भारतीय जनता पार्टी
भारतीय जनता पार्टी | |
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संक्षेपाक्षर | भाजपा |
नेता | नरेन्द्र मोदी |
दल अध्यक्ष | जगत प्रकाश नड्डा |
महासचिव |
|
संसदीय दल अध्यक्ष | नरेन्द्र मोदी |
नेता लोकसभा | नरेन्द्र मोदी (प्रधानमन्त्री) |
नेता राज्यसभा | पीयूष गोयल |
गठन | 6 अप्रैल 1980 |
मुख्यालय |
६-ए, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली - ११०००२ |
गठबंधन | राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन |
लोकसभा मे सीटों की संख्या |
240 / 543 |
राज्यसभा मे सीटों की संख्या |
96 / 245 |
राज्य विधानसभा में सीटों की संख्या |
1,484 / 4,036 |
विचारधारा | |
प्रकाशन | कमल संदेश |
रंग | भगवा |
विद्यार्थी शाखा | अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अनाधिकारिक) |
युवा शाखा Mulayam Singh youth brigade | भारतीय जनता युवा मोर्चा |
महिला शाखा | भाजपा महिला मोर्चा |
श्रमिक शाखा | भारतीय मजदूर संघ |
किसान शाखा | भाजपा किसान मोर्चा |
जालस्थल | bjp.org |
Election symbol | |
भारत की राजनीति राजनैतिक दल चुनाव |
भारतीय जनता पार्टी (संक्षेप में, भा॰ज॰पा॰) भारत का एक राजनीतिक दल है, और भारत के दो प्रमुख राजनीतिक दलों में से एक है।[5] २०१४ के बाद से, यह १४वें एवं वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तहत भारत में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल रहा है।[6] भाजपा दक्षिणपन्थी राजनीति से जुड़ी हुई है, और इसकी नीतियों ने ऐतिहासिक रूप से एक पारंपरिक हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा को प्रतिबिंबित किया है; इसके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ घनिष्ठ वैचारिक और संगठनात्मक संबंध हैं।[7] १८ दिसम्बर २०२३ तक कुल देश भर में १४३५ विधायक है, यह भारतीय संसद के साथ-साथ विभिन्न राज्य विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व के मामले में देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। भाजपा के अक्टूबर २०२२ तक दावे के अनुसार १७ करोड़ से अधिक सदस्यों के साथ यह विश्व का सबसे बड़ा राजनैतिक दल है।[8][9]
परिचय
भारतीय जनता पार्टी का मूल श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा १९५१ में निर्मित भारतीय जनसंघ है। १९७७ में आपातकाल की समाप्ति के बाद जनता पार्टी के निर्माण हेतु जनसंघ अन्य दलों के साथ विलय हो गया। इससे १९७७ में पदस्थ कांग्रेस पार्टी को १९७७ के आम चुनावों में हराना सम्भव हुआ। तीन वर्षों तक सरकार चलाने के बाद १९८० में जनता पार्टी विघटित हो गई और पूर्व जनसंघ के पदचिह्नों को पुनर्संयोजित करते हुये भारतीय जनता पार्टी का निर्माण किया गया। यद्यपि शुरुआत में पार्टी असफल रही और 1984 के आम चुनावों में केवल दो लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही।( इसका बड़ा कारण १९८४ में इंदिरा गांधी की हत्या के कारण उनके बेटे राजीव गांधी को सहानुभूति की लहर थी) इसके बाद राम जन्मभूमि आंदोलन ने पार्टी को ताकत दी। कुछ राज्यों में चुनाव जीतते हुये और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुये १९९६ में पार्टी भारतीय संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो १३ दिन चली।
