रामगंगा नदी
रामगंगा नदी Ramganga River (पौराणिक नाम रथवाहिनी) | |
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उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद के समीप रामगंगा | |
स्थान | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश |
भौतिक लक्षण | |
नदीशीर्ष | दूधतोली |
• स्थान | पौड़ी गढ़वाल ज़िला, उत्तराखण्ड |
नदीमुख | गंगा नदी |
• स्थान |
हरदोई ज़िला, उत्तर प्रदेश |
• निर्देशांक |
27°10′44″N 79°50′49″E / 27.179°N 79.847°E |
• ऊँचाई |
130 मी॰ (430 फीट) |
लम्बाई | 596 कि॰मी॰ (1,955,000 फीट) |
जलसम्भर आकार | 30,641 कि॰मी2 (3.2982×1011 वर्ग फुट) |
प्रवाह | |
• औसत | 900 m3/s (32,000 घन फुट/सेकंड)[1] |
जलसम्भर लक्षण |
रामगंगा नदी (Ramganga River) भारत की प्रमुख तथा पवित्र नदियों में से एक हैं। यह उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश राज्यों में बहती है और गंगा नदी की एक उपनदी है। स्कंदपुराण के मानसखण्ड में इसका उल्लेख रथवाहिनी के नाम से हुआ है। उत्तराखण्ड के हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं के कुमाऊँ मण्डल के अन्तर्गत अल्मोड़ा जिले के दूनागिरी (पौराणिक नाम द्रोणगिरी) के विभिन्न प्राकृतिक जलस्रोत निकलकर कई गधेरों अर्थात लघु सरिताओं के रूप में तड़ागताल पहुंचते हैं। इस झील का कोई मुहाना नहीं है। चन्द कदमों की दूरी के उपरान्त स्वच्छ स्वेत धवल सी भूगर्भ से निकलती है और इसी अस्तित्व में प्रकट होकर रामगंगा नाम से पुकारी जाती है। दूसरी ओर गढ़वाल मण्डल के चमोली [दूधतोली]] के मध्यवर्ती क्षेत्र के कई गधेरों के ताल नामक गॉंव के समीप मिलने पर रामगंगा कहलाती है। यहीं से रामगंगा का उद्गम होता है।[2][3]
प्रवाह
[संपादित करें]रामगंगा नदी का उद्गम उत्तराखण्ड के राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले में दूधतोली पहाड़ी की दक्षिणी ढलानों में होता है। नदी का स्रोत, जिसे "दिवालीखाल" कहा जाता है, गैरसैण तहसील में ३०º ०५' अक्षांश और ७९º १८' देशांतर पर स्थित है। नदी गैरसैण नगर के बगल से होकर बहती है, हालांकि नगर उससे काफी ऊंचाई पर स्थित है। यह चौखुटिया तहसील में एक गहरी और संकरी घाटी द्वारा कुमाऊँ के अल्मोड़ा जिले में प्रवेश करती है। वहां से उभरते हुए यह दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़ती है और लोहाबागढ़ी की दक्षिण-पूर्वी सीमा के चारों ओर व्यापक रूप से घूमते हुए तड़ागताल नदी को प्राप्त करती है। इसके बाद यह उसी दिशा में आगे बढ़ती है और गनाई पहुंचती है, जहां इसमें दूनागिरी से निकली खरोगाड़ बाईं ओर से और पंडनाखाल से आयी खेतासारगढ़ दाईं ओर से आकर मिलती है।
गनाई से निकलकर यह तल्ल गेवाड़ क्षेत्र की ओर बहने लगती है, जहाँ नदी के किनारे और आसपास समृद्ध भूमि के साथ एक खुली घाटी है जहाँ बड़े पैमाने पर खेती और इसी नदी के जल से सिंचाई होती हैं। मासी के बाद घाटी कुछ हद तक सिकुड़ती है, लेकिन अभी भी बृद्धकेदार मंदिर तक कुछ उपजाऊ मैदान मिलते हैं। यहाँ इसमें चौकोट से निकली विनोद नदी आकर मिलती है, और इस बिंदु से आगे नदी का बहाव दक्षिण दिशा की ओर हो जाता है, और इसके दोनों ओर उपजाऊ मिट्टी के ढेरों और चट्टानों से भरे खड़े पहाड़ दिखाई