बज्जिका
बज्जिका | ||
---|---|---|
बोली जाती है | भारत एवं नेपाल | |
कुल बोलने वाले | प्रथम भाषा: ~ १ करोड़ १८ लाख (२००१) | |
श्रेणी | 2 [निवासी] | |
भाषा परिवार | हिन्द-यूरोपीय | |
लेखन प्रणाली | देवनागरी, कैथी | |
आधिकारिक स्तर | ||
आधिकारिक भाषा घोषित | बिहार राज्य का उत्तर-मध्य क्षेत्र एवं नेपाल का तराई क्षेत्र | |
नियामक | कोई आधिकारिक नियमन नहीं | |
भाषा कूट | ||
ISO 639-1 | None | |
ISO 639-2 | – | |
ISO 639-3 | mai |
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बज्जिका (पश्चिमी मैथिली)बिहार के मिथिला क्षेत्र के तिरहुत प्रमंडल में बोली जाती है। अब बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है ।भारत में २००१ की जनगणना के अनुसार इन जिलों के लगभग १ करोड़ १५ लाख लोग बज्जिका बोलते हैं। नेपाल के रौतहट एवं सर्लाही जिला एवं उसके आस-पास के तराई क्षेत्रों में बसने वाले लोग भी बज्जिका बोलते हैं। वर्ष २००१ के जनगणना के अनुसार नेपाल में २,३८,००० लोग बज्जिका बोलते हैं। यह मैथिली की एक बोली मानी जाती है।
"बज्जिका" शब्द की व्युत्पत्ति एवं भाषा परिवार
[संपादित करें]बज्जिका की प्राचीनता एवं गरिमा वैशाली गणतंत्र के साथ जुड़ी हुई है; साथ ही जो ऐतिहासिक स्थल के रूप में जानी जाती है और महावीर की जन्मस्थली और भगवान बुद्ध की कर्मभूमि के रूप में भी विख्यात है। लगभग ५००ई.पू. भारत में स्थापित वैशाली गणराज्य (महाजनपद) का राज्य-संचालन करने वाले अष्टकुलों- लिच्छवी, वृज्जी (वज्जि), ज्ञात्रिक, विदेह, उगरा, भोग, इक्ष्वाकु और कौरव- में सबसे प्रधान कुलों बज्जिकुल एवं लिच्छवी द्वारा प्रयोग की जाने वाली बोली बज्जिका कहलाने लगी। राजकाज के लिए उस समय संभवतः प्राकृत का इस्तेमाल होता था जबकि धार्मिक कृत्य संस्कृत में होते थे।[2] बज्जिका के शब्दों का विस्तार इन दोनों स्रोतों से हुआ है। आजकल इसमें उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग बढ़ गया है। यह हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार के अन्दर आती है। ये हिन्द ईरानी शाखा की हिन्द आर्य उपशाखा के बिहारी भाषा समूह के अन्तर्गत वर्गीकृत है।
भाषा क्षेत्र
[संपादित करें]भाषा क्षेत्र
[संपादित करें]बिहार में तिरहुत प्रमंडल के वैशाली, मुजफ्फरपुर, सीतामढी, शिवहर जिला तथा दरभंगा प्रमंडल के समस्तीपुर तथा दरभंगा के पश्चिमी भाग में एक करोड़ से ज्यादा लोगों द्वारा बज्जिका बोली जाती है। तिरहुत क्षेत्र के वैसे लोग जो अपनी नौकरी के चलते महानगरों में प्रवास करते हैं, उनकी घरेलू भाषा बज्जिका है। वर्ष २००१ के आंकड़े के अनुसार नेपाल की तराई में 23800 लोग बज्जिका बोलते हैं जो कुल जनसंख्या का 1.05% है।[3]
साहित्य एवं मीडिया
[संपादित करें]बज्जिका भाषा के स्वतंत्र अस्तित्व की ओर संकेत करनेवाले पं०राहुल सांकृत्यायन थे, जिन्होंने अपने लेख "मातृभाषाओं की समस्या" में भोजपुरी, मैथिली, मगही और अंगिका के साथ-साथ बज्जिका को हिंदी के अंतर्गत जनपदीय भाषा के रूप में स्वीकृत किया (पुरातत्व निबंधावली, पृ. 12, 241)।[4] एक लोकभाषा के रूप में बज्जिका आज भी ज्यों की त्यों अपने प्राचीन स्वरुप में विद्यमान है| बज्जिका क्षेत्र के ज्यादातर पढे-लिखे लोग भाव संप्रेषण हेतु हिन्दी का इस्तेमाल करते हैं। आज इसे लुप्तप्राय भाषा की श्रेणी डाल दिया गया है।