सुग्रीव
सुग्रीव | |
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![]() राम और लक्ष्मण सुग्रीवा के साथ सम्मानित करते हैं | |
पूर्वाधिकारी | बालि |
उत्तराधिकारी | अंगद |
जीवनसाथी | रूमा |
माता-पिता |
भगवान सूर्य नारायण ( जन्मदाता पिता) , ऋक्षराज ( जन्मदायिनी माता ) महर्षि गौतम (पालक पिता) देवी अहिल्या (पालक माता) |
सुग्रीव, रामायण के अनुसार सूर्य का पुत्र था।[1] माता का नाम ऋक्षराज था। उसका पालन षोषण महर्षि गौतम ने अपनी पत्नी अहल्या सहित किया। हनुमान के कारण राम से मित्रता हुयी।[2] राम से मित्रता के समय वह अपने अग्रज बालि के भय से ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान तथा जाम्बवन्त के साथ रह रहा था। लंका पर चढ़ाई के लिए सुग्रीव ने वानर तथा ॠक्ष सेना का प्रबन्ध किया। उसने राम की रावण को मारने में मदद की।
बालि से वैर
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दुंदुभि के बड़े भाई मायावी की बालि से किसी स्त्री को लेकर बड़ी पुरानी शत्रुता थी। मायावी एक रात किष्किन्धा आया और बालि को द्वंद्व के लिए ललकारा। ललकार स्वीकार कर बालि उस असुर के पीछे भागा। साथ में सुग्रीव भी उसके साथ था। भय के कारण भागते हुये मायावी ज़मीन के नीचे बनी एक कन्दरा में घुस गया। बालि भी उसके पीछे-पीछे गया। जाने से पहले उसने सुग्रीव को यह आदेश दिया कि जब तक वह मायावी का वध करके लौटकर नहीं आता, तब तक सुग्रीव उस कन्दरा के मुहाने पर खड़ा होकर पहरा दे। एक वर्ष से अधिक अन्तराल के पश्चात कन्दरा के मुहाने से रक्त बहता हुआ बाहर आया। सुग्रीव ने असुर की चीत्कार तो सुनी परन्तु बालि की नहीं। यह समझकर कि उसका अग्रज रण में मारा गया, सुग्रीव ने उस कन्दरा के मुँह को एक शिला से बन्द कर दिया और वापस किष्किन्धा आ गया जहाँ उसने यह समाचार सबको सुनाया।[3] मंत्रियों ने सलाह कर सुग्रीव का राज्याभिषेक कर दिया। कुछ समय पश्चात बालि प्रकट हुआ और अपने अनुज को राजा देख बहुत कुपित हुआ। सुग्रीव ने उसे समझाने का भरसक प्रयत्न किया परन्तु बालि ने उसकी एक न सुनी और सुग्रीव के राज्य तथा पत्नी रूमा को हड़पकर रानी बनाया और सुग्रीव को देश-निकाला दे दिया। डर के कारण सुग्रीव ने ऋष्यमूक पर्वत में शरण ली जहाँ शाप के कारण बालि नहीं जा सकता था। यहीं सुग्रीव का मिलाप हनुमान के कारण राम से हुआ।[4]
सुग्रीव-बालि द्वंद्व
[संपादित करें]राम के यह आश्वासन देने पर कि राम स्वयं बालि का वध करेंगे, सुग्रीव ने वालि को ललकारा। बालि ललकार सुनकर बाहर आया। दोनों में घमासान युद्ध हुआ, परंतु दोनो भाइयों की मुख तथा देह रचना समान थी, इसलिए राम ने असमंजस के कारण अपना बाण नहीं चलाया। अंततः बालि ने सुग्रीव को बुरी तरह परास्त करके दूर खदेड़ दिया। सुग्रीव निराश होकर फिर राम के पास आ गया।