बप्पा रावल
बप्पा रावल | |
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मेवाड़ के रावल | |
शासनावधि | ७२८ - ७५३ |
पूर्ववर्ती | नागादित्य |
उत्तरवर्ती | खुमान प्रथम |
जन्म | 713 ईस्वी |
संतान | खुमान प्रथम |
राजवंश | गुहिल राजवंश |
पिता | नागादित्य |
धर्म | हिन्दू धर्म |
बप्पा रावल (या कालभोज) (शासन: ७१३ - ८१०) मेवाड़ राज्य में क्षत्रिय कुल के गुहिल राजवंश के संस्थापक और एक महापराक्रमी शासक थे। [1] बप्पारावल का जन्म मेवाड़ के महाराजा गुहिल की मृत्यु के १९१ वर्ष पश्चात ७१२ ई. में ईडर में हुआ। उनके पिता ईडर के शाषक महेंद्र द्वितीय थे।[2]
परिचय
[संपादित करें]बप्पा रावल मेवाड़ के संस्थापक थे कुछ जगहों पर इनका नाम कालाभोज है ( गुहिल वंश संस्थापक- (राजा गुहादित्य )| इसी राजवंश में से सिसोदिया वंश का निकास माना जाता है, जिनमें आगे चल कर महान राजा राणा कुम्भा, राणा सांगा, महाराणा प्रताप हुए।[3] बप्पा रावल बप्पा या बापा वास्तव में व्यक्तिवाचक शब्द नहीं है, अपितु जिस तरह "बापू" शब्द महात्मा गांधी के लिए रूढ़ हो चुका है, उसी तरह आदरसूचक "बापा" शब्द भी मेवाड़ के एक नृपविशेष के लिए प्रयुक्त होता रहा है। सिसौदिया वंशी राजा कालभोज का ही दूसरा नाम बापा मानने में कुछ ऐतिहासिक असंगति नहीं होती। इसके प्रजासरंक्षण, देशरक्षण आदि कामों से प्रभावित होकर ही संभवत: जनता ने इसे बापा पदवी से विभूषित किया था। महाराणा कुंभा के समय में रचित एकलिंग महात्म्य में किसी प्राचीन ग्रंथ या प्रशस्ति के आधार पर बापा का समय संवत् ८१० (सन् ७५३) ई. दिया है। दूसरे एकलिंग माहात्म्य से सिद्ध है कि यह बापा के राज्यत्याग का समय था। बप्पा रावल को रावल की उपाधि भील सरदारों ने दी थी । जब बप्पा रावल 3 वर्ष के थे तब वे और उनकी माता जी असहाय महसूस कर रहे थे , तब भील समुदाय ने उनदोनों की मदद कर सुरक्षित रखा,बप्पा रावल का बचपन भील जनजाति के बीच रहकर बिता और भील समुदाय ने अरबों के खिलाफ युद्ध में बप्पा रावल का सहयोग किया। यदि बप्पा रॉवल जी का राज्यकाल 30 साल का रखा जाए तो वह सन् ७२३ के लगभग गद्दी पर बैठे होगे। उससे पहले भी उसके वंश के कुछ प्रतापी राजा मेवाड़ में हो चुके थे, किंतु बापा का व्यक्तित्व उन सबसे बढ़कर था। चित्तौड़ का मजबूत दुर्ग उस समय तक मोरी वंश के राजाओं के हाथ में था। परंपरा से यह प्रसिद्ध है कि हारीत ऋषि की कृपा से बापा ने मानमोरी को मारकर इस दुर्ग को हस्तगत किया। टॉड को यहीं राजा मानका वि. सं. ७७० (सन् ७१३ ई.) का एक शिलालेख मिला था जो सिद्ध करता है कि बापा और मानमोरी के समय में विशेष अंतर नहीं है।[4]
चित्तौड़ पर अधिकार करना कोई आसान काम न था। अनुमान है कि बापा की विशेष प्रसिद्धि अरबों से सफल युद्ध करने के कारण हुई। सन् ७१२ ई. में मुहम्मद कासिम से सिंधु को जीता। उसके बाद अरबों ने चारों ओर धावे करने शुरु किए। उन्होंने चावड़ों, मौर्यों, सैंधवों, कच्छेल्लों को हराया। मारवाड़, मालवा, मेवाड़, गुजरात आदि सब भूभागों में उनकी सेनाएँ छा गईं। इस भयंकर कालाग्नि से बचाने के लिए ईश्वर ने राजस्थान को कुछ महान व्यक्ति दिए जिनमें विशेष