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कर्नाटक

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कर्नाटक
  • ಕರ್ನಾಟಕ
  • Karnataka
राज्य
कर्नाटक राज्य
Official logo of कर्नाटक
प्रतीक
उपनाम: भारत की IT राजधानी
ध्येय: सत्यमेव जयते
गान: "जय भारत जननिया तनुजते, जय हे कर्नाटक मात"[1]
"(भारत माता की बेटी कर्नाटक आपकी जय हो)
भारत में कर्नाटक का स्थान
भारत में कर्नाटक का स्थान
निर्देशांक (बेंगलुरु): 12°58′N 77°30′E / 12.97°N 77.50°E / 12.97; 77.50
देश भारत
क्षेत्रदक्षिण भारत
गठन1 नवंबर 1956
राजधानी
और सबसे बड़ा शहर
बेंगलुरु
ज़िले31
शासन
 • सभाकर्नाटक सरकार
 • राज्यपालथावरचंद गहलोत
 • मुख्यमंत्रीसिद्दारमैया
 • विधानमण्डलद्विसदनीय
 • संसदीय क्षेत्र
 • उच्च न्यायालयकर्नाटक उच्च न्यायालय
क्षेत्रफल[2]
 • कुल191791 किमी2 (74,051 वर्गमील)
क्षेत्र पद6वां
अधिकतम उच्चता1925 मी (6,316 फीट)
निम्नतम उच्चता (MSL)0 मी (0 फीट)
जनसंख्या (2011)[3]
 • कुल61,130,704
 • पद8वां
 • घनत्व320 किमी2 (830 वर्गमील)
GDP (2020–21)[4]
 • कुल16.65 trillion (US$243.09 अरब)
 • प्रति व्यक्ति2,26,796 (US$3,311.22)
भाषाएं
 • राजभाषा कन्नड[5]
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+05:30)
ISO 3166 कोडIN-KA
वाहन पंजीकरणKA
मानव विकास सूचकांक (2018)वृद्धि 0.682[6] medium · 19वां
साक्षरता (2011)75.36%[7]
लिंगानुपात (2011)973 /1000 [7]
वेबसाइटwww.karnataka.gov.in

कर्नाटक (कन्नड़: ಕರ್ನಾಟಕ, अंग्रेज़ी: Karnataka), जिसे कर्णाटक भी कहते हैं, दक्षिण भारत का एक राज्य है। इस राज्य का गठन 1 नवंबर 1956 को राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अधीन किया गया था। पहले यह मैसूर राज्य कहलाता था। १९७३ में पुनर्नामकरण कर इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया। इसकी सीमाएं पश्चिम में अरब सागर, उत्तर पश्चिम में गोआ, उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिल नाडु एवं दक्षिण में केरल से लगती हैं। इसका कुल क्षेत्रफल ७४,१२२ वर्ग मील (१,९१,९७६ कि॰मी॰²) है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का ५.८३% है।[8] ३१जिलों के साथ यह राज्य छठा सबसे बड़ा राज्य है। राज्य की आधिकारिक और सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा कन्नड़ है। कर्नाटक राज्य का नवीनतम जिला विजयनगर है।[9]

कर्नाटक शब्द के उद्गम के कई व्याख्याओं में से सर्वाधिक स्वीकृत व्याख्या यह है कि कर्नाटक शब्द का उद्गम कन्नड़ शब्द करु, अर्थात् काली या ऊंची और नाडु अर्थात् भूमि या प्रदेश या क्षेत्र से आया है, जिसके संयोजन करुनाडु का पूरा अर्थ हुआ काली भूमि या ऊंचा प्रदेश। काला शब्द यहां के बयलुसीम क्षेत्र की काली मिट्टी से आया है और ऊंचा यानि दक्कन के पठारी भूमि से आया है। ब्रिटिश राज में यहां के लिए कार्नेटिक शब्द का प्रयोग किया जाता था, जो कृष्णा नदी के दक्षिणी ओर की प्रायद्वीपीय भूमि के लिए प्रयुक्त है और मूलतः कर्नाटक शब्द का अपभ्रंश है।[10]

प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास देखें तो कर्नाटक क्षेत्र कई बड़े शक्तिशाली साम्राज्यों का क्षेत्र रहा है। इन साम्राज्यों के दरबारों के विचारक, दार्शनिक और भाट व कवियों के सामाजिक, साहित्यिक व धार्मिक संरक्षण में आज का कर्नाटक उपजा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के दोनों ही रूपों, कर्नाटक संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत को इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है। आधुनिक युग के कन्नड़ लेखकों को सर्वाधिक ज्ञानपीठ सम्मान मिले हैं।[11] राज्य की राजधानी बंगलुरु शहर है, जो भारत में हो रही त्वरित आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी का अग्रणी योगदानकर्त्ता है।

पत्तदकल में मल्लिकार्जुन और काशी विश्वनाथ मंदिर चालुक्य एवं राष्ट्रकूट वंश द्वारा बनवाये गए थे, जो अब यूनेस्को विश्व धरोहर हैं

कर्नाटक का विस्तृत इतिहास है जिसने समय के साथ कई करवटें बदलीं हैं।[12] राज्य का प्रागैतिहास पाषाण युग तक जाता है तथा इसने कई युगों का विकास देखा है। राज्य में मध्य एवं नव पाषाण युगों के साक्ष्य भी पाये गए हैं। हड़प्पा में खोजा गया स्वर्ण कर्नाटक की खानों से निकला था, जिसने इतिहासकारों को ३००० ई.पू के कर्नाटक और सिंधु घाटी सभ्यता के बीच संबंध खोजने पर विवश किया।[13][14] तृतीय शताब्दी ई.पू से पूर्व, अधिकांश कर्नाटक राज्य मौर्य वंश के सम्राट अशोक के अधीन आने से पहले नंद वंश के अधीन रहा था। सातवाहन वंश को शासन की चार शताब्दियां मिलीं जिनमें उन्होंने कर्नाटक के बड़े भूभाग पर शासन किया। सातवाहनों के शासन के पतन के साथ ही स्थानीय शासकों कदंब वंश एवं पश्चिम गंग वंश का उदय हुआ। इसके साथ ही क्षेत्र में स्वतंत्र राजनैतिक शक्तियां अस्तित्त्व में आयीं। कदंब वंश की स्थापना मयूर शर्मा ने ३४५ ई. में की और अपनी राजधानी बनवासी में बनायी;[15][16] एवं पश्चिम गंग वंश की स्थापना कोंगणिवर्मन माधव ने ३५० ई में तालकाड़ में राजधानी के साथ की।[17][18]

होयसाल साम्राज्य स्थापत्य, बेलूर में।

हाल्मिदी शिलालेख एवं बनवसी में मिले एक ५वीं शताब्दी की ताम्र मुद्रा के अनुसार ये राज्य प्रशासन में कन्नड़ भाषा प्रयोग करने वाले प्रथम दृष्टांत बने[19][20] इन राजवंशों के उपरांत शाही कन्नड़ साम्राज्य बादामी चालुक्य वंश,[21][22] मान्यखेत के राष्ट्रकूट,[23][24] और पश्चिमी चालुक्य वंश[25][26] आये जिन्होंने दक्खिन के बड़े भाग पर शासन किया और राजधानियां वर्तमान कर्नाटक में बनायीं। पश्चिमी चालुक्यों ने एक अनोखी चालुक्य स्थापत्य शैली भी विकसित की। इसके साथही उन्होंने कन्नड़ साहित्य का भी विकास किया जो आगे चलकर १२वीं शताब्दी में होयसाल वंश के कला व साहित्य योगदानों का आधार बना।[27][28]

