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| wives =[[साईबाई]], [[सोयराबाई]], [[पुतलाबाई]],[[गुणवंतबाई]], [[सगुणबाई]], [[सकवारबाई]], [[लक्ष्मीबाई]], [[काशीबाई]]}}''' छत्रपति शिवाजी भोसले ''' ([[१६३०|1630]]-[[१६८०|1680]] ई.) [[भारत]] के एक महान राजा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने [[१६७४|1674]] ई. में [[पश्चिमी भारत|पश्चिम भारत]] में [[मराठा साम्राज्य]] की नींव रखी। इसके लिए उन्होंने [[मुग़ल साम्राज्य|मुगल]] [[साम्राज्य]] के शासक [[औरंगज़ेब]] से संघर्ष किया। सन् [[१६७४|1674]] में [[रायगढ़]] में उनका राज्याभिषेक हुआ और वह "छत्रपति" बने। छत्रपती शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों कि सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने [[समर-विद्या]] में अनेक [[नवाचार]] किए तथा [[गोरिल्ला युद्ध|छापामार युद्ध]] (guerilla warfare) की नयी शैली ([[शिवसूत्र]]) विकसित की। उन्होंने प्राचीन [[हिन्दू]] राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और
| wives =[[साईबाई]], [[सोयराबाई]], [[पुतलाबाई]],[[गुणवंतबाई]], [[सगुणबाई]], [[सकवारबाई]], [[लक्ष्मीबाई]], [[काशीबाई]]}}''' छत्रपति शिवाजी भोसले ''' ([[१६३०|1630]]-[[१६८०|1680]] ई.) [[भारत]] के एक महान राजा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने [[१६७४|1674]] ई. में [[पश्चिमी भारत|पश्चिम भारत]] में [[मराठा साम्राज्य]] की नींव रखी। इसके लिए उन्होंने [[मुग़ल साम्राज्य|मुगल]] [[साम्राज्य]] के शासक [[औरंगज़ेब]] से संघर्ष किया। सन् [[१६७४|1674]] में [[रायगढ़]] में उनका राज्याभिषेक हुआ और वह "छत्रपति" बने। छत्रपती शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों कि सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने [[समर-विद्या]] में अनेक [[नवाचार]] किए तथा [[गोरिल्ला युद्ध|छापामार युद्ध]] (guerilla warfare) की नयी शैली ([[शिवसूत्र]]) विकसित की। उन्होंने प्राचीन [[हिन्दू]] राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और
[[मराठी भाषा|मराठी]] एवं [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] को राजकाज की भाषा बनाया। वे भारतीय स्वाधीनता संग्राम में नायक के रूप में स्मरण किए जाने लगे। [[बाल गंगाधर तिलक]] ने राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए शिवाजी जन्मोत्सव की शुरुआत की।
[[मराठी भाषा|मराठी]] एवं [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] को राजकाज की भाषा बनाया। वे भारतीय स्वाधीनता संग्राम में नायक के रूप में स्मरण किए जाने लगे। [[बाल गंगाधर तिलक]] ने राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए शिवाजी जन्मोत्सव की शुरुआत की।

==वंशावली==
शिवाजी महाराज [[मेवाड़]] के सूर्यवंशी [[क्षत्रीय]][[सिसोदिया]] राजपूतों के वंशज थे। [[चित्तौड़गढ़]] के अजय सिंह सिसोदिया , ने अपने भतीजे [[राणा हम्मीर सिंह]] सिसोदिया को अपना उत्तराधिकारी बनाया, इसके कारण निराश होकर सज्जनसिंह और क्षेमसिंह भाग्य की तलाश में [[दक्कन]] ([[महाराष्ट्र]]) चले गए । बड़े भाई सज्जनसिंह, शिवाजी के पूर्वज हैं। [[राणा सांगा |हिंडुआ सूरज महाराणा संग्राम सिंह सिसोदिया]] और [[महाराणा प्रताप|महाराणा प्रताप सिंह]] भी सूर्यवंशी [[क्षत्रीय]] [[सिसोदिया]] [[राजपूत]] थे।

सज्जनसिंह के पुत्र राणा दिलीप सिंह ने [[दिल्ली]] के [[मुहम्मद बिन तुगलक]] के खिलाफ [[बहमनी]] सुल्तान की स्थापना और विद्रोह करने में मदद की,इसके कारण सुलतान खुश हो कर, राणा दिलीप सिंह को [[देवगिरी]] ([[दौलताबाद]]) क्षेत्र में 10 गाँव दिए गए। मराठों और मराठी लोगो के साथ रहने और उनके साथ वैवाहिक संबंध बनाने के कारण सज्जनसिंह के वंशज([[भोसले]]), सांस्कृतिक रूप से [[मराठा|भोसले मराठा]] के हिस्सा बन गए। 96kuli मराठे, भी राजपूतों के वंशज होने का दावा करते हैं।

राणा दिलीप सिंह के पुत्र सिद्धोजी सिसोदिया थे, सिद्धोजी के पुत्र का नाम '''भोसाजी/भैरव''' सिंह सिसोदिया था , कहा जाता है कि शिवाजी के वंश को भोसले का उपनाम अपने पूर्वज भोसाजी सिसोदिया से मिला था। भैरोजी के 2 पुत्र थे- उग्रसेन सिंह भोसले, राणा देवराज सिंह भोसले। राणा उग्रसेन के 2 बेटे थे- करणसिंह भोसले और सुभा कृष्णा।<ref name="(India)1967">{{cite book|url=https://books.google.com/books?id=EXtEAQAAIAAJ|title=Maharashtra State Gazetteers: Maratha period|author=Maharashtra (India)|publisher=Directorate of Government Printing, Stationary and Publications, Maharashtra State|year=1967|page=147}}</ref>
राणा करनसिंह (सुभा कृष्णा के बड़े भाई), जो मुधोल के शासक थे उनको अपना उपनाम  '[[घोरपडे]]' , खलना के बड़े [[विशाल गढ़]] किले पर [[गोह]](iguana, मराठी में [[घोरपड]]) की मदद से चढ़ने, के कारण मिला. घोरपड़े, भोसले(सिसोदिया) की वरिष्ठ शाखा हैं।

सुभा कृष्ण भोसले (सिसोदिया) के उत्तराधिकारी देवगिरि में रहते रहे।   सुभा कृष्णा के उत्तराधिकारी- रूपसिंह, भुमेंद्रजी, डोपाजी,
बारहटजी, खेलोजी, परसोजी और बाबाजी,तथा मालोजी राजे भोसले। 
मालोजीराजे, [[शाहजी]] भोंसले के पिता थे,तथा शिवाजी के दादा थे।<ref>{{cite book|url=https://books.google.com/books?id=uQFuAAAAMAAJ|title=The Quarterly Journal of the Mythic Society (Bangalore).|year=1975|page=18}}</ref><ref name="S1998">{{cite book|url=https://books.google.com/books?id=1lZuAAAAMAAJ|title=India's communities|author=Singh K S|publisher=Oxford University Press|year=1998|isbn=978-0-19-563354-2|page=2211}}</ref>

मालोजी भोसले (1552–1597) [[अहमदनगर सल्तनत]] के एक प्रभावशाली जनरल थे, [[पुणे]] [[चाकन]] और [[इंदापुर]] के [[देशमुख]] थे।<ref> Marathi book Shivkaal (Times of Shivaji) by Dr V G Khobrekar, Publisher: Maharashtra State Board for Literature and Culture, First edition 2006. Chapter 1</ref><ref name="Salma314">{{cite book |author=Salma Ahmed Farooqui |title=A Comprehensive History of Medieval India: From Twelfth to the Mid-Eighteenth Century |url=https://books.google.com/books?id=sxhAtCflwOMC&pg=PA314 |year=2011 |publisher=Dorling Kindersley India |isbn=978-81-317-3202-1 |pages=314–}}</ref> मालो जी के बेटे [[शहाजी]] भी [[बीजापुर]] सुल्तान के दरबार में बहुत प्रभावशाली राजनेता थे। शाहजी अपने पत्नी [[जीजाबाई]] से शिवाजी का जन्म हुआ था।

