छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ | |
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राज्य | |
ऊपर से, बाएँ से दाएँ: जगदलपुर में चित्रकोट सिरपुर स्थापत्य समूह, महानदी, चैतुरगढ़, नवा रायपुर, भोरमदेव मंदिर, अचानकमार वन्यजीव अभयारण्य, बस्तर का दशहरा और सतरेंगा जलाशय
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गान: "अर्पा पैरी के धार"[1][2] (अरपा और पैरी की धाराएँ)) | |
भारत में छत्तीसगढ़ का स्थान | |
निर्देशांक (छत्तीसगढ़): 21°15′N 81°36′E / 21.25°N 81.60°E | |
देश | भारत |
गठन | 1 नवंबर 2000† |
राजधानी | रायपुर |
सबसे बड़े शहर | रायपुर |
जिले | 33 जिले (छत्तीसगढ़ के जिले) |
शासन | |
• सभा | छत्तीसगढ़ सरकार |
• राज्यपाल | रामेन डेका |
• मुख्यमंत्री | विष्णु देव साय (भाजपा) |
• विधानमंडल | एकसदनीय (90+1 सीटें) |
• संसदीय क्षेत्र | |
• उच्च न्यायालय | छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर |
क्षेत्रफल[3] | |
• कुल | 135192 किमी2 (52,198 वर्गमील) |
क्षेत्र दर्जा | 9वाँ |
जनसंख्या (2020)[4] | |
• कुल | 2,94,36,233 |
• दर्जा | 17वाँ |
• घनत्व | 220 किमी2 (560 वर्गमील) |
भाषाएँ | |
• राजभाषा | छत्तीसगढ़ी और हिंदी |
• क्षेत्रीय | छत्तीसगढ़ी, गोंडी और हिंदी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+05:30) |
आई॰एस॰ओ॰ ३१६६ कोड | IN-CT |
मानव विकास सूचकांक | 0.613 (medium) |
माविसू रैंक | 31वाँ (2017) |
साक्षरता | 77.3% (2017) [5] |
वेबसाइट | cgstate |
छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है। इसका गठन १ नवंबर २००० को हुआ था और यह भारत का २६वाँ राज्य है। पहले यह मध्य प्रदेश के अंतर्गत था। कहते है कि किसी समय इस क्षेत्र में 36 गढ़ थे, इसीलिये इसका नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। किंतु गढ़ों की संख्या में वृद्धि हो जाने पर भी नाम में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, छत्तीसगढ़ भारत का ऐसा राज्य है जिसे 'महतारी'(माँ) का दर्जा दिया गया है।[6]भारत में दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदल गया - एक तो 'मगध' जो बौद्ध विहारों की अधिकता के कारण "बिहार" बन गया और दूसरा 'दक्षिण कौशल' जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण "छत्तीसगढ़" बन गया। किन्तु ये दोनों ही क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित करते रहे हैं। "छत्तीसगढ़" तो वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केंद्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मंदिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है। एक संसाधन संपन्न राज्य, यह देश के लिए बिजली और इस्पात का एक स्रोत है, जिसका उत्पादन कुल स्टील का 15% है।[7]छत्तीसगढ़ भारत में सबसे तेजी से विकसित राज्यों में से एक है।[8]
नामोत्पत्ति
[संपादित करें]"छत्तीसगढ़" एक प्राचीन नाम नहीं है, इस नाम का प्रचलन १८ सदी के दौरान मराठा काल में शुरू हुआ। प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ "दक्षिण कोशल" के नाम से जाना जाता था।
सभी ऐतिहासिक शिलालेख, साहित्यिक और विदेशी यात्रियों के लेखों में, इस क्षेत्र को दक्षिण कोशल कहा गया है। आधिकारिक दस्तावेज में "छत्तीसगढ़" का प्रथम प्रयोग १७९५ में हुआ था। [9]
