बम्लेश्वरी देवी मंदिर

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साँचा:Infobox Gond temple दाई बमलाई मंदिर (dai bamlai Temple) या बम्बलेश्वरी देवी मंदिर (Bambleshwari Temple) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगाँव ज़िले के डोंगरगढ़ नगर में 490 मीटर (1,610 फीट) लोहंडीगुडा के गोंड राजा सेवता मरकाम को दो जुडवा कन्याऐ थी एक का नाम बमलाई और दुसरी का नाम समलाई… जब राजा के दिल मे लडकियो के शादी का खयाल आया तो उसे अपनी बडी बहन कोतमा के बेटे की याद आयी जिनका लांजी राज्य पे राज था…. कोतमा दाई ने और राजा भुरापोय ने अपने बडे बेटे भिमापोय को उसके मामा की जेष्ठ कन्या बमलाई के लिए घर दामाद बनकर जाने का आदेश दिया…. भिमापोय अपने दाऊ दाई के आज्ञा पालन हेतु मामा के साथ चल पडे…. अपने मामा के जेष्ठ कन्या के लिए वह घर दामाद बनकर आया था किंतु वहा दोनो बहने भिमापोय से विवाहबद्ध होणे तय्यार हो गयी… तब भीमा ने ऊन दोनो लडकियोको को अपनी समस्या बताई की उसने कोया वंशीय गोंड समुदाय की सेवा करने के लिए आजीवन कुंवारा रहने का अभिवचन अपने गुरुजी महारु भुमकाल को दे चुका है किंतु अपने दाई दाऊ का आदेश पाकर वह घर दामाद बनकर यहा आया है… उसे तो अपना जीवन मार्ग तय करना था तो उसने एक शर्थ रखी की एक दिन मे तीन प्रहर होते है… उसमे से अंतिम प्रहर जो रात्री के भोजनांत से लेकर सुबह मुर्गे की बाग देने का समय… ईस समय के बीच जो उसे आकर मिलती है उससे वह विवाह बद्ध होंगा…. अन्यथा वह जीवन भर कुंवारा रहेंगा… इतना कहकर भीमा तेजी से डोंगरगड की और चल दिया… थोडी देर बाद दोनो बहना उसके पिछे चल दियी लेकिन उसे पकडणे मे नाकामयाब रही…. बमलाई थक के वही डोंगरगड रुक गयी उसने मन ही मन भिमालपोय को वर लिया था तो उसने वही पर जीस मराई गोत्रज का भिमाल पोय है उसी गोत्रज का बडादेव डोंगरगड मे स्थापित है अंतः उसी गोत्र के बडादेव की छत्रछाया मे उसने शरण ले लिया और उसकी नित्य सेवा करने का मन मे निर्धार किया… ईस तरह मराई कुल की कुलवधु बन गयी और वह कोया वंशीय गोंड समुदाय की सेवा मे जुट गयी… बमलाई की मृत्यू के बाद उसकी मूर्त बनाके लोगो ने पुजना आरंभ किया… काफी समय बाद ब्राम्हणो ने गोंडो को वहा से मार भगाया और उसका नामकरण बंबळलेश्वरी कर दिया….आज भी वहा प्रथम पुजा गोंड समुदाय के हात से हि संपन्न कियी जाती है. …. दुसरी बहन समलाई भिमाल पोय का पिच्छा करते हुये नागपुर के पास कोराडी गाव मे आ बसी जिसे हम कोराडी देवी के नाम से जाणते है जिसे ब्राह्मणोने महालक्षमी नाम दिया….. भिमालपोय नागपुर जिल्हे मे पारशिवनी के पास भीमगड मे आके बस गये जिन्हे हम कुंवारा भिमालपेन या भिवसेन करके पुच्छते है और हर गोंडो के गांवो मे भिवसन ठाणा होता हि है….

विवरण[संपादित करें]

डोंगरगढं चारो ओर हरी-भरी पहाडियों, छोटे-बड़े तालाबों एवं पश्चिम में पनियाजोब जलाशय, उत्तर में ढारा जलाशय तथा दक्षिण में मडियान जलाशय से घिरा प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण स्थान है। कामाख्या नगरी व डुंगराज्य नगर नामक प्राचीन नामों से विख्यात डोंगरगढ में उपलब्ध खंडहरों एवं स्तंभों की रचना शैली के आधार पर शोधकर्ताओं ने इसे कलचुरी काल का एवं १२वीं-१३वीं सदी के लगभग का पाया है। किन्तु अन्य सामग्री जैसे -मूर्तियों के गहने, अनेक वस्त्रों, आभूषणों, मोटे होंठ एवं मस्तक के लंबे बालो की सूक्ष्म मीमांसा करने पर इस क्षेत्र की मूर्तिकला पर गोंड कला का प्रभाव परिलक्षित हुआ है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि १६ वीं शताब्दी तक डुंगराज्य नगर गोंड राजाओं के आधिपत्य में रहा। गोंड राजा पर्याप्त सामर्थ्यवान थे। जिससे राज्य मे शांति तथा व्यवस्था स्थापित थी। यहां की प्रजा भी सम्पन्न थी। जिसके कारण मूर्तिशिल्प तथा गृह निर्माण कला का उपयुक्त वातावरण था।


चित्रदीर्घा[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

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