राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
यह लेख भारत के एक सांस्कृतिक संगठन आर एस एस के बारे में है। अन्य प्रयोग हेतु आर एस एस देखें।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का एक ,[1] हिन्दू राष्ट्रवादी,[2] अर्धसैनिक,[3] स्वयंसेवक संगठन हैं, जो व्यापक रूप से भारत के सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी का पैतृक संगठन माना जाता हैं।[4] यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपेक्षा संघ या आर.एस.एस. के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। बीबीसी के अनुसार संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है।[5] [6] [7] [8]
![]() राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ध्वज | |
संक्षेपाक्षर | आर० एस० एस० |
---|---|
स्थापना |
27 सितम्बर 1925 विजयादशमी १९२५ |
संस्थापक | डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार |
प्रकार | स्वयंसेवी, निःस्वार्थ राष्ट्रभक्ति[1], अर्धसैनिक[3][2] |
वैधानिक स्थिति | सक्रिय |
उद्देश्य | भारतीय राष्ट्रवाद[9] |
मुख्यालय | नागपुर, महाराष्ट्र, भारत |
निर्देशांक | 21°08′48″N 79°06′38″E / 21.146634°N 79.110654°Eनिर्देशांक: 21°08′48″N 79°06′38″E / 21.146634°N 79.110654°E |
सेवित क्षेत्र क्षेत्र |
भारत |
विधि | समूह चर्चा, बैठकों और अभ्यास के माध्यम से शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण |
सदस्यता |
५०-६० लाख[10][11][12] ५६८५९ शाखाएँ (२०१६)[13] |
आधिकारिक भाषा |
संस्कृत, हिन्दी |
महासचिव |
सुरेश 'भैयाजी' जोशी |
सरसंघचालक |
मोहन भागवत |
संबद्धता | संघ परिवार |
ध्येय | "मातृभूमि के लिए निःस्वार्थ सेवा" |
जालस्थल |
rss |
प्रारंभिक प्रोत्साहन हिंदू अनुशासन के माध्यम से चरित्र प्रशिक्षण प्रदान करना था और हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए हिंदू समुदाय को एकजुट करना था। संगठन भारतीय संस्कृति और नागरिक समाज के मूल्यों को बनाए रखने के आदर्शों को बढ़ावा देता है और बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को "मजबूत" करने के लिए हिंदुत्व की विचारधारा का प्रचार करता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यूरोपीय अधिकार-विंग समूहों से प्रारंभिक प्रेरणा मिली। धीरे-धीरे, आरएसएस एक प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी छतरी संगठन में उभरा, कई संबद्ध संगठनों को जन्म दिया जिसने कई विचारधाराओं, दानों और क्लबों को अपनी वैचारिक मान्यताओं को फैलाने के लिए स्थापित किया।[14]
इतिहास

संस्थापना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितंबर सन् १९२५ में विजयादशमी के दिन डॉ॰ केशव हेडगेवार द्वारा की गयी थी।
सबसे पहले ५० वर्ष बाद १९७५ में जब आपातकाल की घोषणा हुई तो तत्कालीन जनसंघ पर भी संघ के साथ प्रतिबंध लगा दिया गया। आपातकाल हटने के बाद जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हुआ और केन्द्र में मोरारजी देसाई के प्रधानमन्त्रित्व में मिलीजुली सरकार बनी। १९७५ के बाद से धीरे-धीरे इस संगठन का राजनैतिक महत्व बढ़ता गया और इसकी परिणति भाजपा जैसे राजनैतिक दल के रूप में हुई जिसे आमतौर पर संघ की राजनैतिक शाखा के रूप में देखा जाता है। संघ की स्थापना के ७५ वर्ष बाद सन् २००० में प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एन०डी०ए० की मिलीजुली सरकार भारत की केन्द्रीय सत्ता पर आसीन हुई।
सरसंघचालक
- डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार उपाख्य डॉक्टरजी (१९२५ - १९४०)
- माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरूजी (१९४० - १९७३)
- मधुकर दत्तात्रय देवरस उपाख्य बालासाहेब देवरस (१९७३ - १९९३)
- प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया (१९९३ - २०००)
- कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन उपाख्य सुदर्शनजी (२००० - २००९)
- डॉ॰ मोहनराव मधुकरराव भागवत (२००९ -)
-
माधव सदाशिवराव गोलवलकर
-
बालासाहेब देवरस
-
मोहन भागवत
संरचना
संघ में संगठनात्मक रूप से सबसे ऊपर सरसंघचालक का स्थान होता है जो पूरे संघ का दिशा-निर्देशन करते हैं। सरसंघचालक की नियुक्ति मनोनयन द्वारा होती है। प्रत्येक सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करता है। वर्तमान में संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत हैं। संघ के ज्यादातर कार्यों का निष्पादन शाखा के माध्यम से ही होता है, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर सुबह या शाम के समय एक घंटे के लिये स्वयंसेवकों का परस्पर मिलन होता है। वर्तमान में पूरे भारत में संघ की लगभग पचपन हजार से ज्यादा शाखा लगती हैं। वस्तुत: शाखा ही तो संघ की बुनियाद है जिसके ऊपर आज यह इतना विशाल संगठन खड़ा हुआ है। शाखा की सामान्य गतिविधियों में खेल, योग, वंदना और भारत एवं विश्व के सांस्कृतिक पहलुओं पर बौद्धिक चर्चा-परिचर्चा शामिल है।

संघ की रचनात्मक व्यवस्था इस प्रकार है:
- केंद्र
- क्षेत्र
- प्रान्त
- विभाग
- जिला
- तालुका/तहसील/महकमा
- नगर
- खण्ड
- मण्डल
- ग्राम
- शाखा
शाखा
शाखा किसी मैदान या खुली जगह पर एक घंटे की लगती है। शाखा में व्यायाम, खेल, सूर्य नमस्कार, समता (परेड), गीत और प्रार्थना होती है। सामान्यतः शाखा प्रतिदिन एक घंटे की ही लगती है। शाखाएँ निम्न प्रकार की होती हैं:
- प्रभात शाखा: सुबह लगने वाली शाखा को "प्रभात शाखा" कहते है।
- सायं शाखा: शाम को लगने वाली शाखा को "सायं शाखा" कहते है।
- रात्रि शाखा: रात्रि को लगने वाली शाखा को "रात्रि शाखा" कहते है।
- मिलन: सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को "मिलन" कहते है।
- संघ-मण्डली: महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को "संघ-मण्डली" कहते है।
पूरे भारत में अनुमानित रूप से ५५,००० से ज्यादा शाखा लगती हैं। विश्व के अन्य देशों में भी शाखाओं का कार्य चलता है, पर यह कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से नहीं चलता। कहीं पर "भारतीय स्वयंसेवक संघ" तो कहीं "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" के माध्यम से चलता है।
शाखा में "कार्यवाह" का पद सबसे बड़ा होता है। उसके बाद शाखाओं का दैनिक कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए "मुख्य शिक्षक" का पद होता है। शाखा में बौद्धिक व शारीरिक क्रियाओं के साथ स्वयंसेवकों का पूर्ण विकास किया जाता है।
जो भी सदस्य शाखा में स्वयं की इच्छा से आता है, वह "स्वयंसेवक" कहलाता हैं।
संबंधित संगठन
अनेकों संगठन हैं जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित हैं और स्वयं को संघ परिवार के सदस्य बताते हैं।[15] अधिकांश मामलों में, इन संगठनों के शुरूआती वर्षों में इनके प्रारम्भ और प्रबन्धन हेतु प्रचारकों (संघ के पूर्णकालिक स्वयंसेवक) को नियुक्त किया जाता था।