१९९८ में आम चुनावों के बाद भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का निर्माण हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी जो एक वर्ष तक चली। इसके बाद आम-चुनावों में राजग को पुनः पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। इस प्रकार पूर्ण कार्यकाल करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। २००४ के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और अगले १० वर्षों तक भाजपा ने संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई। २०१४ के आम चुनावों में राजग को गुजरात के लम्बे समय से चले आ रहे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारी जीत मिली और २०१४ में सरकार बनायी। इसके अलावा दिसम्बर २०१७ के अनुसार भारतीय जनता पार्टी भारत के २९ राज्यों में से १९ राज्यों में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है।
भाजपा की कथित विचारधारा "एकात्म मानववाद" सर्वप्रथम १९६५ में दीनदयाल उपाध्याय ने दी थी। पार्टी हिन्दुत्व के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करती है और नीतियाँ ऐतिहासिक रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद की पक्षधर रही हैं। इसकी विदेश नीति राष्ट्रवादी सिद्धांतों पर केन्द्रित है। जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष संवैधानिक दर्जा ख़त्म करना, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना तथा सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता कानून का कार्यान्वयन करना भाजपा के मुख्य मुद्दे हैं। हालाँकि १९९८-२००४ की राजग सरकार ने किसी भी विवादास्पद मुद्दे को नहीं छुआ और इसके स्थान पर वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों तथा सामाजिक कल्याणकारी आर्थिक वृद्धि पर केन्द्रित रही।
मुखपत्र
कमल सन्देश भारतीय जनता पार्टी का मुखपत्र है। प्रभात झा इसके सम्पादक हैं और संजीव कुमार सिन्हा सहायक सम्पादक।
इतिहास
भारतीय जनसंघ
'जनसंघ' के नाम से प्रसिद्ध भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने १९५१ में की थी। उस समय भारतीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी का बोलबाला था। उसके धर्मनिरपेक्ष राजनीति के विरुद्ध भाजपा की विचारधार राष्ट्रवाद की थी। इसे व्यापक रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर॰एस॰एस॰) की राजनीतिक शाखा के रूप में जाना जाता था,[10] जो स्वैच्छिक रूप से हिन्दू राष्ट्रवादी संघटन है और जिसका उद्देश्य भारतीय की "हिन्दू" सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करना और कांग्रेस तथा प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के मुस्लिम और पाकिस्तान को लेकर तुष्टीकरण को रोकना था।[11]
जनसंघ का प्रथम अभियान जम्मू और कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय के लिए आंदोलन था। मुखर्जी को कश्मीर में प्रतिवाद का नेतृत्व नहीं करने के आदेश मिले थे। आदेशों का उल्लंघन करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया जिनका कुछ माह बाद दिल का दौरा पड़ने से जेल में ही निधन हो गया। संघटन का नेतृत्व दीनदयाल उपाध्याय को मिला और अंततः अगली पीढ़ी के नेताओं जैसे अटल बिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को मिला। हालाँकि, उपाध्याय सहित बड़े पैमाने पर पार्टी कार्यकर्ता आर॰एस॰एस॰ के समर्थक थे। कश्मीर आंदोलन के विरोध के बावजूद १९५२ में पहले लोकसभा चुनावों में जनसंघ को लोकसभा में तीन सीटें प्राप्त हुई। वो १९६७ तक संसद में अल्पमत में रहे। इस समय तक पार्टी कार्यसूची के मुख्य विषय सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता कानून, गोहत्या पर प्रतिबंध लगाना और जम्मू एवं कश्मीर के लिए दिया विशेष दर्जा खत्म करना थे।[12][13][14]
