यतिवृषभ

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यतिवृषभ एक भारतीय गणितज्ञ एवं जैन मुनि थे। उनका जीवनकाल ६ठी शताब्दी के लगभग माना जाता है (सम्भवतः ५०० ई से ५७० ई)। नागहस्तिन और मंक्सु उनके गुरु थे।

कृतियाँ[संपादित करें]

यतिवृषभ जी ने जैन परम्पराओं की व्याख्या करते हुए प्राकृत अनेक ग्रन्थों का संकलन किया। तिलोयपन्नति नामक ग्रन्थ इनमें से एक है जिसमें ब्रह्माण्ड और उसके भागों का विवरण दिया गया है। यह ग्रन्थ भारतीय विज्ञान के इतिहासकारों के लिए महत्व का है क्योंकि इसमें जैन गणित की पुरानी कृतियों तथा नौवीं और बाद की शताब्दियों में रचित ग्रंथों के बीच विकास की कड़ियाँ विद्यमान हैं। तिलोयपन्नति, जैन धर्म और दर्शन के दृष्टिकोण से ब्रह्माण्ड विज्ञान का वर्णन करती है। इसमें कार्य, दूरी और समय के मापन के लिए विभिन्न इकाइयाँ भी दी गयीं हैं। इस ग्रन्थ में अनन्त के बारे में विभिन्न अवधारणाओं का प्रतिपादन किया गया है।[1][2] उनके इस ग्रन्थ में ब्रह्माण्ड के मापन से सम्बन्धित अनेक संख्यात्मक मान दिये गये हैं। उदाहरण के लिये, वृत्ताकार जम्बूद्वीप का व्यास 100,000 योजन दिया गया है और इसकी परिधि 316,227 योजन, 3 क्रोस (कोस), 128 दण्ड, 13 अंगुल, 5 यव, 1 यूका, 1 ऋक्षा, 6 कर्मभूमिवालग्र, 7 मध्यभोगभूमिवालग्र, 5 उत्तमभोगभूमिवालग्र, 1 रथरेणु, 3 त्रसरेणु, 2 सन्नासन्न, और 3 अवसन्सन्न दिया गया है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Yativrsabha - Biography". Maths History. Retrieved 5 May 2021
  2. "Yativrisabha. Retrieved 5 May 2021.]