संघ दुनिया के लगभग 80 से अधिक देशों में कार्यरत है। संघ के लगभग 50 से ज्यादा संगठन राष्ट्रीय ओर अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है ओर लगभग 200 से अधिक संघठन क्षेत्रीय प्रभाव रखते हैं। जिसमे कुछ प्रमुख संगठन है जो संघ की विचारधारा को आधार मानकर राष्ट्र और सामाज के बीच सक्रिय है। जिनमे कुछ राष्ट्रवादी, सामाजिक, राजनैतिक, युवा वर्गों के बीच में कार्य करने वाले, शिक्षा के क्षेत्र में, सेवा के क्षेत्र में, सुरक्षा के क्षेत्र में, धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में, संतो के बीच में, विदेशो में, अन्य कई क्षेत्रों में संघ परिवार के संघठन सक्रिय रहते हैं।
सम्बद्ध संगठनों में कुछ प्रमुख संगठन ये हैं -[16]
- भारतीय जनता पार्टी (भा० ज० पा०)[17]
- सहकार भारती[17]
- भारतीय किसान संघ[17]
- भारतीय मजदूर संघ[17]
- सेवा भारती
- राष्ट्र सेविका समिति[17]
- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद[17]
- विश्व हिन्दू परिषद[17]
- हिन्दू स्वयंसेवक संघ
- स्वदेशी जागरण मंच[18]
- सरस्वती शिशु मंदिर
- विद्या भारती
- वनवासी कल्याण आश्रम
- मुस्लिम राष्ट्रीय मंच
- बजरंग दल
- लघु उद्योग भारती[19][20]
- भारतीय विचार केन्द्र
- विश्व संवाद केन्द्र
- राष्ट्रीय सिख संगत[21]
- हिन्दू जागरण मंच (हि० जा० म०)[17]
- विवेकानन्द केन्द्र
संघ शिक्षण वर्ग

ये वर्ग बौद्धिक और शारीरिक रूप से स्वयंसेवकों को संघ की जानकारी तो देते ही हैं साथ-साथ समाज, राष्ट्र और धर्म की शिक्षा भी देते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं:
- दीपावली वर्ग — ये वर्ग तीन दिनों का होता है। ये वर्ग तालुका या नगर स्तर पर आयोजित किया जाता है। ये हर साल दीपावली के आस पास आयोजित होता है।
- शीत शिविर या (हेमंत शिविर) — ये वर्ग तीन दिनों का होता है, जो जिला या विभाग स्तर पर आयोजित किया जाता है। ये हर साल दिसंबर में आयोजित होता है।
- निवासी वर्ग — ये वर्ग शाम से सुबह तक होता है। ये वर्ग हर महीने होता है। ये वर्ग शाखा, नगर या तालुका द्वारा आयोजित होता है।
- बौद्धिक वर्ग — ये वर्ग हर महीने, दो महीने या तीन महीने में एक बार होता है। ये वर्ग सामान्यत: नगर या तालुका आयोजित करता है।
- शारीरिक वर्ग — ये वर्ग हर महीने, दो महीने या तीन महीने में एक बार होता है। ये वर्ग सामान्यत: नगर या तालुका आयोजित करता है।
- संघ शिक्षा वर्ग — प्राथमिक वर्ग, प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष और तृतीय वर्ष - कुल चार प्रकार के संघ शिक्षा वर्ग होते हैं।
- "प्राथमिक वर्ग" एक सप्ताह का होता है। इस वर्ग का आयोजन सामान्यतः जिला करता है।
- "प्रथम" और "द्वितीय वर्ग" २०-२० दिन के होते हैं। इस वर्ग का आयोजन सामान्यत: प्रान्त करता है। "द्वितीय संघ शिक्षा वर्ग" का आयोजन सामान्यत: क्षेत्र करता है।
- "तृतीय वर्ग" 25 दिनों का होता है। इसका आयोजन हर साल नागपुर में ही होता है।
कार्य
सामाजिक सेवा और सुधार
हिन्दू धर्म में सामाजिक समानता के लिये संघ ने दलितों व पिछड़े वर्गों को मन्दिर में पुजारी पद के प्रशिक्षण का पक्ष लिया है। उनके अनुसार सामाजिक वर्गीकरण ही हिन्दू मूल्यों के हनन का कारण है।[22]
महात्मा गांधी ने १९३४ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर की यात्रा के दौरान वहाँ पूर्ण अनुशासन देखा और छुआछूत की अनुपस्थिति पायी। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से पूछताछ की और जाना कि वहाँ लोग एक साथ रह रहे हैं तथा एक साथ भोजन कर रहे हैं।[23]
राहत और पुनर्वास