===वंशावली===
# [[मेवाड़]] के राणा अजय सिंह
# राणा सुजान सिंह (सज्जन सिंह)
# दिलीप सिंह
# सिद्धोजी सिंह सिसोदिया
# बहिरोजी या '''भोसाजी सिंह सिसोदिया'''(भोसले वंश)<ref>Har Bilas Sarda (Diwan Bahadur),Speeches and writings</ref><ref>Chintaman Vinayak Vaidya ''History of mediæval Hindu India: (being a history of India from 600 to 1200)''</ref>
# देवरवजी भोसले
# उग्रसेन
# शुभ्राकृष्णा (सुभा कृष्णा)
# रूपसिंहजी
# भूमिन्द्रजी
# धापाजी
# बाराहतजी
# खेलोजी
# पारसोजी
# बाबाजी
# [[मालोजी भोंसले]]
# [[शाहजी]]
# [[शिवाजी]]
# [[संभाजी]]
# [[राजाराम]]

===समकालीन सबूत===
आजकल के कुछ लोग ने अपने राजनीतिक कारणों के लिए शिवाजी के क्षत्रिय होने पर सवाल उठाया है उनके लिए हमने यहां पर कुछ समकालीन सबूत जुटाए हैं।
*कवि जयराम का '''राधा माधव विलासा चंपू''' (बैंगलोर में [[शाहजी]] के दरबार में लिखा गया, 1654) भोंसले का वर्णन [[चित्तौड़]] के क्षत्रिय [[सिसोदिया]] राजपूतो के वंशज के रूप में किया गया है। [[शिवाजी]] के [[राज्याभिषेक]] से बहुत पहले जयराम की कविता रची गई थी। जयराम ने उल्लेख किया कि [[शाहजी]] चित्तौड़ के दलीप सिंह सिसोदिया के वंशज है, उन्होंने राणा के परिवार में जन्म लिया जो पृथ्वी के सभी राजाओं में सबसे महान और शूरवीर थे। दलीप सिंह, चित्तौड़ के राणा लक्ष्मणसेन(1303CE) के पोते थे,।
* परमानंद की ''शिवभारत'' मैं कहा गया है कि शिवाजी और शाहजी दोनों सूर्यवंशी क्षत्रिय सिसोदिया वंशी थे।
* शाहजी ने सुल्तान [[आदिलशाह]] को लिखे अपने पत्र में कहा कि वह एक राजपूत है।<ref>[http://books.google.co.in/books?id=iHK-BhVXOU4C&pg=PA88&dq=shivaji+father+shahji+in+letter+to+adil+shah+rajput&hl=en&ei=uaP9TbL5GIi8vwODuPGGAw&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=1&ved=0CDAQ6AEwAA#v=onepage&q=shivaji%20father%20shahji%20in%20letter%20to%20adil%20shah%20rajput&f=false The Marathas 1600-1818, Part 2, Volume 4] By Stewart Gordon. Page 88.</ref>
* मुगल इतिहासकार खफी खान ने [[शिवाजी]] को चित्तौड़ के राणाओं के वंशज के रूप में वर्णित किया है। खफी खान शिवाजी के बहुत कठोर आलोचक थे।
* ''सभासद बखर'', शिवाजी के मंत्री कृष्ण भास्कर द्वारा रचित(1694), मैं भोंसले को सूर्यवंशी क्षत्रीय सिसोदिया बताया गया है<ref name="Bakshi1998">{{cite book|author=Shiri Ram Bakshi|title=Sharad Pawar, the Maratha legacy|url=https://books.google.com/books?id=iP433CnEW_gC&pg=PA25|access-date=15 May 2011|year=1998|publisher=APH Publishing|isbn=978-81-7648-007-9|pages=25–}}</ref><ref>{{cite book|url=https://books.google.com/books?id=TXxjo0OY2oQC&pg=PA17 |title=Mahrattas, Sikhs and Southern Sultans of India: Their Fight Against Foreign Power |first=H. S.|last=Bhatia |publisher=Deep & Deep |year=2001 |edition=2nd |isbn=9788171003693 |access-date=2012-08-31}}</ref>


== आरम्भिक जीवन ==
== आरम्भिक जीवन ==
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== मृत्यु और उत्तराधिकार ==
== मृत्यु और उत्तराधिकार ==
विष दिलाने के बाद शिवाजी महाराज की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 में हुई। उस समय शिवाजी के उत्तराधिकार संभाजी को मिले। शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र [[सम्भाजी|संभाजी]] थे और दूसरी पत्नी से राजाराम नाम एक दूसरा पुत्र था। उस समय [[राजाराम]] की उम्र मात्र 10 वर्ष थी अतः मराठों ने शम्भाजी को राजा मान लिया। उस समय [[औरंगज़ेब|औरंगजेब]] राजा शिवाजी का देहान्त देखकर अपनी पूरे [[भारत]] पर राज्य करने कि अभिलाषा से अपनी 5,00,000 सेना सागर लेकर दक्षिण भारत जीतने निकला। औरंगजेब ने दक्षिण में आते ही अदिल्शाही २ दिनो में और कुतुबशाही १ ही दिनो में खतम कर दी। पर राजा सम्भाजी के नेतृत्व में मराठाओ ने ९ साल युद्ध करते हुये अपनी स्वतन्त्रता बरकरा‍र रखी। औरंगजेब के पुत्र शहजादा [[अकबर]] ने [[औरंगज़ेब|औरंगजेब]] के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया। संभाजी ने उसको अपने यहाँ शरण दी। औरंगजेब ने अब फिर जोरदार तरीके से संभाजी के ख़िलाफ़ आक्रमण करना शुरु किया। उसने अन्ततः 1689 में संभाजी के बीवी के सगे भाई याने गणोजी शिर्के की मुखबरी से संभाजी को मुकरव खाँ द्वारा बन्दी बना लिया। औरंगजेब ने राजा संभाजी से बदसलूकी की और बुरा हाल कर के मार दिया। अपनी राजा कि औरंगजेब द्वारा की गई बदसलूूूकी और नृृृृृृशंसता द्वारा मारा हुआ देखकर पूरा मराठा स्वराज्य क्रोधित हुआ। उन्होने अपनी पुरी ताकत से राजाराम के नेतृत्व में मुगलों से संघर्ष जारी रखा। 1700 इस्वी में राजाराम की मृत्यु हो गई। उसके बाद राजाराम की पत्नी ताराबाई 4 वर्षीय पुत्र [[शिवाजी द्वितीय]] की संरक्षिका बनकर राज करती रही। आखिरकार 25 साल मराठा स्वराज्य के युद्ध लड के थके हुये [[औरंगज़ेब|औरंगजेब]] की उसी छ्त्रपती शिवाजी के स्वराज्य में दफन हुये।
छत्रपती शिवाजी महाराज की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 में हुई। उस समय शिवाजी के उत्तराधिकार संभाजी को मिले। शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र [[सम्भाजी|संभाजी]] थे और दूसरी पत्नी से राजाराम नाम एक दूसरा पुत्र था। उस समय [[राजाराम]] की उम्र मात्र 10 वर्ष थी अतः मराठों ने शम्भाजी को राजा मान लिया। उस समय [[औरंगज़ेब|औरंगजेब]] राजा शिवाजी का देहान्त देखकर अपनी पूरे [[भारत]] पर राज्य करने कि अभिलाषा से अपनी 5,00,000 सेना सागर लेकर दक्षिण भारत जीतने निकला। औरंगजेब ने दक्षिण में आते ही अदिल्शाही २ दिनो में और कुतुबशाही १ ही दिनो में खतम कर दी। पर राजा सम्भाजी के नेतृत्व में मराठाओ ने ९ साल युद्ध करते हुये अपनी स्वतन्त्रता बरकरा‍र रखी। औरंगजेब के पुत्र शहजादा [[अकबर]] ने [[औरंगज़ेब|औरंगजेब]] के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया। संभाजी ने उसको अपने यहाँ शरण दी। औरंगजेब ने अब फिर जोरदार तरीके से संभाजी के ख़िलाफ़ आक्रमण करना शुरु किया। उसने अन्ततः 1689 में संभाजी के बीवी के सगे भाई याने गणोजी शिर्के की मुखबरी से संभाजी को मुकरव खाँ द्वारा बन्दी बना लिया। औरंगजेब ने राजा संभाजी से बदसलूकी की और बुरा हाल कर के मार दिया। अपनी राजा कि औरंगजेब द्वारा की गई बदसलूूूकी और नृृृृृृशंसता द्वारा मारा हुआ देखकर पूरा मराठा स्वराज्य क्रोधित हुआ। उन्होने अपनी पुरी ताकत से राजाराम के नेतृत्व में मुगलों से संघर्ष जारी रखा। 1700 इस्वी में राजाराम की मृत्यु हो गई। उसके बाद राजाराम की पत्नी ताराबाई 4 वर्षीय पुत्र [[शिवाजी द्वितीय]] की संरक्षिका बनकर राज करती रही। आखिरकार 25 साल मराठा स्वराज्य के युद्ध लड के थके हुये [[औरंगज़ेब|औरंगजेब]] की उसी छ्त्रपती शिवाजी के स्वराज्य में दफन हुये।