१९६७ में देशभर के विधानसभा चुनावों में पार्टी, स्वतंत्र पार्टी और समाजवादियों सहित अन्य पार्टियों के साथ मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न हिन्दी भाषी राज्यों में गठबंधन सरकार बनाने में सफल रही। इससे बाद जनसंघ ने पहली बार राजनीतिक कार्यालय चिह्नित किया, यद्यपि यह गठबंधन में था। राजनीतिक गठबंधन के गुणधर्मों के कारण संघ के अधिक कट्टरपंथी कार्यसूची को ठण्डे बस्ते में डालना पड़ा।[15]
जनता पार्टी (१९७७-८०)
१९७५ में प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया। जनसंघ ने इसके विरूद्ध व्यापक विरोध आरम्भ कर दिया जिससे देशभर में इसके हज़ारों कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया। १९७७ में आपातकाल ख़त्म हुआ और इसके बाद आम चुनाव हुये। इस चुनाव में जनसंघ का भारतीय लोक दल, कांग्रेस (ओ) और समाजवादी पार्टी के साथ विलय करके जनता पार्टी का निर्माण किया गया और इसका प्रमुख उद्देश्य चुनावों में इंदिरा गांधी को हराना था।[16]
१९७७ के आम चुनाव में जनता पार्टी को विशाल सफलता मिली और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी। उपाध्याय के 1979 में निधन के बाद जनसंघ के अध्यक्ष अटल बिहारी बाजपेयी बने थे अतः उन्हें इस सरकार में विदेश मंत्रालय कार्यभार मिला। हालाँकि, विभिन्न दलों में शक्ति साझा करने को लेकर विवाद बढ़ने लगे और ढ़ाई वर्ष बाद देसाई को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा। गठबंधन के एक कार्यकाल के बाद १९८० में आम चुनाव करवाये गये।[17]
भाजपा (१९८० से अब तक)
स्थापना और आरम्भिक काल
भारतीय जनता पार्टी 1980 में जनता पार्टी के विघटन के बाद नवनिर्मित पार्टियों में से एक थी। यद्यपि तकनीकी रूप से यह जनसंघ का ही दूसरा रूप था, इसके अधिकतर कार्यकर्ता इसके पूर्ववर्ती थे और वाजपेयी को इसका प्रथम अध्यक्ष बनाया गया। इतिहासकार रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि जनता सरकार के भीतर गुटीय युद्धों के बावजूद, इसके कार्यकाल में आर॰एस॰एस॰ के प्रभाव को बढ़ते हुये देखा गया जिसे १९८० के पूर्वार्द्ध की सांप्रदायिक हिंसा की एक लहर द्वारा चिह्नित किया जाता है।[18] इस समर्थन के बावजूद, भाजपा ने शुरूआत में अपने पूर्ववर्ती हिन्दू राष्ट्रवाद का रुख किया इसका व्यापक प्रसार किया। उनकी यह रणनीति असफल रही और १९८४ के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल दो लोकसभा सीटों से संतोष करना पड़ा।[19] चुनावों से कुछ समय पहले ही इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद भी काफी सुधार नहीं देखा गया और कांग्रेस रिकार्ड सीटों के साथ जीत गई।[20]
बाबरी ढाँचा विध्वंस और हिन्दुत्व आन्दोलन
वाजपेयी के नेतृत्व वाली उदारवादी रणनीति अभियान के असफल होने के बाद पार्टी ने हिन्दुत्व और हिन्दू कट्टरवाद का पूर्ण कट्टरता के साथ पालन करने का निर्णय लिया।[19][21] १९८४ में आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष नियुक्त किया गया और उनके नेतृत्व में भाजपा राम जन्मभूमि आंदोलन की राजनीतिक आवाज़ बनी। १९८० के दशक के पूर्वार्द्ध में विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने अयोध्या में बाबरी ढांचा के स्थान पर हिन्दू देवता राम का मन्दिर निर्माण के उद्देश्य से एक अभियान की शुरूआत की थी। यहाँ मस्जिद का निर्माण मुग़ल बादशाह बाबर ने करवाया था और इसपर विवाद है कि पहले यहाँ मन्दिर था।[22] आंदोलन का आधार यह था कि यह क्षेत्र रामजन्मभूमि है और यहाँ पर मस्जिद निर्माण के उद्देश्य से बाबर ने मन्दिर को ध्वस्त करवाया।[23] भाजपा ने इस अभियान का समर्थन आरम्भ कर दिया और इसे अपने चुनावी अभियान का हिस्सा बनाया। आंदोलन की ताकत के साथ भाजपा ने १९८९ के लोक सभा चुनावों ८६ सीटें प्राप्त की और समान विचारधारा वाली नेशनल फ़्रॉण्ट की विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार का महत्वपूर्ण समर्थन किया।[24]