[5] फिर भी, सभी भाषाओं एवं बोलियों को एक समान स्तर पर देखने वाले कुछ विद्वानों ने बज्जिका में अपनी रचना की है। सकारात्मक बात यह है कि आज बज्जिका में भी साहित्य-सृजन हो रहा है| बज्जिका-हिंदी शब्दकोष का निर्माण सुरेन्द्र मोहन प्रसाद के संपादन में किया गया है। विश्व भारती (शांति निकेतन) में हिंदी विभागाध्यक्ष डा सियाराम तिवारी द्वारा लिखित बज्जिका भाषा और साहित्य का प्रकाशन बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना से वर्ष 1964 में हुआ था। भारत एवं विदेश के प्रमुख विश्वविद्यालयों में कई भाषाविद और विद्वान तथा पत्रकार बज्जिका में साहित्य रचना एवं शोध कर रहे है। क्षेत्रीय भाषाओं को महत्व देते हुए प्रकाशन विभाग ने बज्जिका की लोक कथाएँ (लेखक- राजमणि राय 'मणि') हिंदी में प्रकाशित की है। कुछ अन्य प्रकाशित पुस्तकों एवं लेखकों की अधूरी सूची नीचे दी गयी है।
बज्जिका साहित्य
[संपादित करें]बज्जिका भाषा का प्रारंभिक साहित्य गयाधर (रचनाकाल 1045 ई.), हलदर दास (रचनाकाल 1565 ई.), मँगनीराम (1815 ई. के आसपास) की रचनाओं से आरंभ होता है। गयाधर वैशाली के रहनेवाले थे और बौद्ध-धर्म के प्रचारार्थ तिब्बत गए थे। हलदर दास का लिखा हुआ एक खंडकाव्य सुदामाचरित्र प्राप्त है, जो संपूर्ण बज्जिका में लिखा गया है। कहा जाता है इन्होंने बहुत सी रचनाएँ बज्जिका में की थीं। मँगनीराम की तीन पुस्तकें - मँगनीराम की साखी, रामसागर पोथी और अनमोल रतन - मिली हैं।
बज्जिका भाषा के साहित्य का दूसरा अध्याय 20वीं शताब्दी से शुरु होता है। बज्जिका के ऊपर लिखे गए ज्यादातर साहित्य हिंदी में है लेकिन कुछेक रचनाएँ, गीत, नाटक आदि बज्जिका में लिखे गए हैं। बज्जिका भाषा के ऊपर भारत या विदेश के विश्वविद्यालयों में शोध-पत्र भी प्रकाशित हुए हैं। बज्जिका को ऊत्स बनाकर लिखी गई कुछ रचनाओं की संक्षिप्त सूची इस प्रकार है:
पुस्तक/शोधपत्र का नाम | लेखक/ संपादक | प्रकाशक | प्रकाशन वर्ष | |
---|---|---|---|---|
बज्जिका हिंदी शब्दकोष | सुरेन्द्र मोहन प्रसाद | xxxx | xxxx | |
बज्जिका व्याकरण | योगेन्द्र राय | शैलेश भूषण, हाजीपुर (बिहार) | 1987 | |
बज्जिका साहित्य का इतिहास | प्रफुल्ल कुमार सिंह 'मणि' | हंसराज प्रकाशन, मुजफ्फरपुर (बिहार) | 1995 | |
बज्जिका का स्वरुप | डा योगेन्द्र प्रसाद सिन्हा | डा योगेन्द्र प्रसाद सिन्हा बज्जिका संस्थान, मुजफ्फरपुर (बिहार) | 1997 | |
बज्जिका भाषा के कतिपय शब्दों का आलोचनात्मक अध्ययन |
डा योगेन्द्र प्रसाद सिन्हा | प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली (बिहार) | 1987 | |
बज्जिका रामायण | डा अवधेश्वर अरूण | XXXX | XXXX | |
बज्जिका स्वर संगम | डा रामेश्वर प्रसाद | किशोर प्रकाशन, मुजफ्फरपुर (बिहार) | 2000 | |
बज्जिका लोकगीत | डा रामेश्वर प्रसाद | किशोर प्रकाशन, मुजफ्फरपुर (बिहार) | 2000 | |
बज्जिका गीत संगीत | डा रामेश्वर प्रसाद | किशोर प्रकाशन, मुजफ्फरपुर (बिहार) | 2000 | |
गितिया (उपन्यासिका) | निर्मल मिलिन्द | xxxxx | 1984 | |
तरहात्ती पर तरेगन (बज्जिका गीत एवं कविताएँ) | निर्मल मिलिन्द | xxxxx | 1999 | |
