विद्येश्वर संहिता
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"विद्येश्वर संहिता" भारत के प्रसिद्ध ग्रन्थ महाशिवपुराण का प्रथम भाग है। शिवपुराण अठारह पुराणों में से एक प्रसिद्ध पुराण है।इस पुराण में २४,००० श्लोक है तथा इसके क्रमश: ६ खण्ड है-
- विद्येश्वर संहिता
- रुद्र संहिता
- कोटिरुद्र संहिता
- कैलास संहिता
- वायु संहिता
विद्येश्वर संहिता- इसमें कुल बीस अध्याय हैं। [1]
अध्याय एक से पांच
[संपादित करें]इस भाग में निम्न विषयों पर सविस्तार वर्णन मिलता है:-
- प्रयाग मे सूतजी से मुनियोंं का तुरन्त पाप नाश करनेवाले साधन के विषय मे प्रश्न
- शिवपुराण का परिचय
- साध्य-साधन आदि का विचार तथा श्रवण,कीर्तन और मनन –इन तीन साधनों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन
- महेश्वर का ब्रह्मा और विष्णु को अपने निष्कल और सकल स्वरूप का परिचय देते हुए लिंगपूजन का महत्त्व बताना
- भगवान शिव के लिंग एवं साकार विग्रह की पूजा के रहस्य तथा महत्त्व का वर्णन[2]
अध्याय पांच से दस
[संपादित करें]- पाँच कृत्यों का प्रतिपादन, प्रणव एवं पंचाक्षर-मन्त्र की महत्ता, ब्रह्मा-विष्णु द्वारा भगवान शिव की स्तुति तथा उनका अंतर्धान
- शिवलिंग की स्थापना, उसके लक्षण और पूजन की विधि का वर्णन तथा शिवपद की प्राप्ति कराने वाले सत्कर्मों का विवेचन
- मोक्षदायक पुण्यक्षेत्रों का वर्णन, कालविशेष में विभिन्न नदियों के जल में स्नान के उत्तम फल का निर्देश तथा तीर्थों में पाप से बचे रहने की चेतावनी[3]
- सदाचार, शौचाचार, स्नान, भस्मधारण, संध्यावन्दन, प्रणव-जप, गायत्री-जप, दान, न्यायत: धनोपार्जन तथा अग्निहोत्र आदि की विधि एवं महिमाका वर्णन
अध्याय दस से पंद्रह
[संपादित करें]- अग्नियज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ आदि का वर्णन, भगवान शिव के द्वारा सातों वारों का निर्माण तथा उनमें देवाराधन से विभिन्न प्रकार के फलों की प्राप्ति का कथन
- देश, काल, पात्र और दान आदिका विचार[4]
- पृथ्वी आदि से निर्मित देवप्रतिमाओं के पूजन की विधि, उनके लिये नैवेद्य का विचार, पूजन के विभिन्न उपचारों का फल, विशेष मास, वार, तिथि एवं नक्षत्रों के योग में पूजन का विशेष फल तथा लिंग के वैज्ञानिक स्वरूप का विवेचन[5]
अध्याय पंद्रह से बीस
[संपादित करें]- षडलिंगस्वरुप प्रणव का माहात्म्य, उसके सूक्ष्म रूप (ॐकार) और स्थूल रूप (पंचाक्षर मंत्र) का विवेचन, उसके जप की विधि एवं महिमा, कार्य ब्रह्म के लोकों से लेकर कारण रूद्र के लोकों तक का विवेचन करके कालातीत, पंचावरण विशिष्ट शिवलोक के अनिर्वचनीय वैभव का निरूपण तथा शिव भक्तों के सत्कार की महत्ता[6]
- बंधन और मोक्ष का विवेचन, शिवपूजा का उपदेश, लिंग आदि में शिवपूजन का विधान, भस्म के स्वरुप का निरूपण और महत्त्व, शिव एवं गुरु शब्द की व्युत्पत्ति तथा शिव के भस्मधारण का रहस्य
- पार्थिव लिंग के निर्माण की विधि तथा वेद मंत्रों द्वारा उसके पूजन की विस्तृत एवं संक्षिप्त विधि का वर्णन[7]
इन्हें भी देखें
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सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 22 फ़रवरी 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 फ़रवरी 2022.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 22 फ़रवरी 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 फ़रवरी 2022.
- ↑ https://www.bhaktbhagwan.com/2021/06/from-first-chapter-to-tenth-chapter-of.html
- ↑ https://hindi.webdunia.com/shravan/shiv-mahapuran-116080400038_1.html
- ↑ https://www.bhaktbhagwan.com/2021/06/from-eleventh-chapter-to-fifteenth.html
- ↑ https://www.youtube.com/watch?v=OltImvfkBNo
- ↑ https://shrishivswaroop.blogspot.com/