ईसाई धर्म

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ऊपर-बाएँ से नीचे-दाएँ:1. मसीह क्रूस पर चड़े हुए, ईसाई धर्म का एक मानक प्रतीक 2.संत पीटर चौक,पोप निवास स्थल एवं रोमन कैथोलिक पंथ का मुख्य गिरजाघर 3.यीशु मसीह का प्रभु एव राजन् के रूप में चित्रण 4.पवित्र मिस्सा का उत्थापन अनुष्ठान 5.चार प्रमुख कलीसियाई फादर एवं पश्चिमी ईसाइयत के सबसे प्राधन धर्मशास्त्री 6.परमेश्वर का मेमना 7.लुदराई बप्तिस्मा 8. गुटेनबर्ग बाइबिल, बड़ी मात्रा में मुद्रित सबसे पहली पुस्तक 9.आधुनिक ईसाई पूजन एवं सामूहिक उपदेश समारोह 10.त्रित्व, ईसाइयत के मुलभुत सिद्धांत का चित्रण 11.ज़ेवियर कॉलेज़, कोलकाता, भारत में उच्च शिक्षा के बढ़ावे के लिए ईसाई प्रचाकरको द्वारा स्थापित 12.मद्रास में सालेसियाइ नन, रोगियों-पिड़ितों की सेवा करते हुए 13.सिस्टिन चैपल की आंतरिक कलाकृति ईसाई संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण 14.क्रीसमस, या बड़ा दिन, ईसाइयों के सबसे मुख्य त्योहारों मे से एक।

ईसाई धर्म
Χρῑστῐᾱνισμός
प्रकारसर्वभौमिक धर्म
वर्गीकरणइब्राहीमी धर्म
धर्मग्रंथबाइबिल
धर्ममीमांसाएकेश्वरवाद
क्षेत्रविश्वव्यापी
भाषा(एँ)आरमाईक, हिब्रू, यूनानी भाषा और लैटिन
धर्म-राज्यक्षेत्रईसाई-जगत् (क्रिस्टेंडोम)
संस्थापकयीशु मसीह, पवित्र परम्परा के अनुसार
उत्पत्तिप्रथम शताब्दि एडी
जुडिया, रोमन साम्राज्य
से पृथक्कृतयहूदी धर्म
सदस्यों की संख्या2.4 अरब (जिन्हें ईसाई के रूप में जाना जाता है)

ईसाई धर्म, ईसाइयत या मसीही धर्म (अंग्रेज़ी- Christianity, क्रिश्चियानिटी, यूनानी : Χρῑστῐᾱνισμός, क्रिस्तियानिस्मोस् से व्युत्पन्न; इब्रानी: נצרות‎; अरामी: ܡܫܝܚܝܘܬܐ) नासरत के यीशु के जीवन और शिक्षाओं पर आधारित एक इब्राहीमी एकेश्वरवादी धर्म है । यह दुनिया का सबसे बड़ा, सर्वाधिक जनसंख्या वाला सबसे व्यापक धर्म है, जिसके लगभग 2.4 अरब अनुयायी वैश्विक जनसंख्या का एक तिहाई प्रतिनिधित्व करते हैं ।[1][2] अनुमान के अनुसार, इसके अनुयायी, जिन्हें ईसाई या मसीही कहा जाता है, 157 देशों और क्षेत्रों में आबादी के बहुसंख्यक हैं[3], और यह मानते हैं कि यीशु ईश्वर के पुत्र हैं , जिनकी मसीहा के रूप में भविष्यवाणी हिब्रू बाइबिल ( ईसाई धर्म में जिसे पुराना नियम कहा जाता है) में की गई थी और बाइबिल के नए नियम में इसका वर्णन किया गया।[4] यह विश्व के प्राचीन धर्मों में से एक है जो प्राचीन यहूदी परंपरा से निकला है। ईसाई परंपरा के अनुसार इसकी शुरुआत प्रथम सदी ई. में फिलिस्तीन में हुई है और आज इसके मुख्ययतः तीन संप्रदाय हैं, कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और पूर्वी रूढ़िवादी चर्च[5] ईसाइयों के धर्मस्थल को गिरिजाघर कहते हैं।

