उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य और क्षेत्रफल की दृष्टि के आधार पर चौथा सबसे बड़ा राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और प्रयागराज न्यायिक राजधानी है। आगरा, गाजीपुर , अयोध्या, अलीगढ़, कानपुर, अंबेडकर नगर, झाँसी,ललितपुर, बरेली, मेरठ, बुलंदशहर वाराणसी, गोरखपुर, बस्ती, संत कबीर नगर मथुरा, मुरादाबाद, प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है।
9 नवम्बर 2000 में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। गंगा प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना दोआब क्षेत्र में आता है। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है।
उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य 2,38,566 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय प्रयागराज में है। कानपुर, आगरा; झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, जौनपुर, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, गाजीपुर, प्रयागराज, मेरठ, गोरखपुर, संत कबीर नगर,नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, संभल,गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, अयोध्या, बरेली, बदायूँ, बुलंदशहर, आज़मगढ़, मऊ, बलिया, मुज़फ़्फ़रनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य नगर हैं। उत्तर प्रदेश के 5 सबसे बड़े महानगर लखनऊ, कानपुर, आगरा, गाजियाबाद, प्रयागराज है और तेज़ी से जनसंख्या बड़ने वाले शहर लखनऊ और आगरा हैं इन दोनों शहरों की जनसंख्या पूरे उत्तर प्रदेश Archived 2023-12-06 at the वेबैक मशीन में सबसे तेज़ी से बढ़ रही है।
इतिहास
[संपादित करें]इसे जानने से पहले हम आपको बता दे की उत्तर प्रदेश जनसंख्या की दृष्टि से भारत में सबसे बड़ा राज्य है, वही उत्तर प्रदेश में कुल 75 जिले है जिसमें 18 मंडल है। उत्तर प्रदेश का गठन 24 जनवरी 1950 को हुआ था। इसका सबसे बड़ा शहर प्रयागराज है।
उत्तर प्रदेश का ज्ञात इतिहास लगभग ४००० वर्ष पुराना है, जब आर्यों ने अपना पहला कदम इस जगह पर रखा। इस समय वैदिक सभ्यता का प्रारम्भ हुआ और उत्तर प्रदेश में इसका जन्म हुआ। आर्यों का फैलाव सिन्धु नदी और सतलुज के मैदानी भागों से यमुना और गंगा के मैदानी क्षेत्र की ओर हुआ। आर्यों ने दोब (दो-आब, यमुना और गंगा का मैदानी भाग) और घाघरा नदी क्षेत्र को अपना घर बनाया। इन्हीं आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यावर्त या भारतवर्ष (भारत आर्यों के एक प्रमुख राजा थे) पड़ा। समय के साथ आर्य भारत के दूरस्थ भागों में फ़ैल गये। संसार के प्राचीनतम नगरों में से एक माना जाने वाला वाराणसी नगर यहीं पर स्थित है। वाराणसी के पास स्थित सारनाथ का चौखंडी स्तूप भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता है। समय के साथ यह क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया या फिर बड़े साम्राज्यों, यदुवंश, गुप्त, मोर्य और कुषाण का हिस्सा बन गया। 7वीं शताब्दी से 11वी शताब्दी तक कन्नौज गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य का प्रमुख केन्द्र था।
प्राचीन काल
[संपादित करें]यह उत्तर प्रदेश हिन्दू धर्म का प्रमुख स्थल रहा। प्रयाग के कुम्भ का महत्त्व पुराणों में वर्णित है। त्रेतायुग में विष्णु अवतार श्री रामचन्द्र जी ने अयोध्या में (जो अभी अयोध्या जनपद में स्थित है) में जन्म लिया। राम भगवान का चौदह वर्ष के वनवास में प्रयाग, चित्रकूट, श्रंगवेरपुर आदि का महत्त्व है। भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में और पुराणों के अनुसार विष्णु के दसम अवतार का कलयुग में अवतरण भी उत्तर प्रदेश में ही वर्णित है। काशी (वाराणसी) में विश्वनाथ मन्दिर के शिवलिंग का सनातन धर्म विशेष महत्त्व रहा है। सनातन धर्म के प्रमुख ऋषि रामायण रचयिता महर्षि वाल्मीकि जी, रामचरित मानस रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी (जन्म - राजापुर चित्रकूट), महर्षि भरद्वाज जी। उत्तर प्रदेश में कई देवियों के प्रसिद्ध मंदिर है जैसे मिर्जापुर का विंध्यवासिनी मंदिर, गाज़ीपुर (करहिया)माँ कामाख्या मंदिर, सहारनपुर का शाकंभरी देवी मंदिर जिसकी स्थापना ईसा पूर्व में हुई थी।
सातवीं शताब्दी ई॰पू॰ के अन्त से भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे, इनमें से सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी (बनारस) के निकट सारनाथ में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में, बल्कि चीन व जापान जैसे सुदूर देशों तक भी फैला। कहा जाता है कि बुद्ध को कुशीनगर में निर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) प्राप्त हुआ था, जो पूर्वी ज़िले कुशीनगर में स्थित है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई॰ तक उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा, पहले मगध, जो वर्तमान बिहार राज्य में स्थित था और बाद में उज्जैन, जो वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। इस राज्य पर शासन कर चुके इस काल के महान शासकों में चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद और उसके बाद उनके पुत्र चक्रवर्ती सम्राट धनानंद जो नाई समाज से थे। सम्राट महापद्मानंद और धनानंद के समय मगध विश्व का सबसे अमीर और बड़ी सेना वाला साम्राज्य हुआ करता था। चन्द्रगुप्त प्रथम (शासनकाल लगभग 330-380 ई॰) व अशोक (शासनकाल लगभग 268 या 265-238), जो मौर्य सम्राट थे और समुद्रगुप्त (लगभग 330-380 ई॰) और चन्द्रगुप्त द्वितीय हैं (लगभग 380-415 ई., जिन्हें कुछ विद्वान विक्रमादित्य मानते हैं)। एक अन्य प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन (शासनकाल 606-647) थे। जिन्होंने कान्यकुब्ज (आधुनिक कन्नौज के निकट) स्थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थानके कुछ हिस्सों पर शासन किया।
इस काल के दौरान बौद्ध संस्कृति, का उत्कर्ष हुआ। अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध कला के स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक अपने चरम पर पहुँचे। गुप्त काल (लगभग 320-550) के दौरान हिन्दू कला का भी अधिकतम विकास हुआ। लगभग 647 ई॰ में हर्ष की मृत्यु के बाद हिन्दूवाद के पुनरुत्थान के साथ ही बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस पुनरुत्थान के प्रमुख रचयिता दक्षिण भारत में जन्मे आदि शंकराचार्य थे, जो वाराणसी पहुँचे, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और हिमालय में बद्रीनाथ में प्रसिद्ध मन्दिर की स्थापना की। इसे हिन्दू मतावलम्बी चौथा एवं अन्तिम मठ (हिन्दू संस्कृति का केन्द्र) मानते हैं। यहाँ एक तीर्थ स्थान मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले से पूर्व में 28 किलॉमीटर शुकरताल है मान्यता है कि यहाँ 5000 वर्ष पुराना वट व्रक्ष है जिसके नीचे सूत जी कथा सुनाई थी
मध्यकाल
[संपादित करें]इस क्षेत्र में हालाँकि 1000-1030 ई. तक मुसलमानों का आगमन हो चुका था, किन्तु उत्तरी भारत में 12वीं शताब्दी के अन्तिम दशक के बाद ही मुस्लिम शासन स्थापित हुआ, जब मुहम्मद ग़ोरी ने गहड़वालों (जिनका उत्तर प्रदेश पर शासन था) और अन्य प्रतिस्पर्धी वंशों को हराया था। लगभग 650 वर्षों तक अधिकांश भारत की तरह उत्तर प्रदेश पर भी किसी न किसी मुस्लिम वंश का शासन रहा, जिनका केन्द्र दिल्ली या उसके आसपास था। 1526 ई. में बाबर ने दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी को हराया और सर्वाधिक सफल मुस्लिम वंश, मुग़ल वंश की नींव रखी। इस साम्राज्य ने 350 वर्षों से भी अधिक समय तक उपमहाद्वीप पर शासन किया। इस साम्राज्य का महानतम काल अकबर (शासनकाल 1556-1605 ई.) से लेकर औरंगज़ेब आलमगीर (1707) का काल था, जिन्होंने आगरा के पास नई शाही राजधानी फ़तेहपुर सीकरी का निर्माण किया। उनके पोते शाहजहाँ (शासनकाल 1628-1658 ई.) ने आगरा में ताजमहल (अपनी बेगम की याद में बनवाया गया मकबरा, जो प्रसव के दौरान चल बसी थीं) बनवाया, जो विश्व के महानतम वास्तुशिल्पीय नमूनों में से एक है। शाहजहाँ ने आगरा व दिल्ली में भी वास्तुशिल्प की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण इमारतें बनवाईं थीं।
