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इंद्रभूति गौतम

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इंद्रभूति गौतम

इंद्रभूति गौतम (गौतम गणधर) तीर्थंकर महावीर के प्रथम गणधर (मुख्य शिष्य) थे।[1]

इनका जन्म मगध राज्य के गोब्बर गाँव में ब्राह्मण वसुभूति और माता पृथ्वी के घर हुआ था। उनका जन्म ईसा से 607 वर्ष पूर्व हुआ था (जैन इतिहास के प्रसंग-इन्द्रभूति गौतम स्वामी पुस्तक के अनुसार)। अपने गोत्र 'गौतम' से जाने जाते थे। उनके दो भाई अग्निभूत और वायुभूति दें।

ज्ञाता सम्पूर्ण 14 विद्याओं में पारंगत, 4वेदों के ज्ञाता, 6 वेदांग- शिक्षा,कल्प, व्याकरण,निरूक्त, छ्न्द, ज्योतिष तथा 4उपांग- मीमांसा, न्याय, धर्म शास्त्र एवं पुराणों में पारंगत दें। जैन वांग्मय के अनुसार इन्द्रभूति गौतम प्रख्यात विद्वान और आचार्य थे। उनके पास 500 छात्र अध्ययन करते थे।

दिगम्बर

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दिगम्बर परम्परा के अनुसार जब इंद्र ने इंद्रभूति से एक श्लोक का अर्थ पूछा था :

पंचेव अत्थिकाया छज्जीव णिकाया महव्वया पंच।
अट्ठयपवयण-मादा सहेउओ बंध-मोक्खो य॥

जब वह नहीं बता पाए तो इंद्र ने उन्हें उत्तर के लिए भगवान महावीर के समावसरण में जाने को कहा। 

दिगम्बर परम्परा में गौतम गणधर का स्थान बहुत ऊँचा है। उनका नाम भगवान महावीर के तुरंत बाद लिया जाता है -

मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतमो गणी।
मंगलं कुन्दकुंदाद्यो, जैन धर्मोऽस्तु मंगलं॥

केवल ज्ञान

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जिस दिन भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी उसी दिन गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।[2] जैन धर्मावलंबियों द्वारा इसी दिन को दिवाली के रूप में मनाया जाता ह

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. Teerthankar mahaveer aur unki acharya parampara by Dr. Nemi chandra shastry, Sagar, 1974 vol-1-4.
  2. Hindī viśvakośa. Nāgarīpracāriṇī Sabhā. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जून 2020.

बाहरी कड़ियाँ

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