छत्तीसगढ़ शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों में कोई एक मत नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कलचुरी काल में छत्तीसगढ़ आधिकारिक रूप से ३६ गढ़ो में बँटा था, यह गढ़ एक आधिकारिक इकाई थी, नाकि किले या दुर्ग। इन्हीं "३६ गढ़ो " के आधार पर छत्तीसगढ़ नाम कि व्युत्पत्ति हुई। (१ गढ़ = ७ बरहो = ८४ ग्राम)
इतिहास
[संपादित करें]छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के दक्षिण कौशल का एक हिस्सा है और इसका इतिहास पौराणिक काल तक पीछे की ओर चला जाता है। पौराणिक काल का 'कोशल' प्रदेश, कालांतर में 'उत्तर कोशल' और 'दक्षिण कोशल' नाम से दो भागों में विभक्त हो गया था इसी का 'दक्षिण कोशल' वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है। इस क्षेत्र के महानदी (जिसका नाम उस काल में 'चित्रोत्पला' था) का मत्स्य पुराण[क], महाभारत[ख] के भीष्म पर्व तथा ब्रह्म पुराण[ग] के भारतवर्ष वर्णन प्रकरण में उल्लेख है। वाल्मीकि रामायण में भी छत्तीसगढ़ के बीहड़ वनों तथा महानदी का स्पष्ट विवरण है। स्थित सिहावा पर्वत के आश्रम में निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि ने ही अयोध्या में राजा दशरथ के यहाँ पुत्र्येष्टि यज्ञ करवाया था जिससे कि तीनों भाइयों सहित भगवान श्री राम का पृथ्वी पर अवतार हुआ। राम के काल में यहाँ के वनों में ऋषि-मुनि-तपस्वी आश्रम बना कर निवास करते थे और अपने वनवास की अवधि में राम यहाँ आये थे।
सरगुजा छत्तीसगढ़ का जिला मौर्य और नंद काल के सिक्कों की खोज के लिए उल्लेखनीय है। नंद-मौर्य युग के कुछ सोने और चांदी के सिक्के, समीपवर्ती काल के अकलतरा और ठठारी से प्राप्त हुए।[10]
इतिहास में इसके प्राचीनतम उल्लेख सन 639 ई. में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण में मिलते हैं। उनकी यात्रा विवरण में लिखा है कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक बोधिसत्व नागार्जुन का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था। इस समय छत्तीसगढ़ पर सातवाहन वंश की एक शाखा का शासन था। महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ माना जाता है। प्राचीन काल में दक्षिण-कौसल के नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों, कलचुरियों का शासन था। छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय राजवंशो का शासन भी कई जगहों पर मौजूद था। क्षेत्रिय राजवंशों में प्रमुख थे: बस्तर के नल और नाग वंश, कांकेर के सोमवंशी और कवर्धा के फणि-नाग वंशी। बिलासपुर जिले के पास स्थित कवर्धा रियासत में चौरा नाम का एक मंदिर है जिसे लोग मंडवा-महल भी कहा जाता है। इस मंदिर में सन् 1349 ई. का एक शिलालेख है जिसमें नाग वंश के राजाओं की वंशावली दी गयी है। नाग वंश के राजा रामचंद्र ने यह लेख खुदवाया था। इस वंश के प्रथम राजा अहिराज कहे जाते हैं। भोरमदेव के क्षेत्र पर इस नागवंश का राजत्व 14 वीं सदी तक कायम रहा।
भूगोल
