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कबीरधाम जिला

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कबीरधाम ज़िला
Kabirdham district
मानचित्र जिसमें कबीरधाम ज़िला Kabirdham district हाइलाइटेड है
सूचना
राजधानी : कवर्धा
क्षेत्रफल : 4,447 किमी²
जनसंख्या(2011):
 • घनत्व :
8,22,239
 180/किमी²
उपविभागों के नाम: तहसील
उपविभागों की संख्या: 4
मुख्य भाषा(एँ): हिन्दी, छत्तीसगढ़ी


कबीरधाम ज़िला (Kabirdham district) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य का एक ज़िला है। यह पहले कवर्धा ज़िला (Kawardha district) कहलाता था। ज़िले का मुख्यालय कवर्धा है, जो रायपुर से 120 किमी और बिलासपुर से 114 किमी की दूरी पर स्थित है। कवर्धा पूर्व मुख्यमन्त्री रमन सिंह के गृहनगर होने के साथ साथ कई महत्वपूर्ण लोगों कि कर्यस्थली भी है। खजुराहो के समकालिक भोरमदेव का प्रसिद्घ मन्दिर जिले के महत्वपूर्ण आकर्षणों में से है।[1][2]

पर्यटकों के लिए पर्यटन का अद्भुत केन्द्र बना कबीरधाम जिला 11वी शताब्दी के फणीनांगवंशी काल में निर्मित भोरमदेव मंदिर की पहचान विश्व पर्यटन मानचित्र पर भी रेखांकित हो रही है।

भोरमदेव मंदिर

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भोरमदेव मंदिर जिला मुख्यालय कवर्धा से उत्तर पश्चिम में 18 किलोमीटर की दूरी पर सतपुड़ा मैकल पहाड़ियों के पाद तल में बसे हुए चौरा गांव में स्थित है। भोरमदेव मंदिर का निर्माण फणी नागवंश के छठवें राजा गोपाल देव द्वारा 11 वीं शताब्दी 1087 ई में कराया गया था। मंदिर में बनाए गए तीन प्रवेश द्वार जो तीनों की आकृति अर्द्ध मंडप जैसी ही दिखाई देती है। इस मंदिर मंडप में 16 स्तंभ तथा चारों कोनों पर चार अलंकृत भित्ति स्तंभ है। मंदिर के वर्गाकार गर्भगृह में हाटकेश्वर महादेव विशाल जलाधारी के मध्य प्रतिष्ठित है। गर्भगृह में ही पद्मासना राजपुरूष सपत्नीक,पदमासना सत्पनीक ध्यान मग्य योगी,नृत्य गणपति की अष्ठभूजी प्रतिमा तथा फणीनागवंशी राजवंश के प्रतीक पांच फणों वाले नाग प्रतिमा रखी हुई है। काले भूरे बलुआ पत्थरों से निर्मित मंदिरी की वाहय दीवानों पर देवी देवताओं की चित्ताकर्षक एवं द्विभुजी सूर्यप्रतिमा प्रमुख है। मंदिर के वाह्य सौदर्य दर्शन का सबसे उपयुक्त स्थल ईशान कोण अर्थात भोरवदेव के ठीक सामने है,यहां से मंदिरन रथाकार दिखाई देखता है। यह मंदिर तल विन्यास से सप्तरथ चतुरंग,अंतराल,अंलकृत, स्तंभों से युक्त वर्गाकार मण्डप है। उध्र्व विन्यास में उधिष्ठान जंघा एवं शिखर मंदिर के प्रमुख अंग हे। मंदिर के जंघा की तीन पंकित्यों में विभिन्न देवी देवताओं की कृष्णलीला, नायक-नायिकाओं, अष्ठद्विकपालों, युद्ध एवं मैथुन दृष्यों में अलंककरण किया गया है।

छेरकी महल

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छेरकी महल भोरमदेव मंदिर के दक्षिण-पश्चिम में एक किलोमीटर की दूरी पर यह छेरकी महल स्थापित है। इस ऐतिहातिक एवं पुरात्व महत्व के छेरकीमहल में शिव भगवान विराजित है। ईंट प्रस्त्र निर्मित इस मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है। 14 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में निर्मित इस मंदिर में छेरी बकरी का गंध आज भी आती है, इसलिए इस मंदिर नुमा महल को छेरकी महल के नाम से जाना जाता है। द्वार चैखट की वाम पाश्र्व द्वारा शाखा में नीचे चर्तुभूजी शिव एवं द्विभुजी पार्वती खड़े है। मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है। मध्य में कृष्ण प्रस्तर निर्मित शिवलिंग जलाधारी पर स्थापित है।