आधुनिक कर्नाटक के भागों पर ९९०-१२१० ई. के बीच चोल वंश ने अधिकार किया।[29] अधिकरण की प्रक्रिया का आरंभ राजराज चोल १ (९८५-१०१४) ने आरंभ किया और ये काम उसके पुत्र राजेन्द्र चोल १ (१०१४-१०४४) के शासन तक चला।[29] आरंभ में राजराज चोल १ ने आधुनिक मैसूर के भाग "गंगापाड़ी, नोलंबपाड़ी एवं तड़िगैपाड़ी' पर अधिकार किया। उसने दोनूर तक चढ़ाई की और बनवसी सहित रायचूर दोआब के बड़े भाग तथा पश्चिमी चालुक्य राजधानी मान्यखेत तक हथिया ली।[29] चालुक्य शासक जयसिंह की राजेन्द्र चोल १ के द्वारा हार उपरांत, तुंगभद्रा नदी को दोनों राज्यों के बीच की सीमा तय किया गया था।[29] राजाधिराज चोल १ (१०४२-१०५६) के शासन में दन्नड़, कुल्पाक, कोप्पम, काम्पिल्य दुर्ग, पुण्डूर, येतिगिरि एवं चालुक्य राजधानी कल्याणी भी छीन ली गईं।[29] १०५३ में, राजेन्द्र चोल २ चालुक्यों को युद्ध में हराकर कोल्लापुरा पहुंचा और कालंतर में अपनी राजधानी गंगाकोंडचोलपुरम वापस पहुंचने से पूर्व वहां एक विजय स्मारक स्तंभ भी बनवाया।[30] १०६६ में पश्चिमी चालुक्य सोमेश्वर की सेना अगले चोल शासक वीरराजेन्द्र से हार गयीं। इसके बाद उसी ने दोबारा पश्चिमी चालुक्य सेना को कुदालसंगम पर मात दी और तुंगभद्रा नदी के तट पर एक विजय स्मारक की स्थापनी की।[30] १०७५ में कुलोत्तुंग चोल १ ने कोलार जिले में नांगिली में विक्रमादित्य ६ को हराकर गंगवाड़ी पर अधिकार किया।[31] चोल साम्राज्य से १११६ में गंगवाड़ी को विष्णुवर्धन के नेतृत्व में होयसालों ने छीन लिया।[29]

हम्पी, विश्व धरोहर स्थल मं एक उग्रनरसिंह की मूर्ति। यह विजयनगर साम्राज्य की पूर्व राजधानी विजयनगर के अवशेषों के निकट स्थित है।

प्रथम सहस्राब्दी के आरंभ में ही होयसाल वंश का क्षेत्र में पुनरोद्भव हुआ। इसी समय होयसाल साहित्य पनपा साथ ही अनुपम कन्नड़ संगीत और होयसाल स्थापत्य शैली के मंदिर आदि बने।[32][33][34][35] होयसाल साम्राज्य ने अपने शासन के विस्तार के तहत आधुनिक आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के छोटे भागों को विलय किया। १४वीं शताब्दी के आरंभ में हरिहर और बुक्का राय ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की एवं वर्तमान बेल्लारी जिले में तुंगभद्रा नदी के तट होसनपट्ट (बाद में विजयनगर) में अपनी राजधानी बसायी। इस साम्राज्य ने अगली दो शताब्दियों में मुस्लिम शासकों के दक्षिण भारत में विस्तार पर रोक लगाये रखी।[36][37]

बादामी गुहा के भीतर

१५६५ में समस्त दक्षिण भारत सहित कर्नाटक ने एक बड़ा राजनैतिक बदलाव देखा, जिसमें विजयनगर साम्राज्य तालिकोट के युद्ध में हार के बाद इस्लामी सल्तनतों के अधीन हो गया।[38] बीदर के बहमनी सुल्तान की मृत्यु उपरांत उदय हुए बीजापुर सल्तनत ने जल्दी ही दक्खिन पर अधिकार कर लिया और १७वीं शताब्दी के अंत में मुगल साम्राज्य से मात होने तक बनाये रखा।[39][40] बहमनी और बीजापुर के शासकों ने उर्दू एवं फारसी साहित्य तथा भारतीय पुनरोद्धार स्थापत्यकला (इण्डो-सैरेसिनिक) को बढ़ावा दिया। इस शैली का प्रधान उदाहरण है गोल गुम्बज[41] पुर्तगाली शासन द्वारा भारी कर वसूली, खाद्य आपूर्ति में कमी एवं महामारियों के कारण १६वीं शताब्दी में कोंकणी हिन्दू मुख्यतः सैल्सेट, गोआ से विस्थापित होकर,[42] कर्नाटक में आये और १७वीं तथा १८वीं शताब्दियों में विशेषतः बारदेज़, गोवा से विस्थापित होकर मंगलौरियाई कैथोलिक ईसाई दक्षिण कन्नड़ आकर बस गये।[43]

जोग प्रपात भारत में सबसे ऊंचा जल प्रपात है। यहां शरावती नदी ऊँचाई से नीचे गिरती है।

कर्नाटक राज्य में तीन प्रधान मंडल हैं: तटीय क्षेत्र करावली, पहाड़ी क्षेत्र मालेनाडु जिसमें पश्चिमी घाट आते हैं, तथा तीसरा बयालुसीमी क्षेत्र जहां दक्खिन पठार का क्षेत्र है। राज्य का अधिकांश क्षेत्र बयालुसीमी में आता है और इसका उत्तरी क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा शुष्क क्षेत्र है।[44] कर्नाटक का सबसे ऊंचा स्थल चिकमंगलूर जिले का मुल्लयनगिरि पर्वत है। यहां की समुद्र सतह से ऊंचाई 1,929 मीटर (6,329 फीट) है। कर्नाटक की महत्त्वपूर्ण नदियों में कावेरी, तुंगभद्रा नदी, कृष्णा नदी, मलयप्रभा नदी और शरावती नदी हैं।

कृषि हेतु योग्यता के अनुसार यहां की मृदा को छः प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है: लाल, लैटेरिटिक, काली, ऍल्युवियो-कोल्युविलय एवं तटीय रेतीली मिट्टी। राज्य में चार प्रमुख ऋतुएं आती हैं। जनवरी और फ़रवरी में शीत ऋतु, उसके बाद मार्च-मई तक ग्रीष्म ऋतु, जिसके बाद जून से सितंबर तक वर्षा ऋतु (मॉनसून) और अंततः अक्टूबर से दिसम्बर पर्यन्त मॉनसूनोत्तर काल। मौसम विज्ञान के आधार पर कर्नाटक तीन क्षेत्रों में बांटा जा सकता है: तटीय, उत्तरी आंतरिक और दक्षिणी आंतरिक क्षेत्र। इनमें से तटीय क्षेत्र में सर्वाधिक वर्षा होती है, जिसका लगभग 3,638.5 मि॰मी॰ (143 इंच) प्रतिवर्ष है, जो राज्य के वार्षिक औसत 1,139 मि॰मी॰ (45 इंच) से कहीं अधिक है। शिमोगा जिला में अगुम्बे भारत में दूसरा सर्वाधिक वार्षिक औसत वर्षा पाने वाला स्थल है।[45] यहां का सर्वाधिक अंकित तापमान ४५.६ ° से. (११४ °फ़ै.) रायचूर में तथा न्यूनतम तापमान 2.8 °से. (37 °फ़ै) बीदर में नापा गया है।

कर्नाटक का लगभग 38,724 कि॰मी2 (14,951 वर्ग मील) (राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का २०%) वनों से आच्छादित है। ये वन संरक्षित, सुरक्षित, खुले, ग्रामीण और निजी वनों में वर्गीकृत किये जा सकते हैं। यहां के वनाच्छादित क्षेत्र भारत के औसत वनीय क्षेत्र २३% से कुछ ही कम हैं, किन्तु राष्ट्रीय वन नीति द्वारा निर्धारित ३३% से कहीं कम हैं।[46]

कर्नाटक के जिले

कर्नाटक राज्य में ३० जिले हैं —बागलकोट, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलूरु शहरी, बेलगावि, बल्लारी, बीदर, बीजापुर (विजयपुर), चामराजनगर, चिकबल्लापुर,[47] चिकमगलूर, चित्रदुर्ग, दक्षिण कन्नड़, दावणगेरे, धारवाड़, गदग, गुलबर्गा, हासन, हावेरी, कोडगु, कोलार, कोप्पल, मंड्या, मैसूर, रायचूर, रामनगर,[47] शिवमोग्गा, तुमकूर, उडुपी, उत्तर कन्नड़ एवं यादगीर। प्रत्येक जिले का प्रशासन एक जिलाधीश या जिलायुक्त के अधीन होता है। ये जिले फिर उप-क्षेत्रों में बंटे हैं, जिनका प्रशासन उपजिलाधीश के अधीन है। उप-जिले ब्लॉक और पंचायतों तथा नगरपालिकाओं द्वारा देखे जाते हैं।

२००१ की जनगणना के आंकड़ों से ज्ञात होता है कि जनसंख्यानुसार कर्नाटक के शहरों की सूची में सर्वोच्च छः नगरों में बेंगलुरु, हुबली-धारवाड़, मैसूर, गुलबर्ग, बेलगाम एवं मंगलौर आते हैं। १० लाख से अधिक जनसंख्या वाले महानगरों में मात्र बंगलुरु ही आता है। बंगलुरु शहरी, बेलगाम एवं गुलबर्ग सर्वाधिक जनसंख्या वाले जिले हैं। प्रत्येक में ३० लाख से अधिक जनसंख्या है। गडग, चामराजनगर एवं कोडगु जिलों की जनसंख्या १० लाख से कम है।[48]


