घोड़ा
घोड़ा | |
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पालतू
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वैज्ञानिक वर्गीकरण ![]() | |
Unrecognized taxon (fix): | ऐक़्विडे |
जाति: | ऐ. फ़ेरस |
उपजाति: | ऐ. फ. कैबेलस |
त्रिपद नाम | |
ऐक़्वस फ़ेरस कैबेलस Linnaeus, 1758[1] | |
पर्यायवाची[2] | |
कम से कम ४८ प्रकाशित |


घोड़ा या अश्व (Equus ferus caballus; ऐक़्वस फ़ेरस कैबेलस)[2][3] ऐक़्वस फ़ेरस (Equus ferus) की दो अविलुप्त उपप्रजातियों में से एक हैं। वह एक विषम-उंगली खुरदार स्तनधारी हैं, जो अश्ववंश (ऐक़्वडी) कुल से ताल्लुक रखता हैं। घोड़े का पिछले ४५ से ५५ मिलियन वर्षों में एक छोटे बहु-उंगली जीव, ऐओहिप्पस (Eohippus) से आज के विशाल, एकल-उंगली जानवर में क्रम-विकास हुआ हैं। मनुष्यों ने ४००० ईसा पूर्व के आसपास घोड़ों को पालतू बनाना शुरू कर दिया, और उनका पालतूकरण ३००० ईसा पूर्व से व्यापक रूप से फैला हुआ माना जाता हैं। कैबेलस (caballus) उपप्रजाति में घोड़े पालतू बनाएँ जाते हैं, यद्यपि कुछ पालतू आबादियाँ वन में रहती हैं निरंकुश घोड़ो के रूप में। ये निरंकुश आबादियाँ असली जंगली घोड़े नहीं हैं, क्योंकि यह शब्द उन घोड़ो को वर्णित करने के लिए प्रयुक्त होता हैं जो कभी पालतू बनाएँ ही नहीं गएँ हो, जैसे कि विलुप्तप्राय शेवालस्की का घोड़ा, जो एक अलग उपप्रजाति हैं और बचा हुआ केवल एकमात्र असली जंगली घोड़ा हैं।
वह मनुष्य से जुड़ा हुआ संसार का सबसे प्राचीन पालतू स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी ने किसी रूप में सेवा की है। घोड़ा ईक्यूडी (Equidae) कुटुंब का सदस्य है। इस कुटुंब में घोड़े के अतिरिक्त वर्तमान युग का गधा, जेबरा, भोट-खर, टट्टू, घोड़-खर एवं खच्चर भी है। आदिनूतन युग (Eosin period) के ईयोहिप्पस (Eohippus) नामक घोड़े के प्रथम पूर्वज से लेकर आज तक के सारे पूर्वज और सदस्य इसी कुटुंब में सम्मिलित हैं।
इसका वैज्ञानिक नाम ईक्वस (Equus) लैटिन से लिया गया है, जिसका अर्थ घोड़ा है, परंतु इस कुटुंब के दूसरे सदस्य ईक्वस जाति की ही दूसरों छ: उपजातियों में विभाजित है। अत: केवल ईक्वस शब्द से घोड़े को अभिहित करना उचित नहीं है। आज के घोड़े का सही नाम ईक्वस कैबेलस (Equus caballus) है। इसके पालतू और जंगली संबंधी इसी नाम से जाने जातें है। जंगली संबंधियों से भी यौन संबंध स्थापति करने पर बाँझ संतान नहीं उत्पन्न होती। कहा जाता है, आज के युग के सारे जंगली घोड़े उन्ही पालतू घोड़ो के पूर्वज हैं जो अपने सभ्य जीवन के बाद जंगल को चले गए और आज जंगली माने जाते है। यद्यपि कुछ लोग मध्य एशिया के पश्चिमी मंगोलिया और पूर्वी तुर्किस्तान में मिलनेवाले ईक्वस प्रज़्वेलस्की (Equus przwalski) नामक घोड़े को वास्तविक जंगली घोड़ा मानते है, तथापि वस्तुत: यह इसी पालतू घोड़े के पूर्वजो में से है। दक्षिण अफ्रिका के जंगलों में आज भी घोड़े बृहत झुंडो में पाए जाते है। एक झुंड में एक नर ओर कई मादाएँ रहती है। सबसे अधिक 1000 तक घोड़े एक साथ जंगल में पाए गए है। परंतु ये सब घोड़े ईक्वस कैबेलस के ही जंगली पूर्वज है और एक घोड़े को नेता मानकर उसकी आज्ञा में अपना सामाजिक जीवन व्यतीत करतेे है। एक गुट के घोड़े दूसरे गुट के जीवन और शांति को भंग नहीं करते है। संकटकाल में नर चारों तरफ से मादाओ को घेर खड़े हो जाते है और आक्रमणकारी का सामना करते हैं। एशिया में काफी संख्या में इनके ठिगने कद के जंगली संबंधी 50 से लेकर कई सौ तक के झुंडों में मिलते है। मनुष्य अपनी आवश्यकता के अनुसार उन्हे पालतू बनाता रहता है।