सितम्बर १९९० में आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन के समर्थन में अयोध्या के लिए "रथ यात्रा" आरम्भ की। यात्रा के कारण होने वाले दंगो के कारण बिहार सरकार ने आडवाणी को गिरफ़तार कर लिया लेकिन कारसेवक और संघ परिवार कार्यकर्ता फिर भी अयोध्या पहुँच गये और बाबरी ढाँचे के विध्वंस के लिए हमला कर दिया।[25] इसके परिणामस्वरूप अर्द्धसैनिक बलों के साथ घमासान लड़ाई हुई जिसमें कई कर सेवक मारे गये। भाजपा ने विश्वनाथ प्रतापसिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और एक नये चुनाव के लिए तैयार हो गई। इन चुनावों में भाजपा ने अपनी शक्ति को और बढ़ाया और १२० सीटों पर विजय प्राप्त की तथा उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी।[25]
६ दिसम्बर १९९२ को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और इससे जुड़े संगठनों की रैली ने, जिसमें हजारों भाजपा और विहिप कार्यकर्ता भी शामिल थे ने मस्जिद क्षेत्र पर हमला कर दिया।[25] पूर्णतः अस्पष्ट हालात में यह रैली एक उन्मादी हमले के रूप में विकसित हुई और बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ इसका अंत हुआ।[25] इसके कई सप्ताह बाद देशभर में हिन्दू एवं मुस्लिमों में हिंसा भड़क उठी जिसमें २,००० से अधिक लोग मारे गये।[25] विहिप को कुछ समय के लिए सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया और लालकृष्ण आडवाणी सहित विभिन्न भाजपा नेताओं को विध्वंस उत्तेजक भड़काऊ भाषण देने के कारण गिरफ़्तार किया गया।[26][27] कई प्रमुख इतिहासकारों के अनुसार विध्वंस संघ परिवार के षडयंत्र का परिणाम था और यह महज एक स्फूर्त घटना नहीं थी।[25]
न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह लिब्रहान द्वारा लिखित २००९ की एक रपट के अनुसार बाबरी मस्जिद विध्वंस में मुख्यतः भाजपा नेताओं सहित ६८ लोग जिम्मेदार पाये गये।[27] इनमें वाजपेयी, आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी भी शामिल हैं। मस्जिद विध्वंस के समय उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की रपट में कठोर आलोचना की गई है।[27] उनपर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ऐसे नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों को अयोध्या में नियुक्त किया जो मस्जिद विध्वंस के समय चुप रहें।[27] भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी और विध्वंस के दिन आडवाणी की तत्कालीन सचिव अंजु गुप्ता आयोग के सामने प्रमुख गवाह के रूप में आयी। उनके अनुसार आडवाणी और जोशी ने उत्तेजक भाषण दिये जिससे भीड़ के व्यवहार पर प्रबल प्रभाव पड़ा।[28]
१९९६ के संसदीय चुनावों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर केन्द्रित रही जिससे लोकसभा में १६१ सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी।[29] वाजपेयी को प्रधानमन्त्री के रूप में शपथ दिलाई गई लेकिन वो लोकसभा में बहुमत पाने में असफल रहे और केवल १३ दिन बाद ही उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा।[29]
राजग सरकार (१९९८-२००४)
