खरगोन
खरगोन Khargone | |
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खरगोन नगरपालिका मुख्यालय | |
निर्देशांक: 21°49′12″N 75°37′07″E / 21.8200°N 75.6187°Eनिर्देशांक: 21°49′12″N 75°37′07″E / 21.8200°N 75.6187°E | |
ज़िला | खरगोन ज़िला |
प्रान्त | मध्य प्रदेश |
देश | भारत |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 1,06,454 |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी और निमाड़ी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 451001 |
दूरभाष कोड | 07282 |
वाहन पंजीकरण | MP 10 |
खरगोन (Khargone) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के खरगोन ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। यहाँ पर प्रत्येक वर्ष जनवरी - फरवरी माह में नवग्रह मेला लगता है जिसमे आस पास के सभी ग्रामीण क्षेत्र के लोग घूमने आते है। यहाँ पर 2020 के मेले में बॉलीवुड अभिनेता गोविंदा जी भी आये थे। [1][2]
भूगोल
[संपादित करें]खरगोन नगर, दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश राज्य, मध्य भारत, नर्मदा नदी की सहायक कुंदा नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। खरगोन ज़िला मध्यप्रदेश की दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर स्थित है। 21 अंश 22 मिनिट - 22 अंश 35 मिनिट (उत्तर) अक्षांश से 74 अंश 25 मिनिट - 76 अंश 14 मिनिट (पूर्व) देशांश के बीच यह जिला फैला है। इसका क्षेत्रफल लगभग 8030 वर्ग कि॰मी॰ है। इस जिले के उत्तर में धार, इंदौर व देवास, दक्षिण में महाराष्ट्र, पूर्व में खण्डवा, बुरहानपुर तथा पश्चिम में बड़वानी है। नर्मदा घाटी के लगभग मध्य भाग में स्थित इस जिले के उत्तर में विंध्याचल एवं दक्षिण में सतपुड़ा पर्वतश्रेणियां हैं। नर्मदा नदी जिले में लगभग 50 कि॰मी॰ बहती है। कुंदा तथा वेदा अन्य प्रमुख नदियां हैं। देजला-देवड़ा, गढ़ी गलतार, अंबकनाला तथा अपर वेदा प्रमुख सिंचाई परियोजनाएं हैं। महेश्वर पनबिजली तथा सिंचाई योजना नर्मदा पर बनी तीन प्रमुख पनबिजली व सिंचाई योजनाओं में से एक है। खरगोन जिला मुख्यालय के अक्षांश व देशांश क्रमशः 21°49'18" (उत्तर) तथा 75°37'10" (पूर्व) हैं। यह शहर औसत समुद्र सतह से लगभग 283 मीटर (± 9 मीटर) की ऊंचाई पर है।
इतिहास
[संपादित करें]इतिहासकारों के मतानुसार नर्मदा घाटी की सभ्यता अत्यंत प्राचीन है। रामायण काल, महाभारत काल, सातवाहन, कनिष्क, अभिरोहर्ष, चालुक्य, भोज, होलकर, सिंधिया, मुगल तथा ब्रिटिश आदि से यह क्षेत्र जुड़ा हुआ है। विभिन्न कालों में यहां जैन, यदुवंशी, सिद्धपंथी, नागपंथी ,गुरवपंथी,आदि का प्रभाव रहा है। प्राचीन स्थापत्य कला के अवशेष इस क्षेत्र के ऐतिहासिक गाथाओं को व्यक्त करने में आज भी सक्षम हैं। इस क्षेत्र में प्राप्त पाषाणकालीन शस्त्रों से भी यह सिद्ध होता है।
