कुड़माली भाषा

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कुड़मालि
कुरमाली
पंचपरगनिया
बोलने का  स्थान भारत, बांग्लादेश
क्षेत्र झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम
समुदाय कुड़मी महतो
मातृभाषी वक्ता 3,11,175[1]
भाषा परिवार
लिपि बांग्ला लिपि
भाषा कोड
आइएसओ 639-3 इनमें से एक:
kyw – कुड़माली भाषा
tdb – पंचपरगनिया भाषा
कुड़माली भाषा का भारत में विस्तार
कुड़माली भाषा का भारत में विस्तार
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कुड़माली भाषा बिहारी भाषा समूह से संबंधित एक इंडो-आर्यन भाषा है, इसे कुरमाली भी कहा जाता है। हालांकि कुछ आधुनिक शोधकर्ताओं का मानना है कि मूल कुुड़मालि भाषा की उत्पत्ति आर्यन, द्रविड़ियन या यहां तक कि मुंडा ऑस्ट्रिक भाषा परिवारों में से किसी में भी नहीं देखी जा सकती है।[2][3] यह केवल छोटानागपुर में ही नहीं, बल्कि उड़ीसा में क्योंझर, मयूरभंज, सुंदरगढ़, बालेसर, जाजपुर, अनगुल, बडबिल, सामबलपुर,पश्चिम बंगाल के अन्तर्गत पुरुलिया, मिदनापुर, बंकुरा, मालदा, दिनाजपुर के सीमावर्ती इलाकों, जो बिहार से सटे हैं, एवं छोटानागपुर के राँची, हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, बोकारो, सिंहभूम, जामताड़ा, देवघर[4][5][6] में बोली जाती है। यह मुख्यतः बांग्ला लिपि में लिखी जाती है।

कुछ विद्वानों का विचार है कि कुड़माली चर्यापद की भाषा के सबसे निकट है।[7] व्यापार की बोली के रूप में इसे 'पंचपरगनिया' (बांग्ला : পঞ্চপরগনিয়া) भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है यह पाँच परगनों में बोली जाने वाली भाषा है।

इतिहास[संपादित करें]

ब्रिटिश राज के दौरान, वर्तमान झारखंड राज्य के रांची जिले के बुंडू, बारंडा, सोनाहातु (सोनाहातु और राहे में विभाजित), सिल्ली, तमाड़ प्रखण्डों के दो भाषाई क्षेत्रों के बीच कुड़माली भाषा को पंचपरगनिया (जिसका अर्थ है "पांच परगना की भाषा") के रूप में जाना जाता था। अब सोनाहातु और राहे पंचपरगनिया भाषा के मुख्य क्षेत्र हैं।[8]

पूर्वी छोटा नागपुर का भाषाई मानचित्र, 1903

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 3,11,175 कुड़माली थार वक्ता हैं (ज्यादातर पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और महाराष्ट्र में) और 2,44,290 पंचपरगनिया वक्ता (ज्यादातर झारखंड में), भारत में कुल 555,465 कुड़माली वक्ता हैं।[1] कुड़माली को "हिंदी भाषाओं" में समूहीकृत किया गया है। ध्यान दें कि कुड़माली थार और पंचपरगनिया दोनों ही कुड़माली भाषा की बोलियां हैं।[9]

भौगोलिक वितरण[संपादित करें]

कुड़माली भाषा मुख्य रूप से भारत के तीन पूर्वी राज्यों में बोली जाती है, अर्थात् झारखंड के दक्षिण-पूर्वी जिले सरायकेला खरसावां, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, बोकारो और रांची जिले; ओडिशा के उत्तरी जिले मयूरभंज, बालासोर, केंदुझार, जाजपुर और सुंदरगढ़ में; और दक्षिण पश्चिमी जिले पश्चिम मेदिनीपुर, झाड़ग्राम, बांकुड़ा, पुरुलिया और उत्तरी जिले मालदा में, पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, जलपाईगुड़ी। भाषा के मुख्य क्षेत्र के अलावा, कुड़माली भाषा के कुछ वक्ता असम, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, बांग्लादेश और नेपाल में भी पाए जाते हैं।[10][11][12][13]