उत्तर प्रदेश में केन्द्रित मुग़ल साम्राज्य ने एक नई मिश्रित संस्कृति के विकास को प्रोत्साहित किया। अकबर इसके प्रतिपादक थे, जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के अपने दरबार में वास्तुशिल्प, साहित्य, चित्रकला और संगीत विशेषज्ञों को नियुक्त किया था। भारत के विभिन्न मत और इस्लाम के मेल ने कई नए मतों का विकास किया, जो भारत की विभिन्न जातियों के बीच साधारण सहमति प्रस्थापित करना चाहते थे। भक्ति आन्दोलन के संस्थापक रामानन्द (लगभग 1400-1470 ई॰) का प्रतिपादन था कि, किसी व्यक्ती की मुक्ति ‘लिंग’ या ‘जाति’ पर आश्रित नहीं होती। सभी धर्मों के बीच अनिवार्य एकता की शिक्षा देने वाले कबीर ने उत्तर प्रदेश में मौजूद धार्मिक असहिष्णुता के विरुद्ध अपनी लड़ाई केन्द्रित की। 18वीं शताब्दी में मुग़लों के पतन के साथ ही इस मिश्रित संस्कृति का केन्द्र दिल्ली से लखनऊ चला गया, जो अवध के नवाब के अन्तर्गत था और जहाँ साम्प्रदायिक सद्भाव के वातावरण में कला, साहित्य, संगीत और काव्य का उत्कर्ष हुआ।
आधुनिक काल
[संपादित करें]लगभग 75 वर्ष की अवधि में उत्तर प्रदेश के क्षेत्र का ईस्ट इण्डिया कम्पनी (ब्रिटिश व्यापारिक कम्पनी) ने धीरे-धीरे अधिग्रहण किया। विभिन्न उत्तर भारतीय वंशों 1775, 1798 और 1801 में नवाबों, 1803 में सिन्धिया और 1816 में गोरखों से छीने गए प्रदेशों को पहले बंगाल प्रेसीडेंसी के अन्तर्गत रखा गया, लेकिन 1833 में इन्हें अलग करके पश्चिमोत्तर प्रान्त (आरम्भ में आगरा प्रेसीडेंसी कहलाता था) गठित किया गया। 1856 ई. में कम्पनी ने अवध पर अधिकार कर लिया और आगरा एवं अवध संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के समरूप) के नाम से इसे 1877 ई॰ में पश्चिमोत्तर प्रान्त में मिला लिया गया। 1902 ई॰ में इसका नाम बदलकर संयुक्त प्रान्त कर दिया गया।
1857-1859 ई. के बीच ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरुद्ध हुआ विद्रोह मुख्यत: पश्चिमोत्तर प्रान्त तक सीमित था। 10 मई 1857 ई. को मेरठ में सैनिकों के बीच भड़का विद्रोह कुछ ही महीनों में 25 से भी अधिक शहरों में फैल गया। 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण रही। उन्होंने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया और ब्रिटिश सेना के छक्के छुड़ा दिए। 1858 ई॰ में विद्रोह के दमन के बाद पश्चिमोत्तर और शेष ब्रिटिश भारत का प्रशासन ईस्ट इण्डिया कम्पनी से ब्रिटिश ताज को हस्तान्तरित कर दिया गया। 1880 ई. के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के साथ संयुक्त प्रान्त स्वतन्त्रता आन्दोलन में अग्रणी रहा। प्रदेश ने भारत को मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, जवाहरलाल नेहरू और पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रवादी राजनीतिक नेता दिए। 1922 में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने के लिए किया गया महात्मा गांधी का असहयोग आन्दोलन पूरे संयुक्त प्रान्त में फैल गया, लेकिन चौरी चौरा गाँव (प्रान्त के पूर्वी भाग में) में हुई हिंसा के कारण महात्मा गांधी ने अस्थायी तौर पर आन्दोलन को रोक दिया। संयुक्त प्रान्त मुस्लिम लीग की राजनीति का भी केन्द्र रहा। ब्रिटिश काल के दौरान रेलवे, नहर और प्रान्त के भीतर ही संचार के साधनों का व्यापक विकास हुआ। अंग्रेज़ों ने यहाँ आधुनिक शिक्षा को भी बढ़ावा दिया और यहाँ पर लखनऊ विश्वविद्यालय (1921 में स्थापित) जैसे विश्वविद्यालय व कई महाविद्यालय स्थापित किए।
सन 1857 में अंग्रेजी फौज के भारतीय सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह एक वर्ष तक चला और अधिकतर उत्तर भारत में फ़ैल गया। इसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया। इस विद्रोह का प्रारम्भ मेरठ शहर में हुआ। इस का कारण अंग्रेजों द्वारा गाय और सुअर की चर्बी से युक्त कारतूस देना बताया गया। इस संग्राम का एक प्रमुख कारण डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति भी थी। यह लड़ाई मुख्यतः दिल्ली,लखनऊ,कानपुर,झाँसी और बरेली में लड़ी गयी। इस लड़ाई में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवध की बेगम हज़रत महल, बख्त खान, नाना साहेब, राजा बेनी माधव सिंह कोतवाल धनसिंह गुर्जर और अनेक देशभक्तों ने भाग लिया।
सन 1902 में नार्थ वेस्ट प्रोविन्स का नाम बदल कर यूनाइटेड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे यूपी कहा गया। सन् 1920 में प्रदेश की राजधानी को प्रयागराज से लखनऊ कर दिया गया। प्रदेश का उच्च न्यायालय प्रयागराज ही बना रहा और लखनऊ में उच्च न्यायालय की एक न्यायपीठ स्थापित की गयी।
स्वतन्त्रता पश्चात का काल
[संपादित करें]1947 में संयुक्त प्रान्त नव स्वतन्त्र भारतीय गणराज्य की एक प्रशासनिक इकाई बना। दो वर्ष बाद इसकी सीमा के अन्तर्गत स्थित, टिहरी गढ़वाल और रामपुर के स्वायत्त राज्यों को संयुक्त प्रान्त में शामिल कर लिया गया। 1950 में नए संविधान के लागू होने के साथ ही 24 जनवरी सन 1950 को इस संयुक्त प्रान्त का नाम उत्तर प्रदेश रखा गया और यह भारतीय संघ का राज्य बना। स्वतंत्रता के बाद से भारत में इस राज्य की प्रमुख भूमिका रही है। इसने देश को जवाहर लाल नेहरू और उनकी पुत्री इंदिरा गांधी सहित कई प्रधानमंत्री, सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक आचार्य नरेन्द्र देव, जैसे प्रमुख राष्ट्रीय विपक्षी (अल्पसंख्यक) दलों के नेता और भारतीय जनसंघ, बाद में भारतीय जनता पार्टी व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता दिए हैं। राज्य की राजनीति, हालाँकि विभाजनकारी रही है और कम ही मुख्यमंत्रियों ने पाँच वर्ष की अवधि पूरी की है। गोविंद वल्लभ पंत इस प्रदेश के प्रथम मुख्य मन्त्री बने। अक्टूबर १९६३ में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश एवम भारत की प्रथम महिला मुख्य मन्त्री बनीं। सन २००० में पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र स्थित गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डल को मिला कर एक नये राज्य उत्तरांचल का गठन किया गया जिसका नाम बाद में बदल कर 2007 में उत्तराखण्ड कर दिया गया है। उत्तरांचल के प्रथम मुख्यमंत्री एन. डी. तिवारी बने जो अविभाजित उत्तर प्रदेश के भी मुख्यमंत्री रह चुके थे।
राज्य का विभाजन
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश के गठन के तुरन्त बाद उत्तराखण्ड क्षेत्र (गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्र द्वारा निर्मित) में समस्याएँ उठ खड़ी हुईं। इस क्षेत्र के लोगों को लगा कि, विशाल जनसंख्या और वृहद भौगोलिक विस्तार के कारण लखनऊ में बैठी सरकार के लिए उनके हितों की देखरेख करना सम्भव नहीं है। बेरोज़गारी, गरीबी और सामान्य व्यवस्था व पीने के पानी जैसी आधारभूत सुविधाओं की कमी और क्षेत्र के अपेक्षाकृत कम विकास ने लोगों को एक अलग राज्य की माँग करने पर विवश कर दिया। शुरू-शुरू में विरोध कमज़ोर था, लेकिन 1990 के दशक में इसने ज़ोर पकड़ा व आन्दोलन तब और भी उग्र हो गया, जब 2 अक्टूबर 1994 को मुज़फ़्फ़रनगर में इस आन्दोलन के एक प्रदर्शन में पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में 40 लोग मारे गए। अन्तत: नवम्बर, 2000 में उत्तर प्रदेश के पश्चिमोत्तर हिस्से से उत्तरांचल के नए राज्य का, जिसमें कुमाऊँ और गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र शामिल थे, गठन किया गया।
भूगोल
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित है। प्रदेश के उत्तरी एवम पूर्वी भाग की तरफ़ पहाड़ तथा पश्चिमी एवम मध्य भाग में मैदान हैं। उत्तर प्रदेश को मुख्यतः तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है।
- उत्तर में हिमालय का - यह् क्षेत्र बहुत ही ऊँचा-नीचा और प्रतिकूल भू-भाग है। यह क्षेत्र अब उत्तरांचल के अन्तर्गत आता है। इस क्षेत्र की स्थलाकृति बदलाव युक्त है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 9०० से ५००० मीटर तथा ढलान १५० से ६०० मीटर/किलोमीटर है।
- मध्य में गंगा का मैदानी भाग - यह क्षेत्र अत्यन्त ही उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र है। इसकी स्थलाकृति सपाट है। इस क्षेत्र में अनेक तालाब, झीलें और नदियाँ हैं। इसका ढलान २ मीटर/किलोमीटर है।
- दक्षिण का विन्ध्याचल क्षेत्र - यह एक पठारी क्षेत्र है, तथा इसकी स्थलाकृति पहाड़ों, मैंदानों और घाटियों से घिरी हुई है। इस क्षेत्र में पानी कम मात्रा में उप्लब्ध है।
यहाँ की जलवायु मुख्यतः उष्णदेशीय मानसून की है परन्तु समुद्र तल से ऊँचाई बदलने के साथ इसमें परिवर्तन होता है। उत्तर प्रदेश ८ राज्यों - उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार से घिरा राज्य है
