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कलवार (जाति)

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कलवार (अथवा शौण्डिक, कलाल, कलार) एक भारतीय जाति है जिसके लोग ऐतिहासिक रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर एवं मध्य भारत के अन्य भागों में पाये जाते हैं। पारम्परिक रूप से शराब बनाने के व्यवसाय से जुड़े हैं लेकिन २०वीं सदी के आरम्भ में कलवार लोगों ने इस व्यवसाय को छोड़कर अपने समुदाय के संस्कृतीकरण करने का संकल्प लिया।[1] भारत और नेपाल में निवास करने वाली एक समुदाय (जाति) है जो पारम्परिक रूप से कलाल (शराब/ मद्य) के निर्माण और विक्रय में संलग्न रही है। भारत में ये लोग मुख्यतः उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा तथा मध्य भारत के कुछ भागों के निवासी हैं। २०वीं शताब्दी में इनके कुछ संगठनों ने अपने परम्परागत व्यवसाय को त्यागकर नये कार्य करने का निर्णय लिया।

चूँकि उनके शराब बनाने और विक्रय करने का वंशानुगत व्यवसाय तुच्छ माना जाता है, इसके अतिरिक्त दक्षिण एशिया की जाति व्यवस्था में कलाल को निम्न वर्ग में माना जाता है। यह स्थिति तब बदल गयी जब कलाल प्रमुख जस्सा सिंह की १८वीं सदी में राजनीतिक शक्ति बढ़ी। जस्सा सिंह ने अपनी पहचान को अहलुवालिया के रूप में ही रखा जो उनके पैदाइसी गाँव का नाम है। इसी नाम से उन्होंने कपूरथला राज्य की स्थापना की।[2]

जस्सा सिंह से प्रेरित होकर अन्य सिख कलालों ने अहलुवालिया उपनाम को स्वीकार कर लिया और अपने पारम्परिक व्यवसाय को छोड़ दिया। शराब के निर्माण और विक्रय पर ब्रितानी प्रशासनिक उपनिवेश द्वारा लगाये गये नियमों ने इस प्रक्रिया को और तेजी से कम कर दिया और २०वीं सदी की शुरुआत में अधिकतर कलालों ने पुस्तैनी व्यवसाय को छोड़ दिया। इसी समय से अहलुवालिया लोगों ने अपनी स्थिति को खत्री अथवा राजपूत मूल के रूप में प्रस्तुत करना आरम्भ कर दिया।[2]

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. बेली, क्रिस्टोफर ए॰ (1973). "Patrons and Politics in Northern India (उत्तर भारत में संरक्षण और राजनीति)". प्रकाशित गाल्लघर, जॉन; जॉनसन, गॉर्डन; सील, अनिल (संपा॰). Locality, Province and Nation: Essays on Indian Politics 1870 to 1940 [स्थानीयता, प्रान्त और राष्ट्र: वर्ष 1870 से 1940 तक की भारतीय राजनीति पर निबंध] (पुनः मुद्रित संस्करण). कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस आर्काइव. पृ॰ 63. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-52109-811-3.
  2. डोनाल्ड एंथनी लॉ (1968). Soundings in Modern South Asian History [आधुनिक दक्षिण एशियाई इतिहास की आवाज]. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी प्रेस. पपृ॰ 70–71. OCLC 612533097.