योगवासिष्ठ

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योगवाशिष्ठ महारामायण  

वाल्मीकि
लेखक वाल्मीकि
देश भारत
भाषा संस्कृत
श्रृंखला अद्वैत सिद्धान्त
विषय मोक्ष की प्राप्ति
प्रकार आदि धर्म ग्रन्थ

योगवाशिष्ठ महारामायण संस्कृत सहित्य में अद्वैत वेदान्त का अति महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। परम्परानुसार आदिकवि वाल्मीकि योगवाशिष्ठ महारामायण के रचयिता माने जाते हैं किन्तु वास्तविक रचयिता वशिष्ठ हैं तथा महर्षि वाल्मीकि इस सिद्धांत ग्रन्थ के संकलनकर्ता मात्र हैं। योगवाशिष्ठ महारामायण में जगत् की असत्ता और परमात्मसत्ता का विभिन्न दृष्टान्तों के माध्यम से प्रतिपादन है। भारद्वाज के मोक्ष की प्राप्ति के लिए की गई प्रश्नोत्तरी का भी वर्णन है।

विनायक दामोदर सावरकर इस ग्रन्थ से अत्यन्त प्रभावित थे और उन्होने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है।[1]

परिचय[संपादित करें]

योगविशिष्ठ के फारसी अनुवाद की एक पाण्डुलिपि (१६०२ ई) से लिया गया चित्र जिसमे कार्कटी किरातराज से प्रश्नोत्तर करतीं है

विद्वत्जनों का मत है कि सुख और दुख, जरा और मृत्यु, जीवन और जगत, जड़ और चेतन, लोक और परलोक, बंधन और मोक्ष, ब्रह्म और जीव, आत्मा और परमात्मा, आत्मज्ञान और अज्ञान, सत् और असत्, मन और इंद्रियाँ, धारणा और वासना आदि विषयों पर कदाचित् ही कोई ग्रंथ हो जिसमें ‘योगविशिष्ठ’ की अपेक्षा अधिक गंभीर चिंतन तथा सूक्ष्म विश्लेषण हुआ हो। मोक्ष प्राप्त करने का एक ही मार्ग है मोह का नाश। योगवासिष्ठ में जगत की असत्ता और परमात्मसत्ता का विभिन्न दृष्टान्तों के माध्यम से प्रतिपादन है। पुरुषार्थ एवं तत्त्व-ज्ञान के निरूपण के साथ-साथ इसमें शास्त्रोक्त सदाचार, त्याग-वैराग्ययुक्त सत्कर्म और आदर्श व्यवहार आदि पर भी सूक्ष्म विवेचन है।[2]

अन्य नाम

यह ग्रन्थ अनेक अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे-

  • आर्ष-रामायण
  • ज्ञानवासिष्ठ[3]
  • महारामायण
  • योगवासिष्ठ महारामायण
  • योगवासिष्ठ रामायण
  • वसिष्ठ-गीता
  • वसिष्ठ रामायण[4]

संरचना[संपादित करें]

योगविशिष्ठ ग्रन्थ छः प्रकरणों (४५८ सर्गों) में पूर्ण है। योगविशिष्ठ की श्लोक संख्या २९ हजार है। महाभारत के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा हिन्दू धर्मग्रन्थ है।

  1. वैराग्यप्रकरण (३३ सर्ग),
  2. मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण (२० सर्ग),
  3. उत्पत्ति प्रकरण (१२२ सर्ग),
  4. स्थिति प्रकरण (६२ सर्ग),
  5. उपशम प्रकरण (९३ सर्ग), तथा
  6. निर्वाण प्रकरण (पूर्वार्ध १२८ सर्ग और उत्तरार्ध २१६ सर्ग)।

इसमें श्लोकों की कुल संख्या २७६८७ है। वाल्मीकि रामायण से लगभग चार हजार अधिक श्लोक होने के कारण इसका 'महारामायण' अभिधान सर्वथा सार्थक है। इसमें रामकी जीवनी न होकर भगवान द्वारा दिए गए आध्यात्मिक उपदेश हैं।

प्रथम वैराग्य प्रकरण में उपनयन संस्कार के बाद राम अपने भाइयों के साथ गुरुकुल में अध्ययनार्थ गए। अध्ययन समाप्ति के बाद तीर्थयात्रा से वापस लौटने पर राम विरक्त हुए। महाराज दशरथ की सभा में वे कहते हैं कि वैभव, राज्य, देह और आकांक्षा का क्या उपयोग है। कुछ ही दिनों में काल इन सब का नाश करने वाला है। अपनी मनोव्यथा का निवारण करने की प्रार्थना उन्होंने अपने गुरु वसिष्ठ और विश्वामित्र से की। दूसरे मुमुक्षुव्यवहार प्रकरण में विश्वामित्र की सूचना के अनुसार वशिष्ठ ऋषि ने उपदेश दिया है। ३-४ और ५ वें प्रकरणों में संसार की उत्पत्ति, स्थिति और लय की उत्पत्ति वार्णित है। इन प्रकारणों में अनेक दृष्टान्तात्मक आख्यान और उपाख्यान निवेदन किये गए हैं। छठे प्रकरण का पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में विभाजन किया गया है। इसमें संसारचक्र में फँसे हुए जीवात्मा को निर्वाण अर्थात निरतिशय आनन्द की प्राप्ति का उपाय प्रतिपादित किया गया है।

टीकाएँ[संपादित करें]

योगवासिष्ठ की निम्नलिखित पारम्परिक टीकाएँ आज भी सुरक्षित हैं-

  • वासिष्ठ-रामायण-चन्द्रिका (आद्वयारण्य, नरहरि के पुत्र)
  • तात्पर्य-प्रकाश (आनन्द बोधेन्द्र सरस्वती)
  • गङाधरेन्द्र का भाष्य
  • पद-चन्द्रिका (माधव सरस्वती)

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Savarkar,Vinayak D. "My Transportation for Life" pp.151 http://www.savarkarsmarak.com/activityimages/My%20Transportation%20to%20Life.pdf Archived 2018-09-29 at the वेबैक मशीन
  2. "गीताप्रेस डाट काम, योगवासिष्ठ". मूल से 23 जून 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जून 2010.
  3. Leslie 2003 Archived 2020-06-17 at the वेबैक मशीन, pp. 104
  4. Encyclopaedia of Indian Literature, Volume 5. pp. 4638, By various, Published by Sahitya Akademi, 1992, ISBN 81-260-1221-8, ISBN 978-81-260-1221-3

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • चूडाला -- एक विदुषी, जिसका आख्यान योगवासिष्ठ में आया है।

बाहरी कडियाँ[संपादित करें]