कुछ वाक्यांश[संपादित करें]

हिन्दी झारखंडी कुड़माली पुरुलिया कुड़माली[14]
मेरा नाम अघनु है। मर नाम अघनु हेकि। आमार/ हामार नाम अघनु बठ्ठे ।
तुम कैसे हो ? तँइ केसन आहिस ? तूईं केमन आछिस ?
मैं ठीक हूँ। मँइ बेस आहँ। अमी/ हामी भालो आछि ।
क्या? किना? कि ?
कौन? कन? के ?
क्युं? किना लागि केने ?
कैसे? केसन? केमन ?
यहां आ। इँहा आउएँ। एईठिन आए ।
मैं घर जा रहा हूँ। मँइ ढिड़हा सझाहँ। अमी/ हामी घर जाछी ।
मैने खाया है। मँइ नुड़लँ। आमी/ हामी खायांछी।
मैने खाया था। मँइ नुँड़लाहँ। आमी/ हामी खायां रही।
मैं जाउंगा। मँइ जाम/जाप। अमी/ हामी जामू।
हम दोनो जाते हैं। हामरा दुइअ जाइहअ। आमरा/ हामरा दुलोक जाछी।
तुम जाते हो। तँइ जाइस। तोराह जाछ।
तुम लिख रहे हो। तँइ चिसेहिस। तोराह लेखछ।
तुम आना। तँइ आउए। तोराह आसवे।
हम लिख रहे हैं। हामे चिसअहँ। हामरा लेखछी।
हम लिखे हैं। हामे चिसल आहँ। आमरा/ हमरा लेखियांछी।
वह आता है। अँइ आउएइस। ऊ अस्छे।
वह जा रहा है। अँइ जाइस। ऊ जाछे।
वह आ रहा था। अँइ आउएहेलाक। ऊ आस्ते रहे।
वह खेलेगा। अँइ खेलतउ। ऊ खुलबेक।
वे रोटी खाये हैं। अँइ रटि नुड़लाहे। अराह रूठी खायांछेन।
वे गयें। अखरा गेला अराह गेलेन।
वे घर जायेंगे। अँइ घार उजातउ। अराह घर जाबेन।

भाषा और साहित्य[संपादित करें]

कुड़माली बांग्ला, ओड़िया और असमिया से अलग एक भाषा है, इसके उत्पत्ति का स्रोत कुड़मि जाति के सभ्यता एवं संस्कृति से जुड़ा हुआ है, कुड़माली भाषा की अपनी निजी विशेषतायें हैं जो इंडो-आर्य भाषा परिवार से संबंध रखता है[उद्धरण चाहिए], जो इसके ध्वनिगत, भाषागत एवं व्याकरण विशेषताओं में परिलक्षित होती है, इसके अपने भाषागत मुहावरे, लोकोक्तियाँ, सुर, ताल, लय, विविध गीत एवं व्यापक ओर समर्थ भरा पूरा लोकसाहित्य है, इसके पार्थक्य के आधारभूत कारण हैं। इसमें लोक-गीतों, लोक-कथाओं, लोकोक्तियों और पहेलियों की संख्या बहुत है। कुड़माली लोकसाहित्य में लोकगीतों के बाद लोक-कथाओं, लोकगाथा, पहेलियों और लोकोक्तियों का स्थान है। इन लोकगीतों, लोक-कथाओं एवं लोकोक्तियों में कुड़माली जीवन की छाप स्पष्ट परिलक्षित होती है। इन विधाओं की विविध रचनाओं से ज्ञात होता है कि कुड़माली साहित्य जितना समृद्ध है, भाव-सौन्दर्य की दृष्टि से भी उतना ही उत्कृष्ट। इसका साहित्य आज से 2700 से पुरानी है, जो बोध काल की सबसे पुरानी बंगाली लिपि साहित्य चर्यापद में मिलता है।[उद्धरण चाहिए]

साहित्य के प्रकार[संपादित करें]

साधारणतः कुड़माली साहित्य को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है:- (क) कुड़माली लोक साहित्य और (ख) कुड़माली शिष्ट साहित्य।[15]

लोक साहित्य[संपादित करें]

