की 'मुंज' रायगड पर हुई। शके १६०१ सिद्धार्थी संवत्सर फाल्गुन व. २, १६८० मार्च ७ इस दिन राजाराम महाराज की 'मुंज' रायगड पर हुई। आठ ही दिन में राजाराम महाराज का विवाह प्रतापराव गुजर इनकी कन्या से हुआ।रायगडा ने अनुभव किया हुआ अत्यंत दुःखद प्रसंग मतलब महाराज का निधन. शके १६०२ रुद्रनाम संवत्सरे चैत्र शुद्ध पौर्णिमा, हनुमान जयंती, दि. ३ अप्रेल १६८० इस दिन महाराज का निधन हुआ। सभासद बखर में ‘उस दिन पृथ्वीकंप हुई, अष्टदिशा दिग्दाह हो गई थी। श्रीशंभुमहादेवी तल का उदक रक्तांबर हो गया था।’ आगे शके १६०२ रौद्र संवत्सर माघ शु. ७, इ.स. १६८१ १६ फरवरी इस दिन रायगडापर संभाजी महाराज का विधिपूर्वक राज्यारोहण हुआ। इ.स. १६८४ के सितंबर में औरंगजेब ने रायगड का अभियान की शुरआत की। ता. २१ को शहाबुद्दीन खान से चालीस हजार सैनिकसह बादशहा ने रायगड के सामने ही मुठभेड़ की। १५ जनवरी १६८५ के लगभग शहाबुद्दीने किले के सामने के एक गाँव को आग लगाई और लुटमार की। पर प्रत्यक्ष रायगड पर हल्ला न करते हुए वह १६८५ की मार्च में वापस लौटा। औरंगजेबाने अपना वजीर आसदखान इनका लडका इतिकादखान उर्फ झुल्फिकारखान को सैनिक देकर रायगड लेने के लिए भेजा। शके १६१० विभव संवत्सर फाल्गुन शु. ३, १२ फरवरी १६८९ को राजाराम महाराज का कामकाज शुरू हुआ और २५ मार्च १६८९ को खान ने किले को घेर लिया। दि. ५ अप्रेल १६८९ को राजाराम महाराज रायगड से निकलकर प्रतापगड पर गए। आगे लगभग आठ महिने घेराव चालू ही था। पर दि. ३ नवंबर १६८९ को सूर्याजी पिसाल इस किलेदार की फितुरी के कारण किला मुगलाें को मिला। वाई इस गाँव की देशमुखी देने का उसे लालच दिखाया और इस प्रकार खान ने उसे फितुर किया। झुल्फिकारखान इस बादशाह ने इतिकादखान को दिया खिताब है। आगे रायगड का नामांतर ‘इस्लामगड’ यह हुआ।५ जून १७३३ इस दिन शाहूमहाराज के अधिकार में मराठों ने फिर से रायगड लिया।
कृषि और खनिज
[संपादित करें]तटवर्ती कगार बरसाती नदी-घाटियों द्वारा विभक्त हैं, जो इस इलाक़े की अधिकांश कृषि में सहायक हैं। चावल और नारियल यहाँ की प्रमुख फ़सलें हैं और मछली पकड़ना और नमक बनाना महत्त्वपूर्ण समुद्रतटीय उद्यम हैं।
उद्योग और व्यापार
[संपादित करें]तीसरी शताब्दी ई. पू. के आरम्भ से ही कोंकण तट के रायगढ़ क्षेत्र का रोम के साथ व्यापार स्थापित हो गया था। काग़ज़ की लुगदी, रसायन और इंजीनियरिंग का काम यहाँ के प्रमुख उद्योग हैं। खोपोली और पनवल प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं।
जनसंख्या
[संपादित करें]20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यहाँ की एक बड़ी जनसंख्या बंबई (मुंबई) प्रवास कर गई और इस इलाक़े के उत्तरी भाग का तेज़ी से औद्योगिक विकास हुआ। अलीबाग़ यहाँ का प्रमुख शहर है। रायगढ़ ज़िले की कुल जनसंख्या (2001) 22,05,972 है।
पर्यटन
[संपादित करें]यहाँ के पाल, कुडा, कोन्नन और अंबीवली में अनेक प्राचीन बौद्ध गुफा मन्दिर और ऐलिफ़ेंटा द्वीप में शैव गुफाएँ हैं। विख्यात सैरगाह और रायगढ़ दुर्ग यहाँ स्थित हैं।
रायगड किले पर मराठी मे लिखी हुई किताबे
[संपादित करें]- आजचा रायगड (पांडुरंग पाटणकर. २००६)
- एका राजधानीची कहाणी - दुर्गराज रायगड (उदय दांडेकर)
- किल्ले रायगड (शंकर अभ्यंकर, १९८०)
- किल्ले रायगड - कथा पंचविसी (आप्पा परब, २०१५)
- किल्ले रायगड - प्रदक्षिणेच्या वाटेवर (लेखक - संकलक : आप्पा परब, २००५)
- किल्ले रायगड स्थलदर्शन (आप्पा परब, २०१२)
- गडांचा राजा - राजांचा गड - रायगड (प्र. गो. भाट्ये, १९८६)
- चला, पाहू रायगड (म.श्री. दीक्षित, प्रकाशक : शिवाजी रायगड स्मारक मंडळ, पुणे
- चला रायगडाला - रायगड मार्गदर्शिका (प्रकाशक : शिवाजी रायगड स्मारक मंडळ, पुणे, १९६८)
- ‘तो’ रायगड (प्र.के. घाणेकर, १९९१)
- दुर्गराज रायगड (गजानन आर्ते, १९७४)
- दुर्गराज रायगड (प्रवीण वसंतराव भोसले, २००६)
- माझे नाव रायगड (बळवंत मोरेश्वर पुरंदरे, १९६१)
- राजधानी रायगड (प्रभाकर भावे, १९९७)
- राजधानी रायगड (वि.वा. जोशी, १९२९)
- रायगड (प. रा. दाते, १९६२)
- रायगड अभ्यासवर्ग (पराग लिमये), प्रकाशक : जनसेवा समिती, विलेपार्ले, २००२.