भूगोलीय तत्त्व
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश के प्रमुख भूगोलीय तत्त्व इस प्रकार से हैं-
- भूमि -
भू-आकृति - उत्तर प्रदेश को दो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों, गंगा के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी उच्चभूमि में बाँटा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा गंगा के मैदान में है। मैदान अधिकांशत: गंगा व उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से बने हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में उतार-चढ़ाव नहीं है, यद्यपि मैदान बहुत उपजाऊ है, लेकिन इनकी ऊँचाई में कुछ भिन्नता है, जो पश्चिमोत्तर में 305 मीटर और सुदूर पूर्व में 58 मीटर है। गंगा के मैदान की दक्षिणी उच्चभूमि अत्यधिक विच्छेदित और विषम विंध्य पर्वतमाला का एक भाग है, जो सामान्यत: दक्षिण-पूर्व की ओर उठती चली जाती है। यहाँ ऊँचाई कहीं-कहीं ही 305 से अधिक होती है।
- नदियाँ
उत्तर प्रदेश में अनेक नदियाँ है जिनमें गंगा, यमुना, बेतवा, केन, चम्बल, घाघरा, गोमती, सोन आदि मुख्य है। प्रदेश के विभिन्न भागों में प्रवाहित होने वाली इन नदियों के उदगम स्थान भी भिन्न-भिन्न है, अतः इनके उदगम स्थलों के आधार पर इन्हें निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है।
हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँ गंगा के मैदानी भाग से निकलने वाली नदियाँ दक्षिणी पठार से निकलने वाली नदियाँ हैं बेतवा, केन, चम्बल आदि प्रमुख हैं
उत्तर प्रदेश में झीलों का अभाव है। यहाँ की अधिकांश झीलें कुमाऊँ क्षेत्र में हैं जो कि प्रमुखतः भूगर्भीय शक्तियों के द्वारा भूमि के धरातल में परिवर्तन हो जाने के परिणामस्वरूप निर्मित हुई हैं।
नहरों के वितरण एवं विस्तार की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का अग्रणीय स्थान है। यहाँ की कुल सिंचित भूमि का लगभग 30 प्रतिशत भाग नहरों के द्वारा सिंचित होता है। यहाँ की नहरें भारत की प्राचीनतम नहरों में से एक हैं।
- अपवाह
यह राज्य उत्तर में हिमालय और दक्षिण में विंध्य पर्वतमाला से उदगमित नदियों के द्वारा भली-भाँति अपवाहित है। गंगा एवं उसकी सहायक नदियों, यमुना नदी, रामगंगा नदी, गोमती नदी, घाघरा नदी और गंडक नदी को हिमालय के हिम से लगातार पानी मिलता रहता है। विंध्य श्रेणी से निकलने वाली चंबल नदी, बेतवा नदी और केन नदी यमुना नदी में मिलने से पहले राज्य के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में बहती है। विंध्य श्रेणी से ही निकलने वाली सोन नदी राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग में बहती है और राज्य की सीमा से बाहर बिहार में गंगा नदी से मिलती है।
उत्तर प्रदेश के क्षेत्रफल का लगभग दो-तिहाई भाग गंगा तंत्र की धीमी गति से बहने वाली नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी की गहरी परत से ढंका है। अत्यधिक उपजाऊ यह जलोढ़ मिट्टी कहीं रेतीली है, तो कहीं चिकनी दोमट। राज्य के दक्षिणी भाग की मिट्टी सामान्यतया मिश्रित लाल और काली या लाल से लेकर पीली है। राज्य के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में मृदा कंकरीली से लेकर उर्वर दोमट तक है, जो महीन रेत और ह्यूमस मिश्रित है, जिसके कारण कुछ क्षेत्रों में घने जंगल हैं।
उत्तर प्रदेश की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी है। राज्य में औसत तापमान जनवरी में 12.50 से 17.50 से. रहता है, जबकि मई-जून में यह 27.50 से 32.50 से. के बीच रहता है। पूर्व से (1,000 मिमी से 2,000 मिमी) पश्चिम (610 मिमी से 1,000 मिमी) की ओर वर्षा कम होती जाती है। राज्य में लगभग 90 प्रतिशत वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान होती है, जो जून से सितम्बर तक होती है। वर्षा के इन चार महीनों में होने के कारण बाढ़ एक आवर्ती समस्या है, जिससे ख़ासकर राज्य के पूर्वी हिस्से में फ़सल, जनजीवन व सम्पत्ति को भारी नुक़सान पहुँचता है। मानसून की लगातार विफलता के परिणामस्वरूप सूखा पड़ता है व फ़सल का नुक़सान होता है। यहाँ सापेक्ष आर्द्रता लगभग 20% कम है और पूरे मौसम में धूल भरी हवाएँ चलती हैं। गर्मियों में, पूरे उत्तर प्रदेश में लू नामक गर्म हवाएँ चलती हैं।[11]
- वनस्पति एवं प्राणी जीवन
राज्य में वन मुख्यत: दक्षिणी उच्चभूमि पर केन्द्रित हैं, जो ज़्यादातर झाड़ीदार हैं। विविध स्थलाकृति एवं जलवायु के कारण इस क्षेत्र का प्राणी जीवन समृद्ध है। इस क्षेत्र में शेर, तेंदुआ, हाथी, जंगली सूअर, घड़ियाल के साथ-साथ कबूतर, फ़ाख्ता, जंगली बत्तख़, तीतर, मोर, कठफोड़वा, नीलकंठ और बटेर पाए जाते हैं। कई प्रजातियाँ, जैसे-गंगा के मैदान से सिंह और तराई क्षेत्र से गैंडे अब विलुप्त हो चुके हैं। वन्य जीवन के संरक्षण के लिए सरकार ने 'चन्द्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य' और 'दुधवा अभयारण्य' सहित कई अभयारण्य स्थापित किए हैं।
मण्डल, जनपद व नगर
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश को प्रशसनिक कारणों से 75 जिलों में बाँटा गया है, जो कि निम्नलिखित 18 मण्डलों में समूहबद्ध हैं -
मण्डल | जनपद | मण्डल | जनपद | मण्डल | जनपद |
आगरा मण्डल | अलीगढ़ मण्डल | प्रयागराज मण्डल | |||
आज़मगढ़ मण्डल | बरेली मण्डल | बस्ती मण्डल | |||
चित्रकूट मण्डल | देवीपाटन मण्डल | अयोध्या मण्डल | |||
गोरखपुर मण्डल | झांसी मण्डल | कानपुर मण्डल | |||
लखनऊ मण्डल | मेरठ मण्डल | मिर्ज़ापुर मण्डल | |||
मुरादाबाद मण्डल | सहारनपुर मण्डल | वाराणसी मण्डल |
- उत्तर प्रदेश में अब जिलों की संख्या 75 तथा मण्डल 18 है।
- भारत में सबसे अधिक जनसंख्या वाला प्रदेश, उत्तर प्रदेश है। और सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले महानगर लखनऊ कानपुर आगरा है
- उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक लोक सभा व राज्य सभा के सदस्य चुने जाते हैं। सीटों की संख्या लोक सभा में 80 और राज्य सभा में 31 है।
- उत्तर प्रदेश देश का सबसे अधिक जिलों वाला प्रदेश है।
- उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधानसभा सीटें हैं।
- उत्तर प्रदेश में स्थित प्रयागराज उच्च न्यायालय एशिया का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है।
- उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला, देश का एक मात्र ऐसा जिला है, जिसकी सीमाएँ चार प्रदेशों को छूती हैं।
आवासीन रचना
[संपादित करें]राज्य की 80 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ग्रामीण आवासों की विशेषताएँ हैं- राज्य के पश्चिमी हिस्से में पाए जाने वाले घने बसे हुए गाँव, पूर्वी क्षेत्र में पाए जाने वाले छोटे गाँव और मध्य क्षेत्र में दोनों का समूह होता है, जिसकी छत फूस या मिट्टी के खपड़ों से बनी होती है। इन मकानों में हालाँकि आधुनिक जीवन की बहुत कम सुविधाएँ हैं, लेकिन शहरों के पास बसे कुछ गाँवों में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है। सीमेण्ट से बने घर, पक्की सड़कें, बिजली, रेडियो, टेलीविजन जैसी उपभोक्ता वस्तुएँ पारम्परिक ग्रामीण जीवन को बदल रही हैं। शहरी जनसंख्या का आधे से अधिक हिस्सा एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों में रहता है। लखनऊ, वाराणसी (बनारस), आगरा, कानपुर, मेरठ, गोरखपुर, और प्रयागराज उत्तर प्रदेश के सात सबसे बड़े नगर हैं। कानपुर उत्तर प्रदेश के मध्य क्षेत्र में स्थित प्रमुख औद्योगिक शहर है। कानपुर के पूर्वोत्तर में 82 किलोमीटर की दूरी पर राज्य की राजधानी लखनऊ स्थित है। हिन्दुओं का सर्वाधिक पवित्र शहर अयोध्या (135 किलोमीटर)और वाराणसी विश्व के प्राचीनतम सतत आवासीय शहरों में से एक है। एक अन्य पवित्र शहर प्रयागराज गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी के संगम पर स्थित है। राज्य के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में स्थित आगरा में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ द्वारा अपनी बेगम की याद में बनवाया गया मक़बरा ताजमहल स्थित है। यह भारत के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है।
जनसांख्यिकी