रूप से गुर्जर प्रतिहारवंशी राजपूत सम्राट् नागभट प्रथम और बापा रावल के नाम उल्लेखनीय हैं। नागभट प्रथम ने अरबों को पश्चिमी राजस्थान और मालवे से मार भगाया। बापा ने यही कार्य मेवाड़ और उसके आसपास के प्रदेश के लिए किया। मौर्य (मोरी) शायद इसी अरब आक्रमण से जर्जर हो गए हों। बापा ने वह कार्य किया जो मोरी करने में असमर्थ थे और साथ ही चित्तौड़ पर भी अधिकार कर लिया। बापा रावल के मुस्लिम देशों पर विजय की अनेक दंतकथाएँ अरबों की पराजय की इस सच्ची घटना से उत्पन्न हुई होंगी।[5][6]
बप्पा रावल ने अपने विशेष सिक्के जारी किए थे। इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है। बाईं ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है। शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत् करते हुए एक पुरुष की आकृति है। पीछे की तरफ सूर्य और छत्र के चिह्न हैं। इन सबके नीचे दाहिनी ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है(शायद इसी कारण इन्हे कालभोज ग्वाल कहा गया है )। ये सब चिह्न बपा रावल की शिवभक्ति और उसके जीवन की कुछ घटनाओं से संबद्ध हैं।
बप्पा रावल के बारे में कुछ तथ्य
[संपादित करें]- बप्पा रावल को कालभोजादित्य के नाम से भी जाना जाता है
- इनके समय चित्तौड़ पर मौर्य शासक मान मोरी का राज था। 734 ई. में बप्पा रावल ने 20 वर्ष की आयु में ही मान मोरी को पराजित कर चित्तौड़ दुर्ग पर अधिकार किया।
- बप्पा रावल को हारीत ऋषि के द्वारा महादेव जी के दर्शन होने की बात मशहूर है। साथ ही कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ जी से वह अत्यंत प्रभावित हुए। गुरु गोरखनाथ जी की उन्होंने सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर गुरु ने उन्हें अद्भुत चमत्कारी तलवार दी जो शत्रु नाशक था।
- बप्पा रावल की दक्षिण के नोलांबा साम्राज्य के राजाओं से मित्रता थी। आज के तुमकुर जिले की मधुगिरी पहाड़ियों में बाप्पा रावल के भ्रमण के साक्ष्य मिलते हैं।
- एकलिंगजी का मन्दिर - उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी में स्थित इस मन्दिर का निर्माण 734 ई. में बप्पा रावल ने करवाया | इसके निकट हारीत ऋषि का आश्रम है।
- आदि वराह मन्दिर - यह मन्दिर बप्पा रावल ने एकलिंग जी के मन्दिर के पीछे बनवाया।
- इन्होंने अपनी राजधानी नागदा रखी।
- कविराज श्यामलदास के शिष्य गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अजमेर के सोने के सिक्के को बापा रावल का माना है। इसका तोल 115 ग्रेन (65 रत्ती) है। इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है। बाईं ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है। शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत् करते हुए एक पुरुष की आकृति है। पीछे की तरफ सूर्य और छत्र के चिह्न हैं। इन सबके नीचे दाहिनी ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है। ये सब चिह्न बपा रावल की शिवभक्ति और उनके जीवन की कुछ घटनाओं से संबद्ध हैं।बप्पा रावल ने वर्तमान भारत के हिसाब से देखा जाये तो करीब 18 अन्तरराष्ट्रीय विवाह किए|बप्पा रावल ने अरबो को हराकर अपनी अधीनता स्वीकार करवाकर उनकी पुत्रियों से विवाह करके मेवाड़ लौटते बप्पा ने गजनी के शासक सलीम को हराकर वहाँ अपने भतीजे को गवर्नर बनाकर बिठा आए|तत्कालीन ब्राह्मणवाद और वर्तमान कराची बप्पा का एक प्रमुख सैन्य ठिकाना था|पाकिस्तान के शहर रावलपिण्डी का नाम बप्पा के नाम से ही पड़ा जाना माना जाता है|