ईसाई धर्म अपनी पश्चिमी और पूर्वी शाखाओं में सांस्कृतिक रूप से विविध है , और उद्धार की औचित्य और प्रकृति, कलिसीयाशास्त्र, पुरोहिताभिषेक और मसीहशास्त्र के संबंध में सैद्धांतिक रूप से विविध है । विभिन्न ईसाई संप्रदायों के धर्मसार आम तौर पर यीशु को ईश्वर के पुत्र के रूप में मानते हैं - लोगोस् का अवतरित रूप  - जिन्होंने सेवकाई की , पीड़ा उठाया और क्रूस पर मृत्यु को प्राप्त हो गए , लेकिन मानव जाति के उद्धार के लिए मृतक से पुनः जी उठे ; जिसे कहा जाता है सुसमाचार या गॉस्पेल , जिसका अर्थ है "अच्छी खबर"। यीशु के जीवन और शिक्षाओं का वर्णन मत्ती , मरकुस , लुका और यहुन्ना के चार विहित सुसमाचारों में किया गया है , जिसमें पुराने नियम को सुसमाचार की सम्मानित पृष्ठभूमि के रूप में दर्शाया गया है।

ईसाई धर्म यीशु के जन्म के बाद पहली शताब्दी में यहूदिया के रोमन प्रांत में हेलेनीयाई प्रभाव वाले एक यहूदी संप्रदाय के रूप में शुरू हुआ । बड़ी मात्रा में उत्पीड़न के बावजूद, यीशु के शिष्यों ने पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में अपनी अस्था फैलायी ।अन्यजातियों और गैर-यहुदीयों को शामिल करने से ईसाई धर्म धीरे-धीरे यहूदी परम्परा (दूसरी शताब्दी) से अलग हो गया। सम्राट कॉन्सटेंटाइन महान ने मिलान के राजादेश द्वारा रोमन साम्राज्य में ईसाई धर्म को अपराधमुक्त कर दिया (313), बाद में निकिया परिषद (325) बुलाई गई जहां प्रारंभिक ईसाई धर्म को रोमन साम्राज्य के राज्य चर्च (380) में समेकित किया गया। पूर्व की कलीसिया  और प्राच्य रूढ़ीवाद दोनों मसीहशास्त्र (5वीं शताब्दी) में मतभेदों के कारण अलग हो गए[6], जबकि पूर्वी रूढ़ीवादि कलीसिया और कैथोलिक कलीसिया पूर्व-पश्चिम विच्छेद(1054) में अलग हो गए । धर्मसुधार युग (16वीं शताब्दी) में प्रोटेस्टेंटवाद कैथोलिक चर्च से कई संप्रदायों में विभाजित हो गया । खोज के युग का अनुसरण (15वीं-17वीं शताब्दी), धर्मप्रचार कार्य , व्यापक व्यापार[7] और उपनिवेशवाद के माध्यम से ईसाई धर्म का दुनिया भर में विस्तार हुआ । ईसाई धर्म ने पाश्चात्य सभ्यता के विकास में , विशेष रूप से यूरोप में प्राचीन काल और मध्य युग से एक प्रमुख भूमिका निभाई।[8][9][10][11]

ईसाई धर्म की छह प्रमुख शाखाएँ हैं: रोमन कैथोलिक पंथ (1.3 अरब लोग), प्रोटेस्टेंटवाद (80 करोड़), पूर्वी रूढ़िवादी (22 करोड़), प्राच्य रूढ़िवादी (6 करोड़)[12][13], पुनर्स्थापनवाद (3.5 करोड़)[14] , और पूर्व की कलीसिया (600 हजार)। एकता ( सार्वभौमिक अंतरकलिसीयाई एकतावाद ) के प्रयासों के बावजूद छोटे चर्च समुदायों की संख्या हजारों में है[15]।पश्चिम में , ईसाई धर्म पालन में गिरावट के बावजूद भी यह वहाँ का प्रमुख धर्म बना हुआ है, जिसकी लगभग 70% आबादी ईसाई के रूप में स्वयं की पहचान रखती है।[16][17]  दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले महाद्वीप अफ्रीका और एशिया में ईसाई धर्म बढ़ रहा है।[16] ईसाइयों को दुनिया के कई क्षेत्रों में, विशेष रूप से मध्य पूर्व , उत्तरी अफ्रीका , पूर्वी एशिया और दक्षिण एशिया व भारत में बहुत उत्पीड़ित जाता है।[18][19]

इस पन्थ की मान्यता यह है कि परमेश्वर आत्मा है और आत्मा का हड्डी और मांस नहीं होता है अर्थात् जिसे हम देख नही सकते उसकी प्रतिमा कैसे बना सकते हैं। उस सर्वशक्तिमान परमेश्वर को कभी किसी ने भी शारीरिक आंखों से नही देखा। पर परमेश्वर ने मानवजाति पर अपनी प्रेम इस रीति प्रकट किया कि उसने मनुष्य रूप धारण किया। वह पराकर्मी परमेश्वर जिसने काल, समय और मनुष्य को बनाया। वह खुद अपने काल, समय, में सिमटकर आया। ताकि मानवजाति उसके द्वारा अपने अपने पापों से छुटकारा पा सके।

