द्रोणाचार्य
द्रोणाचार्य | |
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हिंदू पौराणिक कथाओं के पात्र | |
नाम: | द्रोणाचार्य |
अन्य नाम: | द्रोण |
संदर्भ ग्रंथ: | महाभारत |
जन्म स्थल: | पटियाली कासगंज |
व्यवसाय: | आचार्य |
मुख्य शस्त्र: | धनुष बाण |
माता-पिता: | भरद्वाज ऋषि घृतार्ची अप्सरा |
जीवनसाथी: | कृपि |
संतान: | अश्वत्थामा |
द्रोणाचार्य ऋषि भारद्वाज तथा घृतार्ची नामक अप्सरा के पुत्र तथा थे।[1] कुरू प्रदेश में पांडु के पुत्रों तथा धृतराष्ट्र पुत्रों के वे गुरु थे। महाभारत युद्ध के समय वह कौरव पक्ष के सेनापति थे। गुरु द्रोणाचार्य के अन्य शिष्यों में एकलव्य का नाम उल्लेखनीय है। उसने द्रोणाचार्य द्वारा गुरु दक्षिणा माँगे जाने पर अपने दाएं हाथ का अंगूठा काट कर दे दिया। एकलव्य निषाद राज का पुत्र था और एक राजकुमार भी। कौरवों और पांडवों ने द्रोणाचार्य के आश्रम मे ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा पाई थी। अर्जुन द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे। वे अर्जुन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाना चाहते थे।[2]
जन्म
[संपादित करें]महाभारत की कथा के अनुसार महर्षि भरद्वाज एक बार नदी में स्नान करने गए। स्नान के समाप्ति के बाद उन्होंने देखा की अप्सरा घृताची नग्न होकर स्नान कर रही है। यह देखकर वह कामातुर हो गए और उनके शिश्न से वीर्य टपक पड़ा। उन्हीने ये वीर्य एक द्रोण(मिट्टि) के कलश में रखा, जिससे एक पुत्र जन्मा। दूसरे मत से कामातुर भरद्वाज ने घृताची से शारीरिक मिलन किया, जिनकी योनिमुख द्रोण कलश के मुख के समान थी। द्रोण (दोने) से उत्पन्न होने का कारण उनका नाम द्रोणाचार्य पड़ा।
जीवन
[संपादित करें]द्रोण अपने पिता के आश्रम में ही रहते हुये चारों वेदों तथा अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञान में पारंगत हो गये। द्रोण के साथ प्रषत् नामक राजा के पुत्र द्रुपद भी शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तथा दोनों में प्रगाढ़ मैत्री हो गई। उन्हीं दिनों परशुराम अपनी समस्त सम्पत्ति को ब्राह्मणों में दान कर के महेन्द्राचल पर्वत पर तप कर रहे थे। एक बार द्रोण उनके पास पहुँचे और उनसे दान देने का अनुरोध किया। इस पर परशुराम बोले, "वत्स! तुम विलम्ब से आये हो, मैंने तो अपना सब कुछ पहले से ही ब्राह्मणों को दान में दे डाला है। अब मेरे पास केवल अस्त्र-शस्त्र ही शेष बचे हैं। तुम चाहो तो उन्हें दान में ले सकते हो।" द्रोण यही तो चाहते थे अतः उन्होंने कहा, "हे गुरुदेव! आपके अस्त्र-शस्त्र प्राप्त कर के मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होगी, किन्तु आप को मुझे इन अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा-दीक्षा देनी होगी तथा विधि-विधान भी बताना होगा।" इस प्रकार परशुराम के शिष्य बन कर द्रोण अस्त्र-शस्त्रादि सहित समस्त विद्याओं के अभूतपूर्व ज्ञाता हो गये।[3] शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात द्रोण का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी के साथ हो गया। कृपी से उनका एक पुत्र हुआ। यह महाभारत का वह महत्त्वपूर्ण पात्र बना जिसका नाम अश्वत्थामा है। द्रोणाचार्य ब्रह्मास्त्र का प्रयोग जानते थे जिसके प्रयोग करने की विधि उन्होंने अपने पुत्र अश्वत्थामा को भी सिखाई थी। द्रोणाचार्य का प्रारंभिक जीवन गरीबी में कटा उन्होंने अपने सहपाठी द्रुपद से सहायता माँगी जो उन्हें नहीं मिल सकी। एक बार वन में भ्रमण करते हुए गेंद कुएँ में गिर गई। इसे देखकर द्रोणाचार्य ने अपने धनुषर्विद्या की कुशलता से उसको बाहर निकाल लिया। इस अद्भुत प्रयोग के विषय में तथा द्रोण के समस्त विषयों मे प्रकाण्ड पण्डित होने के विषय में ज्ञात होने पर भीष्म पितामह ने उन्हें राजकुमारों के उच्च शिक्षा के नियुक्त कर राजाश्रय में ले लिया और वे द्रोणाचार्य के नाम से विख्यात हुये।[4]
महाभारत युद्ध
