दलित
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विशेष निवासक्षेत्र | |
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![]() | 20.14 करोड़[1] (2011) |
![]() | 65 लाख[2] (2010) |
![]() | 50 लाख[3] (2011) |
![]() | 50 लाख[4] (2011) |
![]() | 30 लाख (2011) |
![]() | 5 लाख[5] (2013) |
![]() | अज्ञात (2013) |
![]() | 2.5 लाख[6] (2013) |
![]() | अज्ञात (2013) |
![]() | अज्ञात (2013) |
भाषाएँ | |
दक्षिण एशियाई भाषा | |
धर्म | |
हिन्दू · सिक्ख · बौद्ध · ईसाई · इस्लाम | |
सम्बन्धित सजातीय समूह | |
इंडो आर्यन, द्रविड़, मुंडा |
दलित अंग्रेज़ी शब्द डिप्रेस्ड क्लास का हिन्दी अनुवाद है। भारत में वर्तमान समय में 'दलित' शब्द का अनेक अर्थों में उपयोग होता है। वैसे तो इसकी कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं हो सकती, किन्तु मोटे तौर पर उन वर्गों को दलित कहा जाता है जो वर्तमान में अनुसूचित जाति के अन्तर्गत आते हैं। दलित शब्द का अर्थ पीड़ित, शोषित, 'दबाया हुआ' एंव 'जिनका हक छीना गया हो' होता है। इस अर्थ में हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आदि सभी धर्मों में दलित वर्ग मौजूद है। वर्तमान समय में जिनको दलित समझा जाता है उनमें से अनेक वर्गों को पहले 'अछूत' या 'अस्पृश्य' माना जाता था। उनका अनेक प्रकार से शोषण हुआ। भारत की जनगणना २०११ के अनुसार भारत की जनसंख्या में लगभग 16.6 प्रतिशत या 20.14 करोड़ आबादी दलितों की है।[1]
अर्थ व अवधारणा
दलित शब्द का शाब्दिक अर्थ है- दलन किया हुआ। इसके तहत वह हर व्यक्ति आ जाता है जिसका शोषण-उत्पीडन हुआ है। रामचन्द्र वर्मा ने अपने शब्दकोश में दलित का अर्थ लिखा है, मसला हुआ, मर्दित, दबाया, रौंदा या कुचला हुआ, विनष्ट किया हुआ।[7] पिछले छह-सात दशकों में 'दलित' पद का अर्थ काफी बदल गया है। डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर के आंदोलन के बाद यह शब्द हिंदू समाज व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर स्थित सैकड़ो वर्षों से अस्पृश्य समझी जाने वाली तमाम जातियों के लिए सामूहिक रूप से प्रयोग होता है। अब दलित पद अस्पृश्य समझी जाने वाली जातियों की आंदोलनधर्मिता का परिचायक बन गया है। भारतीय संविधान में इन जातियों को अनुसूचित जाति नाम से जाना जाता है।[8] भारतीय समाज में वाल्मीकि या भंगी को सबसे नीची जाति समझा जाता रहा है और उसका पारंपरिक पेशा मानव मल की सफाई करना रहा है। परन्तु आज के समय में इस स्थिति में बहुत बदलाव आया है। दलित का अर्थ शंकराचार्य ने मधुराष्टकम् में द्वैत से लिया है।उन्होंने "दलितं मधुरं" कहकर श्रीकृष्ण को संम्बोधित किया है।
दलितों पर अत्याचार
मध्य प्रदेश के छतरपुर में दलित दूल्हे को ऊंची जाति (यादव समुदाय) के लोगों द्वारा कथित तौर पर घोड़ी चढ़ने से रोका गया। यादवों ने घोड़े की लगाम खींच कर दूल्हे को नीचे गिराया तथा उसकी बुरी तरह से पिटाई की।[9][10]
आधुनिक भारत व दलित अधिकार