भारत के उत्तर व दक्षिण प्रदेशों को जोड़ने वाले प्राकृतिक मार्ग पर बसा यह क्षेत्र सदैव ही महत्वपूर्ण रहा है। इतिहास के विभिन्न कालखण्डों मे यह क्षेत्र - महेश्वर के हैहय, मालवा के परमार, असीरगढ़ के अहीर, माण्डू के मुस्लिम शासक, मुगल तथा पेशवा व अन्य मराठा सरदारों - होल्कर, शिंदे, पवार - के साम्राज्य का हिस्सा रहा है। इसे बीजागढ़ की सरकार में एक महल का मुख्यालय बनाए जाने पर इसकी महत्ता बढ़ी। अब यहाँ एक पुराना क़िला और कई मक़बरे व महल हैं। नदी के तट को पत्थर के तटबंध से पक्का कर दिया गया है और घाटों का निर्माण करके सुंदर बनाया गया है। खरगौन स्थित नवग्रह मंदिर प्रसिद्ध है और यहाँ प्रतिवर्ष दिसंबर और जनवरी में मेले का आयोजन होता है। 1 नवम्बर 1956 को मध्य प्रदेश राज्य के गठन के साथ ही यह जिला "पश्चिम निमाड़" के रूप में अस्तित्व में आ गया था। कालांतर में प्रशासनिक आवश्याकताओं के कारण दिनांक 25 मई 1998 को "पश्चिम निमाड़" को दो जिलों - खरगोन जिला एवं बड़वानी जिला में विभाजित किया गया।
नामोत्पत्ति
[संपादित करें]ऐसा अनुमान है कि आर्य एवं अनार्य सभ्यताओं की मिश्रित भूमि होने के कारण यह क्षेत्र "निमार्य" नाम से जाना जाने लगा जो कि कालांतर में अपभृंष हो कर "निमार" एवं फिर "निमाड़" में परिवर्तित हो गया। (निमा = आधा)। एक अन्य मतानुसार यह नाम नीम के वृक्षों के कारण पड़ा। इसे प्राचीनकाल मे खरगुशन की नगरी भी कहा जाता था।
जनसंख्या
[संपादित करें]खरगोन जिले की जनसंख्यया कुल १८ लाख है जबकि शहर में उसका हिस्सा डेढ़ लाख है। यहाँ अनेक जातियों के लोग बसते है। इनमें प्रमुख कुशवाह ( काछी ), पाटीदार, ब्राह्मण,सिरवी, क्षत्रिय सगरवंशी माली, बोह्ररा और मुस्लिम तथा कई एनी जातियाँ है। पाटीदार यहाँ कॆ 60 गाँवों में निवास करते है।
व्यवसाय
[संपादित करें]खरगोन सफेद सोने अर्थात कपास के व्यवसाय के लिये प्रसिध हे। खरगोन में कपास एवं मिर्ची उत्पादन अधिक होता है। खरगोन में कई जिनिंग फेक्टरी है। खरगोन जिले में बेड़िया में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मिर्ची मंडी है। और अब एक ओर मंडी खरगोन के पास ग्राम सैनीपुरा के नजदीक चालू होने वाली है।शासन ने निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया है। खरगोन जिले में मूंगफली का उत्पादन अच्छा होता है। यहाँ पर कपास अनुसंधान केंद्र भी स्थित है।जो खंडवा रोड पर है। कपास अनुसंधान केंद्र,कृषि विज्ञान केंद्र खरगोन के अंतर्गत आता है। नवग्रह मेले में बेलों का व्यापार किया जाता है।
खरगोन अपने ज़िले का एक महत्त्वपूर्ण वाणिज्य और व्यापार केंद्र है और यहाँ कृषि उत्पाद और इमारती लकड़ी का बाज़ार है। यह कपास और अनाज का सुविकसित बाज़ार है। इस शहर में कपास ओटने और गांठ बनाने, चावल और तिलहन मिल और बीड़ी के कारख़ाने हैं। यह स्थान मोरिंडा टिंकटोरिया से रंजक उत्पादन के लिए भी जाना जाता है।
शिक्षा
[संपादित करें]इस शहर में एक पुस्तकालय और कई सरकारी महाविद्यालय हैं, जो इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। यहाँ एक आधारभूत प्रशिक्षण संस्थान और संस्कृतशाला भी हैं।
संस्कृति
[संपादित करें]खरगोन नगरी में नवग्रह मंदिर सुप्रसिद्ध है, जहाँ प्रत्येक वर्ष जनवरी फरवरी माह में नवग्रह मेला लगता है।
पर्यटन