[संपादित करें]छत्तीसगढ़ के उत्तर में उत्तर प्रदेश और उत्तर-पश्चिम में मध्यप्रदेश का शहडोल संभाग, उत्तर-पूर्व में उड़ीसा और झारखंड, दक्षिण में तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और पश्चिम में महाराष्ट्र राज्य स्थित हैं। यह प्रदेश ऊँची नीची पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ घने जंगलों वाला राज्य है। यहाँ साल, सागौन, साजा और बीजा और बाँस के वृक्षों की अधिकता है। यहाँ सबसे ज्यादा मिस्रित वन पाया जाता है। सागौन की कुछ उन्नत किस्म भी छत्तीसगढ़ के वनों में पायी जाती है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र के बीच में महानदी और उसकी सहायक नदियाँ एक विशाल और उपजाऊ मैदान का निर्माण करती हैं, जो लगभग 80 किमी चौड़ा और 322 किमी लंबा है। समुद्र सतह से यह मैदान करीब 300 मीटर ऊँचा है। इस मैदान के पश्चिम में महानदी तथा शिवनाथ का दोआब है। इस मैदानी क्षेत्र के भीतर हैं रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर जिले के दक्षिणी भाग। धान की भरपूर पैदावार के कारण इसे धान का कटोरा भी कहा जाता है। मैदानी क्षेत्र के उत्तर में है मैकल पर्वत शृंखला। सरगुजा की उच्चतम भूमि ईशान कोण में है। पूर्व में उड़ीसा की छोटी-बड़ी पहाड़ियाँ हैं और आग्नेय में सिहावा के पर्वत शृंग है। दक्षिण में बस्तर भी गिरि-मालाओं से भरा हुआ है। छत्तीसगढ़ के तीन प्राकृतिक खण्ड हैं: उत्तर में सतपुड़ा, मध्य में महानदी और उसकी सहायक नदियों का मैदानी क्षेत्र और दक्षिण में बस्तर का पठार। राज्य की प्रमुख नदियाँ हैं - महानदी, शिवनाथ, खारुन, सोंढूर, अरपा, पैरी तथा इंद्रावती नदी।[11]
छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण
[संपादित करें]1. 2 नवंबर 1861 को मध्य प्रांत का गठन हआ, इसकी राजधानी नागपुर थी। मध्यप्रांत में छत्तीसगढ़ एक जिला था।
2. 1862 में मध्य प्रांत में पाँच संभाग बनाये गये जिसमें छत्तीसगढ़ एक स्वतंत्र संभाग बना, जिसका मुख्यालय रायपुर था, जिसके साथ ही छत्तीसगढ़ में 3 जिलों (रायपुर, बिलासपुर, संबलपुर) का निर्माण भी हुआ।
3. सन् 1905 में जशपुर, सरगुजा, उदयपुर, चांगभखार एवं कोरिया रियासतों को छत्तीसगढ़ में मिलाया गया तथा संबलपुर को बंगाल प्रांत में मिलाया गया। इसी वर्ष छत्तीसगढ़ का प्रथम मानचित्र बनाया गया।
4. सन् 1918 में पंडित सुंदरलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ राज्य का स्पष्ट रेखा चित्र अपनी पांडुलिपि में खींचा अतः इन्हें छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वप्नदृष्टा व संकल्पनाकार कहा जाता है।
5. सन् 1924 में रायपुर जिला परिषद ने संकल्प पारित करके पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की माँग की।
6. सन् 1939 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में पंडित सुंदरलाल शर्मा ने पृथक छत्तीसगढ़ की माँग रखी।
7. सन् 1946 में ठाकुर प्यारेलाल ने पृथक छत्तीसगढ़ माँग के लिए छत्तीसगढ़ शोषण विरोध मंच का गठन किया जो कि छत्तीसगढ़ निर्माण हेतु प्रथम संगठन था।
8. सन् 1947 स्वतंत्रता प्राप्ति के समय छत्तीसगढ़ मध्यप्रांत और बरार का हिस्सा था।
9. सन् 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में भाषायी आधार पर राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष पृथक राज्य की माँग की गई।
10. सन् 1955 रायपुर के विधायक ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने मध्य प्रांत के विधानसभा में पृथक छत्तीसगढ़ की माँग रखी जो की प्रथम विधायी प्रयास था।
11. सन् 1956 में डॉ. खूबचंद बघेल की अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ महासभा का गठन राजनांदगाँव जिले में किया गया। इसके महासचिव दशरथ चौबे थे। इसी वर्ष मध्यप्रदेश के गठन के साथ छत्तीसगढ़ को मध्यप्रदेश में शामिल किया गया।