[5] राम ने इस बार लक्ष्मण से सुग्रीव के गले में माला पहनाने को कहा जिससे वह द्वंद्व के दौरान सुग्रीव को पहचानने में ग़लती नहीं करेंगे और सुग्रीव से बालि को पुन: ललकारने को कहा। हताश सुग्रीव फिर से किष्किन्धा के द्वार की ओर बालि को ललकारने के लिए चल पड़ा। जब बालि ने दोबारा सुग्रीव की ललकार सुनी तो उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। तारा को शायद इस बात का बोध हो गया था कि सुग्रीव को राम का संरक्षण हासिल है क्योंकि अकेले तो सुग्रीव बालि को दोबारा ललकारने की हिम्मत कदापि नहीं करता। अतः किसी अनहोनी के भय से तारा ने बालि को सावधान करने की चेष्टा की। उसने यहाँ तक कहा कि सुग्रीव को किष्किन्धा का राजकुमार घोषित कर वालि उसके साथ संधि कर ले। किन्तु बालि ने इस शक से कि तारा सुग्रीव का अनुचित पक्ष ले रही है, उसे दुत्कार दिया। किन्तु उसने तारा को यह आश्वासन दिया कि वह सुग्रीव का वध नहीं करेगा और सिर्फ़ उसे अच्छा सबक सिखायेगा।[6]
दोनों भाइयों में फिर से द्वंद्व शुरु हुआ लेकिन इस बार राम को दोनों भाइयों को पहचानने में कोई ग़लती नहीं हुयी और उन्होंने बालि पर पेड़ की ओट से बाण चला दिया। बाण ने बालि के हृदय को बेध डाला और वह धाराशायी होकर ज़मीन पर गिर गया।[7]
लक्ष्मण को शान्त करना
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बालि के वध के पश्चात् तारा ने यही उचित समझा कि सुग्रीव को अपना पति स्वीकार करे क्योंकि उसने अंगद के हितों की रक्षा भी तो करनी थी। जब सुग्रीव राजोल्लास में तल्लीन हो गया और राम को सीता का ढूंढने का वचन भूल गया तो राम ने लक्ष्मण को उसे अपना वचन याद कराने को भेजा। लक्ष्मण वैसे भी काफ़ी ग़ुस्सैल थे। उन्होंने किष्किन्धा की राजधानी पम्पापुर में लगभग आक्रमण बोल दिया। सुग्रीव को अपनी ग़लती का अहसास हो गया लेकिन लक्ष्मण का सामना करने की उसकी हिम्मत न हुयी। उसने तारा से आग्रह किया कि वह लक्ष्मण को शान्त कर दे। तारा रनिवास से मदोन्मत्त निकली और लक्ष्मण को शान्त किया। उसने महर्षि विश्वामित्र का उदाहरण दिया कि ऐसे महात्मा भी इन्द्रिय विषयक भोगों के आगे लाचार हो गये थे फिर सुग्रीव की तो बिसात ही क्या और यह भी कि वह मनुष्य नहीं वरन् एक वानर है। तारा ने यह भी वर्णन किया कि सुग्रीव ने चारों दिशाओं में सेना एकत्रित करने के लिए दूत भेज दिये हैं। वाल्मीकि रामायण तथा अन्य भाषाओं के रूपांतरणों में यह उल्लेख है कि अधखुले नयनों वाली मदोन्मत्त तारा के तर्कों को सुनकर लक्ष्मण थोड़ी शान्त हो गये और उसके पश्चात् सुग्रीव के आगमन और उससे सीता को खोजने का आश्वासन पाकर वापस चले गये। रामायण के कुछ क्षेत्रीय रूपांतरणों में यह भी दर्शाया गया है कि जिस समय लक्ष्मण ने किष्किन्धा की राजधानी के राजमहल के गर्भागृह में क्रोधित होकर प्रवेश किया था उस समय सुग्रीव के साथ मदिरा-पान करने वाली उसकी प्रथम पत्नी रूमा नहीं अपितु तारा थी और भोग विलास में वह दोनों तल्लीन थे। यहाँ पर यह याद दिलाना उचित होगा कि राम से मैत्री करते समय सुग्रीव ने अपने राज्य के छिन जाने से भी अधिक बालि द्वारा अपनी पत्नी रूमा के छिन जाने का खेद प्रकट किया था। कुछ संस्करणों में लक्ष्मण को शांत करने के लिए तारा नहीं वरन् सुग्रीव स्वयं लक्ष्मण के सामने आता है तथा उनको यह आश्वासन दिलाता है कि उसने सेना एकत्रित करनी शुरु कर दी है। सुग्रीव से यह आश्वासन पाकर लक्ष्मण थोड़ा शान्त हो जाते हैं।
खोज अभियान का भौगोलिक वर्णन
[संपादित करें]वाल्मीकि रामायण के ४०वें सर्ग में सीता की खोज के लिये वानरों को पूर्व दिशा में भेजने का विस्तृत वर्ण आया है-[8]
- समुद्रमवगाढांश्च पर्वतान् पत्तनानि च।
- मन्दरस्य च ये कोटिं संश्रिताः केचिदालयाः॥ २५॥