[संपादित करें]जब महाभारत का युद्ध तय हुआ तो द्रोण ने अपने पुत्र अश्वत्थामा समेत कौरव सेना का साथ दिया। युद्ध की शुरुआत में वे एक मुख्य भूमिका में थे । युद्ध के ग्यारहवें दिन के बाद भीष्म पितामह को अर्जुन के बाणों की शारश्या पर लेटने के बाद दुर्योधन ने कर्ण के कहने पर द्रोण को कौरव सेना का प्रधान सेनापति चुना । सेनापति बनते ही दुर्योधन और शकुनि द्रोण से कहते हैं कि युधिष्ठिर को बंदी बना लेंगे तो युद्ध समाप्त हो जाएगा। दुर्योधन की योजना को अर्जुन पूर्ण नहीं होने देता है। कर्ण भी पांडव सेना का भारी संहार करता है। दूसरे ही दिन युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए शकुनि और दुर्योधन अर्जुन को युधिष्ठिर से बहुत दूर भेजने में समपूर्ण हो जाते हैं, लेकिन अर्जुन समय पर पहुँचकर युधिष्ठिर को बंदी बनने से बचा लेते हैं। दुर्योधन राजा भगदत्त को अर्जुन से युद्ध करने के लिए भेजता है। भगदत्त भीम को हराके अर्जुन के साथ युद्ध करते हैं। श्रीकृष्ण भगदत्त के वैष्णवास्त्र को अपने ऊपर लेकर अर्जुन की रक्षा करते हैं। अर्जुन भगदत्त की आँखो की पट्टी तोड़ देता है, जिससे उसे दिखना बंद हो जाता है। अर्जुन इस अवस्था में ही उनका वध कर देता है। इसी दिन द्रोण युधिष्ठिर के लिए चक्रव्यूह रचते हैं जिसे केवल अर्जुन, श्रीकृष्ण एवं अभिमन्यु तोड़ना जानता थें। परंतु अभिमन्यु चक्रव्यूह से निकलना नहीं जानता था। युधिष्ठिर भीम आदि को अभिमन्यु के साथ भेजता है, लेकिन चक्रव्यूह के द्वार पर जयद्रथ सभी को रोक देता है। केवल अभिमन्यु ही प्रवेश कर पाता है। वह अकेला ही सभी कौरवों से युद्ध करता है और मारा जाता है। पुत्र अभिमन्यु का अन्याय पूर्ण तरीके से वध हुआ देखकर अर्जुन अगले दिन जयद्रथ वध करने की प्रतिज्ञा ले लेता है और ऐसा न कर पाने पर अग्नि समाधि लेने को कह देता है। युद्ध के चौदहवे दिन अर्जुन की अग्नि समाधि की बात सुनकर द्रोण कौरव के साथ मिलकर जयद्रथ को बचाने योजना बनाते हैं। द्रोण जयद्रथ को बचाने के लिए उसे सेना के पिछले भाग मे छिपा देते है, लेकिन श्रीकृष्ण द्वारा किए गए सूर्यास्त के कारण जयद्रथ बाहर आ जाता है और अर्जुन और वध कर देता है। इसी दिन द्रोण द्रुपद और विराट को मार देते हैं।
मृत्यु
[संपादित करें]युद्ध के पंद्रहवे दिन द्रोण द्वारा युद्ध में हो रही पांडव सेना की हानि को देख श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को द्रोण को हराने के लिए भेद का सहारा लेने को कहा और युद्ध में ये बात फैलाने के लिए कहा की अश्वत्थामा युद्ध में मारा गया। तब इसको अपने धर्म के विरुद्ध देख कर युधिष्ठिर इस कपट को नकारने की कोशिश करने लगे तभी एक योजना के तहत भीम ने अवंतिराज के एक अश्वत्थामा नामक हाथी का वध किया और युधक्षेत्र में ये बात फैलाने लगा कि अश्वत्थामा मारा गया। जब इस बात का द्रोण को इसका पता चला तो वो युधिष्ठिर के पास गए और पूछा कि सच में अश्वत्थामा की मृत्यु हो गई है तब युधिष्ठिर ने अश्वत्थामा नामक मरे हुए हाथी को ध्यान में रख कर हाँ कह दिया। इसको सुन कर द्रोण को सदमा लगा और वो अपने अस्त्र शस्त्र त्याग कर अपने इकलौते पुत्र की मौत का शोक बनाने हेतु धरती पर बैठ गए। तभी पांडव सेना के सेनापति और द्रोपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से द्रोण का वध कर दिया।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Mittal, J. P. (2006). History Of Ancient India (a New Version)From 4250 Bb To 637 Ad (in अंग्रेज़ी). Atlantic Publishers & Dist. ISBN 9788126906161. Archived from the original on 28 जुलाई 2018. Retrieved 28 जुलाई 2018.
- ↑ Doyle, Christopher C. (2013). The Mahabharata Secret (in अंग्रेज़ी). Om Books International. Archived from the original on 28 जुलाई 2018. Retrieved 28 जुलाई 2018.
- ↑ Tharoor, Shashi (1993). The Great Indian Novel (in अंग्रेज़ी). Arcade Publishing. ISBN 9781559701945. Archived from the original on 28 जुलाई 2018. Retrieved 28 जुलाई 2018.
- ↑ "द्रोणाचार्य". ब्रज डिस्कवरी. Archived from the original on 16 जुलाई 2014. Retrieved ३० दिसंबर २००९.
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