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश भारत का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है। १ मार्च २०११ को १९,९५,८१,४७७ लोगों के साथ,[12] यह विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाली उप राष्ट्रीय इकाई है। विश्व में केवल पाँच राष्ट्रों चीन, स्वयं भारत, सं॰रा॰अमेरिका, इण्डोनेशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। भारत की कुल जनसंख्या में १६.२% लोग उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं। १९९१ से २००१ तक राज्य की जनसंख्या में २६% से अधिक की वृद्धि हुई।[13] राज्य का जनसंख्या घनत्व ८२८ व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, जो इसे देश के सबसे सघन जनसंख्या वाले राज्यों में से एक बनाता है।[10] उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति की जनसंख्या सबसे अधिक है जबकि अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या कुल जनसंख्या के १ प्रतिशत से भी कम है।[14][15]
२०११ में ९१२ महिलाओं प्रति १००० पुरुष का राज्य का लिंगानुपात, ९४३ के राष्ट्रीय आंकड़े से कम था।[8] राज्य की २००१-२०११ की दशकीय विकास दर (उत्तराखण्ड सहित) २०.१% थी, जो १७.६४% की राष्ट्रीय दर से अधिक थी।[16][17] उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।[18] २०१६ में जारी विश्व बैंक के एक आलेख के अनुसार, राज्य में गरीबी घटने की गति देश के बाकी हिस्सों की तुलना में धीमी रही है।[19] वर्ष २०११-१२ के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुमानों के अनुसार उत्तर प्रदेश में ५.९ करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, जो भारत के किसी भी राज्य के लिए सबसे अधिक हैं।[18][20] विशेष रूप से राज्य के मध्य और पूर्वी जिलों में गरीबी का स्तर बहुत अधिक है। राज्य खपत असमानता का भी अनुभव कर रहा है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार की ७ जनवरी २०२० को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य की प्रति व्यक्ति आय ₹८,००० (यूएस$११०) प्रति वर्ष से भी कम है।[21]
२०११ की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश भारत में सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है, जहां हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों की संख्या सबसे अधिक है।[23] २०११ में राज्य की कुल जनसंख्या में से हिन्दू ७९.७%, मुसलमान १९.३%, सिख ०.३%, ईसाई ०.२%, जैन ०.१%, बौद्ध ०.१% और अन्य ०.३% थे।[24] २०११ की जनगणना में राज्य की साक्षरता दर ६७.७% थी, जो राष्ट्रीय औसत ७४% से कम थी।[25][26] पुरुषों में साक्षरता दर ७९% और महिलाओं में ५९% है। २००१ में उत्तर प्रदेश की साक्षरता दर ५६% थी; ६७% पुरुष और ४३% महिलाएं साक्षर थी।[27] केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (एनएसओ) के सर्वेक्षण[a] पर आधारित एक रिपोर्ट के अनुसार २०१७ -१७ में उत्तर प्रदेश की साक्षरता दर ७३% है, जो राष्ट्रीय औसत ७७.७% से कम है। इसी रिपोर्ट के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों में साक्षरता दर ८०.५% और महिलाओं में ६०.४% है, जबकि नगरीय क्षेत्रों में पुरुषों में साक्षरता दर ८६.८% और महिलाओं में ७४.९% है।[28]
हिन्दी उत्तर प्रदेश की आधिकारिक भाषा है और राज्य की अधिकांश जनसंख्या (८०.१६%) द्वारा बोली जाती है।[7] लेकिन अधिकांश लोग क्षेत्रीय भाषाएँ बोलते हैं, जिन्हें जनगणना में हिंदी की बोलियों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बोली जाने वाली खड़ी बोली या कौरवी तथा ब्रज क्षेत्र में बोली जाने वाली ब्रजभाषा, मध्य उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में बोली जाने वाली अवधी तथा कन्नौज के आस-पास बोली जाने वाली कन्नौजी, पूर्वी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में बोली जाने वाली भोजपुरी और दक्षिणी उत्तर प्रदेश में बोली जाने वाली बुंदेली शामिल हैं। ५.४% जनसंख्या द्वारा बोली जाने वाली उर्दू को राज्य की अतिरिक्त आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है।[7][30] राज्य में बोली जाने वाली अन्य उल्लेखनीय भाषाओं में पंजाबी (०.३%) और बंगाली (०.१%) शामिल हैं।[30]
अपराध
[संपादित करें]भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अनुसार, उत्तर प्रदेश मुठभेड़ और पुलिस-हिरासत में हुई मृत्युओं के मामले में राज्यों की सूची में सबसे ऊपर है।[32] २०१४ में देश में दर्ज कुल १५३० न्यायिक मृत्युओं में से ३६५ मृत्युएं राज्य में हुई थी।[33] एनएचआरसी ने आगे कहा कि २०१६ में देश में दर्ज ३०,००० से अधिक हत्याओं में से, ४,८८९ मामले उत्तर प्रदेश से थे।[34] गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, बरेली में पुलिस-हिरासत में सर्वाधिक २५ मृत्युऐं दर्ज की गई; आगरा (२१), इलाहाबाद (१९) और वाराणसी (९) इससे अगले स्थान पर थे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के २०११ के आंकड़े कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में भारत के किसी भी राज्य की तुलना में सबसे अधिक अपराध होते हैं, लेकिन इसकी उच्च जनसंख्या के कारण, प्रति व्यक्ति अपराध की वास्तविक दर काफी कम है।[35] सांप्रदायिक हिंसा की सर्वाधिक घटनाओं वाली राज्यों की सूची में भी उत्तर प्रदेश शीर्ष पर बना हुआ है। गृह राज्य मंत्री के २०१४ के एक विश्लेषण के अनुसार भारत में सांप्रदायिक हिंसा की सभी घटनाओं में से २३% घटनाएं उत्तर प्रदेश में घटित हुई।[36][37] भारतीय स्टेट बैंक द्वारा एकत्र एक शोध के अनुसार, उत्तर प्रदेश २७ वर्षों (१९९०-२०१७) की अवधि में अपनी मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) रैंकिंग में सुधार करने में विफल रहा है।[38] १९९० से २०१७ तक भारतीय राज्यों के लिए उप-राष्ट्रीय मानव विकास सूचकांक के आंकड़ों के आधार पर, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में मानव विकास सूचकांक का मूल्य समय के साथ १९९० में ०.३९ से बढ़कर २०१७ में ०.५९ हो गया है।[39][40][41] राज्य के गृह विभाग द्वारा शासित उत्तर प्रदेश पुलिस दुनिया की सबसे बड़ी पुलिस बल है।[31][42][43]
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में २०१५ में सड़क और रेल दुर्घटनाओं के कारण सर्वाधिक २३,२१९ मृत्युऐं हुईं।[44][45] इसमें लापरवाही से वाहन चलाने के कारण हुई ८१०९ मृत्युऐं भी शामिल हैं।[46] २००६ और २०१० के बीच राज्य में तीन आतंकवादी हमले हुए हैं, जिनमें एक ऐतिहासिक पवित्र स्थान, एक अदालत और एक मंदिर में विस्फोट शामिल हैं। २००६ का वाराणसी बम विस्फोट ७ मार्च २००६ को वाराणसी नगर में हुए बम विस्फोटों की एक शृंखला थी, जिसमें कम से कम २८ लोग मारे गए थे और १०१ अन्य घायल हो गए।[47][48]
२३ नवंबर २००७ की दोपहर में, २५ मिनट की अवधि के भीतर, लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद न्यायालयों में लगातार छह सिलसिलेवार विस्फोट हुए, जिसमें २८ लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।[49] ये विस्फोट उत्तर प्रदेश पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जैश-ए-मोहम्मद के उन आतंकवादियों का भंडाफोड़ करने के एक सप्ताह बाद हुए, जिन्होंने राहुल गांधी का अपहरण करने की योजना बनाई थी। इंडियन मुजाहिदीन ने विस्फोट से पांच मिनट पहले टीवी स्टेशनों को भेजे गए एक ईमेल में इन विस्फोटों की जिम्मेदारी ली थी।[50][51][52] एक और धमाका ७ दिसंबर २०१० को वाराणसी के शीतला घाट हुआ, जिसमें ३८ से अधिक लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।[53][54]
अर्थव्यवस्था
[संपादित करें]कृषि उत्तर प्रदेश में प्रमुख व्यवसाय है और राज्य के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।[55] निवल देशीय उत्पाद (एनएसडीपी) के सन्दर्भ में, उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसका अनुमानित सकल राज्य घरेलू उत्पाद ₹14.89 लाख करोड़ है, जो भारत के कुल सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 8.4% है।[56] इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014-15 में देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 19% है।[57] राज्य ने पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक विकास की उच्च दर का अनुभव किया है। राज्य में 2014-15 में खाद्यान्न उत्पादन 47,773.4 हजार टन था। गेहूँ राज्य की प्रमुख खाद्य फसल है, और गन्ना, जो मुख्यतः पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है, राज्य की मुख्य व्यावसायिक फसल है।[58] भारत की लगभग ७०% चीनी उत्तर प्रदेश से आती है। गन्ना सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसल है क्योंकि राज्य देश में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक है।[57] इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, सितम्बर 2015 की वित्तीय तिमाही में भारत में कुल 2.83 करोड़ टन गन्ना उत्पादन होने का अनुमान लगाया गया था, जिसमें से 1.04 करोड़ टन महाराष्ट्र से और 73.5 लाख टन उत्तर प्रदेश से था।[59]
