रुद्रप्रयाग
रुद्रप्रयाग Rudraprayag | |
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रुद्रप्रयाग में अलकनन्दा नदी और मन्दाकिनी नदी का संगमस्थल | |
निर्देशांक: 30°17′N 78°59′E / 30.28°N 78.98°Eनिर्देशांक: 30°17′N 78°59′E / 30.28°N 78.98°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | उत्तराखण्ड |
ज़िला | रुद्रप्रयाग ज़िला |
ऊँचाई | 690 मी (2,260 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 9,313 |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी, गढ़वाली |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 246171 |
रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल मण्डल के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित एक नगर व नगर पंचायत है। रुद्रप्रयाग अलकनन्दा नदी के पंच प्रयाग में से एक है, और यहाँ अलकनन्दा और मन्दाकिनी नदी का संगम स्थित है। हिन्दू तीर्थस्थल केदारनाथ यहाँ से 86 किमी दूर है।[1][2][3]
विवरण
[संपादित करें]भगवान शिव के नाम पर रूद्रप्रयाग का नाम रखा गया है। रूद्रप्रयाग अलकनंदा और मंदाकिनी नदी पर स्थित है। यहाँ से आगे अलकनंदा देवप्रयाग में जाकर भागीरथी से मिलती है तथा गंगा नदी का निर्माण करती है। रूद्रप्रयाग श्रीनगर (गढ़वाल) से 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदाकिनी और अलखनंदा नदियों का संगम अपने आप में एक अनोखी खूबसूरती है। इन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो दो बहनें आपस में एक दूसरे को गले लगा रहीं हो। ऐसा माना जाता है कि यहां संगीत उस्ताद नारद मुनि ने भगवान शिव की उपासना की थी और नारद जी को आशीर्वाद देने के लिए ही भगवान शिव ने रौद्र रूप में अवतार लिया था। यहां स्थित शिव और जगदम्बा मंदिर प्रमुख धार्मिक स्थानों में से है।
रुद्रप्रयाग नगर पंचायत का गठन वर्ष २००२ में किया गया था, और २००६ में इसे नगरपालिका का दर्जा प्राप्त हुआ।[4]
रुद्रप्रयाग का धार्मिक महत्व
[संपादित करें]स्कन्दपुराण केदारखंड में इस बात का वर्णन पाया जाता है की द्वापर युग में महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवो द्वारा कौरव भ्रातृहत्या हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। जिसके लिए पांडवों को भगवान शिव का आशीर्वाद चाहिए था। लेकिन शिव पांडवों से रुष्ट थे। इस कारण जब पांडव काशी पहुंचे तो उन्हें भगवान शिव काशी नहीं मिले। तब वे शिव को खोजते खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। परन्तु फिर भी भगवान शंकर ने पांडवों को दर्शन दिए और अंतध्र्यान होकर केदार में जा बसे। परन्तु पांडव भी पक्के मन से आये थे वे उनका पीछा करते-करते केदार तक जा पहुंचे और इसी स्थान से पांडव ने स्वर्गारोहिणी के द्वारा स्वर्ग को प्रस्थान किया। वही एक अन्य प्रसंग में रुद्रप्रयाग में महर्षि नारद ने भगवान शिव की एक पाँव पर खड़े होकर उपासना की थी जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महर्षि नारद को रूद्र रूप में यहां दर्शन दिए और महर्षि नारद को भगवान शिव ने संगीत की शिक्षा दी व पुरुस्कार स्वरुप वीणा भेंट कर। माना जाता है इसी कारण ही इस जगह को “रुद्रप्रयाग” कहा जाने लगा।
आकर्षण
[संपादित करें]अगस्त्यमुनि
[संपादित करें]रूद्रप्रयाग से अगस्त्यमुनि की दूरी 18 किलोमीटर है। यह समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। यह वहीं स्थान है जहां ऋषि अगस्त्य ने कई वर्षों तक तपस्या की थी। इस मंदिर का नाम अगस्तेश्रवर महादेव ने ऋषि अगस्त्य के नाम पर रखा था। बैसाखी के अवसर पर यहां बहुत ही बड़ा मेला लगता है। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और अपने इष्ट देवता से प्रार्थना करते हैं।
गुप्तकाशी
[संपादित करें]गुप्तकाशी का वहीं महत्व है जो महत्व काशी का है। यहां गंगा और यमुना नदियां आपस में मिलती है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांण्डव भगवान शिव से मिलना चाहते थे और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं। लेकिन भगवान शिव पांडवों से मिलना नहीं चाहते थे इसलिए वह गुप्ताकाशी से केदारनाथ चले गए। गुप्तकाशी समुद्र तल से 1319 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक स्तूप नाला पर स्थित है जो कि ऊखीमठ के समीप स्थित है। कुछ स्थानीय निवासी इसे राणा नल के नाम से बुलाते हैं। इसके अलावा पुराना विश्वनाथ मंदिर, अराधनेश्रवर मंदिर और मणिकारनिक कुंड गुप्तकाशी के प्रमुख आकर्षण केन्द्र है।
सोनप्रयाग
[संपादित करें]सोनप्रयाग समुद्र तल से 1829 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह केदारनाथ के प्रमुख मार्ग पर स्थित है। सोन प्रयाग प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि सोन प्रयाग के इस पवित्र पानी को छू लेने से बैकुठ धाम पंहुचाने में मदद मिलती है। सोनप्रयाग से केदारनाथ की दूरी 19 किलोमीटर है। यह वहीं स्थान है जहां भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। सोनप्रयाग से त्रियुगीनारायण की दूरी बस द्वारा 14 किलोमीटर है और इसके बाद पांच किलोमीटर पैदल यात्रा करनी होगी।