चौथी सदी तक यह पन्थ किसी क्रांति की तरह फैला, किंतु इसके बाद ईसाई पन्थ में अत्यधिक ||कर्मकांडों|| की प्रधानता तथा पन्थ सत्ता ने दुनिया को अंधकार युग में धकेल दिया था। फलस्वरूप पुनर्जागरण के बाद से इसमें रीति-रिवाजों के बजाय आत्मिक परिवर्तन पर अधिक जोर दिया जाता है।

ईश्वर[संपादित करें]

ईसाई तीन तत्त्व वादी हैं, और वे ईश्वर को तीन रूपों को समझते हैं - परमपिता परमेश्वर, उनके पुत्र ईसा मसीह (यीशु मसीह) और पवित्र आत्मा।

परमपिता[संपादित करें]

परमपिता इस सृष्टि के रचयिता हैं और इसके शासक भी।

ईसा मसीह[संपादित करें]

ईसा मसीह स्वयं परमेश्वर के पुत्र है| जो पतन हुए (पापी) सभी मनुष्यों को पाप और मृत्यु से बचाने के लिए जगत में देहधारण होकर (देह में होकर) आए थे। परमेश्वर जो पवित्र हैं। एक देह में प्रकट हुए ताकि पापी मनुष्यों को नहीं परंतु मनुष्यों के अंदर के पापों को खत्म करें। वे इस पृथ्वी पर जो पापी, बीमार, मूर्खों और सताए हुए थे उनका पक्ष लिया और उनके बदले में पाप की कीमत अपनी जान देकर चुकाई ताकि मनुष्य बच सकें। यह पापी मनुष्य और पवित्र परमेश्वर के मिलन का मिशन था जो प्रभु ईसा मसीह के कुरबानी से पूरा हुआ। एक सृष्टिकर्ता परमेश्वर हो कर उन्होंने पापियों को नहीं मारा बल्कि पाप का इलाज किया।

यह बात परमेश्वर पिता का मनुष्यों के प्रति अटूट प्रेम को प्रकट करता है। मनुष्यों को पाप से बचाने के लिये परमेश्वर शरीर में आए। यह बात ही ईसा मसीह का परिचय है। ईसा मसीह परमेश्वर के पुत्र थे। यही बात आज का ईसाई धर्म का आधार है। उन्होंने स्वयं कहा मैं हूँ। ईसा मसीह (यीशु) एक यहूदी थे जो इजराइल के गाँव बेतलहम में जन्मे है (4 ईसा पूर्व)। ईसाई मानते हैं कि उनकी माता मरियम "नर्तकी" थीं। ईसा मसीह उनके गर्भ में परमपिता परमेश्वर की कृपा से चमत्कारिक रूप से आये है। ईसा मसीह के बारे में यहूदी रब्बीयों ने भविष्यवाणी की थी कि एक मसीहा (नबी) जन्म लेगा। ईसा मसीह ने इजराइल में यहूदियों के बीच प्रेम का संदेश सुनाया और कहा कि वो ही ईश्वर के पुत्र हैं। इन बातों पर पुराणपंथी यहूदी धर्मगुरु भड़क उठे और उनके कहने पर इजराइल के रोमन राज्यपाल ने ईसा मसीह को क्रॉस पर चढ़ाकर मारने का प्राणदंड दे दिया। ईसाई मानते हैं कि इसके तीन दिन बाद ईसा मसीह का पुनरुत्थान हुआ या ईसा मसीह पुनर्जीवित हो गये। ईसा के उपदेश बाइबिल के नये नियम में उनके 12 शिष्यों द्वारा रेखांकित किये गये हैं।

ईसा मसीह का पुनरुत्थान यानी मृत्यु पर विजय पाने के बाद अथवा तीसरे दिन में जीवित होने के बाद ईसा मसीह एक साथ प्रार्थना कर रहे सभी शिष्य और अन्य मिलाकर कुल 40 लोग वहाँ मौजूद थे पहले उन सभी के सामने प्रकट हुए । उसके बाद बहुत सी जगहों पर और बहुत लोगो के साथ भी।

पवित्र आत्मा[संपादित करें]

पवित्र आत्मा त्रित्व परमेश्वर के तीसरे व्यक्तित्व हैं जिनके प्रभाव में व्यक्ति अपने अंदर ईश्वर का अहसास करता है। ये ईसा मसीह के गिरजाघर एवं अनुयाईयों को निर्देशित करते हैं।

बाइबिल[संपादित करें]

