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भविष्य पुराण

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भविष्य पुराण
भविष्यमहापुराण (सम्पूर्ण) के प्रकाशित संस्करण की झलक
अनुवादकप्रजापति आकाश
भाषासंस्कृत
शृंखलापुराण
विषयहिन्दू धर्म, भारतीय इतिहास
शैलीसूर्य, कलियुगी इतिहास, विभिन्न प्रतिष्ठादि, व्रत तथा दान आदि से सम्बद्ध विवरणात्मक
प्रकाशन स्थानभारत
पृष्ठ१४,५०० श्लोक

भविष्य पुराण १८ प्रमुख पुराणों में से एक है। विषय-वस्तु एवं वर्णन-शैली की दृष्टि से यह एक विशेष ग्रंथ है। इसमें धर्म, सदाचार, नीति, उपदेश, अनेकों आख्यान, व्रत, तीर्थ, दान, ज्योतिष एवं आयुर्वेद के विषयों का संग्रह है। वेताल-विक्रम-संवाद के रूप में इसमें रमणीय कथा-प्रबन्ध है। इसके अतिरिक्त इसमें नित्यकर्म, संस्कार, सामुद्रिक लक्षण, शान्ति तथा पौष्टिक कर्म आराधना और अनेक व्रतों का भी विस्तृत वर्णन है।[1] भविष्य पुराण में भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन है। [2]

इस पुराण में भारतवर्ष के वर्तमान समस्त आधुनिक इतिहास का वर्णन है। इसके प्रतिसर्गपर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खण्ड में इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है। इतिहास लेखकों ने प्रायः इसी का आधार लिया है। इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन महाराज पृथ्वीराज चौहान, महावीर बप्पा रावल,हेमू , छत्रपति शिवाजी आदि हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर, अकबर, औरंगजेब, राजा विक्टर और रानी विक्टोरिया, थौमस मैक्युले, गुरुन्ड राजा, मौन राजा, अर्बुदी ब्राह्मण, वायवी आर्य और कल्कि अवतार आदि का वर्णन है। इसके मध्यमपर्व में समस्त कर्मकाण्ड का निरूपण है। इसमें वर्णित व्रत और दान से सम्बद्ध विषय भी महत्त्वपूर्ण हैं। इतने विस्तार से व्रतों का वर्णन न किसी अन्य पुराण, धर्मशास्त्र में मिलता है और न किसी स्वतन्त्र व्रत-संग्रह के ग्रन्थ में। हेमाद्रि, व्रतकल्पद्रुम, व्रतरत्नाकर, व्रतराज आदि परवर्ती व्रत-साहित्य में मुख्यरूप से भविष्यपुराण का ही आश्रय लिया गया है।

भविष्य पुराण के अनुसार, इसके श्लोकों की संख्या पचास हजार के लगभग होनी चाहिए। परन्तु वर्तमान में कुल १४,००० श्लोक ही उपलब्ध हैं। विषय-वस्तु, वर्णनशैली तथा काव्य-रचना की दृष्टि से भविष्यपुराण महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसकी कथाएँ रोचक तथा प्रभावोत्कपादक हैं।

भविष्य पुराण में एक आकाश नाम के मनुष्य के बारे में भी भविष्यवाणी की गई है।

भविष्य पुराण में भगवान सूर्य नारायण की महिमा, उनके स्वरूप, पूजा उपासना विधि का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसीलिए इसे ‘सौर-पुराण’ या ‘सौर ग्रन्थ’ भी कहा गया है।[3]

