कुश

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वाल्मीकि रामायण के अनुसार माता सीता के छोटे पुत्र कुश हुए और लव बड़े पुत्र हुए थे कुश से वर्तमान कछवाहा कुश वंश चला और लव से कूर्मवंश(कुर्मी) शाखाएं निकली

कुश ने राम के अश्वमेघ घोड़े को पकड़ कर राम को युद्ध के लिये चुनौती दे डाली थी।अयोध्या के सभी वीरों को छोटे से बालक ने हराकर यह सिद्ध कर दिया था; शक्ति का गुरूर खतरनाक होता है।लव के भाई होने के कारण कुश ने अपनी माँ सीता को न्याय दिलाने के लिये अयोध्या राजा से भरी सभा में संवाद किया और माँ सीता को सत्य साबित किया। अग्नि परीक्षा से व्यथित होकर सीता माता ने अपनी सत्यता सिद्ध करते हुवे धरती माँ से खुद को अपनी गोद मे स्थान देने का निवेदन किया तब धरती माता ने प्रकट होकर सीतामाता को अपनी गोद मे बिठाकर धरती में समा लिया।

कुश का जन्म[संपादित करें]

वाल्मीकि रामायण के एक रोचक प्रसंग के अनुसार माता सीता के गर्भ से लव का जन्म वाल्मीकि आश्रम में हुआ। एक बार माता सीता जंगल में लकड़ियां लेने गई और उन्होंने बालक लव को महर्षि वाल्मीकि को सौंप दिया किंतु महर्षि उस समय ध्यान मग्न थे। जब महर्षि का ध्यान खुला तो उन्होंने देखा कि बालक लव वहां नहीं है उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि लव को कोई जंगली जानवर उठा ले गया है और यदि उन्होंने ऐसा देवी सीता से कहा तो वे इस दुख को सहन नहीं कर पाएंगी इसलिए उन्होंने अपने पास ही पड़ी कुशा घास से एक बालक का निर्माण किया जो लव के समान दिखता था। माता सीता जब वन से वापस आईं तो महर्षि ने देखा कि बालक लव उनके साथ ही है। माता सीता उस दूसरे बालक को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई और उन्होंने उसे अपना लिया और उसे कुश नाम दिया।