खिरसू
[संपादित करें]बर्फ से ढ़के पर्वतों पर स्थित खिरसू बहुत ही खूबसूरत स्थान है। यह जगह हिमालय के मध्य स्थित है। इसी कारण यह जगह पर्यटकों को अपनी ओर अधिक आकर्षित करती है। इसके अलावा यहां से कई अन्य जाने-अनजाने शिखर दिखाई पड़ते हैं। खिरसू पौढ़ी से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह समुद्र से 1700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। खिरसू बहुत ही शान्तिपूर्ण स्थल है। यहां बहुत अधिक संख्या में ओक, देवदार के वृक्ष और फलोघान है।
गौरीकुंड
[संपादित करें]सोन प्रयाग से गौरीकुंड की दूरी 5 किलोमीटर है। यह समुद्र तल से 1982 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। केदारनाथ मार्ग पर गौरीकुंड अंतिम बस स्टेशन है। केदारनाथ में प्रवेश करने के बाद लोग यहां पूल पर स्थित गर्म पानी से स्नान करते हैं। इसके बाद गौरी देवी मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। यह वहीं स्थान है जहां माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की थी।
दिओरिया ताल
[संपादित करें]यह स्थान चोपटा-ऊकीमठ मार्ग पर स्थित है। जो कि सारी गांव के आरम्भ मार्ग से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह झील चारों तरफ से वनों से घिरी हुई है। चौकम्बा शिखर का पड़ने वाला प्रतिबिम्ब इस झील को ओर अधिक खूबसूरत बनाता है।
चोपता
[संपादित करें]चोपता गोपेश्वर-ऊखीमठ मार्ग से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गढ़वाल क्षेत्र में स्थित चोपता यहां के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। यहाँ तुंगनाथ का प्राचीन मन्दिर है।
निकटवर्ती
[संपादित करें]केदारनाथ
[संपादित करें]केदारनाथ भारत के उत्तराखंड प्रान्त के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है। केदारनाथ चार धामों में से एक है। केदार नाथ समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। केदारनाथ भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक है। भगवान शिव को केदार के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए इस मंदिर का नाम केदारनाथ रखा गया। केदारनाथ बर्फ से ढ़के ऊंचे-ऊंचे पर्वतों पर स्थित है। केदारनाथ हिमालय पर्वत पर स्थित है। यह हिन्दू धर्म के अनुयाइयों का पवित्र स्थान है।
आवागमन
[संपादित करें]- हवाई अड्डा
सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जोलीग्रांट (देहरादून) है जो कि रूद्रप्रयाग से 159 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जबकि निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, नई दिल्ली है।
- रेलवे मार्ग
सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश से रूद्रप्रयाग 152 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- सड़क मार्ग
कई महत्वपूर्ण मार्ग गढ़वाल डिविजन से जुड़े हुए हैं। जहां से रोजाना रूद्रप्रयाग के लिए बसें चलती है। जैसे- देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, पौढ़ी, जोशीमठ, गोपेश्वर, बद्रीनाथ, केदारनाथ, नैनीताल, अल्मोड़ा, दिल्ली।
रुद्रप्रयाग से प्रमुख स्थानों की सड़क मार्ग द्वारा दूरियाँ
[संपादित करें]- रुद्रप्रयाग से केदारनाथ की दूरी - 50.7 kms
- ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग की दूरी - 140 Kms
- देहरादून से रुद्रप्रयाग की दूरी - 177.7 kms
- हरिद्वार से रुद्रप्रयाग की दूरी - 160 Kms
- टिहरी से रुद्रप्रयाग की दूरी - 112 Kms
- पौड़ी से रुद्रप्रयाग की दूरी - 62 Kms
- दिल्ली से रुद्रप्रयाग की दूरी - 398.6 Kms
- मुंबई से रुद्रप्रयाग की दूरी - 1,787.0 Kms
जनसांख्यिकी
[संपादित करें]सन 2011 की भारतीय जनगणना के अनुसार रुद्रप्रयाग की जनसंख्या 242.29 हजार थी। इनमें पुरुष जनसँख्या 114.59 हजार तथा महिलाएँ 127.7 हजार थीं। रुद्रप्रयाग की औसत साक्षरता दर 81.30% है, पुरुष साक्षरता दर 93.90% तथा महिला साक्षरता दर 70.35% है। 32,046 जनसंख्या ६ वर्ष से कम आयु की है। अगस्त्यमुनि तथा ऊखीमठ रुद्रप्रयाग के दो मुख्य शहर हैं।[Need quotation toverify]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Start and end points of National Highways". मूल से 22 September 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 April 2009.
- ↑ "Uttarakhand: Land and People," Sharad Singh Negi, MD Publications, 1995
- ↑ "Development of Uttarakhand: Issues and Perspectives," GS Mehta, APH Publishing, 1999, ISBN 9788176480994
- ↑ "नगर पालिका का हुआ विस्तार, वार्डो की संख्या घटी". मूल से 24 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 अप्रैल 2018.