ईसाई धर्मग्रंथ बाइबिल में दो भाग हैं। पहला भाग पुराना नियम कहलाता है, जो कि यहूदियों के धर्मग्रंथ तनख़ का ही संस्करण है। दूसरा भाग नया नियम कहलाता तथा ईसा मसीह के उपदेश, चमत्कार और उनके शिष्यों के कामों का वर्णन करता है।

संप्रदाय[संपादित करें]

ईसाइयों के मुख्य संप्रदाय हैं :

कैथोलिक[संपादित करें]

कैथोलिक संप्रदाय में पोप को सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं।

ऑर्थोडॉक्स[संपादित करें]

ऑर्थोडॉक्स रोम के पोप को नहीं मानते, पर अपने-अपने राष्ट्रीय धर्मसंघ के कुलपति (पैट्रिआर्च) को मानते हैं और परंपरावादी होते हैं।

प्रोटेस्टेंट[संपादित करें]

प्रोटेस्टेंट किसी पोप को नहीं मानते है और इसके बजाय पवित्र बाइबल में पूरी श्रद्धा रखते हैं। मध्य युग में जनता के बाइबिल पढ़ने के लिए नकल करना मना था। जिससे लोगो को ईसाई धर्म का उचित ज्ञान नहीं था। कुछ बिशप और पादरियों ने इसे सच्चे ईसाई धर्म के अनुसार नहीं समझा और बाइबिल का अपनी अपनी भाषाओ में भाषांतर करने लगे, जिसे पोप का विरोध था। उन बिशप और पादारियों ने पोप से अलग होके एक नया संप्रदाय स्थापित किया जिसे प्रोटेस्टेंट कहते हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "Religion Information Data Explorer | GRF". www.globalreligiousfutures.org. मूल से 13 अक्तूबर 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2022-10-13.
  2. Jan Pelikan, Jaroslav (13 August 2022). "Christianity". Encyclopædia Britannica. It has become the largest of the world's religions and, geographically, the most widely diffused of all faiths.
  3. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; PewDec2012 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  4. Woodhead 2004, पृष्ठ n.p
  5. "ईसाई पन्थ का इतिहास और महत्‍वपूर्ण तथ्‍य". आज तक. अभिगमन तिथि 31 जनवरी 2021.
  6. S. T. Kimbrough, संपा॰ (2005). Orthodox and Wesleyan Scriptural understanding and practice. St Vladimir's Seminary Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0881413014.
  7. Bautista, Julius; Gee Lim, Francis Khek (2009). Christianity and the State in Asia: Complicity and Conflict. Taylor & Francis. पृ॰ 28. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1134018871. Nevertheless, it is clear in Asia that Christianity spread as a result of both trade and military power.
  8. Religions in Global Society. p. 146, Peter Beyer, 2006
  9. Cambridge University Historical Series, An Essay on Western Civilization in Its Economic Aspects, p. 40: Hebraism, like Hellenism, has been an all-important factor in the development of Western Civilization; Judaism, as the precursor of Christianity, has indirectly had had much to do with shaping the ideals and morality of western nations since the christian era.
  10. Caltron J.H Hayas, Christianity and Western Civilization (1953), Stanford University Press, p. 2: "That certain distinctive features of our Western civilization—the civilization of western Europe and of America—have been shaped chiefly by Judaeo – Graeco – Christianity, Catholic and Protestant."
  11. Fred Reinhard Dallmayr, Dialogue Among Civilizations: Some Exemplary Voices (2004), p. 22: Western civilization is also sometimes described as "Christian" or "Judaeo- Christian" civilization.
  12. "Christian Traditions". Pew Research Center's Religion & Public Life Project. 19 December 2011. About half of all Christians worldwide are Catholic (50%), while more than a third are Protestant (37%). Orthodox communions comprise 12% of the world's Christians.
  13. "Status of Global Christianity, 2019, in the Context of 1900–2050" (PDF). Center for the Study of Global Christianity.
  14. name="Riswold2009">Riswold, Caryn D. (1 October 2009). Feminism and Christianity: Questions and Answers in the Third Wave (English में). Wipf and Stock Publishers. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1621890539.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  15. Peter, Laurence (17 October 2018). "Orthodox Church split: Five reasons why it matters". BBC. अभिगमन तिथि 17 October 2018.
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  17. Henderso, Errol A; Maoz, Zeev (2020). Scriptures, Shrines, Scapegoats, and World Politics: Religious Sources of Conflict and Cooperation in the Modern Era. Michigan: University of Michigan Press. पपृ॰ 129–130. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0472131747.
  18. "Christian persecution 'at near genocide levels'". BBC News. 3 May 2019. Retrieved 7 October 2019.
  19. Wintour, Patrick. "Persecution of Christians coming close to genocide' in Middle East – report". The Guardian. 2 May 2019. Retrieved 7 October 2019.