12. सन् 1967 में डॉक्टर खूबचंद बघेल ने बैरिस्टर छेदीलाल की सहायता से राजनांदगाँव में पृथक छत्तीसगढ़ हेतु छत्तीसगढ़ भातृत्व संघ का गठन किया जिसके उपाध्यक्ष द्वारिका प्रसाद तिवारी थे।
13. सन् 1976 में शंकर गुहा नियोगी ने पृथक छत्तीसगढ़ हेतु छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का गठन किया।
14. सन् 1983 में शंकर गुहा नियोगी के द्वारा छत्तीसगढ़ संग्राम मंच का गठन किया गया। पवन दीवान द्वारा पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी का गठन किया गया।
15. सन् 1994 में तत्कालीन साजा विधायक रविंद्र चौबे ने मध्य प्रदेश विधानसभा में छत्तीसगढ़ निर्माण संबंधी अशासकीय संकल्प प्रस्तुत किया गया जो सर्वसम्मति से पारित हुआ।
16. 1 मई 1998 को मध्यप्रदेश विधान सभा में छत्तीसगढ़ निर्माण के लिए शासकीय संकल्प पारित किया गया।
17. 25 जुलाई 2000 को श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा लोकसभा में विधेयक प्रस्तुत किया गया। 31 जुलाई 2000 विधेयक लोकसभा में पारित किया गया। 3 अगस्त 2000 राज्यसभा में विधेयक प्रस्तुत किया गया और 9 अगस्त 2000 को राज्यसभा में पारित किया गया। इसे 25 अगस्त 2000 तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण ने मध्य्रपदेश राज्य पुर्नगठन अधिनियम का अनुमोदित किया।
18. 1 नवंबर 2000 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई, छत्तीसगढ़ देश का 26वाँ राज्य बना।
19. छत्तीसगढ़ का निर्माण मध्यप्रदेश के तीन संभाग रायपुर, बिलासपुर एवं बस्तर के 16 जिलों, 96 तहसीलों और 146 विकासखंडों से किया गया। प्रदेश की राजधानी रायपुर को बनाया गया तथा बिलासपुर में उच्च न्यायालय की स्थापना की गई।
20. छत्तीसगढ़ में विधानसभा की प्रथम बैठक 14 दिसंबर 2000 से 20 दिसंबर 2000 तक रायपुर में राजकुमार कॉलेज के जशपुर हाल में हुई।
जिले
[संपादित करें]छत्तीसगढ़ राज्य गठन के समय यहाँ सिर्फ 16 जिले थे, पर 2007 में 2 नए जिलो की घोषणा की गयी जो कि बस्तर संभाग का नारायणपुर व बीजापुर था। 2012 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह (भाजपा) ने 9 नये जिलों का निर्माण किया। 15 अगस्त 2019 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (कांग्रेस) ने बिलासपुर जिले से काट कर 1 नए जिले (गौरेला पेंड्रा मरवाही) के निर्माण की घोषणा की। भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री बघेल द्वारा और नये 04 जिले का घोषणा किया है इस तरह अब छत्तीसगढ़ में कुल 32 जिले हो गए हैं।
• कवर्धा जिला • कांकेर जिला (उत्तर बस्तर) • कोरबा जिला • कोरिया जिला • जशपुर जिला • जांजगीर-चाँपा जिला • दंतेवाड़ा जिला (दक्षिण बस्तर) • दुर्ग जिला • धमतरी जिला • बिलासपुर जिला • बस्तर जिला • महासमुंद जिला • राजनांदगाँव जिला • रायगढ़ जिला • रायपुर जिला • सरगुजा जिला • नारायणपुर जिला • बीजापुर जिला • बेमेतरा जिला • बालोद जिला • बलौदा बाजार जिला • बलरामपुर • गरियाबंद • सूरजपुर • कोंडागाँव जिला • मुंगेली जिला • सुकमा जिला • गौरेला-पेंड्रा-मारवाही जिला • मनेंद्रगढ़ जिला • सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला • मोहला-मानपुर जिला • सक्ती जिला • खैरागढ़ जिला
कला एवं संस्कृति