लोक साहित्य में उन साहित्यों को रखते हैं, जिनके उद्गम, काल-निर्धारण, या लेखक सम्बन्धी कोई निश्चित अनुमान लगाना संभव नहीं है। यह साहित्य उन राढ़ सभ्यता के उस विकसित परंपरागत ज्ञान और साहित्य का संकलन होता है जो की पीढ़ी-दर-पीढ़ी सदियों से लोक-कथा, लोक-गीत, आदि में अबतक कुड़माली-भाषी लोगो को विरासत में मिली है। कुड़माली लोक-साहित्य की जो सामग्रियाँ मिलती हैं, उन्हें हम मोटे तौर पर पांच वर्गों में रख सकते हैं:-[15]

  • १. कुड़माली-लोकगीत,
  • २. कुड़माली लोक-कथाएं,
  • ३. कुड़माली लोक-नाट्य,
  • ४. कुड़माली-कहावतें, और
  • ५. कुड़माली-पहेलियां.

कुड़माली लोक-गीत[15][संपादित करें]

कुड़माली में लोकगीतों की संख्या बहुल है। आज भी ये गीत लोक-मुख में जीवित है। गीत अत्यंत सरस और मर्मस्पर्शी है। कुड़माली गीतों की परंपरा अति प्राचीन है। कोई भी अनुष्ठान गीत एवं नृत्य के बिना संपन्न नहीं होता। अधिकांश गीत नृत्यगीत हैं। राग के द्वारा ही गीतों के पार्थक्य और वैशिष्ट्य को समझा जा सकता है। कुड़माली जीवन के हरेक पहलू, विविध दृष्टिकोण और बहुआयामी विचार-धाराओं को कुड़माली लोकगीत संस्पर्श करता है।

कुड़माली लोक-गीतों की प्रमुख विशेषता यह है कि अधिकांश गीत प्रश्नोत्तर के रूप में हैं। छन्द-विधान के नियम से पुर्णतः मुक्त है। इसके अपने छंद हैं जो गेय हैं। गीतों के ले द्वारा ही शैलीगत तत्व को पहचाना जा सकता है। कहीं-कहीं स्वतः अलंकारो का प्रयोग हुआ है।

कुड़माली लोकगीतों को कई वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है। जैसे (क) संस्कार-गीत, (ख) ऋतु-गीत, (ग) देवी-देवताओं के गीत, (घ) श्रम-गीत, (ड) खेल-गीत, (च) जाती-गीत, (छ) प्रबंध गीत आदि।

कुड़माली के प्रमुख लोकगीत हैं: उधवा, ढप, बिहा, दमकच, सरहुल, नटुआ, डाइडधरा, जावा-करम, एधेइया, डाबका, बंदना, कुवांरी- झुपान आदि।

साधारणतः कुड़माली के लोक-गीतों में प्रकृति का चित्रण प्रयाप्त मात्रा में मिलता है। करम गीतों में अंकुरोदय, पुनर्विवाह, कृषि-कर्म, हास्य-व्यंग्य, जीवन-यापन की पद्धिति का उल्लेख मिलता है। विवाह गीतों में कुङमाली संस्कृति, सामाजिक व्यवहार, खान-पान, दैनिक कर्म, रहन-सहन की छाप परिलक्षित होती है।

कुड़माली समाज में कन्या का महत्वपूर्ण स्थान है। जिस प्रकार वन की शोभा पुष्प है, उसी प्रकार घर की शोभा कन्या होती है। कुङमाली के कुवांरी झुपान गीतों में जादू-टोना, तंत्र-मन्त्र एवं अंध-विश्वास का वर्णन मिलता है। डाइडधरा, ढप आदि गीतों में उच्च कोटि का दार्शनिक भाव झलकता है। वहीं डमकच गीतों में भाव-सौंदर्य के साथ-साथ हास्य का पूट भी मिलता है।

कुड़माली लोक-कथाएँ[15][संपादित करें]