देने लगते हैं। मासी से ग्यारह मील आगे यह भिकियासैंण पहुंचती है, जहां इसमें पूर्व की ओर से गगास और दक्षिण की ओर से नौरारगाड़ आकर मिलते हैं। यहाँ घाटी एक बार फिर से चौड़ी हो जाती है, लेकिन सिंचाई अभी भी मुख्यतः मामूली धाराओं से होती है। भिकियासैंण से नदी पश्चिम की ओर एक तीव्र मोड़ लेती है और सल्ट से नेल और गढ़वाल से देवगाड़ का पानी प्राप्त करती है। मारचुला पुल के बाद से कुछ दूर तक यह अल्मोड़ा और पौड़ी गढ़वाल जिलों की सीमा बनाती है। इसके बाद यह भाबर में प्रवेश करती है और पतली दून से पश्चिम की ओर बहते हुए में जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश करती है।
रामगंगा, जो पहले से ही बड़ी नदी बन चुकी है, उत्तर प्रदेश राज्य के बिजनौर जिले में स्थित कालागढ़ में मैदानों में प्रवेश करती है, जहां सिंचाई और पनबिजली उत्पादन के उद्देश्य से नदी पर एक बांध का निर्माण किया गया है। यहाँ से लगभग १५ मील आगे खोह से इसका संगम होता है, और फिर यह मुरादाबाद जिले में प्रवेश कर जाती है, जहाँ की जलोढ़ तराई भूमि पर यह दक्षिण-पूर्वी दिशा में बहुत ही तेज बहाव के साथ बहती है। यह मुरादाबाद नगर से होकर बहती है, जो इसके दाहिने किनारे पर बसा हुआ है, और रामपुर जिले की ओर आगे बढ़ती जाती है, जहाँ चमरौल के पास इसका संगम कोशी से होता है। रामपुर में भी यह मुरादाबाद की ही तरह उसी दिशा और तेज बहाव के साथ पार कर बरेली जिले में आ पहुँचती है।
बरेली जिले में रामगंगा पश्चिम की ओर से प्रवेश करती है और दक्षिण-पूर्व की ओर बढ़ती है। कुछ दूरी पर ही इसमें भाखड़ा और किच्छा की संयुक्त धारा आकर मिलती है। इसके बाद यह बरेली नगर के समीप पहुँचती है, जो इसके बाईं ओर स्थित है। यहाँ इसका संगम देवरनियाँ और नकटिया नदियों से होता है - दोनों नदियाँ बरेली नगर से होकर बहती हैं। बरेली के समीप चौबारी गाँव में सितंबर-अक्टूबर माह में गंगा दशहरा के अवसर पर नदी के तट पर वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है। यहां क्षेत्र की नौकाओं के लिए बारिश के दौरान यह नौगम्य हो जाती है, लेकिन सूखे के मौसम के दौरान इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है। बदायूँ, शाहजहाँपुर में बहती हुई, यह जलालाबाद में जाकर अधिक बोझ वाली नौकाओं के लिए नौगम्य हो जाती है। इसके बाद यह हरदोई जिले में आ जाती है, और अंत में लगभग ३७३ मील का कुल सफर तय करने के बाद, कन्नौज के विपरीत गंगा नदी में मिल जाती है।
पौराणिक उल्लेख
[संपादित करें]रामगंगा नदी जिसका पौराणिक ग्रन्थों में रथवाहिनी के नाम से उल्लेख है। इसके रहस्य व महत्व सारगर्भित पाये जाते हैं। उनमें से एक तथ्य, मानसखण्ड के उल्लेखानुसार द्रोणागिरी यानि दूनागिरी के दो श्रंगों ब्रह्मपर्वत व लोध्र पर्वत (भटकोट) के मध्य से रामगंगा (रथवाहिनी) का उद्गम। इन्हीं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह लोध्र-पर्वत यानि भटकोट शिखर जामदाग्नि ऋषि (परशुराम) की तपोभूमि रही है। इसी कारण परशुराम के नाम पर ही इसका नाम रथवाहिनी (रामगंगा) माना गया था।
ऐतिहासिक समावेश
[संपादित करें]राम गंगा के धार्मिक-आस्था के महत्व
[संपादित करें]खनिज-भारत का 1% सोना रामगंगा नदी घाटी मे पाया जाता है।
सिंचाई तथा पेयजल योजनाऐं