१९९६ में कुछ क्षेत्रिय दलों ने मिलकर सरकार गठित की लेकिन यह सामूहीकरण लघुकालिक रहा और अर्धकाल में ही १९९८ में चुनाव करवाने पड़े। भाजपा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) नामक गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में उतरी जिसमें इसके पूर्ववरीत सहायक जैसे समता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और शिव सेना शामिल थे और इसके साथ ऑल इण्डिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) और बीजू जनता दल भी इसमें शामिल थी। इन क्षेत्रिय दलों में शिव सेना को छोड़कर भाजपा की विचारधारा किसी भी दल से नहीं मिलती थी; उदाहरण के लिए अमर्त्य सेन ने इसे "अनौपचारिक" (एड-हॉक) सामूहिकरण कहा था।[30][31] बहरहाल, तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के बाहर से समर्थन के साथ राजग ने बहुमत प्राप्त किया और वाजपेयी पुनः प्रधानमन्त्री बने।[32] हालाँकि, गठबंधन १९९९ में उस समय टूट गया जब अन्ना द्रमुक नेता जयललिता ने समर्थन वापस ले लिया और इसके परिणामस्वरूप पुनः आम चुनाव हुये।
१३ अक्टूबर १९९९ को भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को बिना अन्ना द्रमुक के पूर्ण समर्थन मिला और संसद में ३०३ सीटों के साथ पूर्ण बहुमत प्राप्त किया। भाजपा ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुये १८३ सीटों पर विजय प्राप्त की। वाजपेयी तीसरी बर प्रधानमन्त्री बने और आडवाणी उप-प्रधानमन्त्री तथा गृहमंत्री बने। इस भाजपा सरकार ने अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण किया। यह सरकार वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों तथा सामाजिक कल्याणकारी आर्थिक वृद्धि पर केन्द्रित रही।[34]
२००१ में बंगारू लक्ष्मण भाजपा अध्यक्ष बने जिन्हें ₹1,00,000 (US$1,460) की घूस स्वीकार करते हुये दिखाया गया[35] जिसमें उन्हें रक्षा मंत्रालय से सम्बंधित कुछ खरीददारी समझौतों की तहलका पत्रकार ने चित्रित किया।[36][37] भाजपा ने उन्हें पद छोड़ने को मजबूर किया और उसके बाद उनपर मुकदमा भी चला। अप्रैल २०१२ में उन्हें चार वर्ष जेल की सजा सुनाई गई जिनका १ मार्च २०१४ को निधन हो गया।[38]
२००२ के गुजरात दंगे
२७ फ़रवरी २००२ को हिन्दू तीर्थयात्रियों [कारसेवकों] को ले जा रही एक रेलगाडी को गोधरा कस्बे के बाहर मुस्लिमों द्वारा [[,आग लगा दी गयी। यह रेलगाड़ी अयोध्या से आ रही थी और इस बीभत्स कृत्य में ५९ लोग मारे गये। इस घटना को हिन्दुओं पर हमले के रूप में देखा गया और इसने गुजरात राज्य में भारी मात्रा में मुस्लिम-विरोधी हिंसा को जन्म दिया जो कई सप्ताह तक चली।[39] कुछ अनुमानों के अनुसार इसमें मरने वालों की संख्या २००० तक पहुँच गई जबकि १५०,००० लोग विस्थापित हो गये।[40] बलात्कार, अंगभंग और यातना के घटनायें बड़े पैमाने पर हुई।[40][41] गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य सरकार के उच्च-पदस्थ अधिकारियों पर हिंसा आरम्भ करने और इसे जारी रखने के आरोप लगे क्योंकि कुछ अधिकारियों ने कथित तौर पर दंगाइयों का निर्देशन किया और उन्हें मुस्लिम स्वामित्व वाली संपत्तियों की सूची दी।[42] अप्रैल २००९ में सर्वोच्य न्यायालय ने गुजरात दंगे मामले की जाँच करने और उसमें तेजी लाने के लिए एक विशेष जाँच दल (एस॰आई॰टी॰) घटित किया। सन् २०१२ में मोदी एस॰आई॰टी॰ ने मोदी को दंगों में लिप्त नहीं पाया लेकिन भाजपा विधायक माया कोडनानी दोषी पाया जो मोदी मंत्रिमण्डल में कैबिनेट मंत्री रह चुकी हैं। कोडनानी को इसके लिए २८ वर्ष की जेल की सजा सुनाई गई।[43][44] पॉल ब्रास, मरथा नुस्सबौम और दीपांकर गुप्ता जैसे शोधार्थियों के अनुसार इन घटनाओं में राज्य सरकार की उच्च स्तर की मिलीभगत थी।[45][46][47]