जनसांख्यिकी

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२००१ की भारतीय जनगणना के अनुसार, कर्नाटक की कुल जनसंख्या ५२,८५०,५६२ है, जिसमें से २६,८९८,९१८ (५०.८९%) पुरुष और २५,९५१,६४४ स्त्रियां (४३.११%) हैं। यानि प्रत्येक १००० पुरुष ९६४ स्त्रियां हैं। इसके अनुसार १९९१ की जनसंख्या में १७.२५% की वृद्धि हुई है। राज्य का जनसंख्या घनत्व २७५.६ प्रति वर्ग कि.मी है और ३३.९८% लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। यहां की साक्षरता दर ६६.६% है, जिसमें ७६.१% पुरुष और ५६.९% स्त्रियां साक्षर हैं।[3] यहां की कुल जनसंख्या का ८३% हिन्दू हैं और १३% मुस्लिम, २% ईसाई, ०.७८% जैन, ०.३% बौद्ध और शेष लोग अन्य धर्मावलंबी हैं।[50]

भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार,[51] कर्नाटक की कुल जनसंख्या 61,095,297 थी, जिसमें से 30,966,657 (50.7%) पुरुष और 30,128,640 (49.3%) महिलाएँ थीं, या हर 973 महिलाओं पर 1000 पुरुष थे। यह 2001 की जनसंख्या की तुलना में 15.60% की वृद्धि दर्शाता है। जनसंख्या घनत्व 319 प्रति किमी2 था और 38.67% लोग शहरी क्षेत्रों में रहते थे। साक्षरता दर 75.36% थी जिसमें 82.47% पुरुष और 68.08% महिलाएँ साक्षर थीं।[52]

कर्नाटक की आधिकारिक भाषा कन्नड़ है और स्थानीय भाषा के रूप में ६४.७५% लोगों द्वारा बोली जाती है। १९९१ के अनुसार अन्य भाषायी अल्पसंख्यकों में उर्दु (१०.५४ %), तेलुगु (७.०३ %), तमिल (३.५७ %), मराठी (३.६० %), तुलु (३.०० %), हिन्दी (२.५६ %), कोंकणी (१.४६ %), मलयालम (१.३३ %) और कोडव तक्क भाषी ०.३ % हैं।[53] राज्य की जन्म दर २.२% और मृत्यु दर ०.७२% है। इसके अलावा शिशु मृत्यु (मॉर्टैलिटी) दर ५.५% एवं मातृ मृत्यु दर ०.१९५% है। कुल प्रजनन (फर्टिलिटी) दर २.२ है।[54]

स्वास्थ्य एवं आरोग्य के क्षेत्र (सुपर स्पेशियलिटी हैल्थ केयर) में कर्नाटक की निजी क्षेत्र की कंपनियां विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं से तुलनीय हैं।[55] कर्नाटक में उत्तम जन स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं, जिनके आंकड़े व स्थिति भारत के अन्य अधिकांश राज्यों की तुलना में काफी बेहतर है। इसके बावजूद भी राज्य के कुछ अति पिछड़े इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है।[56] प्रशासनिक उद्देश्य हेतु, कर्नाटक को चार रेवेन्यु मंडलों, ४९ उप-मंडलों, २९ जिलों, १७५ तालुकों और ७४५ होब्लीज़/रेवेन्यु वृत्तों में बांटा गया है।[57] प्रत्येक जिला प्रशासन का अध्यक्ष जिला उपायुक्त होता है, जो भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस) से होता है और उसके अधीन कर्नाटक राज्य सेवाओं के अनेक अधिकारीगण होते हैं। राज्य के न्याय और कानून व्यवस्था का उत्तरदायित्व पुलिस उपायुक्त पर होता है। ये भारतीय पुलिस सेवा का अधिकारी होता है, जिसके अधीन कर्नाटक राज्य पुलिस सेवा के अधिकारीगण कार्यरत होते हैं। भारतीय वन सेवा से वन उपसंरक्षक अधिकारी तैनात होता है, जो राज्य के वन विभाग की अध्यक्षता करता है। जिलों के सर्वांगीण विकास, प्रत्येक जिले के विकास विभाग जैसे लोक सेवा विभाग, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, पशु-पालन, आदि विभाग देखते हैं। राज्य की न्यायपालिका बंगलुरु में स्थित कर्नाटक उच्च न्यायालय (अट्टार कचेरी) और प्रत्येक जिले में जिले और सत्र न्यायालय तथा तालुक स्तर के निचले न्यायालय के द्वारा चलती है।

सरकार एवं प्रशासन

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बंगलुरु स्थित कर्नाटक सरकार का विधान भवन: विधान सौध

कर्नाटक राज्य में भारत के अन्य राज्यों कि भांति ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा चुनी गयी एक द्विसदनीय संसदीय सरकार है: विधान सभा एवं विधान परिषद। विधान सभा में 225 सदस्य हैं जो पांच वर्ष की अवधि हेतु चुने जाते हैं।[58] विधान परिषद् एक ७५ सदस्यीय स्थायी संस्था है और इसके एक-तिहाई सदस्य (२५) प्रत्येक २ वर्ष में सेवा से निवृत्त होते जाते हैं।[58]

कर्नाटक सरकार की अध्यक्षता विधान सभा चुनावों में जीतकर शासन में आयी पार्टी के सदस्य द्वारा चुने गये मुख्य मंत्री करते हैं। मुख्य मंत्री अपने मंत्रिमंडल सहित तय किये गए विधायी एजेंडा का पालन अपनी अधिकांश कार्यकारी शक्तियों के उपयोग से करते हैं।[59] फिर भी राज्य का संवैधानिक एवं औपचारिक अध्यक्ष राज्यपाल ही कहलाता है। राज्यपाल को ५ वर्ष की अवधि हेतु केन्द्र सरकार के परामर्श से भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।[60] कर्नाटक राज्य की जनता द्वारा आम चुनावों के माध्यम से २८ सदस्य लोक सभा हेतु भी चुने जाते हैं।[61][62] विधान परिषद् के सदस्य भारत के संसद के उच्च सदन, राज्य सभा हेतु १२ सदस्य चुन कर भेजते हैं।

प्रशासनिक सुविधा हेतु कर्नाटक राज्य को चार राजस्व विभागों, ४९ उप-मंडलों, २९ जिलों, १७५ तालुक तथा ७४५ राजस्व वृत्तों में बांटा गया है।[57] प्रत्येक जिले के प्रशासन का अध्यक्ष वहां का उपायुक्त (डिप्टी कमिश्नर) होता है। उपायुक्त एक भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी होता है तथा उसकी सहायता हेतु राज्य सरकार के अनेक उच्चाधिकारी तत्पर रहते हैं। भारतीय पुलिस सेवा से एक अधिकारी राज्य में उपायुक्त पद पर आसीन रहता है। उसके अधीन भी राज्य पुलिस सेवा के अनेक उच्चाधिकारी तत्पर रहते हैं। पुलिस उपायुक्त जिले में न्याय और प्रशासन संबंधी देखभाल के लिए उत्तरदायी होता है। भारतीय वन सेवा से एक अधिकारी वन उपसंक्षक अधिकारी (डिप्टी कन्ज़र्वेटर ऑफ फ़ॉरेस्ट्स) के पद पर तैनात होता है। ये जिले में वन और पादप संबंधी मामलों हेतु उत्तरदायी रहता है। प्रत्येक विभाग के विकास अनुभाग के जिला अधिकारी राज्य में विभिन्न प्रकार की प्रगति देखते हैं, जैसे राज्य लोक सेवा विभाग, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, पशुपालन आदि। ] बीच में बना है। इसके ऊपर घेरे हुए चार सिंह चारों दिशाओं में देख रहे हैं। इसे सारनाथ में अशोक स्तंभ से लिया गया है। इस चिह्न में दो शरभ हैं, जिनके हाथी के सिर और सिंह के धड़ हैं।]] राज्य की न्यायपालिका में सर्वोच्च पीठ कर्नाटक उच्च न्यायालय है, जिसे स्थानीय लोग "अट्टार कचेरी" बुलाते हैं। ये राजधानी बंगलुरु में स्थित है। इसके अधीन जिला और सत्र न्यायालय प्रत्येक जिले में तथा निम्न स्तरीय न्यायालय ताल्लुकों में कार्यरत हैं।

