देहरादून
देहरादून | |
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नगर | |
ऊपर से दक्षिणावर्त: वन अनुसंधान संस्थान, क्लेमनटाउन का बुद्ध मंदिर, रॉबर्स केव, भारतीय सैन्य अकादमी, दून विद्यालय, रात्रिकाल में देहरादून का दृश्य तथा देहरादून घंटाघर | |
उपनाम: दून | |
निर्देशांक: 30°19′05″N 78°01′44″E / 30.318°N 78.029°Eनिर्देशांक: 30°19′05″N 78°01′44″E / 30.318°N 78.029°E | |
राष्ट्र | भारत |
राज्य | चित्र:..Uttarakhand Flag(INDIA).png उत्तराखण्ड |
जनपद | देहरादून |
स्थापित | १६७६ |
नगरपालिका | १८६७ |
शासन | |
• प्रणाली | मेयर-काउंसिल |
• सभा | देहरादून नगर निगम |
• महापौर | सुनील उनियाल (भाजपा) |
• म्युनिसिपल कमिश्नर | विनय शंकर पाण्डे,[1] आईएएस |
क्षेत्रफल | |
• नगर | ३०० किमी2 (100 वर्गमील) |
ऊँचाई | ४४७ मी (1,467 फीट) |
जनसंख्या (२०११)[2] | |
• नगर | ५७८४२० |
• घनत्व | 1,900 किमी2 (5,000 वर्गमील) |
• महानगर[3] | ७१४२२३ |
भाषाएँ | |
• आधिकारिक | हिन्दी[4] |
• क्षेत्रीय | गढ़वाली, अंग्रेजी |
• अतिरिक्ति आधिकारिक | संस्कृत[5][6] |
समय मण्डल | आइएसटी (यूटीसी+०५:३०) |
पिन कोड | २४८००१ |
टेलीफोन कोड | +९१-१३५ |
वाहन पंजीकरण | यूके-०७ |
वेबसाइट | nagarnigamdehradun dehradun |
देहरादून (उच्चारण सहायता·सूचना, अंग्रेज़ी: Dehradun), देहरादून जिले का मुख्यालय है जो भारत की राजधानी दिल्ली से २३० किलोमीटर दूर दून घाटी में बसा हुआ है। ९ नवंबर, २००० को उत्तर प्रदेश राज्य को विभाजित कर जब उत्तराखण्ड राज्य का गठन किया गया था, उस समय इसे उत्तराखण्ड (तब उत्तरांचल) की अंतरिम राजधानी बनाया गया। देहरादून नगर पर्यटन, शिक्षा, स्थापत्य, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है।
इतिहास
[संपादित करें]देहरादून का इतिहास कई सौ वर्ष पुराना है। देहरादून से ५६ किलोमीटर दूर कालसी के पास स्थित शिलालेख से इस पर तीसरी सदी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक का अधिकार होने की सूचना मिलती है। देहरादून ने सदा से ही आक्रमणकारियों को आकर्षित किया है। खलीलुल्लाह खान के नेत्वृत्व में १६५४ में इस पर मुगल सेना ने आक्रमण किया था। सिरमोर के राजा सुभाक प्रकाश की सहायता से खान गढ़वा के राजा पृथ्वी शाह को हराने में सफल रहे। गद्दी से अपदस्त किए गए राजा को इस शर्त पर गद्दी पर आसीन किया गया कि वे नियमित रूप से मुगल बादशाह शाहजहाँ को कर चुकाएगें। इसे १७७२ में गुज्जरों ने लूटा था। तत्कालीन राजा ललत शाह जो पृथ्वी शाह के वंशज थे, की पुत्री की शादी गुलाब सिंह नामक गुज्जर से की गई थी। गुलाब सिंह के पुत्र का नियंत्रण देहरादून पर था और उनके वंशज इस समय भी नगर में मिल सकते हैं।
