सामग्री पर जाएँ

दुर्योधन

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
दुर्योधन
दुर्योधन और द्रोण महाभारत के युद्ध में
दुर्योधन और द्रोण महाभारत के युद्ध में
हिंदू पौराणिक कथाओं के पात्र
नाम:दुर्योधन
अन्य नाम:सुयोधन
संदर्भ ग्रंथ:महाभारत
जन्म स्थल:हस्तिनापुर
व्यवसाय:क्षत्रिय
मुख्य शस्त्र:गदा
राजवंश:कुरु वंश
माता-पिता:धृतराष्ट्र (पिता) गांधारी (माता)
भाई-बहन:दुःशासन विकर्ण, दुःशला आदि अन्य कौरव
जीवनसाथी:भानुमती, मयूरी
संतान:लक्ष्मण कुमार

दुर्योधन ( संस्कृत : दुर्योधन अर्थात् जिसके साथ लड़ाई बेहद मुश्किल है, शाब्दिक अर्थ है दूर = अत्यंत कठिन, योधन = युद्ध / लड़ो , दुर्योधन को सुयोधन को रूप में भी जाना जाता है जो हिंदू महाकाव्य में एक प्रमुख प्रतिपक्षी है) महाभारत के पात्र, राजा धृतराष्ट्र और रानी गांधारी के सौ पुत्रों में सबसे बड़ा कौरव था। राजा का पहला पुत्र होने के नाते, वह कुरु वंश और उसकी राजधानी हस्तिनापुर का राजकुमार था। परंतु दुर्योधन अपने चचेरे भाई युधिष्ठिर से छोटा था। कर्ण दुर्योधन का सबसे करीबी मित्र था। दुर्योधन महाभारत युद्ध का एक प्रमुख योद्धा व पात्र था । महाभारत के युद्ध का कारण भी दुर्योधन की महत्वाकांक्षाए थी। अंत: दुर्योधन के दो बड़े अवगुण क्रोध और अहंकार ही उसके पतन का कारण बने। दुर्योधन द्वापरयुग का एक सर्वश्रेष्ठ गदाधर थे। माना जाता है की वो अपने अगले जन्म मे ओजस के रूप में अवतार लेंगे

चित्र:Vyas ki vardhan.jpg

दुर्योधन और बाकी कौरव भाई - बहन का जन्म महाभारत की एक वाचित्र और मुख्य घटना है। महाभारत के अनुसार महर्षि व्यास जी ने गांधारी को 100 पुत्रो को जन्म (शतपुत्र प्रपत्तिरस्तु) देने का आशीर्वाद (वरदान) दिया था। उसके बाद गांधारी गर्भवती हुई और लंबे समय तक गर्भव्यस्था में रही जिसके कारण गांधारी निराशा होती गई और आखिर एक दिन उसने अपने पेट पर जोरदार मुक्का मारा जिसके कारण गांधारी का गर्भ गिर गया। इसके बाद उसके पेट से एक मांस का लोथड निकला। उसके बाद महर्षि व्यास को बुलाया गया । उन्हें इसको देख कर काफी निराशा हुई । इसके बाद उन्होंने उस मांस के टुकड़े पर कुछ मंत्र का जाप करते हुए जल के छींटे मारे जिसके बाद वो लोथड़ के गेंद के बराबर 100 टुकड़े हो गए, उसके बाद उनको दूध से भरे हुए 100 अलग अलग बर्तनों में रख उनको पूरी तरह से सील करके किसी सुरक्षित जगह पर दफन कर दिया और उसके बाद उनको दो वर्ष बाद खोलने के लिए कह कर व्यास वन की और चल दिए। इसके बाद पहले बर्तन को खोला तो उसमें दुर्योधन निकला जिस दिन दुर्योधन का जन्म हुआ था उसी दिन कुन्तीपुत्र भीमसेन का भी जन्म हुआ था दोनों ने एक ही दिन और एक ही समय में जन्म लिया था।

भीम संग गदा युद्ध

[संपादित करें]

महाभारत के युद्ध के अठारवे दिन दुर्योधन को अपने करीबी कर्ण,द्रोण , दुशासन , शकुनि आदि की मृत्यु के बाद काफी दुख होता है। अब कौरव सेना में सिर्फ गिने चुने महारथी कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा आदि ही बचते है। जिसके बाद वो इस युद्ध में अकेला महसूस करने लगा और अपनी माता गांधारी के पास गया। उसकी मां ने उसको भीम के साथ होने वाली गदा युद्ध में सुरक्षित करने के लिए उसको बिना कपड़ों के उसके सामने आने के लिए कहा । जब दुर्योधन अपनी माता के सामने नग्‍न हाोकर जाने लगे तब वासुदेव कृष्ण ने कहा कि काोई भी संतान अपनी माता के सामने पूर्ण रूप से नग्‍न हाोकर नही जाती, इस बात काो दुर्योधन के द्वारा माना गया तथा अपनी जंघाओ काो ढांका एवं अपनी माता के सामने गये , जब गांधारी ने अपने पुत्र के शरीर को पथर जैसा मजबूत बनाने के लिए अपनी आंखो से पटी हटाई तो उसने देखा दुर्योधन ने पूरी तरह से नग्न अवस्था में नहीं था अर्थात् उसने अपने नीचे के अंगो और अपनी जंघाओ को डका हुआ था। उसकी नजर दुर्योधन की जंघाओ को छोड़ कर उसके शरीर के जिस जिस अंग पर पड़ी वो पथर जैसा मजबूत बन गया । इसके बाद उसने तुरंत अपनी आंखे डक ली।और दुर्योधन को कहा उसने अपनी दृष्टि से उसकी जंघाओं को छोड़ कर बाकी सारा शरीर सुरक्षित कर दिया है। दुर्योधन अपनी इस आदि कामजाबी से निराश हो कर वहां से चल दिया। वह अपनी बची हुई कौरव सेना को छोड़ कर एक झील के अंदर ध्यान लगाने चला जाता है।