आज दलितों को भारत में जो भी अधिकार मिले हैं उसकी पृष्ठभूमि इसी शासन की देन थी। यूरोप में हुए पुर्नजागरण और ज्ञानोदय आंदोलनों के बाद मानवीय मूल्यों का महिमा मंडन हुआ। यही मानवीय मूल्य यूरोप की क्रांति के आदर्श बने। इन आदर्शों की जरिए ही यूरोप में एक ऐसे समाज की रचना की गई जिसमें मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता दी गई। ये अलग बाद है कि औद्योगिकीकरण के चलते इन मूल्यों की जगह सबसे पहले पूंजी ने भी यूरोप में ली। ..लेकिन इसके बावजूद यूरोप में ही सबसे पहले मानवीय अधिकारों को कानूनी मान्यता दी गई। इसका सीधा असर भारत पर पड़ना लाजमी था और पड़ा भी। इसका सीधा सा असर हम भारत के संविधान में देख सकते हैं। भारतीय संविधान की प्रस्तावना से लेकर सभी अनुच्छेद इन्ही मानवीय अधिकारों की रक्षा करते नज़र आते हैं। भारत में दलितों की कानूनी लड़ाई लड़ने का जिम्मा सबसे सशक्त रूप में डॉ॰ अम्बेडकर ने उठाया। डॉ अम्बेडकर दलित समाज के प्रणेता हैं। बाबा साहब अम्बेडकर ने सबसे पहले देश में दलितों के लिए सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों की पैरवी की।[11]
साफ दौर भारतीय समाज के तात्कालिक स्वरूप का विरोध और समाज के सबसे पिछडे़ और तिरस्कृत लोगों के अधिकारों की बात की। राजनीतिक और सामाजिक हर रूप में इसका विरोध स्वाभाविक था। यहां तक की महात्मा गांधी भी इन मांगों के विरोध में कूद पड़े। बाबा साहब ने मांग की कि दलितों को अलग प्रतिनिधित्व (पृथक निर्वाचिका) मिलना चाहिए यह दलित राजनीति में आज तक की सबसे सशक्त और प्रबल मांग थी। देश की स्वतंत्रता का बीड़ा अपने कंधे पर मानने वाली कांग्रेस की सांसें भी इस मांग पर थम गई थीं। कारण साफ था समाज के ताने बाने में लोगों का सीधा स्वार्थ निहित था और कोई भी इस ताने बाने में जरा सा भी बदलाव नहीं करना चाहता था। महात्मा गांधी जी को इसके विरोध की लाठी बनाया गई और बैठा दिया गया आमरण अनशन पर। आमरण अनशन वैसे ही देश के महात्मा के सबसे प्रबल हथियार था और वो इस हथियार को आये दिन अपनी बातों को मनाने के लिए प्रयोग करते रहते थे। बाबा साहब किसी भी कीमत पर इस मांग से पीछे नहीं हटना चाहते थे वो जानते थे कि इस मांग से पीछे हटने का सीधा सा मतलब था दलितों के लिए उठाई गई सबसे महत्वपूर्ण मांग के ख़िलाफ़ में हामी भरना। लेकिन उन पर चारों ओर से दबाव पड़ने लगा। और अन्ततः पूना पैक्ट के नाम से एक समझौते में दलितों के अधिकारों की मांग को धर्म की दुहाई देकर समाप्त कर दिया गया। इन सबके बावजूद डॉ॰अम्बेडकर ने हार नहीं मानी और समाज के निचले तबकों के लोगों की लड़ाई जारी रखी। अम्बेडकर की प्रयासों का ही ये परिणाम है कि दलितों के अधिकारों को भारतीय संविधान में जगह दी गई। यहां तक कि संविधान के मौलिक अधिकारों के जरिए भी दलितों के अधिकारों की रक्षा करने की कोशिश की गई।
दलित समाज के प्रेरणास्रोत व्यक्ति
- भीमराव अम्बेडकर
- संत कबीर
- संत शिरोमणि रविदास
- सावित्रीबाई फुले
- ज्योतिबा फुले
- पेरियार
- गाडगे बाबा
- जगजीवन राम
- के. आर. नारायणन
- कांशीराम
- मायावती
- रामनाथ कोविंद
- अण्णा भाऊ साठे
- लहुजी साळवे
- रामविलास पासवान
- भोला पासवान शास्त्री
- चंद्रशेखर रावण
दलित साहित्य