== शासन और व्यक्तित्व ==
== शासन और व्यक्तित्व ==

07:05, 4 मई 2021 का अवतरण

शिवाजी भोसले
शककर्ता
हैंडवा धर्मोद्धारक
मराठा साम्राज्य के छत्रपति
ब्रिटिश संग्रहालय में स्थित शिवाजी का असली चित्र
शासनावधि1674 – 1680
राज्याभिषेक6 जून 1674
पूर्ववर्तीशाहजी
उत्तरवर्तीसम्भाजी
जन्म19 फरवरी 1630
शिवनेरी दुर्ग
निधन3 अप्रैल 1680
रायगढ़
समाधि
रायगढ़
संतानसम्भाजी, राजाराम, राणुबाई आदि.
घरानाभोंसले
पिताशाहजी
माताजीजाबाई

छत्रपति शिवाजी भोसले (1630-1680 ई.) भारत के एक महान राजा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने 1674 ई. में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। इसके लिए उन्होंने मुगल साम्राज्य के शासक औरंगज़ेब से संघर्ष किया। सन् 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वह "छत्रपति" बने। छत्रपती शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों कि सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किए तथा छापामार युद्ध (guerilla warfare) की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और

मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। वे भारतीय स्वाधीनता संग्राम में नायक के रूप में स्मरण किए जाने लगे। बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए शिवाजी जन्मोत्सव की शुरुआत की।

वंशावली

शिवाजी महाराज मेवाड़ के सूर्यवंशी क्षत्रीयसिसोदिया राजपूतों के वंशज थे। चित्तौड़गढ़ के अजय सिंह सिसोदिया , ने अपने भतीजे राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया को अपना उत्तराधिकारी बनाया, इसके कारण निराश होकर सज्जनसिंह और क्षेमसिंह भाग्य की तलाश में दक्कन (महाराष्ट्र) चले गए । बड़े भाई सज्जनसिंह, शिवाजी के पूर्वज हैं। हिंडुआ सूरज महाराणा संग्राम सिंह सिसोदिया और महाराणा प्रताप सिंह भी सूर्यवंशी क्षत्रीय सिसोदिया राजपूत थे।

सज्जनसिंह के पुत्र राणा दिलीप सिंह ने दिल्ली के मुहम्मद बिन तुगलक के खिलाफ बहमनी सुल्तान की स्थापना और विद्रोह करने में मदद की,इसके कारण सुलतान खुश हो कर, राणा दिलीप सिंह को देवगिरी (दौलताबाद) क्षेत्र में 10 गाँव दिए गए। मराठों और मराठी लोगो के साथ रहने और उनके साथ वैवाहिक संबंध बनाने के कारण सज्जनसिंह के वंशज(भोसले), सांस्कृतिक रूप से भोसले मराठा के हिस्सा बन गए। 96kuli मराठे, भी राजपूतों के वंशज होने का दावा करते हैं।

राणा दिलीप सिंह के पुत्र सिद्धोजी सिसोदिया थे, सिद्धोजी के पुत्र का नाम भोसाजी/भैरव सिंह सिसोदिया था , कहा जाता है कि शिवाजी के वंश को भोसले का उपनाम अपने पूर्वज भोसाजी सिसोदिया से मिला था। भैरोजी के 2 पुत्र थे- उग्रसेन सिंह भोसले, राणा देवराज सिंह भोसले। राणा उग्रसेन के 2 बेटे थे- करणसिंह भोसले और सुभा कृष्णा।[1] राणा करनसिंह (सुभा कृष्णा के बड़े भाई), जो मुधोल के शासक थे उनको अपना उपनाम  'घोरपडे' , खलना के बड़े विशाल गढ़ किले पर गोह(iguana, मराठी में घोरपड) की मदद से चढ़ने, के कारण मिला. घोरपड़े, भोसले(सिसोदिया) की वरिष्ठ शाखा हैं।

सुभा कृष्ण भोसले (सिसोदिया) के उत्तराधिकारी देवगिरि में रहते रहे।   सुभा कृष्णा के उत्तराधिकारी- रूपसिंह, भुमेंद्रजी, डोपाजी, बारहटजी, खेलोजी, परसोजी और बाबाजी,तथा मालोजी राजे भोसले।  मालोजीराजे, शाहजी भोंसले के पिता थे,तथा शिवाजी के दादा थे।[2][3]

मालोजी भोसले (1552–1597) अहमदनगर सल्तनत के एक प्रभावशाली जनरल थे, पुणे चाकन और इंदापुर के देशमुख थे।[4][5] मालो जी के बेटे शहाजी भी बीजापुर सुल्तान के दरबार में बहुत प्रभावशाली राजनेता थे। शाहजी अपने पत्नी जीजाबाई से शिवाजी का जन्म हुआ था।

वंशावली

  1. मेवाड़ के राणा अजय सिंह
  2. राणा सुजान सिंह (सज्जन सिंह)
  3. दिलीप सिंह
  4. सिद्धोजी सिंह सिसोदिया
  5. बहिरोजी या भोसाजी सिंह सिसोदिया(भोसले वंश)[6][7]
  6. देवरवजी भोसले
  7. उग्रसेन
  8. शुभ्राकृष्णा (सुभा कृष्णा)
  9. रूपसिंहजी
  10. भूमिन्द्रजी
  11. धापाजी
  12. बाराहतजी
  13. खेलोजी
  14. पारसोजी
  15. बाबाजी
  16. मालोजी भोंसले
  17. शाहजी
  18. शिवाजी
  19. संभाजी
  20. राजाराम

समकालीन सबूत

आजकल के कुछ लोग ने अपने राजनीतिक कारणों के लिए शिवाजी के क्षत्रिय होने पर सवाल उठाया है उनके लिए हमने यहां पर कुछ समकालीन सबूत जुटाए हैं।