उधर युद्ध क्षेत्र में पांडव कौरव सेना की अनुपस्थिति को देख कर दुर्योधन को डूंडने के लिए श्री कृष्ण समेत निकल पड़ते है। जिसके बाद बड़ी मुश्किल से उनको झील में छिपे हुए दुर्योधन का पता चल जाता है । इसके बाद वो दुर्योधन को झील से बाहर आने और युद्ध करने के लिए ललकारते है। जिसको सुनकर दुर्योधन झील से बाहर आ जाता है, और भीम से गदा युद्ध करता है। युद्ध में वो अपनी मां के दिए हुए लोहशरीर रूपी वरदान की बदौलत भीम को काफी हद तक हरा देता है। किन्तु आखिर में श्री कृष्ण भीम को इशारा कर दुर्योधन की जंघा पर गदा से वार करने के लिए और दुर्योधन की जंघाओं को तोड़ने की ली हुई प्रतिज्ञा को याद दिलाते है। जिसके बाद भीम दुर्योधन की झंगाओ पर वार करते है और उसको बुरी तरह गायल कर देते है। गदा युद्ध के नियम (गदा युद्ध में शरीर के निचले भाग पर हमला नहीं करते) को टूटता और अपने सबसे प्रिय शिष्य को मरता हुए देख बलराम वहां आते है और भीम पर हमला कर देते है जिनको श्री कृष्ण समझाते है और शांत करके बापस चले जाने के लिए मनाते है। उनके जाने के बाद श्री कृष्ण समेत सभी पांडव दुर्योधन को तडफता हुआ छोड़ कर वहां से चले जाते है।

भीम के हाथों हारने के बाद दुर्योधन को आधा मरा हुआ छोड़ कर श्री कृष्ण समेत समस्त पांडव अपने शिविरो की और चले जाते है। रात के दौरान जब दुर्योधन तड़फ रहा होता है तब कौरव सेना के बचे हुए योद्धाओं में तीन योद्धा कृपाचार्य,अश्वत्थामा और कृत्वर्मा वहां आते है। तब दुर्योधन उनको अपनी हालत का कारण बताता है। जिसको देख अश्वत्थामा क्रोधित हो गया और दुर्योधन से पांडवो को मारने की प्रतिज्ञा कर पांडवो के शिविर कि और चला गया। (पांडवों के शिविर मेँ सोते हुए पांडव पुत्रों का अश्वत्थामा हत्या कर देता है, और दुर्योधन को आकर बताता है। अश्वत्थामा को लगता है कि दुर्योधन को खुशी मिलेगी मगर दुर्योधन बहुत दुःखी होकर कहता है कि उसने अच्छा नहीं किया, उसने (अश्वत्थामा) ने पांडवों की निर्दोष संतानो को मार कर उसके (दुर्योधन) का वंश समाप्त कर दिया। इसके बाद दुर्योधन का तड़प तड़प कर अंत हो गया। यह स्थान आज भी मौजूद है। हरियाणा के जींद जिले के गांव ईक्कस में ये तालाब है आज इसे ढूंढू का तीर्थ या ढूंढू का तालाब कहते हैं।

दुर्योधन - एक सर्वश्रेष्ठ गदाधर

[संपादित करें]

दुर्योधन की बचपन से ही गदा युद्ध में रुचि थी। इसके लिए उन्होंने गदायुद्ध की शुरुआती शिक्षा गुरु द्रोण और कृपाचार्य से सीखी। फिर बाद में दुर्योधन और भीमसेन दोनों ने भगवान बलराम से गदायुध्द में परास्त होने पर उन्होंने भगवान बलराम से गदायुध्द की शिक्षा प्राप्त कि।और वो(दुर्योधन) गदायुद्ध में इतने माहिर हो गए थे कि एक बार उन्होंने भगवान बलराम तक को परास्त कर दिया था जिससे भगवान बलराम प्रसन्न होकर दुर्योधन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ गदाधर की उपाधि भी दी और अपनी बहन सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से कराना चाहते थे लेकिन उस समय अर्जुन ने सुभद्रा का हरण कर उससे (सुभद्रा) से विवाह कर लिया। महाभारत युद्ध में दुर्योधन ने गदा युद्ध में भीमसेन को कई बार मूर्छित या अधमरा भी किए हैं।दुर्योधन कली का अवतार और जालंधर का पुनर्जन्म था जो एक मजबूत-कठिन योद्धा होने का मुख्य कारण था |

बाहरी सम्पर्क

[संपादित करें]