कर्नाटक राज के आधिकारिक चिह्न में गंद बेरुंड बीच में बना है। इसके ऊपर घेरे हुए चार सिंह चारों दिशाओं में देख रहे हैं। इसे सारनाथ में अशोक स्तंभ से लिया गया है। इस चिह्न में दो शरभ हैं, जिनके हाथी के सिर और सिंह के धड़ हैं। कर्नाटक की राजनीति में मुख्यतः तीन राजनैतिक पार्टियों: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और जनता दल का ही वर्चस्व रहता है।[63] कर्नाटक के राजनीतिज्ञों ने भारत की संघीय सरकार में प्रधानमंत्री तथा उपराष्ट्रपति जैसे उच्च पदों की भी शोभा बढ़ायी है। वर्तमान संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए सरकार में भी तीन कैबिनेट स्तरीय मंत्री कर्नाटक से हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान क़ानून एवं न्याय मंत्रालयवीरप्पा मोइली हैं। राज्य के कासरगोड[64] और शोलापुर[65] जिलों पर तथा महाराष्ट्र के बेलगाम पर दावे के विवाद राज्यों के पुनर्संगठन काल से ही चले आ रहे हैं।[66]

अर्थव्यवस्था

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कर्नाटक राज्य का वर्ष २००७-०८ का सकल राज्य घरेलु उत्पाद लगभग २१५.२८२ हजार करोड़ ($ ५१.२५ बिलियन) रहा।[67] २००७-०८ में इसके सकल घरेलु उत्पाद में ७% की वृद्धी हुई थी।[68] भारत के राष्ट्रीय सकल घरेलु उत्पाद में वर्ष २००४-०५ में इस राज्य का योगदान ५.२% रहा था।[69] कर्नाटक पिछले कुछ दशकों में जीडीपी एवं प्रति व्यक्ति जीडीपी के पदों में तीव्रतम विकासशील राज्यों में रहा है। यह ५६.२% जीडीपी और ४३.९% प्रति व्यक्ति जीडीपी के साथ भारतीय राज्यों में छठे स्थान पर आता है।[70] सितंबर, २००६ तक इसे वित्तीय वर्ष २००६-०७ के लिए ७८.०९७ बिलियन ($ १.७२५५ बिलियन) का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ था, जिससे राज्य भारत के अन्य राज्यों में तीसरे स्थान पर था।[71] वर्ष २००४ के अंत तक, राज्य में अनुद्योग दर (बेरोजगार दर) ४.९४% थी, जो राष्ट्रीय अनुद्योग दर ५.९९% से कम थी।[72] वित्तीय वर्ष २००६-०७ में राज्य की मुद्रा स्फीति दर ४.४% थी, जो राष्ट्रीय दर ४.७% से थोड़ी कम थी।[73] वर्ष २००४-०५ में राज्य का अनुमानित गरीबी अनुपात १७% रहा, जो राष्ट्रीय अनुपात २७.५% से कहीं नीचे है।[74]

कर्नाटक की लगभग ५६% जनसंख्या कृषि और संबंधित गतिविधियों में संलग्न है।[75] राज्य की कुल भूमि का ६४.६%, यानि १.२३१ करोड़ हेक्टेयर भूमि कृषि कार्यों में संलग्न है।[76] यहाँ के कुल रोपित क्षेत्र का २६.५% ही सिंचित क्षेत्र है। इसलिए यहाँ की अधिकांश खेती दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर है।[76] यहाँ भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग स्थापित किए गए हैं, जैसे हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, नेशनल एरोस्पेस लैबोरेटरीज़, भारत हैवी एलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज़, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड एवं हिन्दुस्तान मशीन टूल्स आदि जो बंगलुरु में ही स्थित हैं। यहाँ भारत के कई प्रमुख विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र भी हैं, जैसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, केन्द्रीय विद्युत अनुसंधान संस्थान, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड एवं केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थानमैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकैमिकल्स लिमिटेड, मंगलोर में स्थित एक तेल शोधन केन्द्र है।

१९८० के दशक से कर्नाटक (विशेषकर बंगलुरु) सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेष उभरा है। वर्ष २००७ के आंकड़ों के अनुसार कर्नाटक से लगभग २००० आई.टी फर्म संचालित हो रही थीं। इनमें से कई के मुख्यालय भी राज्य में ही स्थित हैं, जिनमें दो सबसे बड़ी आई.टी कंपनियां इन्फोसिस और विप्रो हैं।[77] इन संस्थाओं से निर्यात रु. ५०,००० करोड़ (१२.५ बिलियन) से भी अधिक पहुंचा है, जो भारत के कुल सूचना प्रौद्योगिकी निर्यात का ३८% है।[77] देवनहल्ली के बाहरी ओर का नंदी हिल क्षेत्र में ५० वर्ग कि.मी भाग, आने वाले २२ बिलियन के ब्याल आईटी निवेश क्षेत्र की स्थली है। ये कर्नाटक की मूल संरचना इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी परियोजना है।[78] इन सब कारणों के चलते ही बंगलौर को भारत की सिलिकॉन घाटी कहा जाने लगा है।[79]

भारत में कर्नाटक जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी अग्रणी है। यह भारत के सबसे बड़े जैव आधारित उद्योग समूह का केन्द्र भी है। यहां देश की ३२० जैवप्रौद्योगिकी संस्थाओं व कंपनियों में से १५८ स्थित हैं।[80] इसी राज्य से भारत के कुल पुष्प-उद्योग का ७५% योगदान है। पुष्प उद्योग तेजी से उभरता और फैलता उद्योग है, जिसमें विश्व भर में सजावटी पौधे और फूलों की आपूर्ति की जाती है।[81]

भारत के अग्रणी बैंकों में से सात बैंकों, केनरा बैंक, सिंडिकेट बैंक, कार्पोरेशन बैंक, विजया बैंक, कर्नाटक बैंक, वैश्य बैंक और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर का उद्गम इसी राज्य से हुआ था।[82] राज्य के तटीय जिलों उडुपी और दक्षिण कन्नड़ में प्रति ५०० व्यक्ति एक बैंक शाखा है। ये भारत का सर्वश्रेष्ठ बैंक वितरण है।[83] मार्च २००२ के अनुसार, कर्नाटक राज्य में विभिन्न बैंकों की ४७६७ शाखाएं हैं, जिनमें से प्रत्येक शाखा औसत ११,००० व्यक्तियों की सेवा करती है। ये आंकड़े राष्ट्रीय औसत १६,००० से काफी कम है।[84]

भारत के ३५०० करोड़ के रेशम उद्योग से अधिकांश भाग कर्नाटक राज्य में आधारित है, विशेषकर उत्तरी बंगलौर क्षेत्रों जैसे मुद्दनहल्ली, कनिवेनारायणपुरा एवं दोड्डबल्लपुर, जहां शहर का ७० करोड़ रेशम उद्योग का अंश स्थित है। यहां की बंगलौर सिल्क और मैसूर सिल्क विश्वप्रसिद्ध हैं।[85][86]

यातायात

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किंगफिशर एयरलाइंस बंगलुरु में आधारित विमानसेवा है।

कर्नाटक में वायु यातायात देश के अन्य भागों की तरह ही बढ़ता हुआ किंतु कहीं उन्नत है। कर्नाटक राज्य में बंगलुरु, मंगलौर, हुबली, बेलगाम, हम्पी एवं बेल्लारी विमानक्षेत्र में विमानक्षेत्र हैं, जिनमें बंगलुरु एवं मंगलौर अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र हैं। मैसूर, गुलबर्ग, बीजापुर, हस्सन एवं शिमोगा में भी २००७ से प्रचालन कुछ हद तक आरंभ हुआ है।[87] यहां चालू प्रधान वायुसेवाओं में किंगफिशर एयरलाइंस एवं एयर डेक्कन हैं, जो बंगलुरु में आधारित हैं।

कर्नाटक का रेल यातायात जाल लगभग 3,089 किलोमीटर (1,919 मील) लंबा है। २००३ में हुबली में मुख्यालय सहित दक्षिण पश्चिमी रेलवे के सृजन से पूर्व राज्य दक्षिणी एवं पश्चिमी रेलवे मंडलों में आता था। अब राज्य के कई भाग दक्षिण पश्चिमी मंडल में आते हैं, व शेष भाग दक्षिण रेलवे मंडल में आते हैं। तटीय कर्नाटक के भाग कोंकण रेलवे नेटवर्क के अंतर्गत आते हैं, जिसे भारत में इस शताब्दी की सबसे बड़ी रेलवे परियोजना के रूप में देखा गया है।[88] बंगलुरु अन्तर्राज्यीय शहरों से रेल यातायात द्वारा भली-भांति जुड़ा हुआ है। राज्य के अन्य शहर अपेक्षाकृत कम जुड़े हैं।[89][90]