वर्तमान कीमतों पर घटक लागत पर निवल देशीय उत्पाद (2011-12 आधार)
आँकड़े करोड़ में | |
वर्ष | निवल देशीय उत्पाद[60] |
---|---|
2011-12 | 2,29,074 |
2012-13 | 2,56,699 |
2013-14 | 2,94,031 |
2014-15 | 3,32,352 |
2015-16 | 3,84,718 |
2016-17 | 4,53,020 |
2017-18 | 14,46,000[56] (अनुमानित) |
राज्य के अधिकतर उद्योग कानपुर क्षेत्र, पूर्वांचल की उपजाऊ भूमि और नोएडा क्षेत्र में स्थानीयकृत हैं। मुगलसराय में कई प्रमुख लोकोमोटिव संयन्त्र हैं। राज्य के प्रमुख विनिर्माण उत्पादों में इंजीनियरिंग उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स, विद्युत उपकरण, केबल, स्टील, चमड़ा, कपड़ा, आभूषण, फ्रिगेट, ऑटोमोबाइल, रेलवे कोच और वैगन शामिल हैं। मेरठ भारत की खेल राजधानी होने के साथ-साथ ज्वैलरी हब भी है। उत्तर प्रदेश में किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सर्वाधिक लघु-स्तरीय औद्योगिक इकाइयाँ स्थित हैं; कुल 23 लाख इकाइयों के 12 प्रतिशत से अधिक।[55] 359 विनिर्माण समूहों के साथ सीमेण्ट उत्तर प्रदेश में लघु उद्योगों में शीर्ष क्षेत्र पर है।[62]
उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम (यूपीएफसी) की स्थापना 1954 में एसएफसी अधिनियम 1951 के तहत राज्य में लघु और मध्यम स्तर के उद्योगों को विकसित करने के लिए की गई थी।[63] यूपीएफसी अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाली वर्तमान इकाइयों तथा नयी इकाइयों को एकल खिड़की योजना के तहत कार्यशील पूँजी भी प्रदान करता था,[64] किन्तु जुलाई 2012 में वित्तीय बाधाओं और राज्य सरकार के निर्देशों के कारण राज्य सरकार की योजनाओं को छोड़कर अन्य सभी ऋण गतिविधियों को निलंबित कर दिया गया।[65] राज्य में 2012 और 2016 के वर्षों के दौरान 25,081 करोड़ रुपये से अधिक का कुल निजी निवेश हुआ है।[66] भारत में व्यापार करने में आसानी पर विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश को शीर्ष 10 राज्यों में, और उत्तर भारतीय राज्यों में पहले स्थान पर रखा गया था।[67]
उत्तर प्रदेश बजट दस्तावेज़ (2019-20) के अनुसार उत्तर प्रदेश पर कर्ज का बोझ जीएसडीपी का 29.8 प्रतिशत है।[68] 2011 में राज्य का कुल वित्तीय ऋण ₹20 खरब (₹2,00,000 करोड़) था।[69] कई वर्षों से लगातार प्रयासों के बावजूद भी उत्तर प्रदेश कभी दोहरे अंकों में आर्थिक विकास हासिल नहीं कर पाया है।[68] 2017-18 में जीएसडीपी ७ प्रतिशत और 2018-19 में 6.5 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10 प्रतिशत है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमएआई) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 2010-20 के दशक में उत्तर प्रदेश की बेरोजगारी दर 11.4 प्रतिशत अंक से बढ़ी, जो अप्रैल 2020 में 21.5 प्रतिशत आंकी गयी।[70] उत्तर प्रदेश में राज्य से बाहर प्रवास करने वाले अप्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या है।[71] प्रवास पर 2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग 1.44 करोड़ (14.7 %) लोग उत्तर प्रदेश से बाहर चले गए थे।[72] पुरुषों में प्रवास का सबसे महत्वपूर्ण कारण कार्य/रोजगार जबकि महिलाओं के बीच प्रवास का प्रमुख कारण अप्रवासी पुरुषों से विवाह उद्धृत किया गया।[73]
2009-10 में, अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र (कृषि, वानिकी और पर्यटन) के राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 44% के योगदान और द्वितीयक क्षेत्र (औद्योगिक और विनिर्माण) के 11.2% के योगदान की तुलना में तृतीयक क्षेत्र (सेवा उद्योग) 44.8% के योगदान के साथ राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में सबसे बड़ा योगदानकर्ता था।[74][75] एमएसएमई क्षेत्र उत्तर प्रदेश में दूसरा सबसे बड़ा रोजगार सृजनकर्ता है, पहला कृषि है जो राज्य भर में 92 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है। ११वीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) के दौरान, औसत सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) की वृद्धि दर 7.3% थी, जो देश के अन्य सभी राज्यों के औसत 15.5% से कम थी।[76][77] ₹29,417 की राज्य की प्रति व्यक्ति जीएसडीपी भी राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति जीएसडीपी ₹60.972 से कम थी।[78] हालाँकि, राज्य की श्रम दक्षता 26 थी, जो 25 के राष्ट्रीय औसत से अधिक थी। कपड़ा और चीनी शोधन, दोनों उत्तर प्रदेश में लम्बे समय से चले आ रहे उद्योग हैं, जो राज्य के कुल कारखाना श्रम के एक महत्वपूर्ण अनुपात को रोजगार देते हैं। राज्य के पर्यटन उद्योग से भी अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।[79] राज्य के निर्यात में जूते, चमड़े के सामान और खेल के सामान शामिल हैं।
राज्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने में भी सफल रहा है, जो ज्यादातर सॉफ्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्रों में आया है; नोएडा, कानपुर और लखनऊ सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग के लिए प्रमुख केन्द्र बन रहे हैं और अधिकांश प्रमुख कॉर्पोरेट, मीडिया और वित्तीय संस्थानों के मुख्यालय इन्हीं नगरों में हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थित सोनभद्र जिले में बड़े पैमाने पर उद्योग हैं, और इसके दक्षिणी क्षेत्र को भारत की ऊर्जा राजधानी के रूप में जाना जाता है।[80] दूरसंचार नियामक, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के अनुसार, मई 2013 में उत्तर प्रदेश में देश में मोबाइल ग्राहकों की सबसे बड़ी संख्या थी; भारत के 86.16 करोड़ मोबाइल फोन कनेक्शनों में से कुल 12.16 करोड़ उत्तर प्रदेश में थे।[81][82][83][84] नवंबर 2015 में शहरी विकास मन्त्रालय ने एक व्यापक विकास कार्यक्रम के लिए उत्तर प्रदेश के इकसठ शहरों का चयन किया, जिसे अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एण्ड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत मिशन) के रूप में जाना जाता है।[85] शहरों में स्थानीय शहरी निकायों के बेहतर कामकाज के लिए एक योजना, सेवा स्तर सुधार योजना विकसित करने के लिए शहरों के लिए ₹260 अरब (₹26,000 करोड़) का पैकेज घोषित किया गया था।[86]
परिवहन
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश का रेलवे नेटवर्क भारत में सबसे बड़ा है, परन्तु राज्य की समतल स्थलाकृति और सर्वाधिक जनसंख्या के बावजूद रेलवे घनत्व केवल छठा-उच्चतम है। २०११ तक, राज्य में ८,५४६ किमी (५,३१० मील) लम्बी रेल लाइनें थी।[87] उत्तर मध्य रेलवे अंचल का मुख्यालय प्रयागराज में,[88] और पूर्वोत्तर रेलवे अंचल का मुख्यालय गोरखपुर में है।[89][90] इन अंचलीय मुख्यालयों के अतिरिक्त, लखनऊ और मुरादाबाद में उत्तर रेलवे अंचल के मंडलीय मुख्यालय स्थित हैं। भारत की दूसरी सबसे तेज शताब्दी ट्रेन लखनऊ स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस राज्य की राजधानी लखनऊ को भारतीय राजधानी नई दिल्ली से जोड़ती है जबकि कानपुर शताब्दी एक्सप्रेस, कानपुर को नई दिल्ली से जोड़ती है। नए जर्मन एलएचबी कोचों से युक्त यह भारत की पहली ट्रेन थी।[91] प्रयागराज जंक्शन, आगरा कैंट, लखनऊ एनआर, गोरखपुर जंक्शन, कानपुर सेंट्रल, अयोध्या जंक्शन, मथुरा जंक्शन और वाराणसी जंक्शन भारतीय रेलवे की ५० विश्व स्तरीय रेलवे स्टेशनों की सूची में शामिल हैं।[92]