२००४, २००९ के आम चुनावों में हार
वाजपेयी ने २००४ में चुनाव समय से छः माह पहले ही करवाये। राजग का अभियान "इंडिया शाइनिंग" (उदय भारत) के नारे के साथ शुरू हुआ जिसमें राजग सरकार को देश में तेजी से आर्थिक बदलाव का श्रेय दिया गया।[48] हालाँकि, राजग को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा और लोकसभा में कांग्रेस के गठबंधन के २२२ सीटों के सामने केवल १८६ सीटों पर ही जीत मिली। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के मुखिया के रूप में मनमोहन सिंह ने वाजपेयी का स्थान ग्रहण किया। राजग की असफलता का कारण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचने में असफल होना और विभाजनकारी रणनीति को बताया गया।[48][49]
मई २००८ में भाजपा ने कर्नाटक राज्य चुनावों में जीत दर्ज की। यह प्रथम समय था जब पार्टी ने किसी दक्षिण भारतीय राज्य में चुनावी जीत दर्ज की हो।[50] हालाँकि, इसने २०१३ में अगले विधानसभा चुनावों में इसे खो दिया। २००९ के आम चुनावों में इसकी लोकसभा में क्षमता घटते हुये ११६ सीटों तक सीमित रह गई।[51]
२०१४ के आम चुनावों में जीत
२०१४ के आम चुनावों में भाजपा ने २८२ सीटों पर जीत प्राप्त की और इसके नेतृत्व वाले राजग को ५४३ लोकसभा सीटों में से ३३६ सीटों पर जीत प्राप्त हुई।[52] यह १९८४ के बाद पहली बार था कि भारतीय संसद में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिला।[53] भाजपा संसदीय दल के नेता नरेन्द्र मोदी को २६ मई २०१४ को भारत के १५वें प्रधानमन्त्री के रूप में शपथ दिलाई गयी।[54][55]
२०१९ के आम चुनावों में प्रचण्ड जीत
२०१९ के आम चुनावों में भाजपा ने ३०३ सीटों पर प्रचण्द जीत प्राप्त की और इसके नेतृत्व वाले राजग को ५४३ लोकसभा सीटों में से ३५२ सीटों पर जीत प्राप्त हुई।
आम चुनावों में
भारतीय जनाता पार्टी का निर्माण आधिकारिक रूप से १९८० में हुआ और इसके बाद प्रथम आम चुनाव १९८४ में हुये जिसमें पार्टी केवल दो लोकसभा सीटे जीत सकी। इसके बाद १९९६ के चुनावों तक आते-आते पार्टी पहली बार लोकसभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी लेकिन इसके द्वारा बनायी गई सरकार कुछ ही समय तक चली।[29] १९९८ और १९९९ के चुनावों में यह सबसे बड़े दल के रूप में रही और दोनो बार गठबंधन सरकार बनाई।[56] २०१४ के चुनावों में संसद में अकेले पूर्ण बहुमत प्राप्त किया। १९९१ के बाद भाजपा के बाद जब भी भाजपा सरकार में नहीं थी तब प्रमुख विपक्ष की भूमिका निभाई।[57]
लोकसभा | चुनाव वर्ष | विजित सीटें | सीटों में परिवर्तन | मत % | वोट उतार-चढ़ाव | सन्दर्भ |
---|---|---|---|---|---|---|
आठवीं लोक सभा | १९८४ | २ | २ | ७.७४ | – | [58] |
नौंवीं लोक सभा | १९८९ | ८५ | ८३ | ११.३६ | ३.६२ | [59] |
दसवीं लोक सभा | १९९१ | १२० | ३७ | २०.११ | ८.७५ | [60] |
ग्यारहवीं लोक सभा | १९९६ | १६१ | ४१ | २०.२९ | ०.१८ | [61] |
बारहवीं लोक सभा | १९९८ | १८२ | २१ | २५.५९ | ५.३० | [62] |
तेरहवीं लोक सभा | १९९९ | १८२ | 0 | २३.७५ | १.८४ | [63] |
चौदहवीं लोकसभा | २००४ | १३८ | ४५ | २२.१६ | १.६९ | [64] |
पंद्रहवीं लोकसभा | २००९ | ११६ | २२ | १८.८० | ३.३६ | [64] |
सोलहवीं लोक सभा | २०१४ | २८२ | १६६ | ३१.०० | १२.२ | [65] |
सत्रहवीं लोक सभा | २०१९ | ३०३ | २१ | ४१.०० | १० | [66] |
विचारधारा और नीतियां