- रायगड एक अभ्यास - चला पाहू या रायगड (गोपाळ चांदोरकर, २००१)
- रायगड एक अभ्यास - वैभव रायगडचे (शिवपूर्वकालीन); लेखक : गोपाळ चांदोरकर, प्रकाशक : प्रफुल्लता प्रकाशन (२००४)
- रायगड एक अभ्यास - शोध शिवसमाधीचा (गोपाळ चांदोरकर, २०००)
- रायगड किल्ल्याची जुनी माहिती (अंताजी लक्ष्मण जोशी, १८८५)
- रायगड किल्ल्याचे वर्णन (गोविंदराव बाबाजी जोशी, १८८५)
- रायगड जिल्ह्याचे दुर्गवैभव (सचिन जोशी)
- रायगड दर्शन (प्र.न. देशपांडे, १९८०)
- रायगड दर्शन दुर्मीळ पुस्तकांतून (प्र..के. घाणेकर)
- रायगड प्रदक्षिणा (गे. ना. परदेशी, १९८८)
- रायगड प्रदक्षिणा (सोमनाथ समेळ, १९८४)
- रायगड - महाराष्ट्र राज्य पदयात्रा व प्रवासयोजना (प्रकाशक : प्रसिद्धी विभाग, महाराष्ट्र सरकार)
- रायगड - यात्रा, दर्शन, माहिती (प्रबोधनकार केशव सीताराम ठाकरे, १९५१)
- रायगड - रम्यकथा (प्रसिद्धी विभाग, महाराष्ट्र सरकार)
- रायगड वर्णन (केशव अं. हर्डीकर, १९०६)
- रायगड स्पर्धा - एक राष्ट्रोद्धारक कार्यक्रम (गे. ना. परदेशी, १९८६)
- रायगडचा इतिहास (सुधाकर लाड)
- रायगडाचा मार्गदर्शक (रायगड स्मारक मंडळ, पुणे, प्रकाशन - १८ अप्रैल, १९३५).
- रायगडची जीवनकथा (शांताराम विष्णू आवळसकर, १९६२-१९७४-१९९८) : यह पुस्तक esahity.com पर है।
- रायगडाची माहिती (गोविंद गोपाळ टिपणीस, महाडकर, १८९६)
- रायगडाची सहल (रमेश द. साठे)
- रायगडावरील शिवाजी महाराजांच्या सिंहासनाची आणि इतर व्यवस्था (शं.ना. वत्सजोशी) प्रकाशक - भारत इतिहास संशोधन मंडळ, जानेवारी १९४०.
- शिवतीर्थ किल्ले रायगड (सुधाकर लाड, २००४)
- शिवतीर्थ किल्ले रायगड प्रदक्षिणा स्पर्धा - एक राष्ट्रप्रेरक उपक्रम (गे.ना. परदेशी, १९८४)
- शिवतीर्थ रायगड.(गो.नी. दांडेकर)
- शिवतीर्थ रायगड रंगीत फोल्डर (प्रकाशक : पर्यटन संचलनालय महाराष्ट्र राज्य)
- शिवतीर्थाच्या आख्यायिका (प्र.के. घाणेकर, १९८५)
- शिवनेरी ते रायगड (प्रकाशक : माहिती व जनसंपर्क महासंचालनालय महाराष्ट्र शासन)
- शिवरायांच्या दोन राजधान्या (गो.नी. दांडेकर]], १९८३)
- शिवस्फूर्तीची स्मृती - रायगड (मधु रावकर, १९७४)
- Shivaji Memorials, the British Attitude, (1974)
- शिवाजी महाराजांच्या राजसिंहासनावर मेघडंबरी (प्रकाशक : माहिती व जनसंपर्क महासंचालनालय महाराष्ट्र शासन)
- श्रीमद् रायगिरौ (गोपाळ चांदोरकर)
- श्रीशिवाजी रायगड स्मारक मंडळ, पुणे स्थापना शताब्दी स्मरणिका (म.श्री. दीक्षित)
- श्रीक्षेत्र रायगड दर्शन (गो.नी. दांडेकर, १९७४)