कर्नाटक में ११ जहाजपत्तन हैं, जिनमें मंगलौर पोर्ट सबसे नया है, जो अन्य दस की अपेक्षा सबसे बड़ा और आधुनिक है।[91] मंगलौर का नया पत्तन भारत के नौंवे प्रधान पत्तन के रूप में ४ मई, १९७४ को राष्ट्र को सौंपा गया था। इस पत्तन में वित्तीय वर्ष २००६-०७ में ३ करोड़ २०.४ लाख टन का निर्यात एवं १४१.२ लाख टन का आयात व्यापार हुआ था। इस वित्तीय वर्ष में यहां कुल १०१५ जलपोतों की आवाजाही हुई, जिसमें १८ क्यूज़ पोत थे। राज्य में अन्तर्राज्यीय जलमार्ग उल्लेखनीय स्तर के विकसित नहीं हैं।[92]

कर्नाटक के राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों की कुल लंबाइयां क्रमशः 3,973 किलोमीटर (2,469 मील) एवं 9,829 किलोमीटर (6,107 मील) हैं। कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम (के.एस.आर.टी.सी) राज्य का सरकारी लोक यातायात एवं परिवहन निगम है, जिसके द्वारा प्रतिदिन लगभग २२ लाख यात्रियों को परिवहन सुलभ होता है। निगम में २५,००० कर्मचारी सेवारत हैं।[93] १९९० के दशक के अंतिम दौर में निगम को तीन निगमों में विभाजित किया गया था, बंगलौर मेट्रोपॉलिटन ट्रांस्पोर्ट कार्पोरेशन, नॉर्थ-वेस्ट कर्नाटक ट्रांस्पोर्ट कार्पोरेशन एवं नॉर्थ-ईस्ट कर्नाटक ट्रांस्पोर्ट कार्पोरेशन। इनके मुख्यालय क्रमशः बंगलौर, हुबली एवं गुलबर्ग में स्थित हैं।[93]

संस्कृति

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एक कलाकार, यक्षगान के रूप में केडिग के संग।

कर्नाटक राज्य में विभिन्न बहुभाषायी और धार्मिक जाति-प्रजातियां बसी हुई हैं। इनके लंबे इतिहास ने राज्य की सांस्कृतिक धरोहर में अमूल्य योगदान दिया है। कन्नड़िगों के अलावा, यहां तुलुव, कोडव और कोंकणी जातियां, भी बसी हुई हैं। यहां अनेक अल्पसंख्यक जैसे तिब्बती बौद्ध तथा अनेक जनजातियाँ जैसे सोलिग, येरवा, टोडा और सिद्धि समुदाय हैं जो राज्य में भिन्न रंग घोलते हैं। कर्नाटक की परंपरागत लोक कलाओं में संगीत, नृत्य, नाटक, घुमक्कड़ कथावाचक आदि आते हैं। मालनाड और तटीय क्षेत्र के यक्षगण, शास्त्रीय नृत्य-नाटिकाएं राज्य की प्रधान रंगमंच शैलियों में से एक हैं। यहां की रंगमंच परंपरा अनेक सक्रिय संगठनों जैसे निनासम, रंगशंकर, रंगायन एवं प्रभात कलाविदरु के प्रयासों से जीवंत है। इन संगठनों की आधारशिला यहां गुब्बी वीरन्ना, टी फी कैलाशम, बी वी करंथ, के वी सुबन्ना, प्रसन्ना और कई अन्य द्वारा रखी गयी थी।[94] वीरागेस, कमसेल, कोलाट और डोलुकुनिता यहां की प्रचलित नृत्य शैलियां हैं। मैसूर शैली के भरतनाट्य यहां जत्ती तयम्मा जैसे पारंगतों के प्रयासों से आज शिखर पर पहुंचा है और इस कारण ही कर्नाटक, विशेषकर बंगलौर भरतनाट्य के लिए प्रधान केन्द्रों में गिना जाता है।[95]

कर्नाटक का विश्वस्तरीय शास्त्रीय संगीत में विशिष्ट स्थान है, जहां संगीत की[96] कर्नाटक (कार्नेटिक) और हिन्दुस्तानी शैलियां स्थान पाती हैं। राज्य में दोनों ही शैलियों के पारंगत कलाकार हुए हैं। वैसे कर्नाटक संगीत में कर्नाटक नाम कर्नाटक राज्य विशेष का ही नहीं, बल्कि दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत को दिया गया है।१६वीं शताब्दी के हरिदास आंदोलन कर्नाटक संगीत के विकास में अभिन्न योगदान दिया है। सम्मानित हरिदासों में से एक, पुरंदर दास को कर्नाटक संगीत पितामह की उपाधि दी गयी है।[97] कर्नाटक संगीत के कई प्रसिद्ध कलाकार जैसे गंगूबाई हंगल, मल्लिकार्जुन मंसूर, भीमसेन जोशी, बसवराज राजगुरु, सवाई गंधर्व और कई अन्य कर्नाटक राज्य से हैं और इनमें से कुछ को कालिदास सम्मान, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी भारत सरकार ने सम्मानित किया हुआ है।

धारवाड़ पेड़ा

कर्नाटक संगीत पर आधारित एक अन्य शास्त्रीय संगीत शैली है, जिसका प्रचलन कर्नाटक राज्य में है। कन्नड़ भगवती शैली आधुनिक कविगणों के भावात्मक रस से प्रेरित प्रसिद्ध संगीत शैली है। मैसूर चित्रकला शैली ने अनेक श्रेष्ठ चित्रकार दिये हैं, जिनमें से सुंदरैया, तंजावुर कोंडव्य, बी.वेंकटप्पा और केशवैय्या हैं। राजा रवि वर्मा के बनाये धार्मिक चित्र पूरे भारत और विश्व में आज भी पूजा अर्चना हेतु प्रयोग होते हैं।[98] मैसूर चित्रकला की शिक्षा हेतु चित्रकला परिषत नामक संगठन यहां विशेष रूप से कार्यरत है।

कर्नाटक में महिलाओं की परंपरागत भूषा साड़ी है। कोडगु की महिलाएं एक विशेष प्रकार से साड़ी पहनती हैं, जो शेष कर्नाटक से कुछ भिन्न है।[99] राज्य के पुरुषों का परंपरागत पहनावा धोती है, जिसे यहां पाँचे कहते हैं। वैसे शहरी क्षेत्रों में लोग प्रायः कमीज-पतलून तथा सलवार-कमीज पहना करते हैं। राज्य के दक्षिणी क्षेत्र में विशेष शैली की पगड़ी पहनी जाती है, जिसे मैसूरी पेटा कहते हैं और उत्तरी क्षेत्रों में राजस्थानी शैली जैसी पगड़ी पहनी जाती है और पगड़ी या पटगा कहलाती है।

चावल (कन्नड़: ಅಕ್ಕಿ) और रागी राज्य के प्रधान खाद्य में आते हैं और जोलड रोट्टी, सोरघम उत्तरी कर्नाटक के प्रधान खाद्य हैं। इनके अलावा तटीय क्षेत्रों एवं कोडगु में अपनी विशिष्ट खाद्य शैली होती है। बिसे बेले भात, जोलड रोट्टी, रागी बड़ा, उपमा, मसाला दोसा और मद्दूर वड़ा कर्नाटक के कुछ प्रसिद्ध खाद्य पदार्थ हैं। मिष्ठान्न में मैसूर पाक, बेलगावी कुंड, गोकक करदंतु और धारवाड़ पेड़ा मशहूर हैं।

श्रवणबेलगोला में गोमतेश्वर (९८२-९८३) की एकाश्म-प्रतिमा, आज जैन धर्मावलंबियों के सर्वप्रिय तीर्थों में से एक है।