[संपादित करें]पर्यटन की दृष्टि से ग्राम नागझिरी में एक अति प्राचीन सुप्रसिद्ध श्री तिलकेश्वर महादेव जी का मंदिर भी है। जिनके बारे में वहां के पंडित पंकज किशोर व्यास के अनुसार भगवान महादेव हर महाशिवरात्रि की रात को तिल भर बढ़ते भी हैं। और अपने स्थान से खिसकते है इसीलिए इन महादेव का नाम तिलकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। यहाँ की महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, रामनवमी, और श्रावण मास के पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाए जाते है।
- नागझिरी ग्राम सुप्रसिद्ध ग्राम है। जो कि खरगोन जिले का कुशवाह समाज का सबसे बड़ा ग्राम है। यहाँ पर बोन्दरु बाबा का मंदिर ये जहाँ प्रत्येक वर्ष नवमी के दिन संतान मेला लगता है, माना जाता है जिन दंपतियों के संतान नही होती वो इस दिन यहाँ आकर मन्नत लेते है तथा प्रसादी ( कच्ची कैरी ) ग्रहण करते है।
- रावलखेड़ी श्रीमंत बाजीराव पेशवा समाधि रावेरखेड़ी
श्रेणी ऐतिहासिक महान पेशवा बाजीराव की समाधी रावेरखेड़ी में स्थित है। उत्तर भारत के लिए एक अभियान के समय उनकी मृत्यु यहीं नर्मदा किनारे हो गई थी। । रावेरखेड़ी के पास बकावां में नर्मदा के पत्थरों को तराश कर शिव-लिंग बनाए जाते हैं।
- खरगोन - जिला मुख्यालय - कुंदा नदी के तट पर बसा यह शहर अत्यंत प्राचीन नवग्रह मन्दिर के लिये प्रसिद्ध है। यह शहर इंदौर (रेल्वे / हवाई अड्डा) से 143 कि॰मी॰ , बड़वानी से 90 कि॰मी॰ (गुजरात से आते हुए - राज्य महामार्ग 26), सेंधवा से 70 कि॰मी॰ (महाराष्ट्र से आते हुए - आगरा मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग क्रं. 3), धामनोद से 65 कि॰मी॰ (इंदौर से आते हुए - आगरा मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग क्रं. 3), धार से 130 कि॰मी॰ , खण्डवा से 90 कि॰मी॰ तथा बुरहानपुर से 130 कि॰मी॰ दूरी पर है। यह शहर कपास एवं जिनिंग कारखानों का एक प्रमुख केन्द्र है।
- खरगोन में तीन टाकीज है- कृष्णा टाकीज,साज,और आरती टाकीज।
- महेश्वर - यह शहर हैहयवंशी राजा सहस्रार्जुन, जिसने रावण को पराजित किया था, की राजधानी रहा है। ऋषि जमदग्नि को प्रताड़ित करने के कारण उनके पुत्र भगवान परषुराम ने सहस्रार्जुन का वध किया था। कालांतर में महान देवी अहिल्याबाई होल्कर की भी राजधानी रहा है। नर्मदा नदी के किनारे बसा यह शहर अपने बहुत ही सुंदर व भव्य घाट तथा माहेश्वरी साड़ियों के लिये प्रसिद्ध है। घाट पर अत्यंत कलात्मक मंदिर हैं जिनमे से राजराजेश्वर मंदिर प्रमुख है। आदिगुरु शंकराचार्य तथा पंडित मण्डन मिश्र का प्रसिद्ध शास्त्रार्थ यहीं हुआ था। यह जिले की एक तहसील का मुख्यालय भी है।
- अवरकच्छ- यह गांव कुंदा नदी के किनारे बसा हुआ है। यहां के लोग बहुत ही दयालु है। यहां पर शराब बिक्री पूर्णतः बंद है। अवरकच्छ में सन 2004 में बाढ़ के कारण भारी नुकसान हुआ था,जिसका खामियाजा आज भी लोग भुगत रहे है। इस गांव में हर शनिवार को सुन्दरकाण्ड किया जाता है।यहाँ के राम मंदिर एवं हनुमान मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है।
- बरुड़ - खरगोन से 15 किमी दूर स्थित ग्राम मिर्च व कपास तथा टमाटर के लिए प्रशिद्ध ग्राम।