भविष्यपुराण की संरचना

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यह पुराण ब्रह्म पर्व, मध्यम पर्व, प्रतिसर्ग पर्व तथा उत्तर पर्व - इन चार पर्वों में विभक्त है। मध्यमपर्व तीन तथा प्रतिसर्गपर्व चार अवान्तर खण्डों में विभक्त है। पर्वों के अन्तर्गत अध्याय हैं, जिनकी कुल संख्या ५८५ है। प्रतिसर्गपर्व के द्वितीय खण्ड के २३ अध्यायों में वेताल-विक्रम-सम्वाद के रूप में कथा-प्रबन्ध है, वह अत्यन्त रमणीय तथा मोहक है। रोचकता के कारण ही यह कथा-प्रबन्ध गुणाढ्य की ‘बृहत्कथा’, क्षेमेन्द्र की ‘बृहत्कथामञ्जरी, सोमदेव के ‘कथासरित्सागर’ आदि में वेतालपंचविंशति के रूप में संगृहीत हुआ है। भविष्य पुराण की इन्हीं कथाओं का नाम ‘वेतालपंचविंशति’ या ‘वेतालपंचविंशतिका’ है। इसी प्रकार प्रतिसर्गपर्व के द्वितीय खण्डके २४ से २९ अध्यायों तक उपनिबद्ध ‘श्रीसत्यनारायणव्रतकथा’ उत्तम कथा-साहित्य है। उत्तरपर्व में वर्णित व्रतोत्सव तथा दान-माहात्म्य से सम्बद्ध कथाएँ भी एक से बढ़कर एक हैं। ब्राह्मपर्व तथा मध्यमपर्व की सूर्य-सम्बन्धी कथाएँ भी कम रोचक नहीं हैं। आल्हा-ऊदल के इतिहास का प्रसिद्ध आख्यान इसी पुराण के आधार पर प्रचलित है।

ब्राह्म पर्व

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इसमें कुल २१६ अध्याय हैं। भविष्य की घटनाओं से संबंधित इस पन्द्रह सहस्र श्लोकों के महापुराण में धर्म, आचार, नागपंचमी व्रत, सूर्यपूजा, स्त्री प्रकरण आदि हैं। इसके इस पर्व के आरम्भ में महर्षि सुमंतु एवं राजा शतानीक का संवाद है। इस पर्व में मुख्यत: व्रत-उपवास पूजा विधि, सूर्योपासना का माहात्म्य और उनसे जुड़ी कथाओं का विवरण प्राप्त होता है। इसमें सूर्य से सम्बन्धित १६९ अध्याय है।

मध्यम पर्व

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मध्यमपर्व में समस्त कर्मकाण्ड का निरूपण है। इसमें वर्णित व्रत और दान से सम्बद्ध विषय भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इतने विस्तार से व्रतों का वर्णन न किसी पुराण, धर्मशास्त्रमें मिलता है और न किसी स्वतन्त्र व्रत-संग्रह के ग्रन्थ में। हेमाद्रि, व्रतकल्पद्रुम, व्रतरत्नाकर, व्रतराज आदि परवर्ती व्रत-साहित्य में मुख्यरूप से भविष्यपुराण का ही आश्रय लिया गया है। इस पर्व में मुख्य रूप से श्राद्धकर्म, पितृकर्म, विवाह-संस्कार, यज्ञ, व्रत, स्नान, प्रायश्चित्त, अन्नप्राशन, मन्त्रोपासना, राज कर देना, यज्ञ के दिनों की गणना के बारे में विवरण दिया गया है।

प्रतिसर्ग पर्व

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इसके प्रतिसर्गपर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खण्ड में इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है। इतिहास लेखकों ने प्रायः इसी का आधार लिया है। इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन, महावीर बप्पा रावल, महाराज पृथ्वीराज चौहान,आल्हा- ऊदल,छत्रपती शिवाजी, आदि हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर तथा अकबर, आदि का प्रामाणिक इतिहास निरूपित है। इसमें जगद्गुरु श्री आदिशंकराचार्य, श्रीरामानुजाचार्य,मीराबाई, श्रीचैतन्य महाप्रभु,गुरु नानक देवजी,तुलसीदासजी,सूरदासजी, कबीरदास जी,चंद बरदाई के बारे में दिया है तथा ईसा मसीह के जन्म एवं उनकी भारत यात्रा, हजरत मुहम्मद का आविर्भाव, द्वापर युग के चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन, कलि युग में होने वाले राजाओं जैसे बौद्ध,शिशुनाग,नंद, मौर्य, राजाओं तथा परमार, चौहान, गुर्जर-प्रतिहार, चालुक्य (गुजरात) वंशी के राजाओं तक का वर्णन इसमें प्राप्त होता है।