- कर्णप्रावरणाश्चैव तथा चाप्योष्ठकर्णकाः।
- घोरलोहमुखाश्चैव जवनाश्चैकपादकाः॥ २६॥
- अक्षया बलवन्तश्च तथैव पुरुषादकाः।
- किरातास्तीक्ष्णचूडाश्च हेमाभाः प्रियदर्शनाः॥ २७॥
- आममीनाशनाश्चापि किराता द्वीपवासिनः।
- अन्तर्जलचरा घोरा नरव्याघ्रा इति स्मृताः॥ २८॥
- एतेषामाश्रयाः सर्वे विचेयाः काननौकसः।
- गिरिभिर्ये च गम्यन्ते प्लवनेन प्लवेन च॥ २९॥
- यत्नवन्तो यवद्वीपं सप्तराजोपशोभितम्।
- सुवर्णरूप्यकद्वीपं सुवर्णाकरमण्डितम्॥ ३०॥
- ( अर्थ - समुद्र के भीतर प्रविष्ट हुए पर्वतो पर, उसके अन्तर्वर्ती द्वीपों के विभिन्न नगरों में तथा मन्दराचल की चोटी पर जो कोई गाँव बसे हैं, उन सबमें सीता का अनुसंधान करो॥ २५ ॥
- जो कर्णप्रावरण (वस्त्र की भाँति पैर तक लटके हुए कान वाले), ओष्ठकर्णक (ओठ तक फैले हुए कान वाले) तथा घोर लोहमुख (लोहे के समान काले एवं भयंकर मुख वाले) हैं, जो एक ही पैर के होते हुए भी वेगपूर्वक चलने वाले हैं, जिनकी संतानपरम्परा कभी क्षीण नहीं होती, वे पुरुष तथा जो बलवान् नरभक्षी राक्षस हैं, जो सूची के अग्रभाग की भाँति तीखी चोटी वाले, सुवर्ण के समान कान्तिमान्, प्रियदर्शन (सुन्दर), कच्ची मछली खाने वाले, द्वीपवासी तथा जल के भीतर विचरने वाले किरात हैं, जिनके नीचे का आकार मनुष्य-जैसा और ऊपर की आकृति व्याघ्र के समान है, ऐसे जो भयंकर प्राणी बताये गये हैं; वानरो! इन सब के निवासस्थानों में जाकर तुम्हें सीता तथा रावण की खोज करनी चाहिये॥ २६–२८ १/२ ॥
- जिन द्वीपों में पर्वतों पर होकर जाना पड़ता है, जहाँ समुद्र को तैरकर या नाव आदि के द्वारा पहुँचा जाता है, उन सब स्थानों में सीता को ढूँढ़ना चाहिये॥ २९ ॥
- इसके सिवा तुमलोग यत्नशील होकर सात राज्यों से सुशोभित यवद्वीप (जावा), सुवर्णद्वीप (सुमात्रा) तथा रूप्यक द्वीप में भी जो सुवर्ण की खानों से सुशोभित हैं, ढूँढ़ने का प्रयत्न करो॥३०॥ )
लंका युद्ध में
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लंका युद्ध के दौरान सुग्रीव ने कुम्भकर्ण को ललकार कर क़रीब-क़रीब अपनी मौत को दावत दे दी थी। कुम्भकर्ण को युद्ध में वानर सेना का नाश करते देख सुग्रीव ने एक साल का वृक्ष उखाड़कर कुम्भकर्ण पर आक्रमण बोल दिया। लेकिन वह वृक्ष कुम्भकर्ण के सिर से टकराकर टूट गया। कुम्भकर्ण ने फिर सुग्रीव को पकड़कर घसीटा और उसे मार ही डालता लेकिन लक्ष्मण ने ऐन वख़्त पर आकर सुग्रीव को बचा लिया।[9]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "CANTO XVI.: THE VÁNARS". Sacred Texts.
That noblest fire, The Sun, was great Sugríva's sire,
- ↑ गोस्वामी तुलसीदास. किष्किंधा कांड.
दोहा क्रमांक 4
- ↑ "मायावी का वध". Archived from the original on 21 सितंबर 2009. Retrieved 2012-05-01.
- ↑ "सुग्रीव से वैर". Archived from the original on 17 फ़रवरी 2012. Retrieved 2012-05-01.
- ↑ "सुग्रीव-वालि प्रथम द्वंद्व". Archived from the original on 17 फ़रवरी 2012. Retrieved 2012-05-01.
- ↑ "तारा की याचना". Archived from the original on 21 सितंबर 2009. Retrieved 2012-05-01.
- ↑ "वालि वध". Archived from the original on 9 सितंबर 2010. Retrieved 2012-05-01.
- ↑ Sugriva's Atlas -1
- ↑ महाभारत, पुस्तक III: वर्ण पर्व, अनुभाग २८५