मड़वा महल

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भोरमदेव मंदिर से आधे किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण में चैरा ग्राम के समीप एक प्रस्तर निर्मित पश्चिमांभिमुख एक शिव मंदिर है, जिसे मड़वा महल कहा जाता है। स्थानीय लोग इस दूल्हादेव मंदिर के नाम से जानते है। इस मंदिर का निर्माण फणिनागवंश के चैबीसवें राजा रामचन्द्र देवराज द्वारा 1349 ई में रतनपुर राज्य की कलचुरी राजकुमारी अंबिका देवी के संग विवाहोपरांत करवाया गया था। मड़वा महल के शिलालेख से मिलती हे। इस शिलालेख में फणिनावंश की उत्पत्ति तथा वंशावली दी गई है।

कबीरधाम जिले के बोडला विकासखण्ड के तरेगांव मार्ग पर कवर्धा से 45 किलोमीटर दूर प्राचीनतम पुरातात्विक एवं धार्मिक स्थल पचराही हाफ नदी के तट पर स्थित है। भोरमदेव में प्राप्त मूर्तियों एवं पचराही में प्राप्त मूर्तियों में जोगी मगरध्वज का उल्लेख होना देनों में सास्यता प्रदर्शित करता है। इसे स्थानीय लोग कंकालिन पचराही के नाम से जानते है। अलेक्जेंडर कविघंम यहां पर 18वीं सदी तक एक भव्य मंदिर होने का उल्लेख करते है,जिसके अंदर कंकालिन माला की मूर्ति थी। हाफ नदी के तट पर विकसत सभ्यता का प्रमाण प्रराताव्विक उत्खन्न उपरांत मिला है। यहां पंचायतन शैली का शिव मंदिर सबसे छोटी गणेश प्रतिमा हनुमान जी की अद्भुग प्रतिमा नगरे सभ्यता की वस्तुएं प्राप्त हुई है। खुदाई के दौरान 15 करोड़ वर्ष प्राचीन जलीय जीवाश्म मोलास्का प्रजाति का प्रमाण मिला है।

जैन तीर्थ बकेला

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कबीरधाम जिले विभिन्न धर्माे का समन्वय केन्द्र रहा है। यहां पर हिन्दू, जैन, सिक्ख, ईसाई और ईस्लाम धर्म को पर्याप्त सम्मान मिला है। पंडरिया तहसील मुख्यालय से 20 किलोमीटर पश्चिमोत्तर एवं पचराही से एक किलोमीटर की दूरी पर बकेला नामक स्थल है,जहां से नौवमीं दसवीं सदी की काले रंग की ग्रेनाईट से निर्मित जैन तीर्थकार प्रभु पाश्र्वनाथ की 51ईच उॅची प्रतिमा 1978 में प्राप्त हुई है। यहां पर जैन तीर्थ विकसित हो रहा है

सतखण्डा महल हरमो

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भोरमदेव मार्ग से हटकर पश्चिम दिशा में हरमो नामक गांव है,जहां एक भवन है,जिसे सतखण्डामहल के नाम से जाना जाता है। यहां सात खण्ड,छोटा जीना, सीढ़ी आदि निर्मित है। वनावट के आधार पर इसके किला भी कहा जा सकता है। इसकी पूर्व पश्चिम लम्बाई 21 मीटर एवं उत्तर दक्षिण चैड़ाई 10 मीटर तथा उचाई 45 फुट है। इसी भवन को प्रभु वल्लभाचार्य का जन्मस्थली बताया जा रहा है।

रामचुवा

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रामचुवा कवर्धा से 8 किमी पश्चिम मे जैतपुरी ग्राम के निकट मैकल पहाड़ की तलहटी मे स्थित है। रामचुआ पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है। यहां शिव, राम-जानकी, हनुमान व लक्ष्मीनारायण के अष्टमंदिर हैं। यहां पर जलकुंड,पाथवे बनाकर रामचुवा का विकास किया जा रहा है।

