भोजपुर, मध्य प्रदेश
भोजपुर Bhojpur | |
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निर्देशांक: 23°05′53″N 77°34′44″E / 23.098°N 77.579°Eनिर्देशांक: 23°05′53″N 77°34′44″E / 23.098°N 77.579°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | मध्य प्रदेश |
ज़िला | रायसेन ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 1,158 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
भोजपुर (Bhojpur) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान है। यह वेत्रवती नदी (बेतवा नदी) के किनारे बसा हुआ है।[1][2]
विवरण
[संपादित करें]भोजपुर विदिशा से ४५ मील की दूरी पर वेत्रवती नदी के किनारे बसा है। प्राचीन काल का यह नगर "उत्तर भारत का सोमनाथ' कहा जाता है। गाँव से लगी हुई पहाड़ी पर एक विशाल शिव मंदिर है। इस नगर तथा उसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज (१०१० ई.- १०५३ ई.) ने किया था। अतः इसे भोजपुर मंदिर या भोजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है।
विशाल मंदिर
[संपादित करें]गाँव से लगी हुई पहाड़ी पर एक विशाल शिव मंदिर है। इस नगर तथा उसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज (१०१० ई.- १०५३ ई.) ने किया था। अतः इसे भोजपुर मंदिर या भोजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर पूर्ण रुपेण तैयार नहीं बन पाया। इसका चबूतरा बहुत ऊँचा है, जिसके गर्भगृह में एक बड़ा- सा पत्थर के टूकड़े का पॉलिश किया गया शिव लिंग है, जिसकी ऊँचाई ३.८५ मी. है। इसे भारत के मंदिरों में पाये जाने वाले सबसे बड़े शिव लिंगों में से एक माना जाता है। विस्तृत चबूतरे पर ही मंदिर के अन्य हिस्सों, मंडप, महामंडप तथा अंतराल बनाने की योजना थी। ऐसा मंदिर के निकट के पत्थरों पर बने मंदिर- योजना से संबद्ध नक्शों से इस बात का स्पष्ट पता चलता है। इस मंदिर के अध्ययन से हमें भारतीय मंदिर की वास्तुकला के बारे में बहुत- सी बातों की जानकारी मिलती है। भारत में इस्लाम के आगमन से भी पहले, इस हिंदू मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बना अधुरा गुम्बदाकार छत भारत में ही गुम्बद निर्माण के प्रचलन को प्रमाणित करती है। भले ही उनके निर्माण की तकनीक भिन्न हो। कुछ विद्धान इसे भारत में सबसे पहले गुम्बदीय छत वाली इमारत मानते हैं। इस मंदिर का दरवाजा भी किसी हिंदू इमारत के दरवाजों में सबसे बड़ा है। चूँकि यह मंदिर ऊँचा है, इतनी प्राचीन मंदिर के निर्माण के दौरान भारी पत्थरों को ऊपर ले जाने के लिए ढ़लाने बनाई गई थी। इसका प्रमाण भी यहाँ मिलता है। मंदिर के निकट स्थित बाँध को राजा भोज ने बनवाया था। बाँध के पास प्राचीन समय में प्रचूर संख्या में शिवलिंग बनाया जाता था। यह स्थान शिवलिंग बनाने की प्रक्रिया की जानकारी देता है। कुछ बुजुर्गों का कहना हैै कि मंदिर का निर्माण द्वापर युग में पांडवों द्वारा माता कुंती की पूजा के लिए इस शिवलिंग का निर्माण एक ही रात में किया गया था। विश्व प्रसिद्घ शिवलिंग की ऊंचाई साढ़़ेे इक्कीस फिट, पिंडी का व्यास १८ फिट आठ इंच व जलहरी का निर्माण बीस बाई बीस से हुुआ हैै। इस प्रसिद्घ स्थल पर साल में दो बार वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता हैै। जो मंकर संक्रांति व महाशिवरात्रि पर्व होता हैै। एक ही पत्थर से निर्मित इतनी बड़़ी शिवलिंग अन्य कहीं नहीं दिखाई देती हैै। इस मंदिर की ड्राइंंग समीप ही स्थित पहाड़़ी पर उभरी हुुई हैै जो आज भी दिखाई देती हैै। इससे ऐेसा प्रतीत होता हैै कि पूर्व में भी आज की तरह नक्शे बनाकर निर्माण कार्य किए जाते रहेे होंगे। इस मंदिर के महंत पवन गिरी गोस्वामी ने बताया कि उनकी यह १९ वीं पीढ़़ी हैै जो इस मंंदिर की पूजा अर्चना कर रही हैै। उन्होंने बताया शिवरात्रि पर्व पर भगवान भोलेनाथ का माता पार्वती से विवाह हुुआ था। अत: इस दिन महिलाएं अपनी मनोकामना के साथ व्रत रखती हैै व भगवान भोले नाथ के पांव पखारने यहां आती है। माता कुुंती के पिता का नाम भी राजाभोज था अत: इसका नाम भोजपुर पड़़ा व यह द्वापर युग का निर्मित मंदिर हैै व जीर्णशीर्ण होने पर धार के राजा परमार वंशी राजाभोज ने इसका जीर्णोद्घार कराया। यहां शिवरात्रि पर्व पर करीब एक लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैैँँ।
बेतवा/वेत्रवती का उद्गम
[संपादित करें]भोजपुर से कुछ दूरी पर कुमरी गाँव के निकट सघन वन में वेत्रवती नदी का उद्गम स्थल है। यह नदी एक कुण्ड से निकलकर बहती है। भोपाल ताल भोजपुर का ही एक तालाब है। इसके बाँध को मालवा के शासक होशंगशाह (१४०५ - १४३४) में अपनी संक्षिप्त यात्रा में अपने बेगम की मलेरिया संबंधी शिकायत पर तुड़वा डाला था। इससे हुए जलप्लावन के बीच जो टापू बना वह द्वीप कहा जाने लगा। वर्तमान में यह "मंडी द्वीप' के नाम से जाना जाता है। इसके आस- पास आज भी कई खंडित सुंदर प्रतिमाएँ बिखरी पड़ी हैं। यहाँ मकर- संक्रांति पर मेला भी लगता है।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Inde du Nord: Madhya Pradesh et Chhattisgarh Archived 2019-07-03 at the वेबैक मशीन," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172
- ↑ "Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293