राहत और पुर्नवास संघ कि पुरानी परंपरा रही है। संघ ने १९७१ के उड़ीसा चक्रवात और १९७७ के आंध्र प्रदेश चक्रवात में रहत कार्यों में महती भूमिका निभाई है।[24]
संघ से जुडी सेवा भारती ने जम्मू कश्मीर से आतंकवाद से परेशान ५७ अनाथ बच्चों को गोद लिया हे जिनमे ३८ मुस्लिम और १९ हिंदू है।
उपलब्धियाँ
संघ की उपस्थिति भारतीय समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा सकती है जिसकी शुरुआत सन १९२५ से होती है। उदाहरण के तौर पर सन १९६२ के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को सन १९६३ के गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होने का निमन्त्रण दिया।[25] केवल दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहाँ उपस्थित हो गये।
दादरा, नगर हवेली, और गोवा का वि-उपनिवेशीकरण
दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका रही। 21 जुलाई 1954 को दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई। संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया।
इसी प्रकार संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे। गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से जवाहरलाल नेहरू के इनकार करने पर जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच कर आंदोलन शुरू किया, जिसका परिणाम जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा हुई। हालत बिगड़ने पर अंततः भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा स्वतन्त्र हुआ।[26][27]
आपातकाल के विरुद्ध आन्दोलन
२५ जून १९७५ को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सभी संवैधानिक व्यवस्थाओं, राजनीतिक शिष्टाचार तथा सामाजिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर मात्र अपना राजनीतिक अस्तित्व और सत्ता बचाने के लिए देश में आपातकाल थोप दिया। उस समय इंदिरा गांधी की अधिनायकवादी नीतियों, भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा और सामाजिक अव्यवस्था के विरुद्ध सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में ‘समग्र क्रांति आंदोलन’ चल रहा था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ तथा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्ण समर्थन मिल जाने से यह आंदोलन एक शक्तिशाली, संगठित देशव्यापी आंदोलन बन गया। इस समय देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही एकमात्र ऐसी संगठित शक्ति थी, जो इंदिरा गांधी की तानाशाही के साथ टक्कर लेकर उसे धूल चटा सकती थी। इस संभावित प्रतिकार को ध्यान में रखते हुए इन्दिरा गांधी ने संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अलावा अन्य छोटी-मोटी २१ संस्थाओं को प्रतिबन्धित किया गया। किन्तु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अलावा किसी की ओर से विरोध का एक भी स्वर नहीं उठा। इससे उत्साहित हुई इंदिरा गांधी ने सभी प्रांतों के पुलिस अधिकारियों को संघ के कार्यकर्ताओं की धरपकड़ तेज करने के आदेश दे दिये। संघ के भूमिगत नेतृत्व ने उस चुनौती को स्वीकार करके समस्त भारतीयों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करने का बीड़ा उठाया और एक राष्ट्रव्यापी अहिंसक आंदोलन के प्रयास में जुट गए। थोड़े ही दिनों में देशभर की सभी शाखाओं के तार भूमिगत केन्द्रीय नेतृत्व के साथ जुड़ गए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भूमिगत नेतृत्व (संघचालक, कार्यवाह, प्रचारक) एवं संघ के विभिन्न अनुषांगिक संगठनों