बापूदेव शास्त्री

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बापूदेव शास्त्री (हाथ में ग्लोब लिए हुए) वाराणसी के 'क्वींस कॉलेज' में पढ़ाते हुए (१८७०)

महामहोपाध्याय पंडित बापूदेव शास्त्री (१ नवम्बर १८२१-१९००) काशी संस्कृत कालेज के ज्योतिष के मुख्य अध्यापक थे। वे प्रथम ब्राह्मण (पण्डित) थे जो भारतीय एवं पाश्चात्य खगोलिकी दोनो के प्रोफेसर बने। ये प्रयाग तथा कलकत्ता विश्वविद्यालयों के परिषद तथा आयरलैंड और ग्रेट ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी के सम्मानित सदस्य थे। इन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि मिली थी।

जीवन परिचय[संपादित करें]

बापूदेव शास्त्री (नृसिंह) का जन्म शक सं 1743 में महाराष्ट्र के अहमदनगर में गोदावरी नदी के किनारे 'टोंके' नामक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा नागपुर के मराठी विद्यालय में हुई जहाँ उन्होने अंकगणित एवं बीजगणित की शिक्षा पाई। धुंदिराज मिश्र से उन्होने बीजगणित (ग्रन्थ) तथा लीलावती ग्रन्थ सीखी। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर ब्रिटिश राजनीतिक एजेण्ट लैंसलॉट विल्किंसन ने सिहोर के संस्कृत विद्यालय में उनका नामांकन करा दिया जहाँ उन्होने सिद्धान्तशिरोमणि, युक्लिडीय ज्यामिति तथा यूरोपीय विज्ञान की शिक्षा पाई। पण्डित सेवाराम और स्वयं विल्किंसन उनके शिक्षक थे। सन् १८४२ में शास्त्री जी राजकीय संस्कृत महाविद्यालय वाराणसी में नियुक्त हुए जहाँ वे रेखागणित पढ़ाने लगे।

उन्होने भास्कराचार्य के सिद्धान्तशिरोमणि का अनुवाद किया और इसे बनारस में १८९१ में प्रकाशित किया। विल्किंसन के साथ मिलकर उन्होने 'सूर्यसिद्धान्त ऑर ऐन ऐन्सिएन्ट सिस्टेम ऑफ एस्ट्रोनॉमी' नामक ग्रन्थ रचा जो सूर्यसिद्धान्त का अंग्रेजी अनुवाद है। इनका दृक्सिद्ध पंचांग आज भी वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित होता है।

कृतियाँ[संपादित करें]

इनके ग्रंथ हैं :

  • रेखागणित प्रथमाध्याय,
  • त्रिकोणमिति,
  • प्राचीन ज्योतिषाचार्याशयवर्णन,
  • सायनवाद,
  • तत्वविवेकपरीक्षा,
  • मानमंदिरस्थ यंत्रवर्णन,
  • अंकगणित,
  • बीजगणित।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]