कुड़माली में लोक-कथाओं का विशाल भण्डार मिलता है। साधारणतः लोक-कथाओ का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन करना ही रहा है, परन्तु ये एक पूर्ण विकसित भाषा से कम शिक्षाप्रद, दार्शनिक भाव से ओत-प्रोत हैं। लोग रात को घर में खलियान के कुम्बा या धन्धौरा के चारो ओर जाड़े की लम्बी रात काटने के लिए कहानियां कहते हैं। कुङमाली लोक-कथाओ में अलौकिक और असम्भव बातों की भरमार रहती है। एक उल्लेखनीय बात यह है कि जो लोक-कथायें अमेरिका, यूरोप एवं हमारे देश के अन्य लोक-भाषाओं में प्रचलित हैं, थोड़ा-बहुत अन्तर के साथ कुङमाली में भी उपलब्ध है। कुड़माली के लोक-कथाओं को मुख्य रूप से तीन वर्गों में बांटा जा सकता है:

  • १. धार्मिक लोक-कथाएं- यथा ‘कर्मा-धर्मा’, तीन ठकुराइन, आर-नि-रहम, आदि।
  • २. शिक्षा-प्रद लोक-कथाएं- यथा बुद्धिक-दाम, राइकस-आर-अमरी, गरखिया-आर-राजकुमारी, अटुकारा-राजा, मूंगा-

मोती, करम-कापाड़, आदि।

  • ३. मनोरंजन प्रधान लोक-कथाएं- यथा बाउना, बाड़ा-सियार, पुइतु-बुढा, सियारेक-चाउछाली, बेनिया-आर-चरवाहा आदि।

इस प्रकार हम इस निष्कर्ष में आते हैं कि कुरमाली लोकगीतों में जीवन के विभिन्न पहलुओं का यथार्थ और सजीव चित्रण हुआ है।

कुड़माली लोक-नाट्य[15][संपादित करें]

भारत में में लोकनाट्य की परम्परा बहुत प्राचीन है। यद्यपि लोक-नाट्यो में नाटक के सभी तत्व नहीं मिलते है, फिर भी नाटक के कुछ न कुछ तत्व तो अवश्य ही मिलते हैं। वस्तुतः साहित्यिक नाटक के नीव ये लोक-नाट्य ही हैं, इसमें कोई संदेह नहीं कुरमाली के प्रमुख लोक-नाट्य हैं:-

छौ नृत्य' : इस नृत्य में नर्तक अपने मुंह पर मुखौटा धारण करता है और अपने अंग-प्रत्यंग के हाव-भाव द्वारा भावो को अभिव्यक्त करता है। कथा-वस्तू के रूप में पहले गीत गया जाता है। गीत के द्वारा ही दृश्य भी बदला जाता है। यह मौसमी नृत्य है। परन्तु, अपनी प्रचुर लोकप्रियता के कारण अब यह नृत्य देशी अखाड़े से निकलकर अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच पर आ गया है।

नटुआ नृत्य : यह कुड़माली का बहुत पुराना नृत्य है। गीतों के द्वरा कथावस्तु का परिचय दिया जाता है। यह वीर रस का नृत्य है। नर्तक अपने शरीर को रंगीन फीतों से सुसज्जित करता है और अपने हाथो में ढाल और तलवार लेकर नृत्य करता है। उसकी भंगिमा युद्ध की स्तिथि की होती है। इस नृत्य को देख कोई अपरिचित दर्शक राजस्थानी राजपूतों के नृत्यों से तुलना कर सकता है।

डमकच : यह विवाह के अवसर पर होने वाला नृत्य है। जब वर विवाह करने के लिए चला जाता है तो स्त्रियाँ मर्दों के पोशाक पहनकर नृत्य करती हैं। कभी-कभी वे विवाह का अभिनय भी करती तो कभी-कभी किसी अन्य कथावस्तु को लेकर अभिनय करती हैं। गीत प्रश्नोत्तर के रूप में होते हैं, जिसे हम कथोप-कथन शैली कह सकते हैं।

मछानी : लोक नृत्य में स्त्री-पुरुष दोनों ही भाग लेते हैं। गीतों के द्वारा एक-दूसरे को प्रश्न करते हैं। गीत ही इसकी कथावस्तु है। बीच-बीच में गध्य-शैली का प्रयोग होता है। इस नृत्य में दृश्य भी बदलते हैं। कथावस्तु व्यंग्यात्मक शैली में होती है।

कुड़माली कहावतें (लोकोक्तियाँ)[15][संपादित करें]