जनसंघ, विद्यार्थी परिषद, विश्व हिन्दू परिषद एवं मजदूर संघ इत्यादि लगभग ३० संगठनों ने भी इस आंदोलन को सफल बनाने हेतु अपनी ताकत झोंक दी। संघ के भूमिगत नेतृत्व ने गैर कांग्रेसी राजनीतिक दलों, निष्पक्ष बुद्धिजीवियों एवं विभिन्न विचार के लोगों को भी एक मंच पर एकत्र कर दिया। संघ ने नाम और प्रसिद्धि से दूर रहते हुए राष्ट्रहित में काम करने की अपनी कार्यपद्धति को बनाए रखते हुए यह आन्दोलन लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा घोषित ‘लोक संघर्ष समिति’ तथा ‘युवा छात्र संघर्ष समिति’ के नाम से ही चलाया। संगठनात्मक बैठकें, जन जागरण हेतु साहित्य का प्रकाशन और वितरण, सम्पर्क की योजना, सत्याग्रहियों की तैयारी, सत्याग्रह का स्थान, प्रत्यक्ष सत्याग्रह, जेल में गए कार्यकर्ताओं के परिवारों की चिंता/सहयोग,प्रशासन और पुलिस की रणनीति की टोह लेने के लिए स्वयंसेवकों का गुप्तचर विभाग आदि अनेक कामों में संघ के भूमिगत नेतृत्व ने अपने संगठन कौशल का परिचय दिया।
इस आंदोलन में भाग लेकर जेल जाने वाले सत्याग्रही स्वयंसेवकों की संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा थी। सभी आयुवर्ग के स्वयंसेवकों ने गिरफ्तारी से पूर्व और बाद में पुलिस के लॉकअप में यातनाएं सहीं। उल्लेखनीय है कि उस समय पूरे भारत में संघ के प्रचारकों की कुल संख्या १३५६ थी (अनुषांगिक संगठनों के प्रचारक इसमें शामिल नहीं हैं) जिनमें से मात्र १८९ को ही पुलिस पकड़ सकी, शेष भूमिगत रहकर आन्दोलन का संचालन करते रहे। स्वयंसेवकों ने विदेशों में भी जाकर इमरजेंसी को वापस लेने का दबाव बनाने का सफल प्रयास किया। विदेशों में इन कार्यकर्ताओं ने ‘भारतीय स्वयंसेवक संघ’ तथा ‘फ्रेंड्स ऑफ इंडिया सोसायटी’ के नाम से विचार गोष्ठियों तथा साहित्य वितरण जैसे अनेक कामों को अंजाम दिया।
बाद में इंदिरा गांधी ने संघ के भूमिगत नेतृत्व एवं जेलों में बन्द नेतृत्व के साथ एक प्रकार की राजनीतिक सौदेबाजी करने का विफल प्रयास किया था। उन्होने कहा– ‘‘संघ से प्रतिबन्ध हटाकर सभी स्वयंसेवकों को जेलों से मुक्त किया जा सकता है, यदि संघ इस आंदोलन से अलग हो जाए’’। परन्तु संघ ने आपातकाल हटाकर लोकतंत्र की बहाली से कम कुछ भी स्वीकार करने से मना कर दिया। संघ ने इंदिरा गान्धी के पास स्पष्ट संदेश भेज दिया गया – ‘‘देश की जनता के इस आंदोलन का संघ ने समर्थन किया है, हम देशवासियों के साथ विश्वासघात नहीं कर सकते, हमारे लिए देश पहले है, संगठन बाद में’’।
अन्त में देश में हो रहे प्रचण्ड विरोध एवं विश्वस्तरीय दबाव के कारण आम चुनाव की घोषणा कर दी गई। इंदिरा गान्धी ने समझा था कि बिखरा हुआ विपक्ष एकजुट होकर चुनाव नहीं लड़ सकेगा, परन्तु संघ ने इस चुनौती को भी स्वीकार करके सभी विपक्षी पार्टियों को एकत्र करने जैसे अति कठिन कार्य को भी कर दिखाया। संघ के दो वरिष्ठ अधिकारियों प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या) और दत्तोपंत ठेंगडी ने प्रयत्नपूर्वक चार बड़े राजनीतिक दलों को अपने दलगत स्वार्थों से ऊपर उठकर एक मंच पर आने को तैयार करा लिया। सभी दल जनता पार्टी के रूप में चुनाव के लिए तैयार हो गए।
चुनाव के समय जनसंघ को छोड़कर किसी भी दल के पास कार्यकर्ता नाम की कोई चीज नहीं थी, सभी के संगठनात्मक ढांचे शिथिल पड़ चुके थे, इस कमी को भी संघ ने ही पूरा किया. लोकतंत्र की रक्षा हेतु संघर्षरत स्वयंसेवकों ने अब चुनाव के संचालन का बड़ा उत्तरदायित्व भी निभाया। अन्ततः जनता विजयी हुई और देश को पुनः लोकतंत्र मिल गया।
