लिब्रहान आयोग
लिब्रहान आयोग, भारत सरकार द्वारा १९९२ में अयोध्या में विवादित ढांचे बाबरी मस्जिद के विध्वंस की जांच पड़ताल के लिए गठित एक जांच आयोग है,[1] जिसका कार्यकाल लगभग १७ वर्ष लंबा है। भारतीय गृह मंत्रालय के एक आदेश से १६ दिसंबर १९९२ को इस आयोग का गठन हुया था। इसका अध्यक्ष भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मनमोहन सिंह लिब्रहान को बनाया गया था, जिन्हें ६ दिसम्बर १९९२ को अयोध्या में ढहाये गये बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे और उसके बाद फैले दंगों की जांच का काम सौंपा गया था। आयोग को अपनी रिपोर्ट तीन महीने के भीतर पेश करनी थी, लेकिन इसका कार्यकाल अड़तालीस बार बढ़ाया गया और १७ वर्ष के लंबे अंतराल के बाद अंततः आयोग ने ३० जून २००९ को अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप दी।[2] नवम्बर २००९, में रिपोर्ट के कुछ हिस्से समाचार मीडिया के हाथ लग गये, जिसके चलते भारतीय संसद में बड़ा हंगामा हुआ।
आयोग के विचारार्थ विषय
[संपादित करें]आयोग को निम्न बिंदुओं की जांच कर अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था:
- ६ दिसम्बर १९९२ को अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित परिसर में घटीं प्रमुख घटनाओं का अनुक्रम और इससे संबंधित सभी तथ्य और परिस्थितियां जिनके चलते राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे का विध्वंस हुआ।
- राम जन्म भूमि -बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे के विध्वंस के संबंध में मुख्यमंत्री, मंत्री परिषद के सदस्यों, उत्तर प्रदेश की सरकार के अधिकारियों और गैर सरकारी व्यक्तियों, संबंधित संगठनों और एजेंसियों द्वारा निभाई गई भूमिका।
- निर्धारित किये गये या उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा व्यवहार में लाये जाने वाले सुरक्षा उपायों और अन्य सुरक्षा व्यवस्थाओं में कमियां जो ६ दिसम्बर १९९२ को राम जन्म भूमि - बाबरी मस्जिद परिसर, अयोध्या शहर और फैजाबाद मे हुई घटनाओं का कारण बनीं
- ६ दिसम्बर १९९२ को घटीं प्रमुख घटनाओं का अनुक्रम और इससे संबंधित सभी तथ्य और परिस्थितियां जिनके चलते अयोध्या में मीडिया कर्मियों पर हमला हुआ। इसके अतिरिक्त,
- जांच के विषय से संबंधित कोई भी अन्य मामला।
कार्यकाल और खर्चा
[संपादित करें]देश के सबसे लंबे समय तक चलने वाले जांच आयोगों में से एक इस एक व्यक्ति के पैनल के आयोग पर सरकार को कुल रु.8 करोड़ खर्च करना पड़ा, ने ६ दिसम्बर १९९२ को एक हिंदू उन्मादी भीड़ द्वारा ढहाये गये बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे से संबंधित प्रमुख घटनाओं पर एक जांच रिपोर्ट लिखी। सूत्रों ने इंडो-एशियन न्यूज़ सर्विस को बताया कि, अलावा इसके कि किसने इस 16 वीं सदी की मस्जिद को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, आयोग यह भी जानने की कोशिश करेगा कि इस विवादित ढांचे का विध्वंस क्यों और कैसे हुआ? और इसके लिए जिम्मेदार संगठन और लोग कौन हैं?
पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव द्वारा आयोग की नियुक्ति विध्वंस के दो सप्ताह बाद 16 दिसम्बर 1992 को इस आलोचना को टालने के लिए की गयी कि उनकी सरकार बाबरी मस्जिद की रक्षा करने में विफल रही थी। अगस्त 2005 में आयोग ने अपने आखिरी गवाह कल्याण सिंह की सुनवाई खत्म की जो उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और विध्वंस के ठीक बाद उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था।
अपनी १६ वर्षों की कार्रवाई में, आयोग ने कई नेताओं जैसे कल्याण सिंह, स्वर्गीय पी.वी. नरसिंह राव, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और मुलायम सिंह यादव के अलावा कई नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों के बयान दर्ज किये। उत्तर प्रदेश के शीर्ष नौकरशाहों और पुलिस अधिकारीयों के अलावा अयोध्या के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट आर.एन. श्रीवास्तव और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डी बी राय का बयान भी दर्ज किया गया।
== रिपोर्ट की विश्वसनियता सरकारी दबाव और तुस्टीकरण की नीति के अटकलों के मध्य इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर अनेको प्रश्न चिन्ह उठाये गए।
यह रिपोर्ट पूरी तरह से विश्वसनीय नही कहिंज सकती
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "लिब्रहान आयोग ने रिपोर्ट सौंपी". Archived from the original on 22 जुलाई 2018. Retrieved 20 जुलाई 2018.
- ↑ "Ayodhya attack report submitted". BBC News. Archived from the original on 3 जुलाई 2009. Retrieved 30 जून 2008.
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- लिब्रहान अयोध्या जांच आयोग की रिपोर्ट – पूरा पाठ
- अयोध्या लिब्रहान जांच आयोग की रिपोर्ट - पूरा पाठ
- रिपोर्ट को यहां और कार्रवाई रिपोर्ट को यहां से डाउनलोड करें
- गृह मंत्रालय (भारत) की वेबसाइट से अंशों में रिपोर्ट [1]