इक्ष्वाकु
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इक्ष्वाकु |
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इक्ष्वाकु, प्राचीन भारत के इक्ष्वाकु वंश के प्रथम राजा थे। 'इक्ष्वाकु' शब्द 'इक्षु' से व्युत्पन्न है, इक्षु का अर्थ 'ईख' होता है । पौराणिक परम्परा के अनुसार इक्ष्वाकु, विवस्वान् (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु के पुत्र थे।
परिचय
[संपादित करें]पौराणिक आलेखों के अनुसार वैवस्वत मनु के नौ पुत्र हुए - इक्ष्वाकु, नभग ,धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रांशु, अरिष्ट, करूष और पृषध्र । वैवस्वत मनु की एक पुत्री भी हुई, पुत्री का नाम इला था । महाराजा इक्ष्वाकु की माता का नाम श्रद्धा था । महात्मा एवं तपस्वी महाराज होने के कारण इक्ष्वाकु के पश्चात उनके राजवंश के सम्राटों को सूर्य वंशी तथा उनकी भगिनी इला के वंश वाले राजाओं को चंद्र वंशी कहा गया।
इतिहास
[संपादित करें]इक्ष्वाकु कोसल राज्य की महाराजा थे ।[1] उनके राज्य की राजधानी अयोध्या थी। उनके १०० पुत्र बताए जाते हैं जिनमें ज्येष्ठ विकुक्षि था। इक्ष्वाकु के एक दूसरे पुत्र निमि ने मिथिला राजकुल स्थापित किया। साधारणत: बहुवचनांतक इक्ष्वाकुओं का तात्पर्य इक्ष्वाकु से उत्पन्न सूर्यवंशी राजाओं से होता है, परंतु प्राचीन साहित्य में उससे एक इक्ष्वाकु जाति का भी बोध होता है। प्राचीन ग्रंथ महाभारत के भीष्म पर्व के नौंवें अध्याय में भी महाराज इक्ष्वाकु का नाम अभिलिखित है । इक्ष्वाकु का नाम, केवल एक बार, ऋग्वेद में भी प्रयुक्त हुआ है जिसे मैक्समूलर ने राजा की नहीं, बल्कि जातिवाचक संज्ञा माना है। इक्ष्वाकुओं की जाति जनपद में उत्तरी भागीरथी की घाटी में संभवत: कभी बसी थी। कुछ विद्वानों के मत से उत्तर पश्चिम के जनपदों में भी उनका संबंध था। दक्षिण भारत का "आंध्र इक्ष्वाकु राजवंश" (300-400 ई.) भी अपने राजवंश को महाराजा इक्ष्वाकु से संयोजित करता था। सूर्यवंश की शुद्ध अशुद्ध सभी प्रकार की वंशावलियाँ देश के अनेक राजकुलों में प्रचलित हैं। उनमें वैयक्तिक राजाओं के नाम अथवा स्थान में चाहे जितने भेद हों, उनका आदि राजा इक्ष्वाकु ही है।
सूर्य वंश
[संपादित करें]सम्राट इक्ष्वाकु से उत्पन्न हुए उनके वंशजों की राजवंशावली के राजाओं को सूर्य वंशी कहा गया अत: सूर्यवंश के प्रणेता इक्ष्वाकु थे। इस प्रसिद्ध राजवंश में अनेक विभूतियों ने जन्म लिया और प्राचीन भारतीय इतिहास की परिकल्पना का संवर्धन किया है। सूर्य वंश में जन्मे अनेक प्रतापी सम्राट जैसे महाराजा भगीरथ, श्री राम, महाराजा हरिश्चन्द्र, राजा सागर, सम्राट अम्बरीष, महाराज दिलीप और चक्रवर्ति सम्राट रघु का नाम आज भी विश्रुत है। कुछ अन्य प्राचीन राजा जैसे ककुत्स्थ, पृथु और मान्धाता कोलीय इसी राजवंश में ही जन्मे थे। गौतम बुद्ध का अवतार भी सूर्य वंश की एक शाखा शाक्य कोली सूर्यवंशी में हुआ था।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ शास्त्री 1988, पृ॰ 17.