यह लेख एकाकी है, क्योंकि इससे बहुत कम अथवा शून्य लेख जुड़ते हैं। कृपया सम्बन्धित लेखों में इस लेख की कड़ियाँ जोड़ें। (जनवरी 2017)
इस लेख का परिचय अपर्याप्त संदर्भ प्रदान करता है उन लोगों के लिए जो इस विषय के साथ अपरिचित हैं। लेख को बेहतर बनाने में मदद करे अच्छी परिचयात्मक शैली से। (जनवरी 2017)
इस लेख में विश्वसनीय तृतीय पक्ष प्रकाशित सामग्री से संदर्भ की आवश्यकता है। प्राथमिक स्रोत या विषय से संबद्ध स्रोत आम तौर पर विकिपीडिया लेख के लिये पर्याप्त नहीं होते। कृपया विश्वसनीय स्रोतों से उचित उद्धरण जोड़ें।
इतिहासकारों के अनुसार सोलहवीं सदी तक बाजपुर चैरासी माल का एक परगना था। बाजपुर का पुराना नाम मुन्डिया था। राजा रुद्रचन्द्र ने मुगल बादशाह
अकबर से चैरासी माल का पूर्ण अधिकार प्राप्त कर तराई के प्रबन्ध पर पर्याप्त ध्यान दिया। किन्तु राजा रुद्र चन्द के उत्तराधिकारियों ने चंद खानदान के आपसी झगड़ों के कारण तराई की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया। फलस्वरुप कटेहर के हिन्दू सरदारों ने तराई के बड़े भू-भाग पर अधिकार कर दिया। किन्तु राजा बाजबहादुर चन्द (१६३८-१६७८ ईसवी) के शासन काल में बादशाह शाहजहां ने कुमाऊँ के राजा को तराई की जागीरदारी पुनः प्रदान की। राजा बाजबहादुर चन्द ने तराई के प्रबन्ध पर विशेष ध्यान दिया और अपने नाम से बाजपुर नगर बसाया।यातायात की दृष्टि से यहां रेल सेवा सन् १९०५-०६ में प्रारम्भ होने के उपरान्त बाजपुर कस्बे की जनता को रेल सुविधा प्राप्त हुई। सड़क मार्ग से बाजपुर कस्बे की जिला मुख्यालय रुद्रपुर से दूरी ३५ किमी है। सन् १९८० के दशक से बाजपुर क्षेत्र में औद्योगीकरण के प्रयास प्रारम्भ हुए और बाजपुर में ३३.९७ एकड़ और ४३.१९ एकड़ भूमि पर दो बड़े औद्योगिक संस्थान स्थापित किये गए। कालान्तर में चीनी मिल और कृषि आधारित औद्योगिक ईकाईयां भी बाजपुर कस्बे के आसपास स्थापित होने से वर्तमान में बाजपुर को औद्योगिक रुप से विकसित और समृद्व क्षेत्र माना जाता है। वर्ष १९८६ से बाजपुर चतुर्थ श्रेणी की नगरपालिका परिषद है।