आलोचनाएँ और आरोप
महात्मा गाँधी की १९४८ में संघ के पूर्व सदस्य नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी जिसके बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गोडसे संघ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक भूतपूर्व स्वयंसेवक थे। बाद में एक जाँच समिति की रिपोर्ट आ जाने के बाद संघ को इस आरोप से बरी किया और प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया।
संघ के आलोचकों द्वारा संघ को एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन बताया जाता रहा है एवं हिंदूवादी और फ़ासीवादी संगठन के तौर पर संघ की आलोचना भी की जाती रही है। जबकि संघ के स्वयंसेवकों का यह कहना है कि सरकार एवं देश की अधिकांश पार्टियाँ अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में लिप्त रहती हैं। विवादास्पद शाहबानो प्रकरण एवं हज-यात्रा में दी जानेवाली सब्सिडी इत्यादि सरकारी नीति उसके अनुसार इसके प्रमाण हैं।
संघ का यह मानना है कि ऐतिहासिक रूप से हिंदू स्वदेश में हमेशा से ही उपेक्षित और उत्पीड़ित रहे हैं और वह सिर्फ़ हिंदुओं के जायज अधिकारों की ही बात करता है जबकि उसके विपरीत उसके आलोचकों का यह आरोप है कि ऐसे विचारों के प्रचार से भारत की धर्मनिरपेक्ष बुनियाद कमज़ोर होती है। संघ की इस बारे में मान्यता है कि हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति का नाम है, किसी विशेष पूजा पद्धति को मानने वालों को हिन्दू कहते हों ऐसा नहीं है। हर वह व्यक्ति जो भारत को अपनी जन्म-भूमि मानता है, मातृ-भूमि व पितृ-भूमि मानता है (अर्थात् जहाँ उसके पूर्वज रहते आये हैं) तथा उसे पुण्य भूमि भी मानता है (अर्थात् जहां उसके देवी देवताओं का वास है); हिन्दू है। संघ की यह भी मान्यता है कि भारत यदि धर्मनिरपेक्ष है तो इसका कारण भी केवल यह है कि यहां हिन्दू बहुमत में हैं। इस क्रम में सबसे विवादास्पद और चर्चित मामला अयोध्या विवाद रहा है जिसमें बाबर द्वारा सोलहवीं सदी में निर्मित एक बाबरी मसजिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण करना है।
भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में भगवा ध्वज अपनाने का पक्षधर
आरम्भ में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगे के स्थान पर भगवा ध्वज को स्वीकार करने का पक्षधर था। संघ ने, अपने मुखपत्र "ऑर्गनाइज़र" के १७ जुलाई १९४७ दिनांक के "राष्ट्रीय ध्वज" शीर्षक वाले संपादकीय में, "भगवा ध्वज" को राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार करने की मांग की।[28]
संघ की प्रार्थना

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे (सदा वत्सल मातृभूमि, आपके सामने शीश झुकाता हूँ।) संघ की प्रार्थना है। यह संस्कृत में है और इसकी अन्तिम पंक्ति हिन्दी में है। संघ की शाखा या अन्य कार्यक्रमों में इस प्रार्थना को अनिवार्यतः गाया जाता है और ध्वज के सम्मुख नमन किया जाता है। लड़कियों/स्त्रियों की शाखा राष्ट्र सेविका समिति और विदेशों में लगने वाली हिन्दू स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना अलग है।
ख्यातिप्राप्त स्वयंसेवक
- रामनाथ कोविंद
- अटल बिहारी वाजपेयी
- एकनाथ रानडे
- नरेंद्र मोदी
- मनोहर पर्रिकर
- नितिन गडकरी
- राजनाथ सिंह
- मुरली मनोहर जोशी
- वेंकैया नायडू
- विजय रूपाणी
- देवेंद्र फडणवीस
- राम माधव
- अमित शाह
-
अटल बिहारी वाजपेयी, भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले पहले स्वयंसेवक