गढ़वाल के राजा ललत शाह के पुत्र प्रदुमन शाह के शासन काल में रोहिल्ला नजीब के पोते गुलाम कादिर के नेतृत्व में अफगानों का आक्रमण हुआ। जिसमें उसने गुरू राम राय के अनुयायियों और शिष्यों को मौत के घाट उतार दिया। जिन लोगों ने हिन्दू धर्म त्यागने का निर्णय लिया, उन्हें छोड़ दिया गया। लेकिन अन्य लोगों के साथ बहुत निमर्मतापूर्वक व्यवहार किया गया। सहारनपुर के राज्यपाल और अफगान प्रमुख नजीबुदौल्ला भी देहरादून को अपने अधिकार में करने के उद्देश्य में सफल रहा उसके बाद देहरादून पर गुज्जरों, सिक्खों, राजपूतों और गोरखाओं के लगातार आक्रमण हुए और यह उपजाऊ और सुंदर भूमि शिघ्र ही बंजर स्थल में बदल गई। १७८३ में एक सिक्ख प्रमुख बुघेल सिंह ने देहरादून पर आक्रमण किया और बिना किसी बड़े प्रतिरोध के सहजता से इस क्षेत्र को जीत लिया। १७८६ में देहरादून पर गुलाम कादिर का आक्रमण हुआ। उसने पहले हरिद्वार को लूटा और फिर देहरादून पर कहर बरपाया। उसने नगर पर आक्रमण किया और उसे जमकर लूटा तथा बाद में देहरादून को बर्बाद कर दिया। १८०१ तक अमर सिंह थापा के नेतृत्व में गोरखा राज्य ने दून घाटी पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। १८१४ में नालापानी के लिए अमर सिंह थापा के पोते बलभद्र कुंवर के नेत्वृत्व में गोरखा और जनरल जिलेस्पी के नेत्वृत्व में ब्रिटिश के बीच युद्ध हुआ। गोरखाओं ने इस लड़ाई में जमकर बराबरी कि और जनरल समेत कई ब्रिटिश सेनाओं को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। इस बीच गोरखाओं को एक असामान्य स्थिति का सामना करना पड़ा और उन्हें नालापानी के किले को छोड़ कर जाना पड़ा। १८१५ तक गोरखाओं को हरा कर ब्रिटिश शासन ने इस पूरे क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया।
देहरादून के दो स्मारक प्रसिद्ध हैं। (कलंगा स्मारक) का निर्माण ब्रिटिश जनरल गिलेस्पी और उसके अधिकारियों की स्मृति में कराया गया है। दूसरा स्मारक गिलेस्पी से लोहा लेनेवाले कैप्टन बलभद्र सिंह थापा और उनके गोरखा सिपाहियों की स्मृति में बनवाया गया है। कालंगा गढ़ी सहस्त्रधारा सड़क पर स्थित है। घंटा घर से इसकी दूरी ४.५ किलोमीटर है। इसी वर्ष देहरादून तहसील के वर्तमान क्षेत्र को सहारनपुर जिले से जोड़ दिया गया। इसके बाद १८२५ में इसे कुमाऊँ मण्डल को हस्तांतरित कर दिया गया। १८२८ में अलग-अलग उपायुक्त के प्रभार के अंतर्गत देहरादून और जॉनसार बवार हस्तांतरित कर दिया गया और १८२९ में देहरादून जिले को मेरठ खण्ड को हस्तांतरित कर दिया गया। १८४२ में देहरादून को सहारनपुर जिले से जोड़ दिया गया और इसे जिलाधीश के अधिनस्थ एक अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में रखा गया। १८७१ से यह एक अलग जिला है। १९६८ में इस जिले को मेरठ खण्ड से अलग करके गढ़वा खण्ड से जोड़ दिया गया। देहरादून के इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी चंदर रोड पर स्थित स्टेट आर्काइव्स में है। यह संस्था दलानवाला में स्थित है।
स्थापना
[संपादित करें]देहरादून की स्थापना 1699 में हुई थी। कहते हैं कि सिक्खों के गुरु रामराय किरतपुर पंजाब से आकर यहाँ बस गए थे। मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने उन्हें कुछ ग्राम टिहरी नरेश से दान में दिलवा दिए थे। यहाँ उन्होंने 1699 ई. में मुग़ल मक़बरों से मिलता-जुलता मन्दिर भी बनवाया जो आज तक प्रसिद्ध है। शायद गुरु का डेरा इस घाटी में होने के कारण ही इस स्थान का नाम देहरादून पड़ गया होगा। इसके अतिरिक्त एक अत्यन्त प्राचीन किंवदन्ती के अनुसार