- 753 ई. में बप्पा रावल ने 39 वर्ष की आयु में सन्यास लिया। इनका समाधि स्थान एकलिंगपुरी से उत्तर में एक मील दूर स्थित है। इस तरह इन्होंने कुल 19 वर्षों तक शासन किया।
- बप्पा रावल का देहान्त नागदा में हुआ, जहाँ इनकी समाधि स्थित है।
- बप्पा रावल की 100 रानियां थी जिनमें से 42 मुस्लिम रानी थी।।[7] उनकी मुस्लिम रानियां इस्लामिक शासकों की बेटी थी जिन्हें बप्पा रावल के तलवार के भय से शासकों ने विवाह संधि में बांध दिया।
- शिलालेखों में वर्णन-
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- कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में बप्पा रावल को विप्रवंशीय बताया गया है
- आबू के शिलालेख में बप्पा रावल का वर्णन मिलता है
- कीर्ति स्तम्भ शिलालेख में भी बप्पा रावल का वर्णन मिलता है
- रणकपुर प्रशस्ति में बप्पा रावल व कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया गया है। हालांकि आज के इतिहासकार इस बात को नहीं मानते |
- कर्नल जेम्स टॉड को 8वीं सदी का शिलालेख मिला, जिसमें मानमोरी (जिसे बप्पा रावल ने पराजित किया) का वर्णन मिलता है। कर्नल जेम्स टॉड ने इस शिलालेख को समुद्र में फेंक दिया।
- उपाधियां-
- हिंदू सूर्य
- राजगुरु
- चक्कवै
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Rao, Subba (1982). Bappa Rawal (705) (in अंग्रेज़ी). Amar Chitra Katha Pvt. Limited. ISBN 9788184821208. Archived from the original on 14 जुलाई 2018. Retrieved 14 जुलाई 2018.
- ↑ Vijay Nahar (2018). Yugpurush Bappa rawal. Riddhi Siddhi Prakashan. p. 84. ISBN 978-93-80492-69-8.
- ↑ Yasovarman of Kanau (in अंग्रेज़ी). Abhinav Publications. Archived from the original on 14 जुलाई 2018. Retrieved 14 जुलाई 2018.
- ↑ Sinha, Nandini (अगस्त 1993). "A Study of State and Cult: The Guhilas, Pasupatas and Ekalingaji in Mewar, Seventh to Fifteenth Centuries A.D". Studies in History (in अंग्रेज़ी). 9 (2): 161–182. doi:10.1177/025764309300900201. ISSN 0257-6430. Archived from the original on 29 मार्च 2019. Retrieved 14 जुलाई 2018.
- ↑ Ganguli, Kalyan Kumar (1983). Cultural History of Rajasthan (in अंग्रेज़ी). Sundeep. Archived from the original on 14 जुलाई 2018. Retrieved 14 जुलाई 2018.
- ↑ Asopa, Jai Narayan (1976). Origin of the Rajputs (in अंग्रेज़ी). Bharatiya Publishing House. Archived from the original on 14 जुलाई 2018. Retrieved 14 जुलाई 2018.
- ↑ "बप्पा रावल जीवनी". Archived from the original on 6 नवंबर 2022. Retrieved 29 अप्रैल 2022.
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