रानीदहरा

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रानीदहरा जलप्रपात बोड़ला के पश्चिम दिशा मे बैरख ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम रानीदहरा में स्थित है। प्रकृति प्रदत अनुपम सौंदर्य स्थल रानी दहरा मे पर्यटन की संभावनाओं को बढ़ावा देने रानीदहरा जलप्रपात मे स्थल सुविधाएं बढ़ाने कांक्रीट सीढ़ी निर्माण के लिये 25 लाख रूपये स्वीकृत किये हैं। मैकल पहाड़ों से कल-कल बहता झरने का पानी नीचे एकत्र होता है

चिल्फी घाटी

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मैकल की रानी चिल्फी घाटी जिले का खूबसूरत हिल स्टेशन हैं। चिल्फी घाटी मे जाड़े के दिन मे कड़ाके की ठंड पड़ती है। यहां चिरईयां के फूल, पहाड़ों पर ऊंचे-ऊंचे पेंड़,बादलों का अ˜ुत नजारा,बैगा आदिवासी जीवन आकर्षित करता है। चिल्फी घाटी क्षेत्र मे 27 नये स्टाॅप डैम बनाकर यहां जलसंरक्षण व जलसंवर्धन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे यहां की हरियाली बरकरार रहेगी व वन्यजीवों व लोगों के लिये निस्तार की सुविधा हो रही है।

भोरमदेव अभ्यारण्य

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छत्तीसगढ़ में 3 राष्ट्रीय उद्यान एवं 11 अभयारण्य है राज्य के राष्ट्रीय उद्यानों का कुल क्षेत्रफल 2899 वर्ग किलोमीटर तथा अभयारण्यों का कुल क्षेत्रफल 3568 वर्ग किलोमीटर है कि राज्य के कुल वन क्षेत्र का 11.55% एवं राज्य की कुल क्षेत्रफल का 4.79% है प्रदेश के 3 राष्ट्रीय उद्यान में बीजापुर जिले में इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर प्रोजेक्ट घोषित किया गया राज्य बनने के बाद प्रथम अभयारण्य भोरमदेव अभ्यारण्य है यह सन 2001 में बना इसमें मुख्य रूप से तेंदुआ चीतल मोर नीलगाय सांभर आदि पाए जाते हैं

लोहारा बावली

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कवर्धा की दक्षिण-पश्चिम दिशा में 20 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित लोहारा बावली बहुत खूबसूरत है। बैजनाथ सिंह ने इसका निर्माण 120 वर्ष पहले कराया था। मानसून आने से पहले गर्मी से निजात पाने के लिए कवर्धा के शासक इन कमरों में रहते थे।

कान्हा राष्ट्रीय पार्क

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विश्वप्रसिद्ध कान्हा राष्ट्रीय पार्क कवर्धा से 300 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है और अपनी हरियाली व वन्य जीवन के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहां पर पर्यटक साल के खूबसूरत वृक्षों और वन्य जीवन के खूबसूरत दृश्य देख सकते हैं। इसके वन्य जीवन की झलक पाने के लिए पर्यटक यहां आते हैं। वह यहां पर शेर, चीता, हिरण, तेंदुआ और कई प्रजातियों के खूबसूरत पक्षियों को देख सकते हैं।

सरोदादादर

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सरोदादादर कवर्धा जिले के चिंल्फी ब्लाक में आकर्षण का केंन्द्र है। इसें विश्व का बिंन्दू भी कहते हैं। [3]

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. "Inde du Nord - Madhya Pradesh et Chhattisgarh Archived 2019-07-03 at the वेबैक मशीन," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172
  2. "Pratiyogita Darpan Archived 2019-07-02 at the वेबैक मशीन," July 2007
  3. ड़ा.संजय अलंग-छत्तीसगढ़ की रियासतें और जमीन्दारियाँ (वैभव प्रकाशन, रायपुर1, ISBN 81-89244-96-5) ड़ा.संजय अलंग-छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ/Tribes और जातियाँ/Castes (मानसी पब्लीकेशन, दिल्ली6, ISBN 978-81-89559-32-8)