जंतर मंतर, दिल्ली

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जंतर मंतर, दिल्ली के हृदय, कनॉट प्लेस में स्थित है
जंतर मंतर, दिल्ली, c1858

दिल्ली का जन्तर मन्तर एक खगोलीय वेधशाला है। अन्य चार जन्तर मन्तर सहित इसका निर्माण महाराजा जयसिंह द्वितीय ने 1724 में करवाया था।[1] यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है। जय सिंह ने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी किया था। दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है। मोहम्मद शाह के शासन काल में हिन्दु और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थिति को लेकर बहस छिड़ गई थी। इसे खत्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवाया। ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं। सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से वक्त और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है। मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है। राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है।

विस्तार में[संपादित करें]

यह एक वृहत आकार की सौर घड़ी है

राजा जयसिंह द्वितीय बहुत छोटी आयु से गणित में बहुत ही अधिक रूचि रखते थे। उनकी औपचारिक पढ़ाई ११ वर्ष की आयु में छूट गयी क्योंकि उनकी पिताजी की मृत्यु के बाद उन्हें ही राजगद्दी संभालनी पड़ी थी। २५जनवरी, १७०० में गद्दी संभालने के बाद भी उन्होंने अपना अध्ययन नहीं छोडा। उन्होंने बहुत खगोल विज्ञानं और ज्योतिष का भी गहरा अध्ययन किया। उन्होंने अपने कार्यकाल में बहुत से खगोल विज्ञान से सम्बंधित यंत्र एवम पुस्तकें भी एकत्र कीं। उन्होंने प्रमुख खगोलशास्त्रियों को विचार हेतु एक जगह एकत्र भी किया। हिन्दू, इस्लामिक और यूरोपीय खगोलशास्त्री सभी ने उनके इस महान कार्य में अपना बराबर योगदान दिया। अपने शासन काल में सन् १७२७[2] में, उन्होंने एक दल खगोलशास्त्र से सम्बंधित और जानकारियां और तथ्य तलाशने के लिए भारत से यूरोप भेजा था। वह दल कुछ किताबें, दस्तावेज और यंत्र ही ले कर लौटा। न्यूटन, गालीलेओ, कोपरनिकस और केप्लेर के कार्यों के बारे में और उनकी किताबें लाने में यह दल असमर्थ रहा।

यंत्रों की सूची[संपादित करें]

वेधशाला का राम यंत्र

जंतर-मंतर के प्रमुख यंत्रों में सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र, मिस्र यंत्र, आदि प्रमुख हैं, जिनका प्रयोग सूर्य तथा अन्य खगोलीय पिंडों की स्थिति तथा गति के अध्ययन में किया जाता है। जंतर-मंतर के प्रमुख यंत्रों में सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र, मिस्र यंत्र, आदि प्रमुख हैं, जिनका प्रयोग सूर्य तथा अन्य खगोलीय पिंडों की स्थिति तथा गति के अध्ययन में किया जाता है। जो खगोल यंत्र राजा जयसिंह द्वारा बनवाये गए थ, उनकी सूची इस प्रकार से है:

  1. सम्राट यन्त्र
  2. सस्थाम्सा
  3. दक्सिनोत्तारा भित्ति यंत्र
  4. जय प्रकासा और कपाला
  5. नदिवालय
  6. दिगाम्सा यंत्र
  7. राम यंत्र
  8. रसिवालाया

राजा जय सिंह तथा उनके राजज्योतिषी पं। जगन्नाथ ने इसी विषय पर 'यंत्र प्रकार' तथा 'सम्राट सिद्धांत' नामक ग्रंथ लिखे।

५४ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के बाद देश में यह वेधशालाएं बाद में बनने वाले तारामंडलों के लिए प्रेरणा और जानकारी का स्रोत रही हैं। हाल ही में दिल्ली के जंतर-मंतर में स्थापित रामयंत्र के जरिए प्रमुख खगोलविद द्वारा शनिवार को विज्ञान दिवस पर आसमान के सबसे चमकीले ग्रह शुक्र की स्थिति नापी गयी थी। इस अध्ययन में नेहरू तारामंडल के खगोलविदों के अलावा एमेच्योर एस्ट्रोनामर्स एसोसिएशन और गैर सरकारी संगठन स्पेस के सदस्य भी शामिल थे।

जंतर मंतर[संपादित करें]

जंतर मंतर, दिल्ली

कनॉट प्लेस में स्थित स्थापत्य कला का अद्वितीय नमूना 'जंतर मंतर 'दिल्ली के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह एक वेधशाला है। जिसमें १३ खगोलीय यंत्र लगे हुए हैं। यह राजा जयसिंह द्वारा डिजाईन की गयी थी। एक फ्रेंच लेखक 'दे बोइस' के अनुसार राजा जयसिंह खुद अपने हाथों से इस यंत्रों के मोम के मोडल तैयार करते थे।

जयपुर की बसावट के साथ ही तत्कालीन महाराजा सवाई जयसिंह [द्वितीय] ने जंतर-मंतर का निर्माण कार्य शुरू करवाया, महाराजा ज्योतिष शास्त्र में दिलचस्पी रखते थे और इसके ज्ञाता थे। जंतर-मंतर को बनने में करीब 6 साल लगे और 1734 में यह बनकर तैयार हुआ। इसमें ग्रहों की चाल का अध्ययन करने के लिए तमाम यंत्र बने हैं। यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है। दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद [उज्बेकिस्तान] की वेधशाला से प्रेरित है। मोहम्मद शाह के शासन काल में हिन्दु और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थित को लेकिर बहस छिड़ गई थी। इसे खत्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवाया। राजा जयसिंह ने भारतीय खगोलविज्ञान को यूरोपीय खगोलशास्त्रियों के विचारों से से भी जोड़ा। उनके अपने छोटे से शासन काल में उन्होंने खगोल विज्ञानमें अपना जो अमूल्य योगदान दिया है उस के लिए इतिहास सदा उनका ऋणी रहेगा।

ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं।

सम्राट यंत्र[संपादित करें]

जंतर मंतर, में सम्राट यंत्र

यह सूर्य की सहायता से वक्त और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है।

मिस्र यंत्र[संपादित करें]

मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है।

राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र[संपादित करें]

राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है। राम यंत्र गोलाकार बने हुए हैं।

विस्तृत पठन[संपादित करें]

बड़ी बड़ी इमारतों से घिर जाने के कारण आज इन के अध्ययन सटीक नतीजे नहीं दे पाते हैं। दिल्ली सहित देशभर में कुल पांच वेधशालाएं हैं- (बनारस, जयपुर, मथुरा और उज्जैन) में मौजूद हैं, जिनमें जयपुर जंतर-मंतर के यंत्र ही पूरी तरह से सही स्थिति में हैं।

मथुरा की वेधशाला १८५० के आसपास ही नष्ट हो चुकी थी। यह दिल्ली में जन आंदोलनों /प्रदर्शनों/धरनों की एक जानी मानी जगह भी है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "जानिए जंतर मंतर के इतिहास के बारे में सबकुछ". NDTVIndia. अभिगमन तिथि 2021-07-29.
  2. "संस्‍कृति और विरासत - स्‍मारक - जंतर मंतर दिल्‍ली - भारत के बारे में जानें: भारत का राष्ट्रीय पोर्टल". knowindia.gov.in. मूल से 29 जुलाई 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2021-07-29.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

निर्देशांक: 28°37′37.59″N 77°12′59.32″E / 28.6271083°N 77.2164778°E / 28.6271083; 77.2164778