राज्य में देश में एक विशाल और बहुविध परिवहन प्रणाली है, जिसके अंतर्गत देश का सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क भी है।[93] उत्तर प्रदेश अपने नौ पड़ोसी राज्यों और भारत के लगभग सभी अन्य हिस्सों से राष्ट्रीय राजमार्गों के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। कुल ४२ राष्ट्रीय राजमार्ग राज्य में हैं, जिनकी लंबाई ४,९४२ किमी (भारत में राजमार्गों की कुल लंबाई का ९.६%) है। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की स्थापना १९७२ में राज्य में सस्ती, विश्वसनीय और आरामदायक परिवहन सेवा प्रदान करने के लिए की गई थी,[94] और यह पूरे देश में लाभ में चलने वाला एकमात्र राज्य परिवहन निगम है। राज्य के सभी नगर राज्य राजमार्गों से जुड़े हुए हैं, और सभी जनपद मुख्यालयों को फोर लेन सड़कों से जोड़ा जा रहा है जो राज्य के भीतर प्रमुख केंद्रों के बीच यातायात ले जाती हैं। इन्हीं में से एक है आगरा–लखनऊ एक्सप्रेसवे, जो कि पुरानी भीड़ग्रस्त सड़कों पर वाहनों के यातायात को कम करने के लिए उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीईआईडीए) द्वारा निर्मित ३०२ किमी (१८८ मील) लम्बा नियंत्रित-पहुंच राजमार्ग है।[95] यह एक्सप्रेसवे देश का सबसे बड़ा ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे है, जिसने लखनऊ और आगरा के बीच यात्रा के समय को ६ घंटे से घटाकर ३.३० घंटे कर दिया है।[96] अन्य जिला सड़कें व ग्रामीण सड़कें ग्रामों को उनकी सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पहुँच प्रदान करती हैं और साथ ही कृषि उपज को आस-पास के बाजारों तक पहुँचाने के साधन भी प्रदान करती हैं। प्रमुख जिला सड़कें मुख्य सड़कों और ग्रामीण सड़कों को जोड़ने का एक द्वितीयक कार्य करती हैं।[97] उत्तर प्रदेश में भारत में सबसे अधिक सड़क घनत्व (१,०२७ किमी प्रति १००० वर्ग किमी) और देश में सबसे बड़ा नगरीय-सड़क नेटवर्क (५०,७२१ किमी) है।[98]
राज्य में चार अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र हैं – लखनऊ में स्थित चौधरी चरण सिंह अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, अयोध्या में स्थित अयोध्या विमानक्षेत्र वाराणसी में स्थित लाल बहादुर शास्त्री अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, कुशीनगर मैं स्थित कुशीनगर अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा विमानक्षेत्र।[99] इसके अतिरिक्त आगरा, प्रयागराज, कानपुर, गाजियाबाद, गोरखपुर व बरेली में घरेलू विमानक्षेत्र हैं।[100] लखनऊ विमानक्षेत्र नई दिल्ली में स्थित इन्दिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र के बाद उत्तर भारत का दूसरा सबसे व्यस्त हवाई अड्डा है। इन सब के अलावा एक नया अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र ग्रेटर नोएडा के निकट स्थित जेवर में निर्माणाधीन हैं,[101][102] जबकि फिरोजाबाद जिले के टुंडला के निकट ताज अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी प्रस्तावित है।[103][104] लखनऊ मेट्रो ९ मार्च २०१९ से परिचालन में है, जबकि आगरा मेट्रो व कानपुर मेट्रो निर्माणाधीन हैं। राजधानी में अप्रवासियों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है और इस कारण परिवहन के सार्वजनिक साधनों में परिवर्तन पर जोर है।[105] राज्य के आंतरिक परिवहन तंत्र में गंगा, यमुना व सरयू नदियों की अंतर्देशीय जल परिवहन व्यवस्था भी शामिल है।
खेल
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश के पारंपरिक खेलों में कुश्ती, तैराकी, कबड्डी और स्थानीय पारंपरिक नियमों के अनुसार आधुनिक उपकरणों के बिना खेले जाने वाले ट्रैक-स्पोर्ट्स या जलक्रीड़ाऐं शामिल हैं, जो अब मुख्यतः मनोरंजन के लिए खेले जाते हैं। कुछ पारम्परिक खेल युद्धकौशल प्रदर्शित करने के लिए खेले जाते थे, जिनमें तलवार या पाटे का उपयोग होता है।[106] संगठित संरक्षण और अपेक्षित सुविधाओं की कमी के कारण, ये खेल ज्यादातर व्यक्तियों के शौक या स्थानीय प्रतिस्पर्धी आयोजनों के रूप में जीवित रहते हैं। आधुनिक खेलों में, मैदानी हॉकी लोकप्रिय है और उत्तर प्रदेश ने भारत के कुछ बेहतरीन हॉकी खिलाड़ियों को जन्म दिया है, जिनमें ध्यानचंद और हाल ही में नितिन कुमार[107] और ललित कुमार उपाध्याय शामिल हैं।[108]
हाल के समय में, राज्य में मैदानी हॉकी की तुलना में क्रिकेट अधिक लोकप्रिय हो गया है। उत्तर प्रदेश ने फरवरी २००६ में रणजी ट्रॉफी के फाइनल मुकाबले में बंगाल को हराकर अपना पहला रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट जीता।[109] राज्य से राष्ट्रीय टीम में भी नियमित रूप से तीन या चार खिलाड़ी होते ही हैं। कानपुर का ग्रीन पार्क स्टेडियम राज्य का सबसे पुराना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त क्रिकेट स्टेडियम है, जिसने भारत की कुछ प्रसिद्ध विजयें देखी है। यह उत्तर प्रदेश क्रिकेट टीम का 'होम ग्राउंड' भी है। उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ (यूपीसीए) का मुख्यालय भी कानपुर में ही है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ५०,००० दर्शकों की क्षमता वाला एक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम है। लगभग २०,००० दर्शकों की क्षमता वाला ग्रेटर नोएडा क्रिकेट स्टेडियम एक और नवनिर्मित अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम है।[110]
ग्रेटर नोएडा में स्थित बुद्ध अन्तरराष्ट्रीय परिपथ पर ३० अक्टूबर २०११ को भारत की पहली 'फॉर्मूला वन' ग्रैण्ड प्रिक्स का आयोजन हुआ था।[111] ५.१४ किलोमीटर (३.१९ मील) लम्बे इस परिपथ जो जर्मन वास्तुकार और रेसट्रैक डिजाइनर हरमन टिल्के द्वारा अन्य विश्व स्तरीय रेस परिपथों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए डिजाइन किया गया था।[112] हालांकि, दर्शकों की अनुपस्थिति और सरकारी समर्थन की कमी के कारण रद्द होने से पहले यह केवल तीन बार ही आयोजित हो पायी। उत्तर प्रदेश सरकार ने फॉर्मूला वन को खेल का दर्जा न देकर मनोरंजन माना, और इस कारण इसके आयोजन एवं प्रतिभागियों पर अतिरिक्त कर लगाया गया था।[113]
शिक्षा
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश में शिक्षा की एक पुरानी परम्परा रही है, हालांकि ऐतिहासिक रूप से यह मुख्य रूप से कुलीन वर्ग और धार्मिक विद्यालयों तक ही सीमित थी।[114] संस्कृत आधारित शिक्षा वैदिक से गुप्त काल तक शिक्षा का प्रमुख हिस्सा थी। जैसे-जैसे विभिन्न संस्कृतियों के लोग इस क्षेत्र में आये, वे अपने-अपने ज्ञान को साथ लाए, और क्षेत्र में पाली, फारसी और अरबी की विद्व्त्ता आयी, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद के उदय तक क्षेत्र में हिंदू-बौद्ध-मुस्लिम शिक्षा का मूल रही। देश के अन्य हिस्सों की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी शिक्षा की वर्तमान स्कूल-टू-यूनिवर्सिटी प्रणाली की स्थापना और विकास का श्रेय विदेशी ईसाई मिशनरियों और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन को जाता है।[115] राज्य में विद्यालयों का प्रबंधन या तो सरकार द्वारा, या निजी ट्रस्टों द्वारा किया जाता है। सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड की परिषद से संबद्ध विद्यालयों को छोड़कर अधिकांश विद्यालयों में हिन्दी ही शिक्षा का माध्यम है।[116] राज्य में १०+२+३ शिक्षा प्रणाली है, जिसके तहत माध्यमिक विद्यालय पूरा करने के बाद, छात्र आमतौर पर दो वर्ष के लिए एक इण्टर कॉलेज या उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद अथवा किसी केंद्रीय बोर्ड से संबद्ध उच्च माध्यमिक विद्यालयों में दाखिला लेते हैं, जहाँ छात्र कला, वाणिज्य या विज्ञान - इन तीन धाराओं में से एक का चयन करते हैं। इण्टर कॉलेज तक की शिक्षा पूरी करने पर, छात्र सामान्य या व्यावसायिक डिग्री कार्यक्रमों में नामांकन कर सकते हैं। दिल्ली पब्लिक स्कूल (नोएडा), ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज (लखनऊ), और स्टेप बाय स्टेप स्कूल (नोएडा) समेत उत्तर प्रदेश के कई विद्यालयों को देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में स्थान दिया गया है।[117]
उत्तर प्रदेश में ४५ से अधिक विश्वविद्यालय हैं,[118] जिसमें ५ केन्द्रीय विश्वविद्यालय, २८ राज्य विश्वविद्यालय, ८ मानित विश्वविद्यालय, वाराणसी और कानपुर में २ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गोरखपुर और रायबरेली में २ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में १ भारतीय प्रबन्धन संस्थान, इलाहाबाद में १ राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद और लखनऊ में २ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ में १ राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इनके अतिरिक्त कई पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं।[119] राज्य में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर,[120] भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) वाराणसी, भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ, मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को अपने-अपने क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान के लिए विश्व भर में जाना जाता है।[121] ऐसे संस्थानों की उपस्थिति राज्य के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती है।[122][123]
केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान की स्थापना भारतीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय केवल विकलांगों के लिए स्थापित विश्व भर में एकमात्र विश्वविद्यालय है।[124] १८८९ में स्थापित भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान पशुचिकित्सा और संबद्ध विधाओं के क्षेत्र में एक उन्नत अनुसंधान सुविधा है। बड़ी संख्या में भारतीय विद्वानों ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में शिक्षार्जन किया है। राज्य के भौगोलिक क्षेत्र में जन्म लेने, काम करने या अध्ययन करने वाले उल्लेखनीय विद्वानों में हरिवंश राय बच्चन, मोतीलाल नेहरू, हरीश चंद्र और इंदिरा गांधी शामिल हैं।
पर्यटन
[संपादित करें]अपनी समृद्ध और विविध स्थलाकृति, जीवंत संस्कृति, त्योहारों, स्मारकों एवं प्राचीन धार्मिक स्थलों व विहारों के कारण ७.१ करोड़ से अधिक घरेलू पर्यटकों के साथ उत्तर प्रदेश भारत के सभी राज्यों में घरेलू पर्यटकों के आगमन में प्रथम स्थान पर है।[125][126] राज्य में तीन विश्व धरोहर स्थल भी हैं: ताजमहल, आगरा का किला और फतेहपुर सीकरी। उत्तर प्रदेश भारत में एक पसंदीदा पर्यटन स्थल है, मुख्यतः ताजमहल के कारण, जहाँ २०१८-१९ में लगभग ७९ लाख लोगों ने दौरा किया। यह पिछले वर्ष की तुलना में ६% अधिक था, जब यह संख्या ६४ लाख थी। स्मारक ने २०१८-१९ में टिकटों की बिक्री से लगभग ₹७८ करोड़ की कमाई की।[127] पर्यटन उद्योग राज्य की अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख योगदानकर्ता है, जो प्रतिवर्ष २१.६०% की दर से बढ़ रहा है।[128]
धार्मिक पर्यटन भी उत्तर प्रदेश पर्यटन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि राज्य में कई हिन्दू मन्दिर हैं। हिन्दू धर्म के सात पवित्रतम नगरों (सप्त पुरियों) में से तीन (अयोध्या, मथुरा व वाराणसी) उत्तर प्रदेश में ही स्थित हैं। वाराणसी हिंदू और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। घरेलू पर्यटक यहाँ आमतौर पर धार्मिक उद्देश्यों के लिए आते हैं, जबकि विदेशी पर्यटक गंगा नदी के घाटों पर घूमने के लिए जाते हैं। वृंदावन को वैष्णव सम्प्रदाय का एक पवित्र स्थान माना जाता है। भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में प्रसिद्ध अयोध्या महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। गंगा नदी के तट पर राज्य भर में असंख्य धार्मिक स्थल व घाट हैं, जहाँ समय-समय पर मेलों का आयोजन होता रहता है। त्रिवेणी संगम पर लगने वाले माघ मेले में भाग लेने के लिए लाखों लोग इलाहाबाद में एकत्र होते हैं।[129] यह उत्सव प्रत्येक १२वें वर्ष में बड़े पैमाने पर आयोजित किया जाता है, जब इसे कुम्भ मेला कहा जाता है, और तब १ करोड़ से अधिक हिन्दू तीर्थयात्री इसमें सम्मिलित होने इलाहाबाद आते हैं।[130] गोरखपुर के गोरखनाथ मन्दिर में मकर संक्रान्ति के समय एक माह तक चलने वाला खिचड़ी मेला लगता है। विन्ध्याचल एक अन्य हिंदू तीर्थ स्थल है जहाँ विंध्यवासिनी देवी का मन्दिर स्थित है।
उत्तर प्रदेश के बौद्ध आकर्षणों में कई स्तूप और मठ शामिल हैं। सारनाथ एक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण नगर है, जहां गौतम बुद्ध ने ज्ञान-प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था और कुशीनगर वह स्थल है, जहाँ उनकी मृत्यु हो गई थी; दोनों ही बौद्धों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं।[131] इसके अतिरिक्त सारनाथ में स्थित अशोकस्तम्भ और अशोक का सिंहचतुर्मुख स्तम्भशीर्ष राष्ट्रीय महत्त्व की महत्वपूर्ण पुरातात्विक कलाकृतियाँ हैं। वाराणसी से ८० किमी की दूरी पर स्थित गाजीपुर ईस्ट इंडिया कंपनी के बंगाल प्रेसीडेंसी के गवर्नर लॉर्ड कॉर्नवालिस के १८वीं शताब्दी के मकबरे के लिए जाना जाता है, जिसका रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है।[132] राज्य में एक राष्ट्रीय उद्यान तथा २५ वन्यजीव अभयारण्य हैं। ओखला पक्षी अभयारण्य को ३०० से अधिक पक्षी प्रजातियों के लिए एक आश्रय स्थल के रूप में जाना जाता है, जिनमें से १६० पक्षी प्रजातियां प्रवासी हैं, जो तिब्बत, यूरोप व साइबेरिया से यात्रा करती हैं। एटा जिले में स्थित पटना पक्षी अभयारण्य भी एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है।
चिकित्सा सुविधाएँ
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक व निजी स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढाँचा विशाल है। यद्यपि पिछले समय में राज्य में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का एक विशाल नेटवर्क बनाया गया है, फिर भी राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की माँग को पूरा करने के लिए उपलब्ध स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचा अपर्याप्त है।[133] १९९८ से २०१२-१३ तक १५ वर्षों के अंतराल में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में २५ प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र, जो सरकार की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की अग्रिम पंक्ति हैं, में ८ प्रतिशत की कमी आई है।[134] छोटे उप-केंद्र, सार्वजनिक संपर्क का पहला बिंदु, १९९० से २०१५ तक २५ वर्षों में २ प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़े हैं, जबकि इसी अवधि में जनसंख्या ५१ प्रतिशत से भी अधिक बढ़ी है।[134] राज्य को स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की कमी, स्वास्थ्य देखभाल की बढ़ती लागत, निजी स्वास्थ्य देखभाल की बढ़ती संख्या और योजना की कमी जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है।[135] 2017 तक उत्तर प्रदेश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सरकारी अस्पतालों की संख्या क्रमशः 4442 (39104 बिस्तर) और 193 (37156 बिस्तर) है।[136]
उत्तर प्रदेश में एक नवजात शिशु के पड़ोसी राज्य बिहार की तुलना में चार वर्ष कम, हरियाणा की तुलना में पांच वर्ष कम और हिमाचल प्रदेश की तुलना में ७ वर्ष कम तक जीवित रहने की अपेक्षा होती है। उत्तर प्रदेश ने लगभग सभी संचारी और गैर-संचारी रोगों से होने वाली मृत्युओं के सबसे बड़े हिस्से में योगदान दिया, जिसमें टाइफाइड से होने वाली सभी मृत्युओं का 48 प्रतिशत (2014), कैंसर से होने वाली मृत्युओं में से 17 प्रतिशत, और तपेदिक से होने वाली मृत्युओं में 18 प्रतिशत (2015)शामिल है।[134] उत्तर प्रदेश का मातृ मृत्यु अनुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक है, प्रत्येक 1,00,000 जीवित जन्मों (2017) के लिए 258 मातृ मृत्यु दर, 62 प्रतिशत गर्भवती महिलाएँ न्यूनतम प्रसवपूर्व देखभाल तक पहुँचने में असमर्थ हैं।[137][138] लगभग 42 प्रतिशत गर्भवती महिलाएँ (15 लाख से अधिक) घर पर ही बच्चों को जन्म देती हैं। उत्तर प्रदेश में घर पर होने वाले लगभग दो-तिहाई (61 प्रतिशत) प्रसव असुरक्षित हैं।[139] राज्य में नवजात मृत्यु दर (एनएनएमआर) से लेकर पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए उच्चतम बाल मृत्यु दर संकेतक हैं;[140] प्रति 1,000 जीवित बच्चों के जन्म पर 64 बच्चों की मृत्यु पाँच वर्ष की आयु से पहले हो जाती है; 35 बच्चे जन्म के पहले महीने के भीतर ही मर जाते हैं, जबकि 50 बच्चे जीवन का एक वर्ष भी पूरा नहीं कर पाते हैं।[141] राज्य में ग्रामीण आबादी का एक तिहाई भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों के मानदण्डों के अनुसार प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है।[142]
कला एवं संस्कृति
[संपादित करें]साहित्य