देहरादून का नाम पहले द्रोणनगर था और यह कहा जाता था कि पाण्डव-कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य ने इस स्थान पर अपनी तपोभूमि बनाई थी और उन्हीं के नाम पर इस नगर का नामकरण हुआ था। एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार जिस द्रोणपर्त की औषधियाँ हनुमान जी लक्ष्मण के शक्ति लगने पर लंका ले गए थे, वह देहरादून में स्थित था, किन्तु वाल्मीकि रामायण में इस पर्वत को महोदय कहा गया है।
जलवायु
[संपादित करें]देहरादून की जलवायु समशीतोष्ण है। यहां का तापमान १६ से ३६ डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है जहां शीत का तापमान २ से २४ डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। देहरादून में औसतन २०७३.३ मिलिमीटर वर्षा होती है। अधिकांश वर्षा जून और सितंबर के बीच होती है। अगस्त में सबसे अधिक वर्षा होती है।
नगर के विषय में
[संपादित करें]राजपुर मार्ग पर या डालनवाला के पुराने आवासीय क्षेत्र में पूर्वी यमुना नहर सड़क से देहरादून शुरु हो जाता है। सड़क के दोनों किनारे स्थित चौड़े बरामदे और सुन्दर ढालदार छतों वाले छोटे बंगले इस शहर की पहचान हैं। इन बंगलों के फलों से लदे हुए पेड़ों वाले बगीचे बरबस ध्यान आकर्षित करते हैं। घण्टाघर से आगे तक फैलाहुआ रंगीन पलटन बाजार यहाँ का सर्वाधिक पुराना और व्यस्त बाजार है। यह बाजार तब अस्तित्व में आया जब १८२० में ब्रिटिश सेना की टुकड़ी को आने की आवश्यकता पड़ी। आज इस बाजार में फल, सब्जियां, सभी प्रकार के कपड़े, तैयार वस्त्र (रेडीमेड गारमेंट्स) जूते और घर में प्रतिदिन काम आने वाली वस्तुयें मिलती हैं। इसके स्टोर माल, राजपुर सड़क तक है जिसके दोनों ओर विश्व के लोकप्रिय उत्पादों के शो रूम हैं। अनेक प्रसिद्ध रेस्तरां भी राजपुर सड़क पर है। कुछ छोटी आवासीय बस्तियाँ जैसे राजपुर, क्लेमेंट टाउन, प्रेमनगर और रायपुर इस शहर के पारंपरिक गौरव हैं।
देहरादून के राजपुर मार्ग पर भारत सरकार की दृष्टिबाधितों के लिए स्थापित पहली और एकमात्र राष्ट्रीय स्तर की संस्था राष्ट्रीय दृष्टिबाधित संस्थान (एन.आइ.वी.एच.) स्थित है। इसकी स्थापनी 19वीं सदी के नब्बे के दशक में विकलांगों के लिए स्थापित चार संस्थाओं की श्रंखला में हुआ जिसमें राष्ट्रीय दृष्टिबाधित संस्था के लिए देहरादून का चयन किया गया। यहाँ दृष्टिबाधित बच्चों के लिए स्कूल, कॉलेज, छात्रावास, ब्रेल पुस्तास्तलय एवं ध्वन्यांकित पुस्तकों का पुस्तकालय भी स्थापित किया गया है। इसके कर्मचारी इसके अन्दर रहते हैं इसके अतिरिक्त (तेज यादगार) शार्प मेमोरियल नामक निजी संस्था राजपुर में हैं यें दृष्टि अपंगता तथा कानों सम्बन्धि बजाज संस्थान तथा राजपुर सड़क पर दूसरी अन्य संस्थाये बहुत अच्छा कार्य कर रही है। उत्तराखण्ड सरकार का एक और नया केन्द्र है। करूणा विहार, बसन्त विहार में कुछ कार्य शुरू किये है। तथा गहनता से बच्चों के लिये कार्य कर रहें है तथा कुछ नगर के चारों ओर केन्द्र है। देहरादून राफील रेडरचेशायर अर्न्तराष्ट्रीय केन्द है। रिस्पना ब्रिज शायर गृह डालनवाला में हैं। जो मानसिक चुनौतियों के लिए कार्य करते है। मानसिक चुनौतियों के लिए काम करने के अतिरिक्त राफील रेडरचेशायर अर्न्तराष्ट्रीय केन्द्र ने टी.