  • कवि जयराम का राधा माधव विलासा चंपू (बैंगलोर में शाहजी के दरबार में लिखा गया, 1654) भोंसले का वर्णन चित्तौड़ के क्षत्रिय सिसोदिया राजपूतो के वंशज के रूप में किया गया है। शिवाजी के राज्याभिषेक से बहुत पहले जयराम की कविता रची गई थी। जयराम ने उल्लेख किया कि शाहजी चित्तौड़ के दलीप सिंह सिसोदिया के वंशज है, उन्होंने राणा के परिवार में जन्म लिया जो पृथ्वी के सभी राजाओं में सबसे महान और शूरवीर थे। दलीप सिंह, चित्तौड़ के राणा लक्ष्मणसेन(1303CE) के पोते थे,।
  • परमानंद की शिवभारत मैं कहा गया है कि शिवाजी और शाहजी दोनों सूर्यवंशी क्षत्रिय सिसोदिया वंशी थे।
  • शाहजी ने सुल्तान आदिलशाह को लिखे अपने पत्र में कहा कि वह एक राजपूत है।[8]
  • मुगल इतिहासकार खफी खान ने शिवाजी को चित्तौड़ के राणाओं के वंशज के रूप में वर्णित किया है। खफी खान शिवाजी के बहुत कठोर आलोचक थे।
  • सभासद बखर, शिवाजी के मंत्री कृष्ण भास्कर द्वारा रचित(1694), मैं भोंसले को सूर्यवंशी क्षत्रीय सिसोदिया बताया गया है[9][10]

आरम्भिक जीवन

शिवाजी और माता जीजाबाई

शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले एक शक्तिशाली सामंत थे। उनकी माता जीजाबाई जाधव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली महिला थी। शिवाजी के बड़े भाई का नाम सम्भाजी था जो अधिकतर समय अपने पिता शाहजी भोसलें के साथ ही रहते थे। शाहजी राजे कि दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते थीं। उनसे एक पुत्र हुआ जिसका नाम एकोजी राजे था।

शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। उनका बचपन उनकी माता के मार्गदर्शन में बीता। उन्होंने राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा ली थी। वे उस युग के वातावरण और घटनाओं को भली प्रकार समझने लगे थे। उनके हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्ज्वलित हो गयी थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन किया।

वैवाहिक जीवन

शिवाजी का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निंबाळकर के साथ लाल महल, पुणे में हुआ था। उन्होंने कुल 8 विवाह किए थे। वैवाहिक राजनीति के जरिए उन्होंने सभी मराठा सरदारों को एक छत्र के नीचे लाने में सफलता प्राप्त की। शिवाजी की पत्नियाँ:

सईबाई निम्बालकर - (बच्चे: संभाजी, 

सखुबाई राणूबाई (अम्बिकाबाई); सोयराबाई मोहिते - (बच्चे- दीपबै, राजाराम); पुतळाबाई पालकर (1653-1680), गुणवन्ताबाई इंगले; सगुणाबाई शिर्के, काशीबाई जाधव, लक्ष्मीबाई विचारे, सकवारबाई गायकवाड़ - (कमलाबाई) (1656-1680)।

सैनिक वर्चस्व का आरम्भ

उस समय बीजापुर का राज्य आपसी संघर्ष तथा विदेशी आक्रमणकाल के दौर से गुजर रहा था। ऐसे साम्राज्य के सुल्तान की सेवा करने के बदले उन्होंने मावलों को बीजापुर के ख़िलाफ संगठित करने लगे। मावल प्रदेश पश्चिम घाट से जुड़ा है और कोई 150 किलोमीटर लम्बा और 30 किलोमीटर चौड़ा है। वे संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करने के कारण कुशल योद्धा माने जाते हैं। इस प्रदेश में मराठा और सभी जाति के लोग रहते हैं। शिवाजी महाराज इन सभी जाति के लोगों को लेकर मावलों (मावळा) नाम देकर सभी को संगठित किया और उनसे सम्पर्क कर उनके प्रदेश से परिचित हो गए थे। मावल युवकों को लाकर उन्होंने दुर्ग निर्माण का कार्य आरम्भ कर दिया था। मावलों का सहयोग शिवाजी महाराज के लिए बाद में उतना ही महत्वपूर्ण साबित हुआ जितना शेरशाह सूरी के लिए अफ़गानों का साथ।

उस समय बीजापुर आपसी संघर्ष तथा मुग़लों के आक्रमण से परेशान था। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने बहुत से दुर्गों से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों या सामन्तों के हाथ सौंप दिया था। जब आदिलशाह बीमार पड़ा तो बीजापुर में अराजकता फैल गई और शिवाजी महाराज ने अवसर का लाभ उठाकर बीजापुर में प्रवेश का निर्णय लिया। शिवाजी महाराज ने इसके बाद के दिनों में बीजापुर के दुर्गों पर अधिकार करने की नीति अपनाई। सबसे पहला दुर्ग था रोहिदेश्वर का दुर्ग।

दुर्गों पर नियंत्रण

रोहिदेश्वर का दुर्ग सबसे पहला दुर्ग था जिसके शिवाजी महाराज ने सबसे पहले अधिकार किया था। उसके बाद तोरणा का दुर्ग जोपुणे के दक्षिण पश्चिम में 30 किलोमीटर की दूरी पर था। शिवाजी ने सुल्तान आदिलशाह के पास अपना दूत भेजकर खबर भिजवाई की वे पहले किलेदार की तुलना में बेहतर रकम देने को तैयार हैं और यह क्षेत्र उन्हें सौंप दिया जाये। उन्होंने आदिलशाह के दरबारियों को पहले ही रिश्वत देकर अपने पक्ष में कर लिया था और अपने दरबारियों की सलाह के मुताबिक आदिलशाह ने शिवाजी महाराज को उस दुर्ग का अधिपति बना दिया। उस दुर्ग में मिली सम्पत्ति से शिवाजी महाराज ने दुर्ग की सुरक्षात्मक कमियों की मरम्मत का काम करवाया। इससे कोई 10 किलोमीटर दूर राजगढ़ का दुर्ग था और शिवाजी महाराज ने इस दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया।शिवाजी महाराज की इस साम्राज्य विस्तार की नीति की भनक जब आदिलशाह को मिली तो वह क्षुब्ध हुआ। उसने शाहजी राजे को अपने पुत्र को नियन्त्रण में रखने को कहा। शिवाजी महाराज ने अपने पिता की परवाह किये बिना अपने पिता के क्षेत्र का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया और नियमित लगान बन्द कर दिया। राजगढ़ के बाद उन्होंने चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर लिया और उसके बाद कोंडना के दुर्ग पर अधिकार किया। परेशान होकर सबसे काबिल मिर्जाराजा जयसिंह को भेजकर शिवाजी के 23 किलों पर कब्जा किया। उसने पुरंदर के किले को नष्ट कर दिया। शिवाजी को इस संधि कि शर्तो को मानते हुए अपने पुत्र संभाजी को मिर्जाराजा जयसिंह को सौपना पड़ा। बाद में शिवाजी महाराज के मावला तानाजी मालुसरे ने कोंढाणा दुर्ग पर कब्जा किया पर उस युद्ध में वह विरगती को प्राप्त हुआ उसकी याद में कोंडना पर अधिकार करने के बाद उसका नाम सिंहगढ़ रखा गया। शाहजी राजे को पुणे और सूपा की जागीरदारी दी गई थी और सूपा का दुर्ग उनके सम्बंधी बाजी मोहिते के हाथ में थी। शिवाजी महाराज ने रात के समय सूपा के दुर्ग पर आक्रमण करके दुर्ग पर अधिकार कर लिया और बाजी मोहिते को शाहजी राजे के पास कर्नाटक भेज दिया। उसकी सेना का कुछ भाग भी शिवाजी महाराज की सेवा में आ गया। इसी समय पुरन्दर के किलेदार की मृत्यु हो गई और किले के उत्तराधिकार के लिए उसके तीनों बेटों में लड़ाई छिड़ गई। दो भाइयों के निमंत्रण पर शिवाजी महाराज पुरन्दर पहुंचे और कूटनीति का सहारा लेते हुए उन्होंने सभी भाइयों को बन्दी बना लिया। इस तरह पुरन्दर के किले पर भी उनका अधिकार स्थापित हो गया। 1647 ईस्वी तक वे चाकन से लेकर नीरा तक के भूभाग के भी अधिपति बन चुके थे। अपनी बढ़ी सैनिक शक्ति के साथ शिवाजी महाराज ने मैदानी इलाकों में प्रवेश करने की योजना बनाई।