[संपादित करें]हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। साहित्य और भारतीय रक्षा सेवायेँ, दो ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें उत्तर प्रदेश निवासी गर्व कर सकते हैं। गोस्वामी तुलसीदास, कबीरदास, सूरदास से लेकर भारतेंदु हरिश्चंद्र, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य राम चन्द्र शुक्ल, मुँशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानन्दन पन्त, मैथिलीशरण गुप्त, सोहन लाल द्विवेदी, हरिवंशराय बच्चन, महादेवी वर्मा, राही मासूम रजा, अज्ञेय जैसे इतने महान कवि और लेखक हुए हैं उत्तर प्रदेश में कि पूरा पन्ना ही भर जाये। उर्दू साहित्य में भी बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है उत्तर प्रदेश का। फिराक़, जोश मलीहाबादी, अकबर इलाहाबादी, नज़ीर, वसीम बरेलवी, चकबस्त जैसे अनगिनत शायर उत्तर प्रदेश ही नहीं वरन देश की शान रहे हैं। हिंदी साहित्य का क्षेत्र बहुत ही व्यापक रहा है और लुगदी साहित्य भी यहाँ खूब पढ़ा जाता है।
=== संगीत ===शेख साहिल
संगीत उत्तर प्रदेश के व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह तीन प्रकार में बांटा जा सकता है
1- पारम्परिक संगीत एवं लोक संगीत : यह संगीत और गीत पारम्परिक मौकों शादी विवाह, होली, त्योहारों आदि समय पर गाया जाता है
2- शास्त्रीय संगीत : उत्तर प्रदेश में उत्कृष्ट गायन और वादन की परम्परा रही है।
3- हिन्दी फ़िल्मी संगीत एवं भोजपुरी पॉप संगीत : इस प्रकार का संगीत उत्तर प्रदेश में सबसे लोकप्रिय।
कथक
[संपादित करें]कथक उत्तर प्रदेश का एक परिष्कृत शास्त्रीय नृत्य है जो कि हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के साथ किया जाता है। कथक नाम 'कथा' शब्द से बना है, इस नृत्य में नर्तक किसी कहानी या संवाद को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करता है। कथक नृत्य का प्रारम्भ 6-7 वीं शताब्दी में उत्तर भारत में हुआ था। प्राचीन समय में यह एक धार्मिक नृत्य हुआ करता था जिसमें नर्तक महाकाव्य गाते थे और अभिनय करते थे। 13 वी शताब्दी तक आते-आते कथक सौन्दर्यपरक हो गया तथा नृत्य में सूक्ष्म अभिनय एवं मुद्राओं पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। कथक में सूक्ष्म मुद्राओं के साथ ठुमरी गायन पर तबले और पखावज के साथ ताल मिलाते हुए नृत्य किया जाता है। कथक नृत्य के प्रमुख कलाकार पन्डित बिरजू महाराज हैं। फरी नृत्य, जांघिया नृत्य, पंवरिया नृत्य, कहरवा, जोगिरा, निर्गुन, कजरी, सोहर, चइता गायन उत्तर प्रदेश की लोकसंस्कृतियाँ हैं। लोकरंग सांस्कृतिक समिति इन संस्कृतियों संवर्द्धन, संरक्षण के लिए कार्यरत है।
हस्त शिल्प
[संपादित करें]फिरोजाबाद की चूड़ियाँ, सहारनपुर का काष्ठ शिल्प, पिलखुवा की हैण्ड ब्लाक प्रिण्ट की चादरें, वाराणसी की साड़ियाँ तथा रेशम व ज़री का काम, लखनऊ का कपड़ों पर चिकन की कढ़ाई का काम, रामपुर का पैचवर्क, मुरादाबाद के पीतल के बर्तन औरंगाबाद का टेराकोटा, मेरठ की कैंची आदि। जौनपुर की बेनी साव की इमरती और मूली। मथुरा का पेडा।
हिन्दी भाषा की जन्मस्थली
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश भारत की राजकीय भाषा हिन्दी की जन्मस्थली है। शताब्दियों के दौरान हिन्दी के कई स्थानीय स्वरूप विकसित हुए हैं। साहित्यिक हिन्दी ने 19वीं शताब्दी तक खड़ी बोली का वर्तमान स्वरूप (हिन्दुस्तानी) धारण नहीं किया था। वाराणसी के भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850-1885 ई.) उन अग्रणी लेखकों में से थे, जिन्होंने हिन्दी के इस स्वरूप का इस्तेमाल साहित्यिक माध्यम के तौर पर किया था।
सांस्कृतिक जीवन
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश हिन्दुओं की प्राचीन सभ्यता का उदगम स्थल है। वैदिक साहित्य मन्त्र, ब्राह्मण, श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, मनुस्मृति आदि धर्मशास्त्रौं, आदि महाकाव्य-वाल्मीकि रामायण, और महाभारत (जिसमें श्रीमद् भगवद्गीता शामिल है) अष्टादश पुराणों के उल्लेखनीय हिस्सों का मूल यहाँ के कई आश्रमों में जीवन्त है। बौद्ध-हिन्दू काल (लगभग 600 ई. पू.-1200 ई.) के ग्रन्थों व वास्तुशिल्प ने भारतीय सांस्कृतिक विरासत में बड़ा योगदान दिया है। 1947 के बाद से भारत सरकार का चिह्न मौर्य सम्राट अशोक के द्वारा बनवाए गए चार सिंह युक्त स्तम्भ (वाराणसी के निकट सारनाथ में स्थित) पर आधारित है। वास्तुशिल्प, चित्रकारी, संगीत, नृत्यकला और दो भाषाएँ (हिन्दी व उर्दू) मुग़ल काल के दौरान यहाँ पर फली-फूली। इस काल के चित्रों में सामान्यतः धार्मिक व ऐतिहासिक ग्रन्थों का चित्रण है। यद्यपि साहित्य व संगीत का उल्लेख प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में किया गया है और माना जाता है कि गुप्त काल (लगभग 320-540) में संगीत समृद्ध हुआ। संगीत परम्परा का अधिकांश हिस्सा इस काल के दौरान उत्तर प्रदेश में विकसित हुआ। तानसेन व बैजू बावरा जैसे संगीतज्ञ मुग़ल शहंशाह अकबर के दरबार में थे, जो राज्य व समूचे देश में आज भी विख्यात हैं। भारतीय संगीत के दो सर्वाधिक प्रसिद्ध वाद्य सितार (वीणा परिवार का तंतु वाद्य) और तबले का विकास इसी काल के दौरान इस क्षेत्र में हुआ। 18वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश में वृन्दावन व मथुरा के मन्दिरों में भक्तिपूर्ण नृत्य के तौर पर विकसित शास्त्रीय नृत्य शैली कथक उत्तरी भारत की शास्त्रीय नृत्य शैलियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों के स्थानीय गीत व नृत्य भी हैं। सबसे प्रसिद्ध लोकगीत मौसमों पर आधारित हैं।
त्योहार
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहाँ समय समय पर सभी धर्मों के त्योहार मनाये जाते हैं-
- अयोध्या-रामनवमी मेला,राम विवाह,सावन झूला मेला, कार्तिक पूर्णिमा मेला
- प्रयागराज में प्रत्येक बारहवें वर्ष में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त प्रयागराज में प्रत्येक 6 वर्ष बाद अर्द्ध कुंभ मेले का आयोजन भी किया जाता है।
- प्रयागराज में ही प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में माघ मेला भी आयोजित किया जाता है, जहां बडी संख्या में लोग संगम में नहाते हैं।
- दीपावली पर चित्रकूट में दीपदान करने की विशेष मान्यता है। धनतेरस के दिन से शुरू होने वाले दीपमालिका मेले में शामिल होने के लिए देशभर से लाखों श्रद्धालु आते हैं और पवित्र मंदाकिनी नदी में डुबकी लगाते हैं। चित्रकूट भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है। यह स्थान जितना शांत है उतना ही आकर्षक भी। प्रकृति और ईश्वर की अनुपम रचना के सुंदर और एक से बढ़कर एक दृश्य यहां देखने मिलते हैं।
- अन्य मेलों में मथुरा, वृन्दावन में अनेक पर्वों के मेले और झूला मेले लगते हैं, जिनमें प्रभु की प्रतिमाओं को सोने एवं चाँदी के झूलों में रखकर झुलाया जाता है। ये झूला मेले लगभग एक पखवाडे तक चलते हैं।
- कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा नदी में डुबकी लगाना पवित्र माना जाता है और इसके लिए गढ़मुक्तेश्वर, सोरों शूकरक्षेत्र का मार्गशीर्ष मेला, राजघाट, बिठूर, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी में बडी संख्या में लोग एकत्र होते हैं।
- आगरा ज़िले के बटेश्वर कस्बे में पशुओं का प्रसिद्ध मेला लगता है।
- बाराबंकी ज़िले का देवा मेला मुस्लिम संत वारिस अली शाह के कारण काफ़ी प्रसिद्ध है।
- इसके अतिरिक्त यहाँ हिन्दू तथा मुस्लिमों के सभी प्रमुख त्योहारों को पूरे राज्य में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
- राष्ट्रीय रामायण मेला इलाहाबाद जिले में गंगा नदी के तट पर श्रृंगवेरपुर में कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी से पूर्णिमा तक हर वर्ष आयोजित किया जाता है। यह वही स्थान है जहाँ त्रेतायुग में निषाद राज ने प्रभु श्रीराम को वनवास जाते समय गंगा नदी पार कराई।
टिप्पणियाँ
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[संपादित करें]- संयुक्त प्रांत
- उत्तर प्रदेश के लोकनृत्य
- उत्तर प्रदेश का इतिहास
- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
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[संपादित करें]- उत्तर प्रदेश सरकार का आधिकारिक जालस्थल Archived 2007-02-02 at the वेबैक मशीन
- उत्तर प्रदेश एक आईना (लाइव हिन्दुस्तान)
- उत्तर प्रदेश के बारे में जानें
- लोकरंग सांस्कृतिक समिति Archived 2019-09-07 at the वेबैक मशीन
- उत्तर प्रदेश के प्राचीनतम नगर (गूगल पुस्तक ; डॉ अशोक कुमार सिंह)
- यूपी पर्यटन Archived 2019-08-18 at the वेबैक मशीन
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