बभ्रुवाहन


वभ्रुवाहन, महाभारत का एक पात्र है। वह अर्जुन का एक पुत्र था जो चित्रवाहन की पुत्री मणिपुर (महाभारत) की राजकुमारी चित्रांगदा से उत्पन्न हुआ था, जब अर्जुन अपने वनवास काल में मणिपुर गए थे। चित्रवाहन की मृत्यु के बाद मणिपुर के राजा बने। युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ बभ्रुवाहन को उनकी माता चित्रांगदा ने यह नहीं बताया की अर्जुन ही उनके पिताजी है अश्व को पकड़ लेने पर अर्जुन से इनका घोर युद्ध हुआ अ विजयी हुए। किंतु माता के आग्रह पर इन्होंने मृतसंजीवक मणि द्वारा समरभूमि में अचेत पड़े अर्जुन को चैतन्य किया और अश्व को उन्हें लौटाते हुए यह अपनी माताओं-चिंत्रांगदा और उलूपी के साथ युधिष्ठिर के यज्ञ में सम्मिलित हुए (जैमि, अश्व., 37, 21-40; महा. आश्व. 79-90)।
दंतकथा
[संपादित करें]जन्म
[संपादित करें]मणिपुर पूर्वी भारत की राजधानी था और वहाँ के राजा चित्रवाहन थे। उनके चित्रागंदा नामक एक पुत्री थी। उनके राजवंश में यह परम्परा थी कि वंश में पहली बार एक पुत्री ने जन्म लिया था और कोई उत्तराधिकारी नहीं था। चित्रवाहन का अन्य कोई उत्तराधिकारी नहीं होने के कारण उन्होंने अपनी पुत्री को ही युद्ध और शासन के लिए प्रशिक्षित किया। चित्रागंदा ने भूमि और प्रजा की रक्षा के लिए अच्छा प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया था। यह जानकारी रविन्द्रनाथ टैगोर के नाटक चित्रा में वर्णित है।[1] टैगोर के नाटक में चित्रागंदा एक पुरुष योद्धा के वस्त्र में दिखाया जाता है।[2] अर्जुन जब चित्रागंदा से मिलता है तो वो दोनों एक दूसरे से प्यार करने लग जाते हैं। उनके विवाह से चित्रांगदा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम बभ्रुवाहन था। अर्जुन के छोड़ने के बाद चित्रांगदा ने बभ्रुवाहन का पालन पोषण किया और युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया।[3]
अश्वमेघ
[संपादित करें]अश्वमेघ यज्ञ के समय बभ्रुवाहन ने पाण्डवों की सेना को परास्थ किया। उसके बाद भीम को मुर्च्छित कर दिया। बाद में वृषकेतु से युद्ध करते हुये बभ्रुवाहन ने उसे भी हरा दिया। इन सभी से क्रोधित होकर अर्जुन स्वयं युद्ध करने लगता है और अर्जुन युद्ध में भारी पड़ता है लेकिन अन्त में बभ्रुवाहन की जीत होती है। बभ्रुवाहन एक अस्त्र से अर्जुन का वध कर देता है लेकिन बाद में नाग राजकुमारी उलूपी एक अपनी मणि नागमणि और कृष्ण की सहायता से अर्जुन को वापस जीवन देती है। इसके बाद सभी हस्तिनापुर को लौट जाते हैं।[3]
लोकप्रिय संस्कृति में
[संपादित करें]बभ्रुवाहन की कहानी तेलुगू फ़िल्मों में 1942 और 1964 में प्रसारित हुई। सन् 1977 में कन्नड़ फ़िल्म भी प्रसारित हुई। सन् 1964 की तेलुगू फ़िल्म बभ्रुवाहन का लेखन और निर्देशन समुद्रला ने किया।
बभ्रुवाहन पर पहली हिन्दी फ़िल्म सन् 1951 में नानाभाई भट्ट ने बनाई जिसमें शशि कपूर और एसएन त्रिपाठी ने अभिनय किया था। दूसरी फ़िल्म वीर अर्जुन नमा से सन् 1952 में जारी हुई जिसमें महिपाल, निरूपा रॉय और त्रिलोक कपूर ने अभिनय किया।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ J. E. Luebering, ed. (20 December 2009). The 100 Most Influential Writers of All Time. The Rosen Publishing Group, Inc. p. 242. ISBN 9781615300051.
- ↑ Tagore, Rabindranath (2015). Chitra - A Play in One Act. Read Books Ltd. p. 1. ISBN 9781473374263.
- ↑ अ आ Bhanu, Sharada (1997). Myths and Legends from India - Great Women. Chennai: Macmillan India Limited. pp. 7–10. ISBN 0-333-93076-2.
बाहरी कड़ियाँ
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Babruvahana से संबंधित मीडिया विकिमीडिया कॉमंस पर उपलब्ध है। |
- एन्साइकलोपीडिया फॉर एपिक्स ऑफ एंशियंट इंडिया में बभ्रुवाहन (अंग्रेज़ी में)