हालांकि साहित्य में दलित वर्ग की उपस्थिति बौद्ध काल से मुखरित रही है किंतु एक लक्षित मानवाधिकार आंदोलन के रूप में दलित साहित्य मुख्यतः बीसवीं सदी की देन है।[12] दलित साहित्य से तात्पर्य दलित जीवन और उसकी समस्याओं पर लेखन को केन्द्र में रखकर हुए साहित्यिक आंदोलन से है । दलितों को हिंदू समाज व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर होने के कारण न्याय, शिक्षा, समानता तथा स्वतंत्रता आदि मौलिक अधिकारों से भी वंचित रखा गया। उन्हें अपने ही धर्म में अछूत या अस्पृश्य माना गया। दलित साहित्यकारों में से अनेकों ने दलित पीड़ा को कविता की शैली में प्रस्तुत किया। कुछ विद्वान 1914 में ’सरस्वती’ पत्रिका में हीरा डोम द्वारा लिखित ’अछूत की शिकायत’ को पहली दलित कविता मानते हैं। कुछ अन्य विद्वान स्वामी अछूतानन्द ‘हरिहर’ को पहला दलित कवि कहते हैं, उनकी कविताएँ 1910 से 1927 तक लिखी गई। उसी श्रेणी मे 40 के दशक में बिहारी लाल हरित ने दलितों की पीड़ा को कविता-बद्ध ही नहीं किया, अपितु अपनी भजन मंडली के साथ दलितों को जाग्रत भी किया। दलितों की दुर्दशा पर बिहारी लाल हरित ने लिखा :
- एक रुपये में जमींदार के, सोलह आदमी भरती।
- रोजाना भूखे मरते, मुझे कहे बिना ना सरती॥[13]
- दादा का कर्जा पोते से, नहीं उतरने पाया।
- तीन रुपये में जमींदार के, सत्तर साल कमाया॥
सन्दर्भ
- ↑ अ आ "Half of India's dalit population lives in 4 states - Times of India". The Times of India. Archived from the original on 2 मार्च 2019. Retrieved 1 मार्च 2019.
- ↑ "The Dalits In Bangladesh". The Daily Star. 19 जन॰ 2016. Archived from the original on 2 मार्च 2019. Retrieved 1 मार्च 2019.
- ↑ Pasic, Damir. "Nepal". International Dalit Solidarity Network. Archived from the original on 2 मार्च 2019. Retrieved 1 मार्च 2019.
- ↑ Pasic, Damir. "Sri Lanka". International Dalit Solidarity Network. Archived from the original on 2 मार्च 2019. Retrieved 1 मार्च 2019.
- ↑ "Experiences of caste prejudice in UK". BBC News. Archived from the original on 2 मार्च 2019. Retrieved 1 मार्च 2019.
- ↑ "About". Archived from the original on 2 मार्च 2019. Retrieved 1 मार्च 2019.
- ↑ संक्षिप्त शब्द सागर -रामचन्द्र वर्मा (सम्पादक), नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, नवम संस्करण, 1987, पृष्ठ 468
- ↑ "From Buddhist texts to East India Company to now, 'Dalit' has come a long way - Times of India". The Times of India. Archived from the original on 7 अप्रैल 2019. Retrieved 1 मार्च 2019.
- ↑ "दलित दूल्हा घोड़ा पर चढ़कर जा रहा था बारात, ऊंची जाति वाले आए और खींच दी लगाम, गिरकर लड़का घाय". Jansatta.
- ↑ "मध्य प्रदेश: दबंगों ने दलित दूल्हे को घोड़ी चढ़ने से रोका, केस दर्ज". AajTak.
- ↑ कितना सच हुआ दलितों के लिए भीमराव अंबेडकर का सपना? - दा इंडियन वायर
- ↑ भारतीय दलित आंदोलन : एक संक्षिप्त इतिहास, लेखक : मोहनदास नैमिशराय, बुक्स फॉर चेन्ज, आई॰एस॰बी॰एन॰ : ८१-८७८३०-५१-१
- ↑ https://epustakalay.com/writer/39913/
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
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