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तेली

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मराठी तेली संत संताजी की रायपुर छत्तीसगढ़ में स्थापित प्रतिमा
बैल से चलने वाली परम्परागत कोल्हू और उस पर बैठा तेली बालक

तेली परंपरागत रूप से भारत, पाकिस्तान और नेपाल में तेल उत्पाद करने और बेचने वाले तेल व्यापारी लोग है। जिन्हे वर्तमान में तेली समाज के नाम से जाना जाता है। तेली शब्द को संस्कृत में तैलिक कहते है। तेली समाज के लोग हिंदू, मुस्लिम,जैन, बौद्ध और पारसी इन सभी धर्मो में पाए जाते हैं। हिंदू तेली समाज के सरनेम–

देशमाने,राठौर,साहू,तैल्याकार,सहुवान,साव,साह,साहूकार है। तेली समाज को गुजरात में घांची तेली के नाम से जाना जाता है। घांची तेली समाज के सरनेम– मोदी, चौधरी और गांधी है। दक्षिण भारत में तेली समाज को वनियार, चेट्टियार, चेट्टी, गनिगा के नाम से जाना जाता हैं। मुस्लिम तेली समाज को मलिक के नाम से जाना जाता है।


उत्तपत्ति

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मानवशास्त्री आर व्ही रसेल की एक पुस्तक 1916 में प्रकाशित हुई। उन्होंने अपने प्रसिद्ध पुस्तक The Tribes and Castes of Central Provinces के खंड 3 के पृष्ठ क्रमांक 542 से 557 में  कुल 16 पृष्ठों में तेली जाति के उदभव, विकास और रीति-रिवाज का विषद विवेचना किया है।

रसेल के शब्दों में तेली जाति की उत्पत्ति का इतिहास इस प्रकार है:-

एक बार भगवान शिव महल (कैलाश पर्वत) से बाहर गये थे। महल की सुरक्षा के लिए कोई द्वारपाल नहीं था,जिसके कारण माता पार्वती चिंतित हुईं और अपने शरीर के पसीने के मैल से गणेश जी को जन्म देकर महल के दक्षिण द्वार पर तैनात किया । भगवान शिव, जब महल लौटे तो गणेश जी ने उन्हें नहीं पहचाना और महल में प्रवेश से रोक दिया, जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने गणेश जी क् सिर अपने त्रिशूल से काटकर भस्म कर दिया। जब रक्तरंजित त्रिशूल को माता पार्वती देखी और अपने पुत्र की हत्या की बात सुनी,तब वे बहुत दुखी हुईं। माता पार्वती ने भगवान शिव से अपने पुत्र को जीवित करने का आग्रह किया किन्तु भगवान शिव ने मस्तस्क भस्म हो जाने के कारण जीवित कर पाने में असमर्थता जताई, किन्तु अन्य उपाय बताया कि यदि कोई पशु दक्षिण दिशा में मुंह किये मिल जाये तो गणेश जी को जीवित किया जा सकता है। महल के बाहर एक व्यापारी हाथी सहित विश्राम कर रहा था और हाथी का मुंह दक्षिण दिशा में था। भगवान शिव ने तत्काल हाथी का सर काट गणेश जी के धड़ से जोड़कर जीवित कर दिया। हाथी के मर जाने से व्यापारी अत्यंत दुखी हुआ तब भगवान शिव ने मूशल एवं ओखली से एक यंत्र (कोल्हू) बनाया और उससे तेल निकालने की विधि बताई। व्यापारी उस यंत्र से तेल निकालने लगा, वही प्रथम तेली कहलाया । इस प्रकार से तेली जाति की उत्पत्ति भगवान शिव से हुई ।

राजनीति

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2000 के दशक के अंत में, तेली सेना द्वारा आयोजित बिली के तेली समुदाय में से कुछ, वोट बैंक की राजनीति में शामिल थे क्योंकि उन्होंने राज्य में सबसे पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकरण प्राप्त करने की मांग की थी। प्रारंभ में, वे भारत की आधिकारिक सकारात्मक भेदभाव योजना में इस तात्पर्य को प्राप्त करने में विफल रहे, विपक्षी अन्य समूहों से आ रहे थे जिन्होंने तेली को बहुत अधिक आबादी वाले और सामाजिक-आर्थिक रूप से प्रभावशाली माना और परिवर्तन को सही ठहराया। अप्रैल 2015 में, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की सूची में तेली जाति को शामिल करने का फैसला किया।[1][2] बिहार जाति आधारित गणना 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में तेली की आबादी 2.81% है।[3][4]

2004 में, झारखंड सरकार ने अर्जुन मुंडा के अधीन झारखंड में अनुसूचित जनजाति में तेली जाति को दर्जा देने की सिफारिश की, लेकिन यह कदम 2015 के रूप में अमल नहीं किया गया।[5] 2014 में, रघुवर दास झारखंड के पहले तेली मुख्यमंत्री बने

मध्यप्रदेश के ग्वालियर में स्थित तेली का मन्दिर तेली समुदाय ने 9 वी सदी में बनवाया था ।

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. "बिहारः जातियों के दर्जे में बदलाव से होगा फ़ायदा ?". मूल से 11 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 अप्रैल 2018.
  2. "Bihar: BJP, JD(U) set for a war of sops ahead of Assembly polls". मूल से 9 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 दिसंबर 2017.
  3. "Bihar Caste Survey: बिहार में किस जाति की कितनी आबादी, देखें पूरी सूची".
  4. "Bihar Caste Survey Report LIVE: बिहार में 63% पिछड़े, 19% दलित, 15% सवर्ण, जाति गणना रिपोर्ट में यादव सबसे ज्यादा".
  5. "Teli show of strength at Gumla". मूल से 8 नवंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 दिसंबर 2017.