दूत
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मोहम्मद अली मुगल साम्राज्य में भेजे गये ईरान के शाह अब्बास के दूत थे।
दूत संदेशा देने वाले को कहते हैं। दूत का कार्य बहुत महत्त्व का माना गया है। प्राचीन भारतीय साहित्य में अनेक ग्रन्थों में दूत के लिये आवश्यक गुणों का विस्तार से विवेचन किया गया है।
रामायण में लक्ष्मण से हनुमान का परिचय कराते हुए श्रीराम कहते हैं -
- नूनं व्याकरणं क्रित्स्नं अनेन बहुधा श्रुतम्।
- बहु व्याहरतानेन न किंचिदपभाषितम् ॥
- अविस्तरं असन्दिग्धं अविलम्बितं अद्रुतम्।
- उरस्थं कन्ठगं वाक्यं वर्तते मध्यमे स्वरे ॥
- उच्चारयति कल्याणीं वाचं हृदयदारिणीम्।
- कस्य नाराध्यते चित्त्तमुद्यतासेररेरपि ॥
- एवं विधो यस्य दूतो न भवेत् पार्थिवस्य तु।
- सिध्यन्ति ही कथं तस्य कार्याणां गतयोनघ ॥
(अवश्य ही इन्होने सम्पूर्ण व्याकरण सुन लिया लिया है क्योंकि बहुत कुछ बोलने के बाद भी इनके भाषण में कोई त्रुटि नहीं मिली।। यह बहुत अधिक विस्तार से नहीं बोलते; असंदिग्ध बोलते हैं; न धीमी गति से बोलते हैं और न तेज गति से। इनके हृदय से निकलकर कंठ तक आने वाला वाक्य मध्यम स्वर में होता है। ये कयाणमयी वाणी बोलते हैं जो दुखी मन वाले और तलवार ताने हुए शत्रु के हृदय को छू जाती है। यदि ऐसा व्यक्ति किसी का दूत न हो तो उसके कार्य कैसे सिद्ध होंगे?)
इसमें दूत के सभी गुणों का सुन्दर वर्णन है।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
- प्राचीन भारत में दूत पद्धति (गूगल पुस्तक ; लेखक - आनन्द प्रकाश गौड़)
- Embassypages.com - Embassies and Consulates Around the World