आदि शंकराचार्य ने शृंगेरी को भारत पर्यन्त चार पीठों में से दक्षिण पीठ हेतु चुना था। विशिष्ट अद्वैत के अग्रणी व्याख्याता रामानुजाचार्य ने मेलकोट में कई वर्ष व्यतीत किये थे। वे कर्नाटक में १०९८ में आये थे और यहां ११२२ तक वास किया। इन्होंने अपना प्रथम वास तोंडानूर में किया और फिर मेलकोट पहुंचे, जहां इन्होंने चेल्लुवनारायण मंदिर और एक सुव्यवस्थित मठ की स्थापना की। इन्हें होयसाल वंश के राजा विष्णुवर्धन का संरक्षण मिला था।[100] १२वीं शताब्दी में जातिवाद और अन्य सामाजिक कुप्रथाओं के विरोध स्वरूप उत्तरी कर्नाटक में वीरशैवधर्म का उदय हुआ। इन आन्दोलन में अग्रणी व्यक्तित्वों में बसव, अक्का महादेवी और अलाम प्रभु थे, जिन्होंने अनुभव मंडप की स्थापना की जहां शक्ति विशिष्टाद्वैत का उदय हुआ। यही आगे चलकर लिंगायत मत का आधार बना जिसके आज कई लाख अनुयायी हैं।[101] कर्नाटक के सांस्कृतिक और धार्मिक ढांचे में जैन साहित्य और दर्शन का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।

इस्लाम का आरंभिक उदय भारत के पश्चिमी छोर पर १०वीं शताब्दी के लगभग हुआ था। इस धर्म को कर्नाटक में बहमनी साम्राज्य और बीजापुर सल्तनत का संरक्षण मिला।[102] कर्नाटक में ईसाई धर्म १६वीं शताब्दी में पुर्तगालियों और १५४५ में सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर के आगमन के साथ फैला।[103] राज्य के गुलबर्ग और बनवासी आदि स्थानों में प्रथम सहस्राब्दी में बौद्ध धर्म की जड़े पनपीं। गुलबर्ग जिले में १९८६ में हुई अकस्मात् खोज में मिले मौर्य काल के अवशेष और अभिलेखों से ज्ञात हुआ कि कृष्णा नदी की तराई क्षेत्र में बौद्ध धर्म के महायन और हिनायन मतों का खूब प्रचार हुआ था।

मैसूर राज्य में नाड हब्बा (राज्योत्सव) के रूप में मनाया जाता है। यह मैसूर के प्रधान त्यौहारों में से एक है।[104] उगादि (कन्नड़ नव वर्ष), मकर संक्रांति, गणेश चतुर्थी, नाग पंचमी, बसव जयंती, दीपावली आदि कर्नाटक के प्रमुख त्यौहारों में से हैं।

कन्नड़ भाषा में प्राचीनतम अभिलेख ४५० ई. के हल्मिडी शिलालेखों में मिलते हैं।

राज्य की आधिकारिक भाषा कन्नड़ है, जो स्थानीय निवासियों में से ६५% लोगों द्वारा बोली जाती है।[105][106] कन्नड़ भाषा ने कर्नाटक राज्य की स्थापना में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है, जब १९५६ में राज्यों के सृजन हेतु भाषायी सांख्यिकी मुख्य मानदंड रहा था। राज्य की अन्य भाषाओं में कोंकणी एवं कोडव टक हैं, जिनका राज्य में लंबा इतिहास रहा है। यहां की मुस्लिम जनसंख्या द्वारा उर्दु भी बोली जाती है। अन्य भाषाओं से अपेक्षाकृत कम बोली जाने वाली भाषाओं में बेयरे भाषा व कुछ अन्य बोलियां जैसे संकेती भाषा आती हैं। कन्नड़ भाषा का प्राचीन एवं प्रचुर साहित्य है, जिसके विषयों में काफी भिन्नता है और जैन धर्म, वचन, हरिदास साहित्य एवं आधुनिक कन्नड़ साहित्य है। अशोक के समय की राजाज्ञाओं व अभिलेखों से ज्ञात होता है कि कन्नड़ लिपि एवं साहित्य पर बौद्ध साहित्य का भी प्रभाव रहा है। हल्मिडी शिलालेख ४५० ई. में मिले कन्नड़ भाषा के प्राचीनतम उपलब्ध अभिलेख हैं, जिनमें अच्छी लंबाई का लेखन मिलता है। प्राचीनतम उपलब्ध साहित्य में ८५० ई. के कविराजमार्ग के कार्य मिलते हैं। इस साहित्य से ये भी सिद्ध होता है कि कन्नड़ साहित्य में चट्टान, बेद्दंड एवं मेलवदु छंदों का प्रयोग आरंभिक शताब्दियों से होता आया है।[107]

राष्ट्रकवि कुवेंपु, २०वीं शताब्दी के कन्नड़ साहित्य के प्रतिष्ठित कवि

कुवेंपु, प्रसिद्ध कन्नड़ कवि एवं लेखक थे, जिन्होंने जय भारत जननीय तनुजते लिखा था, जिसे अब राज्य का गीत (एन्थम) घोषित किया गया है।[1] इन्हें प्रथम कर्नाटक रत्न सम्मान दिया गया था, जो कर्नाटक सरकार द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। अन्य समकालीन कन्नड़ साहित्य भी भारतीय साहित्य के प्रांगण में अपना प्रतिष्ठित स्थान बनाये हुए है। सात कन्नड़ लेखकों को भारत का सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल चुका है, जो किसी भी भारतीय भाषा के लिए सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान होता है।[108] तुलु भाषा मुख्यतः राज्य के तटीय जिलों उडुपी और दक्षिण कन्नड़ में बोली जाती है। तुलु महाभरतो, अरुणब्ज द्वारा इस भाषा में लिखा गया पुरातनतम उपलब्ध पाठ है।[109] तुलु लिपि के क्रमिक पतन के कारण तुलु भाषा अब कन्नड़ लिपि में ही लिखी जाती है, किन्तु कुछ शताब्दी पूर्व तक इस लिपि का प्रयोग होता रहा था। कोडव जाति के लोग, जो मुख्यतः कोडगु जिले के निवासी हैं, कोडव टक्क बोलते हैं। इस भाषा की दो क्षेत्रीय बोलियां मिलती हैं: उत्तरी मेन्डले टक्क और दक्षिणी किग्गाति टक।[110] कोंकणी मुख्यतः उत्तर कन्नड़ जिले में और उडुपी एवं दक्षिण कन्नड़ जिलों के कुछ समीपस्थ भागों में बोली जाती है। कोडव टक्क और कोंकणी, दोनों में ही कन्नड़ लिपि का प्रयोग किया जाता है। कई विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी है और अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा प्रौद्योगिकी-संबंधित कंपनियों तथा बीपीओ में अंग्रेज़ी का प्रयोग ही होता है।

राज्य की सभी भाषाओं को सरकारी एवं अर्ध-सरकारी संस्थाओं का संरक्षण प्राप्त है। कन्नड़ साहित्य परिषत एवं कन्नड़ साहित्य अकादमी कन्नड़ भाषा के उत्थान हेतु एवं कन्नड़ कोंकणी साहित्य अकादमी कोंकणी साहित्य के लिए कार्यरत है।[111] तुलु साहित्य अकादमी एवं कोडव साहित्य अकादमी अपनी अपनी भाषाओं के विकास में कार्यशील हैं।

भारतीय विज्ञान संस्थान, भारत का एक प्रतिष्ठित विज्ञान संस्थान, बंगलुरु में स्थित है

२००१ की जनसंख्या अनुसार, कर्नाटक की साक्षरता दर ६७.०४% है, जिसमें ७६.२९% पुरुष तथा ५७.४५% स्त्रियाँ हैं।[112] राज्य में भारत के कुछ प्रतिष्ठित शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान भी स्थित हैं, जैसे भारतीय विज्ञान संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कर्नाटक और भारतीय राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय

मार्च २००६ के अनुसार, कर्नाटक में ५४,५२९ प्राथमिक विद्यालय हैं, जिनमें २,५२,८७५ शिक्षक तथा ८४.९५ लाख विद्यार्थी हैं।[113] इसके अलावा ९४९८ माध्यमिक विद्यालय जिनमें ९२,२८७ शिक्षक तथा १३.८४ लाख विद्यार्थी हैं।[113] राज्य में तीन प्रकार के विद्यालय हैं, सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त निजी (सरकार द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त) एवं पूर्णतया निजी (कोई सरकारी सहायता नहीं)। अधिकांश विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम कन्नड़ एवं अंग्रेज़ी है। विद्यालयों में पढ़ाया जाने वाला पाठ्यक्रम या तो सीबीएसई, आई.सी.एस.ई या कर्नाटक सरकार के शिक्षा विभाग के अधीनस्थ राज्य बोर्ड पाठ्यक्रम (एसएसएलसी) से निर्देशित होता है। कुछ विद्यालय ओपन स्कूल पाठ्यक्रम भी चलाते हैं। राज्य में बीजापुर में एक सैनिक स्कूल भी है।

