सूर्योपनिषद
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लेखक | वेदव्यास |
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रचनाकार | अन्य पौराणिक ऋषि |
भाषा | संस्कृत |
शृंखला | अथर्ववेदीय उपनिषद |
विषय | ज्ञान योग, द्वैत अद्वैत सिद्धान्त |
शैली | हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ |
प्रकाशन स्थान | भारत |
सूर्योपनिषद अथर्ववेदीय शाखा के अन्तर्गत एक लघु उपनिषद है।
सूर्योपनिषद में सूर्यदेव को ही संपूर्ण जगत की उत्पत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। इसके अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते हैं।
- सूर्याद्भवन्ति भूतानि सूर्येण पालितानि तु ।
- सूर्ये लयं प्राप्नुवन्ति यः सूर्यः सोऽहमेव च ॥ [1] (सूर्योपनिषद)
- अर्थ - सूर्य से सम्पूर्ण चराचर जीव उत्पन्न होते हैं, सूर्य के द्वारा ही उनका पालन होता है और फिर सूर्य मे ही वे लय को प्राप्त होते हैं । और जो सूर्यनारायण हैं, वह मैं ही हूँ।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Ramesh Kumar Pandey, New Delhi. Shodh Prabha July 2017 A Refereed Research Journal. पृ॰ 45.
सूर्याद्भवन्ति भूतानि सूर्येण पालितानि तु। सूर्ये लयं हि गच्छन्ति यः सूर्यः सोऽहमेव च।।
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- सूर्योपनिषत् (संस्कृत विकिस्रोत)
- सूर्य उपनिषद हिंदी अर्थ सहित