उत्तर पर्व

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इस पर्व में भगवान विष्णु की माया से नारद जी के मोहित होने का वर्णन है। इसके बाद स्त्रियों को सौभाग्य प्रदान करने वाले अन्य कई व्रतों का वर्णन भी विस्तारपूर्वक किया गया है। /* उत्तर पर्व */ इस पर्व में २०८ अध्याय हैं। यद्यपि यह भविष्य पुराण का अंग है, किन्तु इसे एक स्वतन्त पुराण (भविष्योत्तरपुराण) माना जाता है।

प्रतिसर्ग पर्व की भविष्यवाणियाँ

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भविष्य पुराण के प्रतिसर्गपर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खण्ड में इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है। इसमें प्राचीनकाल के चक्रवर्ती सम्राट इक्ष्वाकु, सम्राट मांधाता, सम्राट हरिशचंद्र, सम्राट सगर, सम्राट भगीरथ, महाराजा दिलीप, महाराजा रघु, महाराजा दशरथ, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामजी,महाराजा कुश, महाराज नल आदि प्रमुख सूर्यवंशी सम्राटों तथा महाराजा सुद्दयुमन(इला), राजा नहुष, महाराजा ययाति, महाराजा भरत, महाराज शांतनु, भगवान श्रीकृष्ण, चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठिर,चक्रवर्तीय सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार, दिग्विजयी सम्राट विक्रमादित्य, सम्राट शालिवाहन, चक्रवर्ती सम्राट भोजराज तथा मध्यकालीन हर्षवर्धन, महाराज पृथ्वीराज चौहान, महावीर बप्पा रावल, आदि हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर तथा अकबर,छत्रपती शिवाजी आदि का प्रामाणिक इतिहास निरूपित है। जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य जी,श्री चैतन्य महाप्रभु,श्री रामानुजाचार्य, मीराबाई, गुरु नानक देवजी, कबीरदास जी, तुलसीदास जी,सूरदास जी,ईसा मसीह के जन्म एवं उनकी भारत यात्रा, हजरत मुहम्मद का आविर्भाव,[4] द्वापर युग के चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन, जगद्गुरु श्री आदि में होने राजाओं, बौद्ध, मौर्य,नंद,शिशुनाग, चालुक्य गुजरात,गुहिल वंशी राजाओं तथा चौहान एवं परमार वंश, पुरी के किलकिला (नागवंश) के राजाओं तक का वर्णन इसमें प्राप्त होता है।

रचना-काल

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इस पुराण के रचनाकाल के विषय में बहुत मतभेद हैं। चूंकि इसमें अट्ठारहवीं-उन्नीसवीं शताब्दी तक के इतिहास की झलक मिलती है किन्तु इसे वेदव्यास जी की भविष्यवाणीयां जान कर विद्वान इसे भी अन्य पुराणों के समान प्राचीन जानते हैं

सन्दर्भ

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  1. "गीताप्रेस डाट काम". Archived from the original on 23 जून 2010. Retrieved 14 मई 2010.
  2. "Hindu Scriptures" (in अंग्रेज़ी). इंडिया डिवाइन. Archived from the original on 17 अक्तूबर 2007. Retrieved 9 मार्च 2008. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= and |archive-date= (help)
  3. "यहाँ सत्यनारायण की कथा ही नहीं है...!!". Archived from the original on 13 अक्तूबर 2016. Retrieved 7 अगस्त 2016. {{cite web}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  4. भविष्यपुराण में वर्णित इस्लाम

बाहरी कडियाँ

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