[संपादित करें]आदिवासी कला काफी पुरानी है। प्रदेश की आधिकारिक भाषा हिंदी है और लगभग संपूर्ण जनसंख्या उसका प्रयोग करती है। प्रदेश की आदिवासी जनसंख्या हिंदी की एक उपभाषा छत्तीसगढ़ी बोलती है।
साहित्य
[संपादित करें]छत्तीसगढ़ साहित्यिक परंपरा के परिप्रेक्ष्य में अति समृद्ध प्रदेश है। इस जनपद का लेखन हिंदी साहित्य के सुनहरे पृष्ठों को पुरातन समय से सजाता-सँवारता रहा है।[12] छत्तीसगढ़ी और अवधी दोनों का जन्म अर्धमागधी के गर्भ से आज से लगभग 1080 वर्ष पूर्व नवीं-दसवीं शताब्दी में हुआ था।"[13] भाषा साहित्य पर और साहित्य भाषा पर अवलंबित होते है। इसीलिये भाषा और साहित्य साथ-साथ पनपते है। परंतु हम देखते है कि छत्तीसगढ़ी लिखित साहित्य के विकास अतीत में स्पष्ट रूप में नहीं हुई है। अनेक लेखकों का मत है कि इसका कारण यह है कि अतीत में यहाँ के लेखकों ने संस्कृत भाषा को लेखन का माध्यम बनाया और छत्तीसगढ़ी के प्रति ज़रा उदासीन रहे। इसीलिए छत्तीसगढ़ी भाषा में जो साहित्य रचा गया, वह करीब एक हजार साल से हुआ है।
अनेक साहित्यको ने इस एक हजार वर्ष को इस प्रकार विभाजित किया है :
- छत्तीसगढ़ी गाथा युग - सन् 1000 से 1500 ई. तक
- छत्तीसगढ़ी भक्ति युग - मध्य काल, सन् 1500 से 1900 ई. तक
- छत्तीसगढ़ी आधुनिक युग - सन् 1900 से आज तक
यह विभाजन किसी प्रवृत्ति की सापेक्षिक अधिकता को देखकर किया गया है। एक और उल्लेखनीय बत यह है कि दूसरे आर्यभाषाओं के जैसे छत्तीसगढ़ी में भी मध्ययुग तक सिर्फ पद्यात्मक रचनाएँ हुई है।
लोकगीत और लोकनृत्य
[संपादित करें]छत्तीसगढ़ की संस्कृति में गीत एवं नृत्य का बहुत महत्त्व है। यहाँ के लोकगीतों में विविधता है। गीत आकार में अमूमन छोटे और गेय होते है एवं गीतों का प्राणतत्व है – भाव प्रवणता। छत्तीसगढ़ के प्रमुख और लोकप्रिय गीतों में से कुछ हैं: भोजली, पंडवानी, जस गीत, भरथरी लोकगाथा, बाँस गीत, गऊरा गऊरी गीत, सुआ गीत, देवार गीत, करमा, ददरिया, डंडा, फाग, चनौनी, राउत गीत और पंथी गीत। इनमें से सुआ, करमा, डंडा व पंथी गीत नाच के साथ गाये जाते हैं।
खेल
[संपादित करें]छत्तीसगढ़ी बाल खेलों में अटकन-बटकन लोकप्रिय सामूहिक खेल है। इस खेल में बच्चे आँगन परछी में बैठकर, गोलाकार घेरा बनाते है। घेरा बनाने के बाद जमीन में हाथों के पंजे रख देते है। एक लड़का अगुवा के रूप में अपने दाहिने हाथ की तर्जनी उन उल्टे पंजों पर बारी-बारी से छुआता है। गीत की अंतिम अंगुली जिसकी हथेली पर समाप्त होती है वह अपनी हथेली सीधी कर लेता है। इस क्रम में जब सबकी हथेली सीधे हो जाते है, तो अंतिम बच्चा गीत को आगे बढ़ाता है। इस गीत के बाद एक दूसरे के कान पकड़कर गीत गाते है।
1) अटकन-बटकन:- अटकन मटकन दही चटाका लौहा लाटा बन में काँटा चल चल बेटी गंगा जाबो गंगा ले गोदावरी पक्का पक्का बेल खाबो बेल के डारा टुट गे बिहाती डोकारी छूट गे।
2) काऊँ माऊँ मेकरा के झाला फुर्र....।
फुगड़ी
[संपादित करें]बालिकाओं द्वारा खेला जाने वाला फुगड़ी लोकप्रिय खेल है। चार, छः लड़कियाँ इकट्ठा होकर, ऊँखरु बैठकर बारी-बारी से लोच के साथ पैर को पंजों के द्वारा आगे-पीछे चलाती है। थककर या साँस भरने से जिस खिलाड़ी के पाँव चलने रुक जाते हैं वह हट जाती है।
लंगड़ी
[संपादित करें]यह वृद्धि चातुर्थ और चालाकी का खेल है। यह छू छुओवल की भाँति खेला जाता है। इसमें खिलाड़ी एड़ी मोड़कर बैठ जाते है और हथेली घुटनों पर रख लेते है। जो बच्चा हाथ रखने में पीछे होता है बीच में उठकर कहता है।