विद्यालयों में अधिकतम उपस्थिति को बढ़ावा देने हेतु, कर्नाटक सरकार ने सरकारी एवं सहायता प्राप्त विद्यालयों में विद्यार्थियों हेतु निःशुल्क अपराह्न-भोजन योजना आरंभ की है।[114] राज्य बोर्ड परीक्षाएं माध्यमिक शिक्षा अवधि के अंत में आयोजित की जाती हैं, जिसमें उत्तीर्ण होने वाले छात्रों को द्विवर्षीय विश्वविद्यालय-पूर्व कोर्स में प्रवेश मिलता है। इसके बाद विद्यार्थी स्नातक पाठ्यक्रम के लिए अर्हक होते हैं।

राज्य में छः मुख्य विश्वविद्यालय हैं: बंगलुरु विश्वविद्यालय,गुलबर्ग विश्वविद्यालय, कर्नाटक विश्वविद्यालय, कुवेंपु विश्वविद्यालय, मंगलौर विश्वविद्यालय तथा मैसूर विश्वविद्यालय। इनके अलावा एक मानिव विश्वविद्यालय क्राइस्ट विश्वविद्यालय भी है। इन विश्वविद्यालयों से मान्यता प्राप्त ४८१ स्नातक महाविद्यालय हैं।[115] १९९८ में राज्य भर के अभियांत्रिकी महाविद्यालयों को नवगठित बेलगाम स्थित विश्वेश्वरैया प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अंतर्गत्त लाया गया, जबकि चिकित्सा महाविद्यालयों को राजीव गांधी स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के अधिकारक्षेत्र में लाया गया था। इनमें से कुछ अच्छे महाविद्यालयों को मानित विश्वविद्यालय का दर्जा भी प्रदान किया गया था। राज्य में १२३ अभियांत्रिकी, ३५ चिकित्सा ४० दंतचिकित्सा महाविद्यालय हैं।[116] राज्य में वैदिक एवं संस्कृत शिक्षा हेतु उडुपी, शृंगेरी, गोकर्ण तथा मेलकोट प्रसिद्ध स्थान हैं। केन्द्र सरकार की ११वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत्त मुदेनहल्ली में एक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना को स्वीकृति मिल चुकी है। ये राज्य का प्रथम आई.आई.टी संस्थान होगा।[117] इसके अतिरिक्त मेदेनहल्ली-कानिवेनारायणपुरा में विश्वेश्वरैया उन्नत प्रौद्योगिकी संस्थान का ६०० करोड़ रुपये की लागत से निर्माण प्रगति पर है।[118]

राज्य में समाचार पत्रों का इतिहास १८४३ से आरंभ होता है, जब बेसल मिशन के एक मिश्नरी, हर्मैन मोग्लिंग ने प्रथम कन्नड़ समाचार पत्र मंगलुरु समाचार का प्रकाशन आरंभ किया था। प्रथम कन्नड़ सामयिक, मैसुरु वृत्तांत प्रबोधिनी मैसूर में भाष्यम भाष्याचार्य ने निकाला था। भारतीय स्वतंत्रता उपरांत १९४८ में के। एन.गुरुस्वामी ने द प्रिंटर्स (मैसूर) प्रा.लि. की स्थापना की और वहीं से दो समाचार-पत्र डेक्कन हेराल्ड और प्रजावनी का प्रकाशन शुरू किया। आधुनिक युग के पत्रों में द टाइम्स ऑफ इण्डिया और विजय कर्नाटक क्रमशः सर्वाधिक प्रसारित अंग्रेज़ी और कन्नड़ दैनिक हैं।[119][120] दोनों ही भाषाओं में बड़ी संख्या में साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्रिकाओं का प्रकाशन भी प्रगति पर है। राज्य से निकलने वाले कुछ प्रसिद्ध दैनिकों में उदयवाणि, कन्नड़प्रभा, संयुक्त कर्नाटक, वार्ता भारती, संजीवनी, होस दिगंत, एईसंजे और करावली आले आते हैं।

दूरदर्शन भारत सरकार द्वारा चलाया गया आधिकारिक सरकारी प्रसारणकर्त्ता है और इसके द्वारा प्रसारित कन्नड़ चैनल है डीडी चंदना। प्रमुख गैर-सरकारी सार्वजनिक कन्नड़ टीवी चैनलों में ईटीवी कन्नड़, ज़ीटीवी कन्नड़, उदय टीवी, यू२, टीवी९, एशियानेट सुवर्ण एवं कस्तूरी टीवी हैं।[121]

कर्नाटक का भारतीय रेडियो के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान है। भारत का प्रथम निजी रेडियो स्टेशन आकाशवाणी १९३५ में प्रो॰एम॰वी॰ गोपालस्वामी द्वारा मैसूर में आरंभ किया गया था।[122] यह रेडियोस्टेशन काफी लोकप्रिय रहा और बाद में इसे स्थानीय नगरपालिका ने ले लिया था। १९५५ में इसे ऑल इण्डिया रेडियो द्वारा अधिग्रहण कर बंगलुरु ले जाया गया। इसके २ वर्षोपरांत ए.आई.आर ने इसका मूल नाम आकाशवाणी ही अपना लिया। इस चैनल पर प्रसारित होने वाले कुछ प्रसिद्ध कार्यक्रमों में निसर्ग संपदा और सास्य संजीवनी रहे हैं। इनमें गानों, नाटकों या कहानियों के माध्यम से विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी। ये कार्यक्रम इतने लोकप्रिय बने कि इनका अनुवाद १८ भाषाओं में हुआ और प्रसारित किया गया। कर्नाटक सरकार ने इस पूरी शृंखला को ऑडियो कैसेटों में रिकॉर्ड कराकर राज्य भर के सैंकड़ों विद्यालयों में बंटवाया था।[122] राज्य में एफ एम प्रसारण रेडियो चैनलों में भी बढ़ोत्तरी हुई है। ये मुख्यतः बंगलुरु, मंगलौर और मैसूर में चलन में हैं।[123][124]

क्रीड़ा

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कर्नाटक का एक छोटा सा जिला कोडगु भारतीय हाकी टीम के लिए सर्वाधिक योगदान देता है। यहां से अनेक खिलाड़ियों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।[125] वार्षिक कोडव हॉकी उत्सव विश्व में सबसे बड़ा हॉकी टूर्नामेण्ट है।[126] बंगलुरु शहर में महिला टेनिस संघ (डब्लु.टी.ए का एक टेनिस ईवेन्ट भी हुआ है, तथा १९९७ में शहर भारत के चतुर्थ राष्ट्रीय खेल सम्मेलन का भी आतिथेय रहा है।[127] इसी शहर में भारत के सर्वोच्च क्रीड़ा संस्थान, भारतीय खेल प्राधिकरण तथा नाइके टेनिस अकादमी भी स्थित हैं। अन्य राज्यों की तुलना में तैराकी के भी उच्च आनक भी कर्नाटक में ही मिलते हैं।[128]

राज्य का एक लोकप्रिय खेल क्रिकेट है। राज्य की क्रिकेट टीम छः बार रणजी ट्रॉफी जीत चुकी है और जीत के आंकड़ों में मात्र मुंबई क्रिकेट टीम से पीछे रही है।[129] बंगलुरु स्थित चिन्नास्वामी स्टेडियम में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों का आयोजन होता रहता है। साथ ही ये २००० में आरंभ हुई राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी का भी केन्द्र रहा है, जहां अकादमी भविष्य के लिए अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को तैयार करती है। राज्य क्रिकेट टीम के कई प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अग्रणी रहे हैं। १९९० के दशक में हुए एक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच में यहीं के खिलाड़ियों का बाहुल्य रहा था।[130][131] कर्नाटक प्रीमियर लीग राज्य का एक अंतर्क्षेत्रीय ट्वेन्टी-ट्वेन्टी क्रिकेट टूर्नामेंट है। रॉयल चैलेन्जर्स बैंगलौर भारतीय प्रीमियर लीग का एक फ़्रैंचाइज़ी है जो बंगलुरु में ही स्थित है।

राज्य के अंचलिक क्षेत्रों में खो खो, कबड्डी, चिन्नई डांडु तथा कंचे या गोली आदि खेल खूब खेले जाते हैं।