किसी भी भाषा का साहित्य उस समाज का दर्पण होता है। कहावतें और लोकोक्तियाँ उस समाज, जाति के आचार-विचार, रीति-रिवाज, जीवन-दर्शन, हास-परिहास, जीवन-पद्धति, व्यवसाय आदि की अभिव्यक्ति व दिग्दर्शित होती है। झारखण्ड के कुङमि का मुख्य पेशा कृषि है। कुङमाली-लोकोक्तियों में कृषि का सम्बन्ध स्पष्ट झलकता है। इन लोकोक्तियों में मुख्यतः अच्छी फसल होने के संकेत, विनाश के कारण, अवसर तथा स्तिथि का दिग्दर्शन होता है। इन सब के अतिरिक्त इसमें हास्य, व्यंग्य, ललकार, चेतावनी, सूचना, सूक्तियों के द्वारा गूढ़ बातों की शिक्षा दी जाती है। कुङमाली लोकोक्तियों में आचार-विचार, रीति-रिवाज, आर्थिक, धार्मिक, राजनितिक, सांस्कृतिक जीवन की अभिव्यंजना मिलती है।

१. धर्म सम्बन्धी - यथा “जेइ करेइ पुइन, से हेई ढीपा सुइन”.

२. निति सम्बन्धी _ यथा “हेंठ मुड़िइआ, बेड़े एड़िइआ”.

३. कृषि सम्बन्धी - यथा “आमे बाम, तेंतेरिये टान”.

४. पुष्टि सम्बन्धी - यथा “एक बहुइं ठाकुर, दुई बहुइं कुकुर, तीन बहुइं देखे भकार-भुकुर”.

५. शिक्षा सम्बन्धी - यथा “नदी धारक चास, मिछाय कर आसघु, सल चट नहाई परे”.

६. आलोचना सम्बन्धी - यथा “सुमेक धन साइताने खाय, बांचे से अदालत जाए.”.

७. सूचना सम्बन्धी - यथा “सावनेक गाछी आर बाछी, डंगुआ जेनिक घार आर दामडा गरुक हार”.

८. अर्थ सम्बन्धी - यथा “माछेक मायेक पुतेक सक, आधा साँप आधा बक..” .

९. व्यंग्य - यथा “कण विहाइं दुई गड़े आरता.”.

१०. संस्कृति - यथा “हांड़ी किनथिन ठंकी के आर केनिआइ, करतीन देखि के...”.

११. जाति सम्बन्धी - यथा “बांस बने डोम काना, घासी खाजे कुमनी, आर चासा खाजे डीमनी..”

पहेलियाँ[15][संपादित करें]

कुङमाली लोक-भाषा में पहेलियों का प्रचुर भण्डार है। ग्रामीण जनता कृषि कार्य से मुक्त होकर सायं-काल में गाँव के किसी सामुदायिक जगह पर इकठ्ठा होते हैं, बुजुर्ग अपने ज्ञान और अनुभव को बाँटते हैं। साथ ही बच्चो, व नवयुवकों से विभिन्न प्रकार की पहेलियाँ पूछ कर एक-दूसरे का मनोरंजन करते हैं। इससे न केवल लोगों का मनोरंजन यवं ज्ञान-वर्धन होता है बल्कि बच्चों के तर्क-क्षमता के साथ स्वस्थ मानसिक विकास होता है। कुङमाली भाषा के कुछ प्रमुख पहेलियाँ और उनका हिंदी अनुवाद:-

१. डुंगरि उपरें पिलेई गाछ बिन बातांसे हिलेई गाछ - (उत्तर: नेज, पूंछ).

२. लक-लक डांडी चक-चक पात, खाईतके मधुरस उलगेइत के कपास - (उत्तर: आंखू बाड़ी, गुड़बाड़ी).

३. उलुक घड़ा ढुलुक चांपे, काठ खाइके सिंदूर हागे- (उत्तर: आइग ).

४. सिर रे सिटका भुइयें पटका - (उत्तर: सिंघन, नेटा ).

५. डूडकु ऊपर भूटकु नाचेई - (उत्तर: टेंगला, बुडिया, टांगा).