बी व अधरंग के इलाज के लिये भी अस्पताल बनाया। अधिकाँश संस्थायें भारत और विदेश से स्वेच्छा से आने वालो को आकर्षित तथा प्रोत्साहित करती है। आवश्यकता विहीन का कहना है कि स्वेच्छा से काम करने वाले इन संस्थाओं को ठीक प्रकार से चलाते है। तथा अयोग्य, मानसिक चुनौतियो और कम योग्य वाले लोगो को व्यक्तिगत रूप से चेतना देते है।
देहरादून अपनी पहाडीयों और ढलानो के साथ-साथ साईकिलिंग का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। चारों ओर पर्वतो और हरियाली से घिरा होने के कारण यहाँ साईकिलिंग करना बहुत सुखद है। लीची देहरादून का पर्यायवाची है क्योंकि यह स्वादिष्ट फल चुनिँदा जलवायु में ही उगता है। देहरादून देश के उन जगहों में से एक है जहाँ लीची उगती है। लीची के अतिरिक्त देहरादून के चारों ओर बेर, नाशपत्ती, अमरूद्ध और आम के पेड है। जो नगर की बनावट को घेरे हुये है। ये सारी चीजे घाटी के आकर्षण में वृद्धि करती है। यदि आप मई माह या जून के शुरू की गर्मियों में भ्रमण के लिये जाओ तो आप इन फलों को केवल देखोगें ही नही बल्कि खरीदोंगे भी। बासमती चावल की लोकप्रियता देहरादून या भारत में ही नही बल्कि विदेशो में भी है। एक समय अंग्रेज भी देहरादून में रहते थे और वे नगर पर अपना प्रभाव छोड गयें। उदाहरण के रूप में देहरादून की बैकरीज (बिस्कुट आदि) आज भी यहाँ प्रसिद्ध है। उस समय के अंग्रेजो ने यहाँ के स्थानीय स्टाफ को सेंकना (बनाना) सीखाया। यह निपुणता बहुत अच्छी सिद्ध हुई तथा यह निपुणता अगली संतति सन्तान में भी आयी। फिर भी देहरादून के रहने वालो के लिये यहाँ के स्थानीय रस्क, केक, होट क्रोस बन्स, पेस्टिज और कुकीज मित्रों के लिये सामान्य उपहार है, कोई भी ऐसी नही बनाता जैसे देहरादून में बनती है।
दूसरा उपहार जो पर्यटक यहाँ से ले जाते है विख्यात क्वालिटी की टॉफी जोकि क्वालिटी रेस्टोरेन्ट (गुणवत्ता वाली दुकानों) से मिलती हैं। यद्यपि आज बडी संख्या में दूसरी दुकानों (स्टोर) से भी ये टॉफी मिलती है परन्तु असली टॉफी आज भी सर्वोतम है। देहरादून में आन्नद के और बहुत से पर्याप्त विकल्प है। प्रर्याप्त मात्रा में देहरादून में दर्शनीय चीजे है जो उनके लिये प्रकृति के उपहार है विशेष रूप से देहरादून से मसूरी का मार्ग जो कि पैदल चलने वालों के लिये बहुत लोकप्रिय है। उन लोगो के लिये जो साधारण से ऊपर कुछ करना चाहते है सर्वोतम योग संस्थानों में से किसी एक से जुड़ना चाहिये अथवा सीखना चाहिये।
आवागमन
[संपादित करें]सड़क मार्गः देहरादून देश के विभिन्न हिस्सों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है और यहां पर किसी भी जगह से बस या टेक्सी से आसानी से पहुंचा जा सकता है। सभी तरह की बसें, (साधारण और लक्जरी) गांधी बस स्टेंड जो दिल्ली बस स्टेंड के नाम से जाना जाता है, यहां से खुलती हैं। यहां पर दो बस स्टैंड हैं। देहरादून और दिल्ली, शिमला और मसूरी के बीच डिलक्स/ सेमी डिलक्स बस सेवा उपलब्ध है। ये बसें क्लेमेंट टाउन के नजदीक स्थित अंतरराज्यीय बस टर्मिनस से चलती हैं। दिल्ली