पालतू बनाने का इतिहास
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घोड़े को पालतू बनाने का वास्तविक इतिहास अज्ञात है। कुछ लोगों का मत है कि 7000 वर्ष पूर्व दक्षिणी रूस के पास आर्यो ने प्रथम बार घोड़े को पाला। बहुत से विज्ञानवेत्ताओं व लेखकों ने इसके आर्य इतिहास को बिल्कुल गुप्त रखा और इसके पालतू होने का स्थान दक्षिणी पूर्वी एशिया बताया, परंतु वास्तविकता यह है कि अनंत काल पूर्व हमारे आर्य पूर्वजों ने ही घोड़े को पालतू बनाया, जो फिर एशिया से यूरोप, मिस्र और शनै:शनै: अमरीका आदि देशों में फैला। संसार के इतिहास में घोड़े पर लिखी गई प्रथम पुस्तक शालिहोत्र है, जिसे शालिहोत्र ऋषि ने महाभारत काल से भी बहुत समय पूर्व लिखा था। कहा जाता है कि शालिहोत्र द्वारा अश्वचिकित्सा पर लिखित प्रथम पुस्तक होने के कारण प्राचीन भारत में पशुचिकित्सा विज्ञान (Veterinary Science) को शालिहोत्रशास्त्र नाम दिया गया। महाभारत युद्ध के समय राजा नल और पांडवो में नकुल अश्वविद्या के प्रकांड पंडित थे और उन्होने भी शालिहोत्र शास्त्र पर पुस्तकें लिखी थी। शालिहोत्र का वर्णन आज संसार की अश्वचिकित्सा विज्ञान पर लिखी गई पुस्तकों में दिया जाता है। भारत में अनिश्चित काल से देशी अश्वचिकित्सक 'शालिहोत्री' कहा जाता है।
१२वीं-१३वीं शताब्दी में जयादित्य द्वारा रचित अश्ववैद्यक में घोड़े की चिकित्सा में अफीम के उपयोग का सन्दर्भ आया है।[4]
अश्वजनन
[संपादित करें]इसका उद्देश्य उत्तमोत्तम अश्वों की वृद्धि करना है। यह नियंत्रित रूप के केवल चुने हुए उत्तम जाति के घोड़े घोड़ियों द्वारा ही बच्चे उत्पन्नके संपादित किया जाता है।
अश्व पुरातन काल से ही इतना तीव्रगामी और शक्तिशाली नहीं था जितना वह आज है। नियंत्रित सुप्रजनन द्वारा अनेक अच्छे घोड़े संभव हो सके हैं। अश्वप्रजनन (ब्रीडिंग) आनुवंशिकता के सिद्धांत पर आधारित है। देश-विदेश के अश्वों में अपनी अपनी विशेषताएँ होती हैं। इन्हीं गुणविशेषों को ध्यान में रखते हुए घोड़े तथा घोड़ी का जोड़ा बनाया जाता है और इस प्रकार इनके बच्चों में माता और पिता दोनों के विशेष गुणों में से कुछ गुण आ जाते हैं। यदि बच्चा दौड़ने में तेज निकला और उसके गुण उसके बच्चों में भी आने लगे तो उसकी संतान से एक नवीन नस्ल आरंभ हो जाती है। इंग्लैंड में अश्वप्रजनन की ओर प्रथम बार विशेष ध्यान हेनरी अष्टम ने दिया। अश्वों की नस्ल सुधारने के लिए उसने राजनिय बनाए। इनके अंतर्गत ऐसे घोड़ों को, जो दो वर्ष से ऊपर की आयु पर भी ऊँचाई में 60 इंच से कम रहते थे, संतानोत्पत्ति से वंचित रखा जाता था। पीछे दूर दूर देशों से उच्च जाति के अश्व इंग्लैंड में लाए गए और प्रजनन की रीतियों से और भी अच्छे घोड़े उत्पन्न किए गए।
अश्वजनन के लिए घोड़ों का चयन उनके उच्च वंश, सुदृढ़ शरीररचना; सौम्य स्वभाव, अत्यधिक साहस और दृढ़ निश्चय की दृष्टि से किया जाता है। गर्भवती घोड़ी को हल्का परंतु पर्याप्त व्यायाम कराना आवश्यक है। घोड़े का बच्चा ग्यारह मास तक गर्भ में रहता है। नवजात बछड़े को पर्याप्त मात्रा में मां का दूध मिलना चाहिए। इसके लिए घोड़ी को अच्छा आहार देना आश्यक हैं। बच्चे को पाँच छह मास तक ही मां का दूध पिलाना चाहिए। पीछे उसके आहार और दिनचर्या पर यथेष्ट सतर्कता बरती जाती है।
घोड़े और इंसान का रिश्ता
[संपादित करें]घोड़े और इंसान का रिश्ता
