अस्तेय

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अस्तेय का शाब्दिक अर्थ है - चोरी न करना। हिन्दू धर्म तथा जैन धर्म में यह एक गुण माना जाता है। योग के सन्दर्भ में अस्तेय, पाँच यमों में से एक है।

अस्तेय का व्यापक अर्थ है - चोरी न करना तथा मन, वचन और कर्म से किसी दूसरे की सम्पत्ति को चुराने की इच्छा न करना। चोरी चाहे किसी भी हो मनुष्य को कभी भी चोरी नही करनी चाहिए। दूसरे की धन की लालसा ना करना ही अस्तेय है। चोरी करने से मनुष्य अंदर से खोखला हो जाता है और समाज के नजरियों में भी वह बुरा व्यक्ति बन जाता है।