एक अश्वारोही सेना का गठन कर शिवाजी महाराज ने आबाजी सोन्देर के नेतृत्व में कोंकण के विरुद्ध एक सेना भेजी। आबाजी ने कोंकण सहित नौ अन्य दुर्गों पर अधिकार कर लिया। इसके अलावा ताला, मोस्माला और रायटी के दुर्ग भी शिवाजी महाराज के अधीन आ गए थे। लूट की सारी सम्पत्ति रायगढ़ में सुरक्षित रखी गई। कल्याण के गवर्नर को मुक्त कर शिवाजी महाराज ने कोलाबा की ओर रुख किया और यहाँ के प्रमुखों को विदेशियों के ख़िलाफ़़ युद्ध के लिए उकसाया।

शाहजी की बन्दी और युद्धविराम

बीजापुर का सुल्तान शिवाजी महाराज की हरकतों से पहले ही आक्रोश में था। उसने शिवाजी महाराज के पिता को बन्दी बनाने का आदेश दे दिया। शाहजी राजे उस समय कर्नाटक में थे और एक विश्वासघाती सहायक बाजी घोरपड़े द्वारा बन्दी बनाकर बीजापुर लाए गए। उन पर यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने कुतुबशाह की सेवा प्राप्त करने की कोशिश की थी जो गोलकुंडा का शासक था और इस कारण आदिलशाह का शत्रु। बीजापुर के दो सरदारों की मध्यस्थता के बाद शाहाजी महाराज को इस शर्त पर मुक्त किया गया कि वे शिवाजी महाराज पर लगाम कसेंगे। अगले चार वर्षों तक शिवाजी महाराज ने बीजीपुर के ख़िलाफ कोई आक्रमण नहीं किया। इस दौरान उन्होंने अपनी सेना संगठित की।

प्रभुता का विस्तार

बिरला मंदिर, दिल्लीमें शिवाजी महाराज की मूर्ति

शाहजी की मुक्ति की शर्तों के मुताबिक शिवाजी राजाने बीजापुर के क्षेत्रों पर आक्रमण तो नहीं किया पर उन्होंने दक्षिण-पश्चिम में अपनी शक्ति बढ़ाने की चेष्टा की। पर इस क्रम में जावली का राज्य बाधा का काम कर रहा था। यह राज्य सातारा के सुदूर उत्तर पश्चिम में वामा और कृष्णा नदी के बीच में स्थित था। यहाँ का राजा चन्द्रराव मोरे था जिसने ये जागीर शिवाजी से प्राप्त की थी। शिवाजी ने मोरे शासक चन्द्रराव को स्वराज में शमिल होने को कहा पर चन्द्रराव बीजापुर के सुल्तान के साथ मिल गया। सन् 1656 में शिवाजी ने अपनी सेना लेकर जावली पर आक्रमण कर दिया। चन्द्रराव मोरे और उसके दोनों पुत्रों ने शिवाजी के साथ लड़ाई की पर अन्त में वे बन्दी बना लिए गए पर चन्द्रराव भाग गया। स्थानीय लोगों ने शिवाजी के इस कृत्य का विरोध किया पर वे विद्रोह को कुचलने में सफल रहे। इससे शिवाजी को उस दुर्ग में संग्रहित आठ वंशों की सम्पत्ति मिल गई। इसके अलावा कई मावल सैनिक मुरारबाजी देशपांडे भी शिवाजी की सेना में सम्मिलित हो गए।

मुगलों से पहली मुठभेड़

शिवाजी के बीजापुर तथा मुगल दोनों शत्रु थे। उस समय शहज़ादा औरंगजेब दक्कन का सूबेदार था। इसी समय 1 नवम्बर 1656 को बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मृत्यु हो गई जिसके बाद बीजापुर में अराजकता का माहौल पैदा हो गया। इस स्थिति का लाभ उठाकर औरंगज़ेब ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया और शिवाजी ने औरंगजेब का साथ देने की बजाय उसपर धावा बोल दिया। उनकी सेना ने जुन्नार नगर पर आक्रमण कर ढेर सारी सम्पत्ति के साथ 200 घोड़े लूट लिये। अहमदनगर से 700 घोड़े, चार हाथी के अलावा उन्होंने गुण्डा तथा रेसिन के दुर्ग पर भी लूटपाट मचाई। इसके परिणामस्वरूप औरंगजेब शिवाजी से खफ़ा हो गया और मैत्री वार्ता समाप्त हो गई। शाहजहां के आदेश पर औरंगजेब ने बीजापुर के साथ सन्धि कर ली और इसी समय शाहजहां बीमार पड़ गया। उसके व्याधिग्रस्त होते ही औरंगज़ेब उत्तर भारत चला गया और वहां शाहजहां को कैद करने के बाद मुगल साम्राज्य का शाह बन गया।

कोंकण पर अधिकार

दक्षिण भारत में औरंगजेब की अनुपस्थिति और बीजापुर की डवाँडोल राजनीतिक स्थित को जानकर शिवाजी ने समरजी को जंजीरा पर आक्रमण करने को कहा। पर जंजीरा के सिद्दियों के साथ उनकी लड़ाई कई दिनों तक चली। इसके बाद शिवाजी ने खुद जंजीरा पर आक्रमण किया और दक्षिण कोंकण पर अधिकार कर लिया और दमन के पुर्तगालियों से वार्षिक कर एकत्र किया। कल्याण तथा भिवण्डी पर अधिकार करने के बाद वहां नौसैनिक अड्डा बना लिया। इस समय तक शिवाजी 40 दुर्गों के मालिक बन चुके थे।

बीजापुर से संघर्ष

इधर औरंगजेब के आगरा (उत्तर की ओर) लौट जाने के बाद बीजापुर के सुल्तान ने भी राहत की सांस ली। अब शिवाजी ही बीजापुर के सबसे प्रबल शत्रु रह गए थे। शाहजी को पहले ही अपने पुत्र को नियन्त्रण में रखने को कहा गया था पर शाहजी ने इसमें अपनी असमर्थता जाहिर की। शिवाजी से निपटने के लिए बीजापुर के सुल्तान ने अब्दुल्लाह भटारी (अफ़ज़ल खां) को शिवाजी के विरूद्ध भेजा। अफ़जल ने 120000 सैनिकों के साथ 1659 में कूच किया। तुलजापुर के मन्दिरों को नष्ट करता हुआ वह सतारा के 30 किलोमीटर उत्तर वाई, शिरवल के नजदीक तक आ गया। पर शिवाजी प्रतापगढ़ के दुर्ग पर ही रहे। अफजल खां ने अपने दूत कृष्णजी भास्कर को सन्धि-वार्ता के लिए भेजा। उसने उसके मार्फत ये सन्देश भिजवाया कि अगर शिवाजी बीजापुर की अधीनता स्वीकार कर ले तो सुल्तान उसे उन सभी क्षेत्रों का अधिकार दे देंगे जो शिवाजी के नियन्त्रण में हैं। साथ ही शिवाजी को बीजापुर के दरबार में एक सम्मानित पद प्राप्त होगा। हालांकि शिवाजी के मंत्री और सलाहकार अस सन्धि के पक्ष में थे पर शिवाजी को ये वार्ता रास नहीं आई। उन्होंने कृष्णजी भास्कर को उचित सम्मान देकर अपने दरबार में रख लिया और अपने दूत गोपीनाथ को वस्तुस्थिति का जायजा लेने अफजल खां के पास भेजा। गोपीनाथ और कृष्णजी भास्कर से शिवाजी को ऐसा लगा कि सन्धि का षडयन्त्र रचकर अफजल खां शिवाजी को बन्दी बनाना चाहता है। अतः उन्होंने युद्ध के बदले अफजल खां को एक बहुमूल्य उपहार भेजा और इस तरह अफजल खां को सन्धि वार्ता के लिए राजी किया। सन्धि स्थल पर दोनों ने अपने सैनिक घात लगाकर रखे थे मिलने के स्थान पर जब दोनों मिले तब अफजल खां ने अपने कट्यार से शिवाजी पे वार किया बचाव में शिवाजी ने अफजल खां को अपने वस्त्रों वाघनखो से मार दिया (10 नवम्बर 1659)।

