सम्भवनाथ
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भगवान श्री सम्भवनाथ जी | |
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तीसरे जैन तीर्थंकर | |
सम्भवनाथ भगवान की सबसे बड़ी प्रतिमा,सम्भवनाथ की खड़की,अमदावाद | |
विवरण | |
अन्य नाम | सम्भवनाथ जिन |
एतिहासिक काल | २ × १०२२३ वर्ष पूर्व |
पूर्व तीर्थंकर | अजितनाथ |
अगले तीर्थंकर | अभिनंदननाथ |
गृहस्थ जीवन | |
वंश | इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय |
पिता | राजा जितारि |
माता | सुसेना रानी |
पंच कल्याणक | |
च्यवन स्थान | अधोग्रैवेयक से |
जन्म कल्याणक | कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा |
जन्म स्थान | श्रावस्ती |
दीक्षा कल्याणक | मार्ग शीर्ष शुक्ल पूर्णिमा |
दीक्षा स्थान | सहेतुक वन में श्रावस्ती नगरी |
केवल ज्ञान कल्याणक | कार्तिक कृष्णा चतुर्थी |
केवल ज्ञान स्थान | सहेतुक वन में श्रावस्ती नगरी |
मोक्ष | चैत्र शुक्ला षष्ठी |
मोक्ष स्थान | सम्मेद शिखर |
लक्षण | |
रंग | स्वर्ण |
चिन्ह | घोड़ा |
ऊंचाई | ४०० धनुष (१२०० मीटर) |
आयु | ६०,००,००० पूर्व (४२३.३६० × १०१८ वर्ष) |
वृक्ष | शालवृक्ष |
शासक देव | |
यक्ष | त्रिमुख |
यक्षिणी | प्रज्ञप्ती देवी |
गणधर | |
प्रथम गणधर | श्री चारूदत्त जी |
गणधरों की संख्य | १०५ |
सम्भवनाथ जिन वर्तमान अवसर्पिणी काल के तीसरे तीर्थंकर थे भगवान संभवनाथ जी ने सम्मेत शिखरजी मे अपने समस्त घनघाती कर्मो का क्षय कर निर्वाण प्राप्त किया और सिद्ध कहलाये । प्रभु का निर्वाण चैत्र सुदी 6 को हुआ था । भगवान संभवनाथ जी के प्रथम शिष्य का नाम चारूदत तथा प्रथम शिष्या का नाम श्यामा था । प्रभु के प्रथम गणधर चारूजी थे ।
भगवान संभवनाथ जी जैन धर्म के तृतीय तीर्थंकर थे । इनके पिता का नाम जितारी था तथा माता का नाम सुसेना था , प्रभु का जन्म इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार में मार्गशीर्ष चतुर्दशी को हुआ था । ।[1]
इन्हें भी देखें
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सन्दर्भ
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- ↑ "" संभवनाथ जी "", Jainism Knowledge