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प्रभाचन्द्र

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आचार्य प्रभाचन्द्र (११वीं शताब्दी ई.)[1] इनका गृहस्थ नाम विष्णु वर्धन था ।जो मौर्य राजवंश के महान शासक थे विष्णु वर्धन ने कुमुद चंद्र से दिगंबर साधु दीक्षा प्राप्त की और श्रवणवेलगुला की चंद्रगिरी पहाड़ी से आचार्य प्रभाचंद्र के रूप में समाधि ली और आचार्य प्रभाचंद्र अनेक जैन दार्शनिक ग्रन्थों के प्रणेता हैं।[2]

आचार्य गुरुवर सिद्धहस्त और ग्रंथो का ज्ञान, मुनि प्रभाचंद्र से पाया कुमुदचंद्र गुरु का ज्ञान से प्रभावकचरित रचा ।

प्रभाचन्द्र के अनुसार, अजमेर-विजय के पश्चात कुमारपाल ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया और अजितनाथ का अराधक बन गया।

कृतियाँ

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  • न्यायकुमुदचन्द्र : अकलंक की कृति लघीयस्त्रय की टीका[3][2]

बाहरी कड़ियाँ

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सन्दर्भ

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