अफजल खां की मृत्यु के बाद शिवाजी ने पन्हाला के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इसके बाद पवनगढ़ और वसंतगढ़ के दुर्गों पर अधिकार करने के साथ ही साथ उन्होंने रूस्तम खां के आक्रमण को विफल भी किया। इससे राजापुर तथा दावुल पर भी उनका कब्जा हो गया। अब बीजापुर में आतंक का माहौल पैदा हो गया और वहां के सामन्तों ने आपसी मतभेद भुलाकर शिवाजी पर आक्रमण करने का निश्चय किया। 2 अक्टूबर 1665 को बीजापुरी सेना ने पन्हाला दुर्ग पर अधिकार कर लिया। शिवाजी संकट में फंस चुके थे पर रात्रि के अंधकार का लाभ उठाकर वे भागने में सफल रहे। बीजापुर के सुल्तान ने स्वयं कमान सम्हालकर पन्हाला, पवनगढ़ पर अपना अधिकार वापस ले लिया, राजापुर को लूट लिया और श्रृंगारगढ़ के प्रधान को मार डाला। इसी समय कर्नाटक में सिद्दीजौहर के विद्रोह के कारण बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी के साथ समझौता कर लिया। इस सन्धि में शिवाजी के पिता शाहजी ने मध्यस्थता का काम किया। सन् 1662 में हुई इस सन्धि के अनुसार शिवाजी को बीजापुर के सुल्तान द्वारा स्वतंत्र शासक की मान्यता मिली। इसी सन्धि के अनुसार उत्तर में कल्याण से लेकर दक्षिण में पोण्डा तक (250 किलोमीटर) का और पूर्व में इन्दापुर से लेकर पश्चिम में दावुल तक (150 किलोमीटर) का भूभाग शिवाजी के नियन्त्रण में आ गया। शिवाजी की सेना में इस समय तक 30000 पैदल और 1000 घुड़सवार हो गए थे।

मुगलों से संघर्ष

शिवाजी द्वारा अफजल खान का वध ; २०वीं शतादी के आरम्भिक काल में सालाराम हलदन्कर द्वारा चित्रित)

उत्तर भारत में बादशाह बनने की होड़ खत्म होने के बाद औरंगजेब का ध्यान दक्षिण की तरफ गया। वो शिवाजी की बढ़ती प्रभुता से परिचित था और उसने शिवाजी पर नियन्त्रण रखने के उद्येश्य से अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्का खाँ अपने 1,50,000 फ़ौज लेकर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर पूना पहुँच गया। उसने ३ साल तक मावल में लुटमार कि। एक रात शिवाजी ने अपने 350 मवलो के साथ उनपर हमला कर दिया। शाइस्ता तो खिड़की के रास्ते बच निकलने में कामयाब रहा पर उसे इसी क्रम में अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। शाइस्ता खाँ के पुत्र अबुल फतह तथा चालीस रक्षकों और अनगिनत सैनिकों का कत्ल कर दिया गया।यहॉ पर मराठों ने अन्धेरे मे स्त्री पुरूष के बीच भेद न कर पाने के कारण खान के जनान खाने की बहुत सी औरतों को मार डालाथा। इस घटना के बाद औरंगजेब ने शाइस्ता को दक्कन के बदले बंगाल का सूबेदार बना दिया और शाहजादा मुअज्जम शाइस्ता की जगह लेने भेजा गया।

सूरत में लूट

इस जीत से शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। 6 साल शाईस्ता खान ने अपनी 1,50,000 फ़ौज लेकर राजा शिवाजी का पुरा मुलुख जलाकर तबाह कर दिया था। इस लिए उस् का हर्जाना वसूल करने के लिये शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों में लूटपाट मचाना आरम्भ किया। सूरत उस समय पश्चिमी व्यापारियों का गढ़ था और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार। यह एक समृद्ध नगर था और इसका बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण था। शिवाजी ने चार हजार की सेना के साथ 1664 में छः दिनों तक सूरत के धनाड्य व्यापारियों को लूटा। आम आदमी को उन्होनें नहीं लूटा और फिर लौट गए। इस घटना का ज़िक्र डच तथा अंग्रेजों ने अपने लेखों में किया है। उस समय तक यूरोपीय व्यापारियों ने भारत तथा अन्य एशियाई देशों में बस गये थे। नादिर शाह के भारत पर आक्रमण करने तक (1739) किसी भी य़ूरोपीय शक्ति ने भारतीय मुगल साम्राज्य पर आक्रमण करने की नहीं सोची थी।

सूरत में शिवाजी की लूट से खिन्न होकर औरंगजेब ने इनायत खाँ के स्थान पर गयासुद्दीन खां को सूरत का फौजदार नियुक्त किया। और शहजादा मुअज्जम तथा उपसेनापति राजा जसवंत सिंह की जगह दिलेर खाँ और राजा जयसिंह की नियुक्ति की गई। राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान, यूरोपीय शक्तियाँ तथा छोटे सामन्तों का सहयोग लेकर शिवाजी पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुग़लों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएँगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के ख़िलाफ़ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे।

आगरा में आमंत्रण और पलायन

शिवाजी को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके विरोध में उन्होंने अपना रोश भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नजरबन्द कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों के पहरे लगा दिये। कुछ ही दिनों बाद (18 अगस्त 1666 को) राजा शिवाजी को मार डालने का इरादा औरंगजेब का था। लेकिन अपने अदम्य साहस ओर युक्ति के साथ शिवाजी और सम्भाजी दोनों इससे भागने में सफल रहे[17 अगस्त 1666। सम्भाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी महाराज बनारस, गये, पुरी होते हुए सकुशल राजगढ़ पहुँच गए [2 सितम्बर 1666]। इससे मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार सन्धि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया। पर, सिंहगढ़ और पुरन्दर पर मुग़लों का अधिपत्य बना रहा। सन् 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लूटा। नगर से 132 लाख की सम्पत्ति शिवाजी के हाथ लगी और लौटते वक्त उन्होंने मुगल सेना को सूरत के पास फिर से हराया।

राज्याभिषेक

रायगढ़ में शिवाजी महाराज की प्रतिमा
रायगढ़ में शिवाजी महाराज की प्रतिमा

सन् १६७४ तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरन्दर की सन्धि के अन्तर्गत उन्हें मुग़लों को देने पड़े थे। पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु मुस्लिम सैनिको ने ब्राहमणों को धमकी दी कि जो भी शिवाजी का राज्याभिषेक करेगा उनकी हत्या कर दी जायेगी. जब ये बात शिवाजी तक पहुंची की मुगल सरदार ऐसे धमकी दे रहे है तब शिवाजी ने इसे एक चुनौती के रुप मे लिया और कहा की अब वो उस राज्य के ब्राह्मण से ही अभिषेक करवायेंगे जो मुगलों के अधिकार में है. [उद्धरण चाहिए]