भाजपा की आधिकारिक विचारधारा एकात्म मानववाद है।[67] इसके अतिरिक्त भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता अटल बिहारी वाजपेयी, और पार्टी के कई अन्य नेताओं ने गांधीवादी समाजवाद को पार्टी के लिए एक अवधारणा के रूप में स्वीकार किया था।[68] भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के अनुसार भगवा मतलब भाजपा नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हम सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के सूत्र पर काम करते हैं।[69]
आर्थिक नीतियाँ
स्थापना के बाद से भाजपा की आर्थिक नीतियाँ बहुत सीमा तक बदलती रहीं है। इस दल के अन्दर विभिन्न प्रकार की आर्थिक विचार देखने को मिलते हैं। १९८० के दशक में, अपने पितृ दल (भारतीय जनसंघ) की तरह इस दल के आर्थिक सोच में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों की आर्थिक सोच का प्रभाव था। भाजपा स्वदेशी तथा देशी उद्योगों को बचाने वाली व्यापार नीति की समर्थक थी। किन्तु भाजपा ने आन्तरिक उदारीकरण का समर्थन किया और राज्य द्वारा समर्थिक औद्योगीकरण का विरोध किया, जिसका कांग्रेस समर्थन करती थी।
सुरक्षा एवं आतंकवाद-विरोधी नीतियाँ
सुरक्षा एवं आतंकवाद के विरोध से सम्बन्धित भाजपा की नीतियाँ कांग्रेस की नीतियों से अधिक आक्रामक और राष्ट्रवादी हैं।[70][71]
विदेश नीति
ऐतिहासिक रूप से भाजपा की विदेश नीति, जनसंघ की ही भांति, अखंड हिन्दू राष्ट्रवाद पर आधारित रही है जिसमें आर्थिक संरक्षणवाद का मिश्रण है।
संगठनात्मक संरचना
भाजपा संगठन ठीक रूप से श्रेणीबद्ध है जिसमें अध्यक्ष पार्टी सर्वाधिकार रखता है।[67] वर्ष २०१२ तक भाजपा संविधान में यह अनिवार्य किया गया कि कोई भी योग्य सदस्य तीन वर्ष के कार्यकाल के लिए राष्ट्रीय अथवा राज्य स्तरीय अध्यक्ष बन सकता है।[67] वर्ष २०१२ में यह संशोधन भी किया गया कि तीन वर्ष के लगातार अधिकतम दो कार्यकाल पूर्ण किये जा सकते हैं।[72] अध्यक्ष के बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी होगी जिसमें परिवर्तनीय मात्रा में कुछ देशभर से वरिष्ठ नेता होते हैं और यह कार्यकारिणी पार्टी की उच्च स्तर के निर्णय लेने की क्षमता रखती है। इसके सदस्यों में से कुछ उपाध्यक्ष, महासचिव, कोषाध्यक्ष और सचिव होते हैं जो सीधे अध्यक्ष के साथ काम करते हैं।[67] इसी के अनुरूप सरंचना अध्यक्ष के नेतृत्व वाली कार्यकारिणी राज्य, क्षेत्रिय, जिला और स्थानीय स्तर पर भी होगी।[67]
भाजपा विशाल ढांचे वाला दल है। इसके समान विचारधारा वाले अन्य संगठनों के साथ सम्बंध रहते हैं जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद। इसका समूहों का ढ़ाँचा भाजपा का पूरक हो सकता है और इसके सामान्य कार्यकर्ता आर॰एस॰एस॰ अथवा इससे जुड़े संगठनों से व्युत्पन्न अथवा शिथिलतः कहा जाये तो संघ परिवार से सम्बंध हो सकते हैं।[67]
भाजपा के अन्य सहयोगियों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) शामिल है जिसमें आरएसएस की छात्रा इकाई, भारतीय किसान संघ, उनकी किसान शाखा, भारतीय मजदूर संघ और आरएसएस से सम्बद्ध मज़दूर संघ भी शामिल हैं। भाजपा के अन्य सहायक संघठन भी हैं जैसे भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा इसका अल्पसंख्यक भाग है।[67]
अटल बिहारी वाजपेई- १९९९-२००४
प्रधानमन्त्रियों की सूची
क्रम | प्रधानमन्त्री | वर्ष | कार्यकाल | चुनाव क्षेत्र |
---|---|---|---|---|
१ | अटल बिहारी वाजपेयी | १९९६, १९९८–०४ | ६ वर्ष | लखनऊ |
२ | नरेन्द्र मोदी | २६ मई २०१४ | पदस्थ | वाराणसी |
विभिन्न राज्यों में उपस्थिति
दिसंबर 2023 तक, 12 राज्यों में भाजपा के मुख्य मंत्री हैं:[73][74]
- अरुणाचल प्रदेश
- असम (असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ)