खुडुवा (कबड्डी)
[संपादित करें]खुड़वा पाली दर पाली कबड्डी की भाँति खेला जाने वाला खेल है। दल बनाने के इसके नियम कबड्डी से भिन्न है। दो खिलाड़ी अगुवा बन जाते है। शेष खिलाड़ी जोड़ी में गुप्त नाम धर कर अगुवा खिलाड़ियों के पास जाते है - चटक जा कहने पर वे अपना गुप्त नाम बताते है। नाम चयन के आधार पर दल बन जाता है। इसमें निर्णायक की भूमिका नहीं होती, सामूहिक निर्णय लिया जाता है।
डांडी पौहा
[संपादित करें]डांडी पौहा गोल घेरे में खेला जाने वाला स्पर्द्धात्मक खेल है। गली में या मैदान में लकड़ी से गोल घेरा बना दिया जाता है। खिलाड़ी दल गोल घेरे के भीतर रहते है। एक खिलाड़ी गोले से बाहर रहता है। खिलाड़ियों के बीच लय बद्ध गीत होता है। गीत की समाप्ति पर बाहर की खिलाड़ी भीतर के खिलाड़ी किसी लकड़े के नाम लेकर पुकारता है। नाम बोलते ही शेष गोल घेरे से बाहर आ जाते है और संकेत के साथ बाहर और भीतर के खिलाड़ी एक दूसरे को अपनी ओर करने के लिए बल लगाते है, जो खींचने में सफल होता वह जीतता है। अंतिम क्रम तक यह स्पर्द्धा चलती है। JITAN KORWA
जातियाँ
[संपादित करें]छत्तीसगढ़ में कई जातियाँ और जनजातियाँ हैं, जिनमें से कुछ हैं गोंड, अमात, हल्बा, कंडरा, कंवर, ठाकुर, बैंगा, मुरिया, माडिया, उरॉव, कमार, भुंजिया, भारिया, बरई, सतनामी, और बियार, मौवार ।
पर्यटन स्थल
[संपादित करें]- खरसिया रॉक गार्डन
- राजिम
- महामाया मंदिर
- खूँटाघाट बाँध
- मरी माई मंदिर, भनवारटंक
- नवागढ़
- सेतगंगा
- चित्रकोट जलप्रपात
- तीरथगढ़ जलप्रपात
- इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान
- कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान
- गिरौधपुरी रायपुर
- गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान
- कैलाश गुफा
- गंगरेल बांध
- सिरपुर
- मल्हार
- भोरमदेव मंदिर
- मैनपाट
- बमलेश्वरी मंदिर
- अमरकंटक
- मैत्रीबाग भिलाई
- कानन पेंडारी चिड़ियाघर
- सर्वमंगला मंदिर, कोरबा
गिरौदपुरी (Girodpuri) या गिरोधपुरी (Girodhpuri) - भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के बलौदा बाजार जिले में स्थित एक नगर है। जोकि अभी वर्तमान समय में रायपुर जिले में आती है। यही ही कुतुबमीनार से भी ऊँची किला है। जिसे जैतस्तंभ कहा जाता है।
जल विहार बुका - हसदेव नदी के चारो तरफ हरे भरे पहाड़ियों से घिरा जलमग्न सुंदर प्राकृतिक सौंदय से परिपूर्ण मिनीमाता बांगो बाँध का भराओ वाला जगह है जो कोरबा जिला के मड़ई गाँव से पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां नाविक रहते है जो जल विहार कराते है।
केंदई जल प्रपात - केंदई जलप्रपात कोरबा जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर की दूरी पर अम्बिकापुर रोड पर स्थित है इस पर सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है। जलप्रपात के नीचे जाने पर इंद्रधनुष की सुंदर चित्र बनती है जो मनमोहक है देखा जा सकता है। तथा चारो ओर हरे भरे पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
गोल्डन आइलैंड - गोल्डन आइलैंड केंदई ग्राम से सात किलोमीटर मीटर दक्षिण में है जहाँ तक सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है। जो हसदेव नदी पर एक लैंड बना हुआ है जहाँ नाविक भी रहते है जो कभी भी जल विहार करा सकते है। जो बहुत ही आनंदमय जगह है। तथा पिकनिक स्पॉट भी है।