शिवाजी के निजी सचिव बालाजी जी ने काशी में तीन दूतो को भेजा, क्युंकि काशी मुगल साम्राज्य के अधीन था. जब दूतों ने संदेश दिया तो काशी के ब्राह्मण काफी प्रसन्न हुये. किंतु मुगल सैनिको को यह बात पता चल गई तब उन ब्राह्मणों को पकड लिया. परंतु युक्ति पूर्वक उन ब्राह्मणों ने मुगल सैंनिको के समक्ष उन दूतों से कहा कि शिवाजी कौन है हम नहीं जानते है. वे किस वंश से हैं ? दूतों को पता नहीं था इसलिये उन्होंने कहा हमें पता नहीं है. तब मुगल सैनिको के सरदार के समक्ष उन ब्राह्मणों ने कहा कि हमें कहीं अन्यत्र जाना है, शिवाजी किस वंश से हैं आपने नहीं बताया अत: ऐसे में हम उनके राज्याभिषेक कैसेकर सकते हैं. हम तो तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं और काशीका कोई अन्य ब्राह्मण भी राज्याभिषेक नहीं करेगा जब तक राजा का पूर्ण परिचय न हो अत: आप वापस जा सकते हैं. मुगल सरदार ने खुश होके ब्राह्मणो को छोड दिया और दूतो को पकड कर औरंगजेब के पास दिल्ली भेजने की सोची पर वो भी चुप के से निकल भागे. [उद्धरण चाहिए]

वापस लौट कर उन्होने ये बात बालाजी आव तथा शिवाजी को बताई. परंतु आश्चर्यजनक रूप से दो दिन बाद वही ब्राह्मण अपने शिष्यों के साथ रायगढ पहुचें ओर शिवाजी का राज्याभिषेक किया। इसके बाद मुगलों ने फूट डालने की कोशिश की और शिवाजी के राज्याभिषेक के बाद भी पुणे के ब्राह्मणों को धमकी दी कहा कि शिवाजी को राजा मानने से मना करो. ताकि प्रजा भी इसे न माने !! लेकिन उनकी नहीं चली. शिवाजी ने अष्टप्रधान मंडल की स्थापना की. विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया था इस कारण से 4 अक्टूबर 1674 को दूसरी बार शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में हिन्दवी स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। इसके बाद बीजापुर के सुल्तान ने कोंकण विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को शिवाजी के विरुद्ध भेजा पर वे असफल रहे।[उद्धरण चाहिए]

दक्षिण में विजय

सन् 1677-78 में शिवाजी का ध्यान कर्नाटक की ओर गया। बम्बई के दक्षिण में कोंकण, तुंगभद्रा नदी के पश्चिम में बेळगांव तथा धारवाड़ का क्षेत्र, मैसूर, वैलारी, त्रिचूर तथा जिंजी पर अधिकार करने के बाद ३ अप्रैल, 1680 को शिवाजी का देहान्त हो गया।

मृत्यु और उत्तराधिकार

छत्रपती शिवाजी महाराज की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 में हुई। उस समय शिवाजी के उत्तराधिकार संभाजी को मिले। शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र संभाजी थे और दूसरी पत्नी से राजाराम नाम एक दूसरा पुत्र था। उस समय राजाराम की उम्र मात्र 10 वर्ष थी अतः मराठों ने शम्भाजी को राजा मान लिया। उस समय औरंगजेब राजा शिवाजी का देहान्त देखकर अपनी पूरे भारत पर राज्य करने कि अभिलाषा से अपनी 5,00,000 सेना सागर लेकर दक्षिण भारत जीतने निकला। औरंगजेब ने दक्षिण में आते ही अदिल्शाही २ दिनो में और कुतुबशाही १ ही दिनो में खतम कर दी। पर राजा सम्भाजी के नेतृत्व में मराठाओ ने ९ साल युद्ध करते हुये अपनी स्वतन्त्रता बरकरा‍र रखी। औरंगजेब के पुत्र शहजादा अकबर ने औरंगजेब के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया। संभाजी ने उसको अपने यहाँ शरण दी। औरंगजेब ने अब फिर जोरदार तरीके से संभाजी के ख़िलाफ़ आक्रमण करना शुरु किया। उसने अन्ततः 1689 में संभाजी के बीवी के सगे भाई याने गणोजी शिर्के की मुखबरी से संभाजी को मुकरव खाँ द्वारा बन्दी बना लिया। औरंगजेब ने राजा संभाजी से बदसलूकी की और बुरा हाल कर के मार दिया। अपनी राजा कि औरंगजेब द्वारा की गई बदसलूूूकी और नृृृृृृशंसता द्वारा मारा हुआ देखकर पूरा मराठा स्वराज्य क्रोधित हुआ। उन्होने अपनी पुरी ताकत से राजाराम के नेतृत्व में मुगलों से संघर्ष जारी रखा। 1700 इस्वी में राजाराम की मृत्यु हो गई। उसके बाद राजाराम की पत्नी ताराबाई 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय की संरक्षिका बनकर राज करती रही। आखिरकार 25 साल मराठा स्वराज्य के युद्ध लड के थके हुये औरंगजेब की उसी छ्त्रपती शिवाजी के स्वराज्य में दफन हुये।

शासन और व्यक्तित्व

शिवाजी को एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाना जाता है। यद्यपि उनको अपने बचपन में पारम्परिक शिक्षा कुछ खास नहीं मिली थी, पर वे भारतीय इतिहास और राजनीति से सुपरिचित थे। उन्होंने शुक्राचार्य तथा कौटिल्य को आदर्श मानकर कूटनीति का सहारा लेना कई बार उचित समझा था। अपने समकालीन मुगलों की तरह वह भी निरंकुश शासक थे, अर्थात शासन की समूची बागडोर राजा के हाथ में ही थी। पर उनके प्रशासकीय कार्यों में मदद के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद थी जिन्हें अष्टप्रधान कहा जाता था। इसमें मंत्रियों के प्रधान को पेशवा कहते थे जो राजा के बाद सबसे प्रमुख हस्ती था। अमात्य वित्त और राजस्व के कार्यों को देखता था तो मंत्री राजा की व्यक्तिगत दैनन्दिनी का खयाल रखाता था। सचिव दफ़तरी काम करते थे जिसमे शाही मुहर लगाना और सन्धि पत्रों का आलेख तैयार करना शामिल होते थे। सुमन्त विदेश मंत्री था। सेना के प्रधान को सेनापति कहते थे। दान और धार्मिक मामलों के प्रमुख को पण्डितराव कहते थे। न्यायाधीश न्यायिक मामलों का प्रधान था।

मराठा साम्राज्य तीन या चार विभागों में विभक्त था। प्रत्येक प्रान्त में एक सूबेदार था जिसे प्रान्तपति कहा जाता था। हरेक सूबेदार के पास भी एक अष्टप्रधान समिति होती थी। कुछ प्रान्त केवल करदाता थे और प्रशासन के मामले में स्वतंत्र। न्यायव्यवस्था प्राचीन पद्धति पर आधारित थी। शुक्राचार्य, कौटिल्य और हिन्दू धर्मशास्त्रों को आधार मानकर निर्णय दिया जाता था। गांव के पटेल फौजदारी मुकदमों की जांच करते थे। राज्य की आय का साधन भूमि से प्राप्त होने वाला कर था पर चौथ और सरदेशमुखी से भी राजस्व वसूला जाता था। 'चौथ' पड़ोसी राज्यों की सुरक्षा की गारंटी के लिए वसूले जाने वाला कर था। शिवाजी अपने को मराठों का सरदेशमुख कहते थे और इसी हैसियत से सरदेशमुखी कर वसूला जाता था।