राज्य के उल्लेखनीय खिलाड़ियों में १९८० के ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप विजेता प्रकाश पादुकोन का नाम सम्मान से लिया जाता है। इनके अलावा पंकज आडवाणी भी उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने २० वर्ष की आयु से ही बैडमिंटन स्पर्धाएं आरंभ कर दी थीं तथा तथा क्यू स्पोर्ट्स के तीन उपाधियां धारण की हैं, जिनमें २००३ की विश्व स्नूकर चैंपियनशिप एवं २००५ की विश्व बिलियर्ड्स चैंपियनशिप आती हैं।[132][133]

राज्य में साइकिलिंग स्पर्धाएं भी जोरों पर रही हैं। बीजापुर जिले के क्षेत्र से राष्ट्रीय स्तर के अग्रणी सायक्लिस्ट हुए हैं। मलेशिया में आयोजित हुए पर्लिस ओपन ’९९ में प्रेमलता सुरेबान भारतीय प्रतिनिधियों में से एक थीं। जिले की साइक्लिंग प्रतिभा को देखते हुए उनके उत्थान हेतु राज्य सरकार ने जिले में भारतीय रुपये ₹ ४० लाख की लागत से यहां के बी.आर अंबेडकर स्टेडियम में सायक्लिंग ट्रैक बनवाया है।[134]

केशव मंदिर, सोमनाथपुर

अपने विस्तृत भूगोल, प्राकृतिक सौन्दर्य एवं लम्बे इतिहास के कारण कर्नाटक राज्य बड़ी संख्या में पर्यटन आकर्षणों से परिपूर्ण है। राज्य में जहां एक ओर प्राचीन शिल्पकला से परिपूर्ण मंदिर हैं तो वहीं आधुनिक नगर भी हैं, जहां एक ओर नैसर्गिक पर्वतमालाएं हैं तो वहीं अनान्वेषित वन संपदा भी है और जहां व्यस्त व्यावसायिक कार्यकलापों में उलझे शहरी मार्ग हैं, वहीं दूसरी ओर लम्बे सुनहरे रेतीले एवं शांत सागरतट भी हैं। कर्नाटक राज्य को भारत के राज्यों में सबसे प्रचलित पर्यटन गंतव्यों की सूची में चौथा स्थान मिला है।[135] राज्य में उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक राष्ट्रीय संरक्षित उद्यान एवं वन हैं,[136] जिनके साथ ही यहां राज्य पुरातत्त्व एवं संग्रहालय निदेशलय द्वारा संरक्षित ७५२ स्मारक भी हैं। इनके अलावा अन्य २५,००० स्मारक भी संरक्षण प्राप्त करने की सूची में हैं।[137][138]

बीजापुर का गोल गुम्बज, बाईज़ैन्टाइन साम्राज्य के हैजिया सोफिया के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गुम्बद है।

राज्य के मैसूर शहर में स्थित महाराजा पैलेस इतना आलीशान एवं खूबसूरत बना है, कि उसे सबसे विश्व के दस कुछ सुंदर महलों में गिना जाता है।[139][140] कर्नाटक के पश्चिमी घाट में आने वाले तथा दक्षिणी जिलों में प्रसिद्ध पारिस्थितिकी पर्यटन स्थल हैं जिनमें कुद्रेमुख, मडिकेरी तथा अगुम्बे आते हैं। राज्य में २५ वन्य जीवन अभयारण्य एवं ५ राष्ट्रीय उद्यान हैं। इनमें से कुछ प्रसिद्ध हैं: बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, बनेरघाटा राष्ट्रीय उद्यान एवं नागरहोल राष्ट्रीय उद्यानहम्पी में विजयनगर साम्राज्य के अवशेष तथा पत्तदकल में प्राचीन पुरातात्त्विक अवशेष युनेस्को विश्व धरोहर चुने जा चुके हैं। इनके साथ ही बादामी के गुफा मंदिर तथा ऐहोल के पाषाण मंदिर बादामी चालुक्य स्थापात्य के अद्भुत नमूने हैं तथा प्रमुख पर्यटक आकर्षण बने हुए हैं। बेलूर तथा हैलेबिडु में होयसाल मंदिर क्लोरिटिक शीस्ट (एक प्रकार के सोपस्टोन) से बने हुए हैं एवं युनेस्को विश्व धरोहर स्थल बनने हेतु प्रस्तावित हैं।[141] यहाँ बने गोल गुम्बज तथा इब्राहिम रौज़ा दक्खन सल्तनत स्थापत्य शैली के अद्भुत उदाहरण हैं। श्रवणबेलगोला स्थित गोमतेश्वर की १७ मीटर ऊंची मूर्ति जो विश्व की सर्वोच्च एकाश्म प्रतिमा है, वार्षिक महामस्तकाभिषेक उत्सव में सहस्रों श्रद्धालु तीर्थायात्रियों का आकर्षण केन्द्र बनती है।[142]

मैसूर पैलेस, मैसूर का रात्रि दृश्य

कर्नाटक के जल प्रपात एवं कुद्रेमुख राष्ट्रीय उद्यान "विश्व के १००१ प्राकृतिक आश्चर्य" में गिने गये हैं।[143] जोग प्रपात को भारत के सबसे ऊंचे एकधारीय जल प्रपात के रूप में गोकक प्रपात, उन्चल्ली प्रपात, मगोड प्रपात, एब्बे प्रपात एवं शिवसमुद्रम प्रपात सहित अन्य प्रसिद्ध जल प्रपातों की सूची में सम्मिलित किया गया है।

यहां अनेक खूबसूरत सागरतट हैं, जिनमें मुरुदेश्वर, गोकर्ण एवं करवर सागरतट प्रमुख हैं। इनके साथ-साथ कर्नाटक धार्मिक महत्त्व के अनेक स्थलों का केन्द्र भी रहा है। यहां के प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों में उडुपी कृष्ण मंदिर, सिरसी का मरिकंबा मंदिर, धर्मस्थल का श्री मंजुनाथ मंदिर, कुक्के में श्री सुब्रह्मण्यम मंदिर तथा शृंगेरी स्थित शारदाम्बा मंदिर हैं जो देश भर से ढेरों श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। लिंगायत मत के अधिकांश पवित्र स्थल जैसे कुदालसंगम एवं बसवन्ना बागेवाड़ी राज्य के उत्तरी भागों में स्थित हैं। श्रवणबेलगोला, मुदबिद्री एवं कर्कला जैन धर्म के ऐतिहासिक स्मारक हैं। इस धर्म की जड़े राज्य में आरंभिक मध्यकाल से ही मजबूत बनी हुई हैं और इनका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है श्रवणबेलगोला

मैसूर शैली का एक तैल चित्र

हाल के कुछ वर्षों में कर्नाटक स्वास्थ्य रक्षा पर्यटन हेतु एक सक्रिय केन्द्र के रूप में भी उभरा है। राज्य में देश के सर्वाधिक स्वीकृत स्वास्थ्य प्रणालिययाँ और वैकल्पिक चिकित्सा उपलब्ध हैं। राज्य में आईएसओ प्रमाणित सरकारी चिकित्सालयों सहित, अंतर्राष्ट्रीय स्तर की चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने वाले निजी संस्थानों के मिले-जुले योगदान से वर्ष २००४-०५ में स्वास्थ्य-रक्षा उद्योग को ३०% की बढोत्तरी मिली है। राज्य के अस्पतालों में लगभग ८,००० स्वास्थ्य संबंधी सैलानी आते हैं।[55]

खुदाई : सन्नति•कनगनहल्ली
दुर्ग : गजेंद्रगढ़  • सौंदत्ती  • बेल्लारी  • पारसगढ़ दुर्ग  • कित्तूर  • चित्रदुर्ग  • बेलगाम  • बीदर  • गुलबर्ग  • बसवकल्याण  • कोप्पल

स्मारक: मैसूर  • लक्कुंडी  • सुदी  • बादामि  • ऐहोल  • पत्तदकल  • हंगल  • हलसी  • बनवासी  • हैलेबिड  • बेलूर  • सोमनाथपुरा  • महादेव मंदिर, इतगी  • हूली  • सन्नति  • हम्पी  • ऐनेगुंडी  • मस्की  • गलगनाथ  • चौदैयादानापुर  • बीदरगुलबर्गबीजापुररायचूर

प्राचीन : लक्कुंडी  • सुदी  • बादामी  • ऐहोल  • मैसूर  • पत्तदकल • हंगल  • हलसी  • बनवासी  • हैलेबिड  • बेलूर  • महादेव मंदिर, इतगी  • हूली  • सन्नति  • हम्पी  • ऐनेगुंडी  • मस्की  • कोप्पल

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

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