६. डूबी-डूबी जाई पूंछे चारा खाई - (उत्तर: सुई )

शिष्ट साहित्य[15][संपादित करें]

मध्य-काल (सन १७५०-१८५०) से शिष्ट साहित्य का प्रदुर्भव माना जा सकता है। सन १४८५ ई. के आस-पास चैतन्य महाप्रभु के पदार्पण झारखण्ड प्रदेश में होने -से वैष्णव-भावना का प्रचार-प्रसार हुआ। तत्कालीन कवियों ने रामायण और महाभारत से कथा-वस्तु लेकर गीतों की रचना की। राम-कृष्ण को अपना नायक मानकर उनकी लीलाओं को ललित-पदों में रचकर गीतों का रूप दिया।[उद्धरण चाहिए]

मध्य काल के कुड़माली लोककवियों में बरजू राम, नरोत्तमा, गौरंगिया, दुर्योधन, पीताम्बर, दिना, रामकृष्णा, विनन्द सिंह आदि प्रमुख थे। इस युग के कवियों की रचनाओं में अलंकार, तुक और छंद का भी सचेत प्रयोग हुआ है।[उद्धरण चाहिए]


सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Statement 1: Abstract of speakers' strength of languages and mother tongues – 2011" (PDF). www.censusindia.gov.in. Office of the Registrar General & Census Commissioner, India. मूल (PDF) से 19 April 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 July 2018.
  2. Paudyal, Netra P.; Peterson, John (2020-09-01). "How one language became four: the impact of different contact-scenarios between "Sadani" and the tribal languages of Jharkhand". Journal of South Asian Languages and Linguistics (अंग्रेज़ी में). 7 (2): 327–358. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2196-078X. डीओआइ:10.1515/jsall-2021-2028.
  3. KIRITI MAHATO (2022-07-22). Sindhu Sabhyatar Bhasha O Kudmali.
  4. Kudmali is the mother tongue of the Kudmis. पृ॰ 119.
  5. "Ethnologue".
  6. Kudmali Language. पृ॰ 277.
  7. Basu, Sajal (1994). Jharkhand Movement: Ethnicity and Culture of Silence (अंग्रेज़ी में). Indian Institute of Advanced Study. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85952-15-4.
  8. Paudyal, Netra P.; Peterson, John (2020-09-01). "How one language became four: the impact of different contact-scenarios between "Sadani" and the tribal languages of Jharkhand". Journal of South Asian Languages and Linguistics (अंग्रेज़ी में). 7 (2): 327–358. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2196-078X. डीओआइ:10.1515/jsall-2021-2028.
  9. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; KurmaliThar नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  10. প্রতিনিধি. "মাহাতোদের মাতৃভাষা ও সংস্কৃতিচর্চায় কুড়মালি পাঠশালার উদ্বোধন". Prothomalo (Bengali में). अभिगमन तिथि 2023-04-14.
  11. N. C. Keduar (2016). कुड़माली भाषा शिक्षण एवं साहित्य.
  12. "Wayback Machine" (PDF). web.archive.org. मूल से पुरालेखित 19 अप्रैल 2022. अभिगमन तिथि 2023-08-16.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  13. "Wayback Machine" (PDF). web.archive.org. मूल से पुरालेखित 18 अप्रैल 2013. अभिगमन तिथि 2023-08-16.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  14. "Kurmali Thar" (PDF). lsi.gov.in. अभिगमन तिथि 18 October 2021.
  15. Dr. H. N. Singh (2010). कुरमाली साहित्य : विविध संदर्भ.
  • कुरमाली साहित्य: विविध सन्दर्भ, लेखक डा. एच.एन. सिंह, प्रकाशक- कुरमाली भाषा परिषद्, राँची
  • कुरमाली लोक गीत: साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन, डा. संतोष कुमारी जैन।
  • कुडमालि फुल-फर आर भाड-आर, कला संस्कृति विकास केंद्र, आसनतालिया, चक्रधरपुर.
  • कुरमालि कृष्ण-काव्य : डॉ० विजय कुमार मुखर्जी
  • कुरमाली लोक साहित्य : डॉ० गीता कुमारी सिंह
  • जनजाति परिचित : लक्ष्मीकांत महतो

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

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