राज्याभिषेक के बाद उन्होंने अपने एक मंत्री (रामचन्द्र अमात्य) को शासकीय उपयोग में आने वाले फारसी शब्दों के लिये उपयुक्त संस्कृत शब्द निर्मित करने का कार्य सौंपा। रामचन्द्र अमात्य ने धुन्धिराज नामक विद्वान की सहायता से 'राज्यव्यवहारकोश' नामक ग्रन्थ निर्मित किया। इस कोश में १३८० फारसी के प्रशासनिक शब्दों के तुल्य संस्कृत शब्द थे। इसमें रामचन्द्र ने लिखा है-

कृते म्लेच्छोच्छेदे भुवि निरवशेषं रविकुला-
वतंसेनात्यर्थं यवनवचनैर्लुप्तसरणीम्।
नृपव्याहारार्थं स तु विबुधभाषां वितनितुम्।
नियुक्तोऽभूद्विद्वान्नृपवर शिवच्छत्रपतिना ॥८१॥

राजमुद्रा

शिवाजी की राजमुद्रा

शिवाजी की राजमुद्रा संस्कृत में लिखी हुई एक अष्टकोणीय मुहर (seal) थी जिसका उपयोग वे अपने पत्रों एवं सैन्यसामग्री पर करते थे। उनके हजारों पत्र प्राप्त हैं जिन पर राजमुद्रा लगी हुई है। माना जाता है कि शिवाजी के पिता शाहजीराजे भोसले ने यह राजमुद्रा उन्हें तब प्रदान की थी जब शाहजी ने जीजाबाई और तरुण शिवाजी को पुणे की जागीर संभालने के लिए भेजा था। जिस सबसे पुराने पत्र पर यह राजमुद्रा लगी है वह सन १६३९ का है। मुद्रा पर लिखा वाक्य निम्नलिखित है-

प्रतिपच्चंद्रलेखेव वर्धिष्णुर्विश्ववंदिता शाहसुनोः शिवस्यैषा मुद्रा भद्राय राजते।
(अर्थ : जिस प्रकार बाल चन्द्रमा प्रतिपद (धीरे-धीरे) बढ़ता जाता है और सारे विश्व द्वारा वन्दनीय होता है, उसी प्रकार शाहजी के पुत्र शिव की यह मुद्रा भी बढ़ती जाएगी।)

धार्मिक नीति

शिवाजी एक धर्मपरायण हिन्दु शासक थे तथा वह धार्मिक सहिष्णु भी थे। उनके साम्राज्य में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता थी। कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान सन्तों और फ़कीरों को भी सम्मान प्राप्त था। उनकी सेना में मुसलमान सैनिक भी थे। शिवाजी हिन्दू संस्कृति को बढ़ावा देते थे। पारम्परिक हिन्दू मूल्यों तथा शिक्षा पर बल दिया जाता था। अपने अभियानों का आरम्भ वे प्रायः दशहरा के अवसर पर करते थे।

चरित्र

शिवाजी महाराज को अपने पिता से स्वराज की शिक्षा ही मिली जब बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी राजे को बन्दी बना लिया तो एक आदर्श पुत्र की तरह उन्होंने बीजापुर के शाह से सन्धि कर शाहजी राजे को छुड़वा लिया। इससे उनके चरित्र में एक उदार अवयव ऩजर आता है। उसेक बाद उन्होंने पिता की हत्या नहीं करवाई जैसा कि अन्य सम्राट किया करते थे। शाहजी राजे के मरने के बाद ही उन्होंने अपना राज्याभिषेक करवाया हालांकि वो उस समय तक अपने पिता से स्वतंत्र होकर एक बड़े साम्राज्य के अधिपति हो गये थे। उनके नेतृत्व को सब लोग स्वीकार करते थे यही कारण है कि उनके शासनकाल में कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी प्रमुख घटना नहीं हुई थी।

वह एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे। कई जगहों पर उन्होंने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय कूटनीति से काम लिया था। लेकिन यही उनकी कूटनीति थी, जो हर बार बड़े से बड़े शत्रु को मात देने में उनका साथ देती रही।

शिवाजी महाराज की "गनिमी कावा" नामक कूटनीति, जिसमें शत्रु पर अचानक आक्रमण करके उसे हराया जाता है, विलोभनियता से और आदरसहित याद किया जाता है।

शिवाजी महाराज के गौरव में ये पंक्तियां प्रसिद्ध हैं-

शिवरायांचे आठवावे स्वरुप। शिवरायांचा आठवावा साक्षेप।
शिवरायांचा आठवावा प्रताप। भूमंडळी ॥

प्रमुख तिथियां और घटनाएं

  • 1630/2/19 : शिवाजी महाराज का जन्म।
  • 14 मई 1640 : शिवाजी महाराज और साईबाई का विवाह
  • 1646 : शिवाजी महाराज ने पुणे के पास तोरण दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
  • 1656 : शिवाजी महाराज ने चन्द्रराव मोरे से जावली जीता।
  • 10 नवंबर, 1659 : शिवाजी महाराज ने अफजल खान का वध किया।
  • 5 सितंबर, 1659 : संभाजी का जन्म।
  • 1659 : शिवाजी महाराज ने बीजापुर पर अधिकार कर लिया।
  • 6 से 10 जनवरी, 1664 : शिवाजी महाराज ने सूरत पर धावा बोला और बहुत सारी धन-सम्पत्ति प्राप्त की।
  • 1665 : शिवाजी महाराज ने औरंगजेब के साथ पुरन्धर शांति सन्धि पर हस्ताक्षर किया।
  • 1666 : शिवाजी महाराज आगरा कारावास से भाग निकले।
  • 1667 : औरंगजेब राजा शिवाजी महाराज के शीर्षक अनुदान। उन्होंने कहा कि कर लगाने का अधिकार प्राप्त है।
  • 1668 : शिवाजी महाराज और औरंगजेब के बीच शांति सन्धि
  • 1670 : शिवाजी महाराज ने दूसरी बार सूरत पर धावा बोला।
  • 1674 : शिवाजी महाराज ने रायगढ़ में 'छत्रपति'की पदवी मिली और राज्याभिषेक करवाया । 18 जून को जीजाबाई की मृत्यु।
  • 1680 : शिवाजी महाराज की मृत्यु।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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  2. The Quarterly Journal of the Mythic Society (Bangalore). 1975. पृ॰ 18.
  3. Singh K S (1998). India's communities. Oxford University Press. पृ॰ 2211. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-563354-2.
  4. Marathi book Shivkaal (Times of Shivaji) by Dr V G Khobrekar, Publisher: Maharashtra State Board for Literature and Culture, First edition 2006. Chapter 1
  5. Salma Ahmed Farooqui (2011). A Comprehensive History of Medieval India: From Twelfth to the Mid-Eighteenth Century. Dorling Kindersley India. पपृ॰ 314–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-317-3202-1.
  6. Har Bilas Sarda (Diwan Bahadur),Speeches and writings
  7. Chintaman Vinayak Vaidya History of mediæval Hindu India: (being a history of India from 600 to 1200)
  8. The Marathas 1600-1818, Part 2, Volume 4 By Stewart Gordon. Page 88.
  9. Shiri Ram Bakshi (1998). Sharad Pawar, the Maratha legacy. APH Publishing. पपृ॰ 25–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7648-007-9. अभिगमन तिथि 15 May 2011.
  10. Bhatia, H. S. (2001). Mahrattas, Sikhs and Southern Sultans of India: Their Fight Against Foreign Power (2nd संस्करण). Deep & Deep. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788171003693. अभिगमन तिथि 2012-08-31.

बाहरी कड़ियां