णमोकार मंत्र

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णमोकार मन्त्र जैन धर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मन्त्र है। इसे 'नवकार मन्त्र', 'नमस्कार मन्त्र' या 'पंच परमेष्ठि नमस्कार' भी कहा जाता है। इस मन्त्र में अरिहन्तों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों और साधुओं का नमस्कार किया गया है।

णमोकार महामंत्र' एक लोकोत्तर मंत्र है। इस मंत्र को जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूल मंत्र माना जाता है। इसमें किसी व्यक्ति का नहीं, किंतु संपूर्ण रूप से विकसित और विकासमान विशुद्ध आत्मस्वरूप का ही दर्शन, स्मरण, चिंतन, ध्यान एवं अनुभव किया जाता है। इसलिए यह अनादि और अक्षयस्वरूपी मंत्र है। लौकिक मंत्र आदि सिर्फ लौकिक लाभ पहुँचाते हैं, किंतु लोकोत्तर मंत्र लौकिक और लोकोत्तर दोनों कार्य सिद्ध करते हैं। इसलिए णमोकार मंत्र सर्वकार्य सिद्धिकारक लोकोत्तर मंत्र माना जाता है।

मंत्र[संपादित करें]

प्राकृत My

णमो अरहंताणं - अरिहंतों को नमस्कार हो।

णमो सिद्धाणं - सिद्धों को नमस्कार हो।

णमो आइरियाणं - आचार्यों को नमस्कार हो।

णमो उवज्झायाणं - उपाध्यायों को नमस्कार हो।

णमो लोए सव्व साहूणं - इस लोक के सभी साधुओं को नमस्कार हो।

एसो पंच णमोक्कारो - यह पाँच परमेष्ठियों को किया हुआ नमस्कार

सव्वपावप्पणासणो - सभी पापो का नाश करने वाला है

मंगलाणं च सव्वेसिं - और सभी मंगलो में

पढमं हवइ मंगलं - प्रथम मंगल है

इतिहास[संपादित करें]

उदयगिरी की पहाड़ी पर हाथीगुम्फा अभिलेख

162 ईसापूर्व में हाथीगुम्फा अभिलेख में णमोकार मंत्र एवं जैन राजा खारबेळा का उल्लेख है।

पाले महाराष्ट्र की सबसे प्राचीन जैन गुफा है जिसका समय ईसा से 200 सदी पूर्व का माना जाता है यहाँ पर ब्राह्मी लिपि में णमोकार मंत्र लिखा हुआ है

"पाले" महाराष्ट्र की सबसे प्राचीन जैन गुफा है, जिसका समय ईसा से 200 सदी पूर्व का माना जाता है | यहाँ पर ब्राह्मी लिपि में णमोकार मंत्र लिखा हुआ है | गुफा के अंदर एक छोटा सा कमरा भी बना हुआ है और गुफा के आखिरी छोर पर एक वेदी जैसा बना हुआ है | णमोकार मंत्र के नीचे एक गढ्ढा बना हुआ है और कुछ सीढ़ियां भी बनी हुई हैं | गुफा "आचार्य इन्द्ररक्षित महाराज जी" के काल में निर्मित हुई थी | पाले, पुणे से करीब 70 किमी दूर, कामशेत के पास है

"णमो अरिहंताणं,

णमो सिद्धाणं,

णमो आयरियाणं,

णमो उवज्झायाणं,

णमो लोए सव्व साहूणं, :- षट्खण्डागम (आचार्य धरसेन, पहली सदी)"

महिमा[संपादित करें]

इस महामंत्र को जैन धर्म में सबसे प्रभावशाली माना जाता है। ये पाँच परमेष्ठी हैं। इन पवित्र आत्माओं को शुद्ध भावपूर्वक किया गया यह पंच नमस्कार सब पापों का नाश करने वाला है। संसार में सबसे उत्तम मंगल है।

इस मंत्र के प्रथम पाँच पदों में ३५ अक्षर और शेष दो पदों में ३३ अक्षर हैं। इस तरह कुल ६८ अक्षरों का यह महामंत्र समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाला व कल्याणकारी अनादि सिद्ध मंत्र है। इसकी आराधना करने वाला स्वर्ग और मुक्ति को प्राप्त कर लेता है।

णमोकार-स्मरण से अनेक लोगों के रोग, दरिद्रता, भय, विपत्तियाँ दूर होने की अनुभव सिद्ध घटनाएँ सुनी जाती हैं। मन चाहे काम आसानी से बन जाने के अनुभव भी सुने हैं।

अन्य नाम[संपादित करें]

  • मूलमंत्र: यह मंत्र सभी मंत्रों में मूल अर्थात जड़ है।
  • महामंत्र: यह सभी मंत्रों में महान है।
  • पंचनमस्कार मंत्र: इस में पांचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है।
  • अनाधिनिधन मंत्र:यह अनादिकाल से है तथा अनंत काल तक रहेगा क्योंकि पंचपरमेष्ठी अनादिकाल से होते आते हैं तथा अनंत काल तक होते रहेंगे।
  • मृत्युंजयी मंत्र: इस पर सच्चा श्रद्धान करने से व्यक्ति मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है।
  • इसे पंचपरमेष्ठी मंत्र, सर्वसिद्धिदायक मंत्र आदि नामों से भी जाना जाता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]