- उत्तर प्रदेश(अपना दल-एस, राष्ट्रीय लोक दल और सुभासपा के साथ)
- उत्तराखंड
- गोवा (गोवा फॉरवर्ड पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के साथ)
- गुजरात
- छत्तीसगढ़
- झारखंड (ऑल् झारखंड स्टुडेन्ट युनियन् (आजसू) के साथ)
- मध्यप्रदेश
- महाराष्ट्र (शिवसेना ,राष्ट्रीय,कांग्रेस पार्टी,राष्ट्रीय समाज पार्टी) के साथ
- मणिपुर (नागा पीपुल्स फ्रंट, नेशनल पीपल्स पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के साथ)
- हिमाचल प्रदेश
- त्रिपुरा
- राजस्थान
- हरियाणा
चार अन्य राज्यों में, यह अन्य राजनीतिक दलों के साथ सत्ता में भागीदारी करता है इन सभी राज्यों में, बीजेपी सत्तारूढ़ गठबंधन में जूनियर सहयोगी है। राज्य हैं:
- बिहार (जनता दल (यूनाइटेड)(जदयू) ,राष्ट्रीय लोक मोर्चा और लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के साथ)
- नागालैंड (नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के साथ)
- मेघालय (नेशनल पीपल्स पार्टी के साथ)
- मिज़ोरम (मिज़ो नेशनल फ्रंट के साथ)
पूर्व में, बीजेपी निम्नलिखित राज्यों में सत्ता में एकमात्र पार्टी रही है-
यह निम्नलिखित राज्यों में सरकार का एक हिस्सा रहा है जैसा कि एक जूनियर सहयोगी पिछले गठबंधन सरकारों का हिस्सा है:
- ओडिशा
- पुडुचेरी (अखिल भारतीय एन.आर। कांग्रेस के साथ)
- पंजाब
- जम्मू और कश्मीर
निम्नलिखित राज्यों में भाजपा सरकार का हिस्सा कभी नहीं रही है:
- केरल(अखिल भारतीय एन.आर कांग्रेस) के साथ
- तमिलनाडु(पीएमके, एएमएमके, टीएमसी) के साथ
- तेलंगाना (हालांकि, बीजेपी ने तेलंगाना क्षेत्र को आंध्र प्रदेश के रूप में शासन किया था और इसके सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी एवं पवन कल्याण की पार्टी को राज्य के विभाजन के पहले)
- पश्चिम बंगाल
उत्तर-पूर्व में पूर्व-पूर्व लोकतांत्रिक गठबंधन नामक एक क्षेत्रीय राजनीतिक गठबंधन भी है।
पार्टी अध्यक्ष
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष दल के चुने हुए प्रमुख होते है। अध्यक्ष पद पर नियुक्ति दो सालों के लिए हुआ करती थी और लगातार दो सत्रों तक हो सकती थी। इस नियम को बदल कर अब ये तीन साल और लगातार दो सत्रोंतक हो चुकी है। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के नेतृत्व में २०१४ में देश में प्रचंड विजय हासिल की और सरकार बनाने में सफल हुई। और दोबारा २०१९ में अमित शाह के नेतृत्व में सफलता पाई।[75][76]
██ ये व्यक्ति एक से अधिक समय तक अध्यक्ष रह चुके है
क्र | अध्यक्ष | चित्र | जीवनकाल | अध्यक्षपद का काल |
---|---|---|---|---|
१ | अटल बिहारी वाजपेयी | १९२४-२०१८ | १९८०-८६ | |
२ | लालकृष्ण आडवाणी | १९२७- | १९८६-९१ | |
३ | मुरली मनोहर जोशी | १९३४- | १९९१-९३ | |
(२) | लालकृष्ण आडवाणी | १९२७- | १९९३-९८ | |
४ | कुशाभाऊ ठाकरे | १९२२-२००३ | १९९८-२००० | |
५ | बंगारू लक्ष्मण | १९३९-२००४ | २०००-०१ | |
६ | जन कृष्णमूर्ति | १९२८-२००७ | २००१-०२ | |
७ | वेंकैया नायडू | १९४९- | २००२-०४ | |
(२) | लालकृष्ण आडवाणी | १९२७- | २००४-०६ | |
८ | राजनाथ सिंह | १९५१- | २००६-०९ | |
९ | नितिन गडकरी | १९५७- | २००९-१३ | |
(८) | राजनाथ सिंह | १९५१- | २०१३-१४ | |
१० | अमित शाह | १९६४- | २०१४-२०२० | |
११ | जगत प्रकाश नड्डा | १९६०- | २०२०-पदस्थ |
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ एवं स्रोत
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बाहरी कड़ियाँ
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