समन्तभद्र
पठन सेटिंग्स
(आचार्य समन्तभद्र से अनुप्रेषित)
आचार्य समन्तभद्र दूसरी सदी के प्रमुख दार्शनिक और प्रमुख दिगंबर जैन आचार्य थे। वह जैन दर्शन के प्रमुख सिद्धांत, अनेकांतवाद के महान प्रचारक थे।[1][2] उनका जन्म कांचीनगरी (शायद आज के कांजीपुरम्) में हुआ था। उनकी सबसे प्रख्यात रचना रत्नकरण्ड श्रावकाचार हैं।[3]
रचनाएँ
[संपादित करें]- रत्नकरण्ड श्रावकाचार[4]- रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्रावक के आचरण पर हैं इसमें १५० श्लोक हैं।
- तत्त्वार्थ सूत्र पर टीका [5]जिसका मंगलाचरण अप्त-मीमंसा के नाम से प्रख्यात हुआ।[6]
- आप्त-मीमंसा- ११४ श्लोकों में जैन धर्म के अनुसार केवल ज्ञान समझाया गया हैं इसमें केवली के गुणों का वर्णन हैं। [7]
- स्वयम्भू-स्तोत्र- २४ तीर्थंकरों की स्तुति।[8]
- युक्यानुशासन (युक्ति + अनुशासन) – 'युक्त्यानुशासन' एक काव्य रचना है जिसके ६४ श्लोकों में तीर्थंकर महावीर स्वामी की स्तुति की गयी है।[9]
- गन्धहस्तिमहाभाष्य -- तत्वार्थसूत्र की टीका
- जिनशतकम् (स्तुतिविद्या) -- यह ११६ श्लोकों की संस्कृत काव्य रचना है जिसमें २४ जैन तीर्थंकरों की स्तुति की गयी है।
- तत्त्वानुशासन
- विजयधवलाटीका
व्याधि
[संपादित करें]आचार्य समन्तभद्र मुनि को संन्यास जीवन के शुरुवाती वर्षों में 'भस्मक' नाम की व्याधि हो गयी थी [10]जिसके कारण अंत में उन्होंने सल्लेखना व्रत धारण करने का सोचा। जब उन्होंने अपने गुरु से इसके लिए आज्ञा मांगी तो गुरु ने इसकी आज्ञा नहीं दी।[11] उनके गुरु ने उन्हें मुनि व्रतों का त्याग कर रोग उपचार करने को कहा।[10] उपचार के बाद आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने पुनः मुनि व्रतों को धारण किया और महान दिगंबर जैन आचार्य हुए।[12]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Ghoshal 2002, पृ॰ 7-19.
- ↑ Jain 2015, पृ॰ xvi.
- ↑ Jain 1917, पृ॰ iv.
- ↑ Samantabhadra, Ācārya (2006-07-01). Ratnakaranda Shravakacara. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788188769049.
- ↑ Jain 1917, पृ॰ v.
- ↑ Ghoshal 2002, पृ॰ 7.
- ↑ Jain 2015, पृ॰ xvii.
- ↑ Jain 2015, पृ॰ xi.
- ↑ Gokulchandra Jain 2015, पृ॰ 84.
- ↑ अ आ Jain 2015, पृ॰ xviii.
- ↑ Long 2013, पृ॰ 110.
- ↑ Jain 2015, पृ॰ xx.
ग्रन्थ
[संपादित करें]- Ghoshal, Saratchandra (2002), Āpta-mīmāṁsā of Āchārya Samantabhadra, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788126307241, मूल से 31 जनवरी 2016 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 6 जनवरी 2016
- Jain, Vijay K. (2015), Acarya Samantabhadra’s Svayambhustotra: Adoration of The Twenty-four Tirthankara, Vikalp Printers, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788190363976, मूल से 16 सितंबर 2015 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 6 जनवरी 2016,
Non-Copyright
- Jain, Champat Rai (1917). The Ratna-karanda-sravakachara. मूल से 22 दिसंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जनवरी 2016.
बाहरी कड़ियाँ
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