दुनिया भर में, घोड़े मानव संस्कृतियों में एक भूमिका निभाते हैं और सहस्राब्दियों से ऐसा करते आ रहे हैं। घोड़ों का उपयोग अवकाश गतिविधियों, खेल और कामकाजी उद्देश्यों के लिए किया जाता है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का अनुमान है कि 2008 में, दुनिया में लगभग 59,000,000 घोड़े थे, अमेरिका में लगभग 33,500,000, एशिया में 13,800,000 और यूरोप में 6,300,000 और अफ्रीका और ओशिनिया में छोटे हिस्से थे। अनुमान है कि अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में 9,500,000 घोड़े हैं।[5] अमेरिकन हॉर्स काउंसिल का अनुमान है कि घोड़े से संबंधित गतिविधियों का संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर $39 बिलियन से अधिक का सीधा प्रभाव पड़ता है, और जब अप्रत्यक्ष खर्च पर विचार किया जाता है, तो प्रभाव $102 बिलियन से अधिक होता है।[6] 2004 में एनिमल प्लैनेट द्वारा आयोजित "पोल" में 73 देशों के 50,000 से अधिक दर्शकों ने घोड़े को दुनिया के चौथे पसंदीदा जानवर के रूप में वोट दिया।[7]
किसी भी घुड़सवारी गतिविधि में मानव और घोड़े के बीच संचार सर्वोपरि है;[8] इस प्रक्रिया में सहायता के लिए घोड़ों को आमतौर पर संतुलन और स्थिति में सवार की सहायता के लिए उनकी पीठ पर एक काठी और नियंत्रण बनाए रखने में सवार की सहायता के लिए एक लगाम या संबंधित हेडगियर पहनाया जाता है। कभी-कभी घोड़ों को काठी के बिना चलाया जाता है, और कभी-कभी, घोड़ों को लगाम या अन्य टोपी के बिना प्रदर्शन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। कई घोड़े भी चलाए जाते हैं, जिसके लिए हार्नेस, लगाम और कुछ प्रकार के वाहन की आवश्यकता होती है।[9]

सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Linnaeus, Carolus (1758). Systema naturae per regna tria naturae :secundum classes, ordines, genera, species, cum characteribus, differentiis, synonymis, locis. Vol. 1 (10th ed.). Holmiae (Laurentii Salvii). p. 73. Archived from the original on 12 अक्तूबर 2018. Retrieved 2008-09-08.
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(help) - ↑ अ आ साँचा:MSW3 Perissodactyla
- ↑ International Commission on Zoological Nomenclature (2003). "Usage of 17 specific names based on wild species which are pre-dated by or contemporary with those based on domestic animals (Lepidoptera, Osteichthyes, Mammalia): conserved. Opinion 2027 (Case 3010)". Bull. Zool. Nomencl. 60 (1): 81–84. Archived from the original on 2007-08-21.
- ↑ "Use of opium and cannabis in the traditional systems of medicine in India". Archived from the original on 5 जनवरी 2016. Retrieved 27 दिसंबर 2015.
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(help) - ↑ "FAOSTAT". www.fao.org. Retrieved 2023-07-26.
- ↑ "Wayback Machine" (PDF). web.archive.org. Archived from the original (PDF) on 25 जून 2006. Retrieved 2023-07-26.
- ↑ ""Tiger tops dog as world's favourite animal"". iol.co.za.
- ↑ Sandra L. Olsen. Horses Through Time. Internet Archive. Roberts Rinehart Publishers. ISBN 978-1-57098-060-2.
- ↑ Mettler, John J. (1989). Horse sense : a complete guide to horse selection and care. Internet Archive. Pownal, Vt. : Storey Communications. ISBN 978-0-88266-545-0.
इन्हें भी देखें
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