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- छत्तीसगढ़ी भाषा
- छत्तीसगढ़ के लोकसभा सदस्य
- छत्तीसगढ़ के उत्सव
- छत्तीसगढ़ के आदिवासी देवी देवता
- छत्तीसगढ़ का खाना
- छत्तीसगढ़ के मेले
- छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023
- छत्तीसगढ़ सरकारी नौकरी Archived 2023-12-17 at the वेबैक मशीन
टीका टिप्पणी
[संपादित करें]
क. ^ "मन्दाकिनीदशार्णा च चित्रकूटा तथैव च।
तमसा पिप्पलीश्येनी तथा चित्रोत्पलापि च।।"
मत्स्यपुराण - भारतवर्ष वर्णन प्रकरण - 50/25)
ख. ^ "चित्रोत्पला" चित्ररथां मंजुलां वाहिनी तथा।
मन्दाकिनीं वैतरणीं कोषां चापि महानदीम्।।"
- महाभारत - भीष्मपर्व - 9/34
ग. ^ "चित्रोत्पला वेत्रवपी करमोदा पिशाचिका।
तथान्यातिलघुश्रोणी विपाया शेवला नदी।।"
ब्रह्मपुराण - भारतवर्ष वर्णन प्रकरण - 19/31)
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Chhattisgarh State Song : अरपा पैरी के धार... बना छत्तीसगढ़ का राजगीत". Nai Dunia. 4 November 2019.
- ↑ "Chattisgarh's official song to play after Vande Mataram to mark commencement of assembly session". ANI News.
- ↑ "Official site of the Ministry of Statistics and Programme Implementation, India". मूल से 3 December 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 July 2013.
- ↑ "Projected Population of Indian States" (PDF). मूल से 16 January 2019 को पुरालेखित (PDF).
- ↑ "State of Literacy" (PDF). Census of India. पृ॰ 114. मूल (PDF) से 7 May 2012 को पुरालेखित.
- ↑ "States In India having largest area". www.mapsofindia.com. मूल से 2 जनवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2019-01-02.
- ↑ "Chhattisgarh State – Power Hub". मूल से 20 November 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 July 2011.
- ↑ "Chhattisgarh -Steel". मूल से 7 July 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 July 2011.
- ↑ "Origin of Chhattisgarh". Hindustan Times (अंग्रेज़ी में). 2003-10-16. अभिगमन तिथि 2021-08-11.
- ↑ Shukla, Hira Lal (2002). Archaeology of the Indian cave theatre : a study of Ramgarh Hill, of Chhattisgarh. Internet Archive. Delhi : B.R. Pub. Corp. ; New Delhi : Distributed by BRPC (India) Ltd. पृ॰ 17. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7646-260-0.
few gold and silver coins of the Nanda-Maurya ages, picked up at Akaltara and Thathari of the adjacent district of Bilaspur, indicate the Mauryan influence in Surguja (Surguja District Gazetteer, 1989, p. 36).
- ↑ "छत्तीसगढ़". टीडीआईएल. मूल (एचटीएम) से 25 फ़रवरी 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अप्रैल 2008.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ " छत्तीसगढ़ी भाषा अर्धभागधी की दुहिता एवं अवधी की eeyui3heirnrodbfiसहोदरा है " (पृ 21, प्रकाशक रविशंकर विश्वविद्यालय, 1973)। "
- ↑ डॉ॰ भोलानाथ तिबारी, अपनी पुस्तक " हिन्दी भाषा" में लिखते है - " छत्तीसगढ़ी भाषा भाषियों की संख्या अवधी की अपेक्षा कहीं अधिक है और इस दृ से यह बोली के स्तर के ऊपर उठकर भाषा का स्वरुप प्राप्त करती है।"