[संपादित करें]नदी किनारे अनेक जल परियोजनाए है यह कहना ग़लत नहीं होगा कि अगर कुमाऊं क्षेत्र में रामगंगा नदी नहीं होती तो अनेकों गांव बिना जल के समाप्त हो जाते,इस नदी के उदगम स्थल से लेकर गंगा नदी में मिलने तक अनेकों जल परियोजनाओं को जल इसी नहीं से प्राप्त होता है
बाॅंध व जलविद्युत परियोजनाऐं
[संपादित करें]रामगंगा नदी पर कालागढ़ नामक स्थान पर एक बाँध बनाया गया है, जहॉं बिजली का उत्पादन तथा तराई के मैदानों में सिंचाई की सुविधाऐं उपलब्ध होती हैं।
वन्य-सम्पदा
[संपादित करें]रामगंगा के छोरों पर जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे सन् 1936 से लुप्तप्राय बंगाल बाघ की रक्षा के लिए हैंली नेशनल पार्क के रूप में घोषित किया था। यह बाघ परियोजना के तहत आने वाला पहला पार्क व पशु पक्षी विहार है। यह रामगंगा की पातलीदून घाटी में 1318.54 वर्ग किलोमीटर में बसा हुआ, जिसके अंतर्गत 821.99 वर्ग किलोमीटर का जिम कॉर्बेट व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र आता है।
जीव जन्तु
[संपादित करें]रामगंगा घाटी में नाना प्रकार के जीव जन्तु पाये जाते है। जिनमें मुख्यत: कुछ निम्न हैं:-
- बाघ
- चीता
- शेर
- तेंदुआ
- गुलनार
- सांबर
- बार्किंग डियर
- हिरण
- नील गाय
- एशियाई हाथी
- बंदर
- जैकाल
- भालू
- जंगली सुअर
- कोबरा
- पाइथन
- रसेल्स
- वाइपर
- मगरमच्छ
- ओद बिलाव
- विभिन्न मछलियॉं
पर्यावरण सम्बन्धी लाभ
[संपादित करें]प्रदूषण कालागढ में राम गंगा का पानी एवं वातावरण बिलकुल शुद्ध है । साफ वातावरण होने के कारण यहाँ अफ़जलगढ बैराज पर लोग वातावरण का आनंद लेने के लिए आते हैं ।
रामगंगा के किनारे पड़ने वाले जिले
[संपादित करें]रामगंगा के किनारे पड़ने वाले मुख्य तीर्थ तथा गॉंव
[संपादित करें]- दाणिमडाली शिव मंदिर
- मैहलचोरी
- चौखुटिया
- स्वीठौ (कत्यूरीवंश का पवित्र तीर्थ )
- श्रीरामपादुका
- डॉंग
- आदीग्राम कनौणियॉं
- सोमनाथेश्वर महादेव
- कनौंणी
- मॉंसी
- काला चौना
- रामघाट
- पौराणिक बृद्धकेदार
- रुद्रेश्वर महादेव
- नौला
सहायक नदियाँ
[संपादित करें]सहायक लघु सरिताऐं (गधेरे)
[संपादित करें]- बौगाड़
- त्याड़
- बारजोई
- धनाड़
- चोरगधेरी
- चौषाढ़
- खतरोंन
- हनेडी़ गधेरा
- अमरोली फेर
- नौरड़ा
मुहाना
[संपादित करें]रामगंगा नदी लगभग 154 किलोमीटर की पहाड़ी यात्रा करके कालागढ़ ज़िले के निकट बिजनौर ज़िले के मैदानों में उतरती है तथा 24 किलोमीटर की मैदानी भागों की यात्रा करने के उपरान्त इसमें कोह नदी आकर मिलती है। अन्तत: रामगंगा नदी 610 किलोमीटर की पहाड़ी तथा मैदानी यात्रा करने के पश्चात कन्नौज के निकट गंगा नदी की सहायक नदी के रूप में गंगा नदी में मिल जाती है।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी जोड़
[संपादित करें]- Ramganga tributaries in Bareilly dry up one after other Study, बरेली, टाइम्स आफ इंडिया
- Ramganga River, euttaranchal.com
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Jain, Agarwal & Singh 2007, पृ॰ 341.
- ↑ "Uttarakhand: Land and People," Sharad Singh Negi, MD Publications, 1995
- ↑ "Development of Uttarakhand: Issues and Perspectives," GS Mehta, APH Publishing, 1999, ISBN 9788176480994