ताराबाई
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ताराबाई | |
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चौथी मराठा छत्रपती (कार्यकारी) | |
महारानी, राजमाता,छत्रपती - मराठा साम्राज्य | |
शासनावधि | महाराणी-१६८९-१७००
छत्रपती-१७००-१७०७ कोल्हापूर की राजमाता- १७११-१७१४ मराठा साम्राज्य की राजमाता-१७३१-१७६१ |
पूर्ववर्ती | महाराणी- जानकीबाई राजाराम भोसले
छ्त्रपती - राजाराम छत्रपति कोल्हापूर की राजमाता - पद निर्माण मराठा साम्राज्य की राजमाता - येसूबाई |
उत्तरवर्ती | महाराणी - सावित्रीबाई शाहू भोसले
छ्त्रपती- शाहु महाराज कोल्हापूर की राजमाता- राजसबाई मराठा साम्राज्य की राजमाता - सावित्रीबाई शाहू भोसले |
जन्म | 1675 |
निधन | 1761 सातारा |
जीवनसंगी | राजाराम I (m.circa 1683, d.1700) |
संतान | शिवाजी द्वितीय |
घराना | मोहिते ( मायके) भोंसले (वैवाहिक नाम) |
पिता | हंबिर राव मोहिते |
धर्म | हिन्दू |
कोल्हापूर करवीर संस्थापक अखंड सौभाग्यवती वज्रचुडेमंडित श्रीमंत महारानी ताराबाई राजाराम भोसले (१६७५-१७६१) राजाराम महाराज की दूसरी पत्नी( पहली पत्नी जानकीबाई) तथा छत्रपति शिवाजी महाराज के सरसेनापति हंबीरराव मोहिते की कन्या थीं। [1] इनका जन्म 1675 में हुआ और इनकी मृत्यु 9 दिसंबर 1761 ई० को हुयी। महारानी ताराबाई का पूरा नाम ताराबाई भोंसले था। उन्हे ताराराणी या ताराऊ कहां जाता था। राजाराम की मृत्यु के बाद इन्होंने अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी दित्तीय का राज्याभिषेक करवाया और मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बन गयीं। ताराबाई का विवाह छत्रपति शिवाजी महाराज के छोटे पुत्र राजाराम महाराज प्रथम के साथ हुआ राजाराम 1689 से लेकर 1700 में उनकी मृत्यु हो जाने के पश्चात ताराबाई मराठा साम्राज्य कि संरक्षिका बनी। और उन्होंने शिवाजी दित्तीय को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित किया और एक संरक्षिका के रूप में मराठा साम्राज्य को चलाने लगी उस वक्त शिवाजी द्वितीय मात्र 4 वर्ष के थे 1700 से लेकर 1707 ईसवी तक मराठा साम्राज्य की संरक्षिका उन्होंने औरंगजेब को बराबर की टक्कर दी और उन्होंने 7 सालों तक अकेले दम पर मुगलों से टक्कर ली और कई सरदारों को एक करके वापस मराठा साम्राज्य को बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ताराबाई अपने पुत्र को गद्दी पर देखना चाहती थी। परंतु ऐसा हो ना सका औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुर शाह प्रथम ने छत्रपति शाहू जो कि उसकी कैद में थे उनको दिल्ली से छोड़ दिया और जिसके करण साहू ने यहां पर आकर गद्दी के लिए संघर्ष शुरु हो गया और महाराष्ट्र में गृह युद्ध छिड़ गया अंततः शाहू ने युद्ध में ताराबाई की सेना को पराजित कर उन्हें पूरी तरीके से खत्म कर दिया। और उनको कोल्हापुर राज्य दे दिया और वहीं पर उनका राज्य स्थापित कर दिया और खुद मराठा समाज शाहु के काल में ही मराठा साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा। और छत्रपति शाहू छत्रपति हालात में मौत होने वाले 1740 के दशक में ताराबाई अपनी पोते रामराज को शाहू के पास लेकर गई क्योंकि शाहू का कोई पुत्र नहीं था रामराज शाहु के पास और कोई पुत्र नहीं था इसीलिए शिवाजी के वंशज होने के नाते रामराज छत्रपति शाहू जी को अपना पुत्र घोषित कर दिया। और रामराज 1749 सतारा की गद्दी पर बैठ गए। उसके गददी पर बैठते ही पेशवा बालाजी बाजीराव को हटाने के लिए ताराबाई ने रामराज से कहा पर रामराज ने मना कर दिया। जिससे ताराबाई ने रामराजा को सातारा के किले में कैद कर लिया। जब बालाजी बाजीराव को यह खबर पहुंची तो वे छत्रपति को रिहा करने के लिए सातारा की ओर चल दिए 1752 मई को यह खबर लगते ही उन्होंने दामाजी राव गायकवाड की 15000 सेना के साथ दाभाडे परिवार को एक करके जो कि पूरा परिवार पेशवा का पुराना दुश्मन था बालाजी बाजीराव के खिलाफ साजिश रची बालाजी बाजीराव नवंबर 1752 में पूर्ण रूपेण परास्त किया और ताराबाई से संधि कर ली जिसके तहत ताराबाई ने रामराजा को अपना पोता ना होना घोषित कर दिया और अब मराठा साम्राज्य की सारी शक्ति पेशवाओं के हाथ में चली गई। 14 जनवरी 1761 में पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की हार होने के बाद जून 1761 में बालाजी बाजीराव की मृत्यु हो गई और उसके बाद ही दिसंबर 1761 में ताराबाई का भी निधन हो गया। ताराबाई मराठा साम्राज्य की सबसे ताकतवर महिलाओं में से निकली और जिस तरह से उन्होंने 7 वर्षों तक औरंगजेब से लड़ाई लड़ी हो उनकी महानता को दर्शाता है और उनकी दूरदर्शिता को भी।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Jadhav, Bhagyashree M (1998). "Ch. 5 – Her Contribution to Maratha History". Dr. Appasaheb Pawar a study of his life and career. Shivaji University. पृ॰ 224. hdl:10603/138357.