-
नरेंद्र मोदी,भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले दूसरे स्वयंसेवक
-
रामनाथ कोविंद,भारत का राष्ट्रपति बनने वाले पहले स्वयंसेवक
-
वेंकैया नायडू , भारत के उपराष्ट्रपति बनने वाले पहले स्वयंसेवक
संघ साहित्य के प्रकाशक
निम्नलिखित प्रकाशन संघ की योजना द्वारा संचालित नहीं है, निजी हैं। इन प्रकाशनों ने भी उच्च कोटि का संघ साहित्य बड़ी संख्या में प्रकाशित किया है।
- सुरुचि प्रकाशन , देशबन्धु गुप्ता मार्ग , झण्डेवाला, नई दिल्ली-५५
- लोकहित प्रकाशन , संस्कृति भवन ; राजेन्द्र नगर, लखनऊ-४
- राष्ट्रोत्थान साहित्य , केशव शिल्प ; केम्पगौड़ा नगर, बंगलौर-१९
- भारतीय विचार साधना
- डॉ॰ हेडगेवार भवन महाल, नागपुर-४४०००२
- मोती बाग ; ३०९, शनिवार पेठ, पुणे-४११०३०
- मंगलदास बाड़ी, डॉ॰ भडकम्कर मार्ग नाज सिनेमा परिसर, मुम्बई-४०००४
- ज्ञान गंगा प्रकाशन , भारती भवन, बी-१५, न्यू कालोनी, जयपुर-३०२००१
- अर्चना प्रकाशन , एच.आई.जी.-१८, शिवाजी नगर, भोपाल-४६२०१६
- साधना पुस्तक प्रकाशन , राम निवास ; बलिया काका मार्ग, जूनाढोर बाजार के सामने, कांकरिया, अमदाबाद -३८००२८
- सातवलेकर स्वाध्याय , पो - किलापारडी , मण्डल जिला-वलसाड, गुजरात-३९६१२५
- साहित्य निकेतन , ३-४/८५२, बरकतपुरा, हैदराबाद-५०००२७
- स्वस्तिश्री प्रकाशन , ४४/९, नवसहयाद्री सोसाइटी , नवसहयाद्री पोस्टास मोर पुणे-४११०५२
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- सूर्य भारती प्रकाशन , २५९६, नई सड़क, दिल्ली-११०००६
चित्र दीर्घा
सन्दर्भ
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- ↑ आर एस एस की अंतर्शक्ति से हुआ था पुर्तगाल का प्रतिरोध और गोवा का विलय
- ↑ Shamsul Islam, Religious Dimensions 2006, p. 56.
इन्हें भी देखें
- विचारधारा
- संघ परिवार
- राष्ट्रसेविका समिति
- हिन्दू स्वयंसेवक संघ
- भारतीय जनता पार्टी
- नमस्ते सदा वत्सले
- विश्व हिंदू परिषद
- हिन्दू संगठनों की सूची
- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालकों की सूची
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और स्वतंत्रता संग्राम
बाहरी कड़ियाँ
- संघ का आधिकारिक जालस्थल
- Archieves of RSS
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इतिहास
- पांचजन्य - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुखपत्र (हिन्दी साप्ताहिक)
- Organiser (आर्गनाइजर) - आर एस एस का मुखपत्र (अंग्रेजी साप्ताहिक)
- साधना (राष्ट्रीय विचारों का गुजराती साप्ताहिक)
- हिन्दू स्वयंसेवकसंघ, यूएसए की पत्रिका " तत्त्व " (अंग्रेजी में)
- श्री गोलवलकर गुरुजी - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव सदाशिव गोलवलकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को समर्पित हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी जालघर
- राष्ट्र का संगठन : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ - संघ का परिचय देता हुआ लेख
- गीत गंगा - दस से भी अधिक भारतीय भाषाओं में सैकडों राष्ट्रभक्ति गीत एवं एम् पी-३
- सामाजिक कार्यों की फसल उगा रहा है संघ
- संघ की प्रेरणा से भारतवर्ष में चल रहे हैं सेवा-कार्य
- दीप जो जलता रहा " श्री श्री गुरूजी जन्मशताब्दी वर्ष पर विशेष "
- संघ दृष्टि और राष्ट्रीय सुरक्षा (स्वदेश)
- समाज बदलने का बीड़ा[मृत कड़ियाँ]
- राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ तब और अब : भाग-1[मृत कड़ियाँ], भाग-२[मृत कड़ियाँ], भाग-३[मृत कड़ियाँ]