- करही - महेश्वर से 31 कि॰मी॰ तथा खरगोन से 69 कि॰मी॰ दूर स्थित यह शहर कपड़ा मार्किट तथा एजुकेशन के लिए प्रशिद्ध है। मालन नदी के किनारे बसा यह शहर शिक्षा के क्षेत्र में जिले में एजुकेशन हब बनाता जा रहा है। यहाँ गुप्तेश्वर महादेव मंदिर है, जो माँ अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा उनके शासन काल के समय बनवाया गया था। यहाँ दुर्गा मंदिर, राम मंदिर, जैन मंदिर तथा नाग मन्दिर प्रमुख दर्शनीय मंदिर है। जिले में यह शहर कपास एवं जिनिंग कारखानों का खरगोन के बाद दूसरा प्रमुख केन्द्र है। यहाँ एक अनाज मंडी तथा ITI भी है और करही एशिया की सबसे छोटी नगरपरिषद भी है
- मण्डलेश्वर - महेश्वर से 8 कि॰मी॰ दूर यह शहर भी नर्मदा के किनारे ही बसा है। नर्मदा पर जल-विद्युत परियोजना व बांध का निर्माण हुआ है। यहां से समीप ही चोली नामक स्थान पर अत्यंत प्राचीन शिव-मंदिर है जहां पर बहुत भव्य शिव-लिंग स्थित है।
- ऊन - यह स्थान खरगोन से 14 कि॰मी॰ दूरी पर है। परमार-कालीन शिव-मंदिर तथा जैन मंदिरों के लिये यह स्थान प्रसिद्ध है। एक बहुत प्राचीन लक्ष्मी-नारायण मंदिर भी यहां स्थित है। खजुराहो के अलावा केवल यहीं परमार-कालीन प्राचीन मंदिर हैं। यह स्थान खरगॊन से 25 तथा बड़वानी से 83 किमी़ दुर है। ऐसी किवदंती है कि 6 महीने कि रात में 36 करोड़ देवी-दॆवता यहीं रुके थे।
- बकावां एवं रावेरखेड़ी - महान पेशवा बाजीराव की समाधी रावेरखेड़ी में स्थित है। उत्तर भारत के लिए एक अभियान के समय उनकी मृत्यु यहीं नर्मदा किनारे हो गई थी। बकावां में नर्मदा के पत्थरों को तराश कर शिव-लिंग बनाए जाते हैं।
- देजला-देवड़ा - कुंदा नदी पर एक बड़ा बांध है जिससे लगभग 8000 हेक्टेयर में सिंचाई होती है।
- सिरवेल महादेव - खरगोन से 55 कि॰मी॰ दूर इस स्थान के बारे मे मान्यता है कि रावण ने महादेव शिव को अपने दसों सर यहीं अर्पण किये थे। इसीलिये यह नाम पड़ा है। यह स्थान महाराष्ट्र की सीमा से बहुत ही पास है। महाशिवरात्रि पर म.प्र. एवं महाराष्ट्र से अनेक श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।
- नन्हेश्वर - खरगोन से 20 कि॰मी॰ दूर यह स्थान भी प्राचीन शिव-मंदिर के लिये प्रसिद्ध है। खरगोन से सिरवेल महादेव जाते समय यह स्थान रास्ते में है।
- जामगेट-जाम गेट महारानी अहिल्याबाई द्वारा बनाया गया एक द्वार है जो मंडलेश्वर से इंदौर जाते समय रास्ते मे आता है।यह ऊँचाई पर स्थित है तथा वर्षाकाल में देखने लायक रहता है।
- बड़वाह व सनावद - ये जुड़वां शहर नर्मदा के दोनो ओर बसे हैं। उत्तर की ओर बड़वाह तथा दक्षिण की ओर सनावद है। ऊँकारेश्वर ज्योतिर्लिंग जाने के लिये यहां से ही जाना पड़ता है।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Inde du Nord: Madhya Pradesh et Chhattisgarh Archived 2019-07-03 at the वेबैक मशीन," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172
- ↑ "Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293
- ↑ Agniban Newspaper (अंग्रेज़ी में). 2020-04-04. गायब अथवा खाली
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(मदद); गायब अथवा खाली|url=
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(मदद)