के गांधी रोड बस स्टैंड से एसी डिलक्स बसें (वोल्वो) भी चलती हैं। यह सेवा हाल में ही यूएएसआरटीसी द्वारा शुरू की गई है। आईएसबीटी, देहरादून से मसूरी के लिए हर १५ से ७० मिनट के अंतराल पर बसें चलती हैं। इस सेवा का संचालन यूएएसआरटीसी द्वारा किया जाता है। देहरादून और उसके पड़ोसी केंद्रों के बीच भी नियमित रूप से बस सेवा उपलब्ध है। इसके आसपास के गांवों से भी बसें चलती हैं। ये सभी बसें परेड ग्राउंड स्थित स्थानीय बस स्टैड से चलती हैं।
देहरादून और कुछ महत्वपूर्ण स्थानों के बीच की दूरी नीचे दी गयी है:
- दिल्ली - २४० किमी
- यमुनोत्री - २७९ किमी
- मसूरी - ३५ किमी
- नैनीताल - २९७ किमी
- हरिद्वार - ५४ किमी
- शिमला - २२१ किमी
- ऋषिकेश - 44 किमी
- आगरा - ३८२ किमी
- रुड़की - ४३ किमी
- ऊखीमठ - २१९ किमी
रेलः देहरादून उत्तरी रेलवे का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है। यह भारत के लगभग सभी बड़े शहरों से सीधी ट्रेनों से जुड़ा हुआ है। ऐसी कुछ प्रमुख ट्रेनें हैं- हावड़ा-देहरादून एक्सप्रेस, चेन्नई- देहरादून एक्सप्रेस, दिल्ली- देहरादून एक्सप्रेस, बांद्रा- देहरादून एक्सप्रेस, इंदौर- देहरादून एक्सप्रेस आदि। वायु मार्गः जॉली ग्रांट एयरपोर्ट देहरादून से २५ से किलोमीटर है। यह दिल्ली एयरपोर्ट से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। एयर डेक्कन दोनों एयरपोर्टों के बीच प्रतिदिन वायु सेवा संचालित करती है।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- ↑ Jha, Prashant (12 May 2019). "DMC to start registration of cattle in Dehradun | Dehradun News - Times of India". The Times of India (अंग्रेज़ी में). मूल से 3 नवंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 October 2019.
- ↑ "Provisional Population Totals, Census of India 2011; Cities having population 1 lakh and above" (PDF). Office of the Registrar General & Census Commissioner, India. मूल से 7 मई 2012 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 26 March 2012.
- ↑ "Provisional Population Totals, Census of India 2011; Urban Agglomerations/Cities having population 1 lakh and above" (PDF). Office of the Registrar General & Census Commissioner, India. मूल से 2 अप्रैल 2013 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 26 March 2012.
- ↑ "52nd REPORT OF THE COMMISSIONER FOR LINGUISTIC MINORITIES IN INDIA" (PDF). nclm.nic.in. Ministry of Minority Affairs. पृ॰ 47. मूल (PDF) से 25 May 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 January 2019.
- ↑ "Sanskrit is second official language in Uttarakhand". Hindustan Times (अंग्रेज़ी में). 19 January 2010. मूल से 27 जून 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 January 2020.
- ↑ "Sanskrit second official language of Uttarakhand". The Hindu (अंग्रेज़ी में). 21 January 2010. मूल से 3 मार्च 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 January 2020.