खिस्सा पेहानी (बज्जिका के प्रतिनिधि कहानी संकलन) |
निर्मल मिलिन्द | अखिल भारतीय बज्जिका साहित्य सम्मेलन, सिकन्दराबाद | xxxx | |
फूल-पात | चन्द्र प्रकाश | xxxxx | 1977 | |
इंजुरी भर सिंहोरवा (बज्जिका गीत-कविता संग्रह) |
चन्द्र किशोर श्वेतांशु | समीक्षा प्रकाशन, सीतामढी (बिहार) | 1977[6] | |
साँच में आँच कि? (बज्जिका भाषा के सामाजिक नाटक) |
देवेन्द्र राकेश | अहिल्या प्रकाशन, मुजफ्फरपुर (बिहार) | 1970[7] | |
A study in the transitivity of Bajjika: verbs and verb-endings.” CIEFL Bulletin 13 (सिफेल, हैदराबाद में बज्जिका भाषा पर शोधपत्र) |
अभिषेक कुमार | सिेएफल, हैदराबाद (भारत) | 2003[8] | |
A systemic functional description of the grammar of Bajjika (मैकेरे विश्वविद्यालय में बज्जिका भाषा पर पीएचडी शोधपत्र) |
अभिषेक कुमार | मैकेरे विश्वविद्यालय, सिड्नी (ऑस्ट्रेलिया) | 2009[9] |
- बज्जिका पत्रिकाएँ
- समाद-बज्जिका भाषा के पहिला प्रतिनिधि साप्ताहिक, अहिल्या प्रकाशन, मुजफ्फरपुर (बिहार) से प्रकाशित
- बज्जिका माधुरी- अखिल भारतीय बज्जिका साहित्य सम्मेलन पटना से प्रकाशित
- बज्जिका भाषा के सनेस- बिहार एवं झारखंड के 'राधाकृष्ण पुरस्कार' से सम्मानित ख्यातिलब्ध साहित्यकार श्री निर्मल मिलिन्द द्वारा संपादित[10]। १९७२ से प्रकाशित इस पत्रिका का प्रकाशन अब संभवत: बंद हो चुका है।
- बज्जिका साहित्य के लेखक
- निर्मल मिलिन्द
- डा योगेन्द्र प्रसाद सिन्हा
- डा अवधेश्वर अरुण
- योगेन्द्र प्रसाद यादव
- डा रामेश्वर प्रसाद
- चन्द्र किशोर श्वेतांशु
- हरेन्द्र सिंह 'विप्लव'
- प्रफुल्ल कुमार सिंह 'मणि'
- शंभू अगेही
- चितरंजन कनक
- डॉ ब्रह्मदेव प्रसाद कार्य ई
- रेवती रमण पाठक
- इन्दिरा भारती
- अमिताभ कुमार सिन्हा
- डा रमन शांडिल्य
- आचार्य आनन्द किशोर शास्त्री
- डॉ नेहाल कुमार सिंह निर्मल
- हरि नारायण सिंह हरि
- सुरेश वर्मा
- डा सतीश चन्द्र भगत
- डॉ चन्द्र मोहन पोद्दार
मीडिया एवं मनोरंजन
[संपादित करें]आकाशवाणी पटना से बज्जिका में चौपाल एवं गीत कार्यक्रम प्रसारित होते रहते हैं लेकिन टेलिविजन पर बज्जिका में कार्यक्रम प्रसारित करने वाले चैनल का अभाव था। हाल में पॉजिटिव मीडिया ग्रुप द्वारा हमार टीवी नाम से एक पुरबिया न्यूज चैनल लंच किया गया है जो बज्जिका सहित भोजपुरी, अंगिका, मगही, मैथिली, नगपुरिया सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं झारखंड के स्थानीय भाषाओं में कार्यक्रम प्रसारित कर रहा है।[11] मुजफ्फरपुर के पारू प्रखंड के चांदकेवारी गाँव से संचालित अप्पन समाचार समाचार चैनल जिले में होनेवाली हलचल एवं गतिविधियों का बज्जिका में प्रसारण करती है। खास बात यह है कि कुछ पुरुषों का परोक्ष रूप से समर्थन एवं सहयोग से यह बहुचर्चित चैनल केवल महिलाओं द्वारा संचालित है।[12] उड़ीसा में बिजॉय कुमार महोपात्रा द्वारा निजी स्तर पर ६० भाषाओं में प्रकाशित पत्रिका दुलारी बहन बज्जिका में भी प्रकाशित होता है।[13] भोजपुरी फिल्म उद्योग के प्रसिद्ध अभिनेता विजय खरे ने हाल में लछमी अलथिन हम्मर अंगना नाम से पहली बज्जिका फिल्म बनाने की घोषणा की है[14]।
लोकगीत के मामले में बज्जिका की संपदा समृद्ध है। विवाह, तीज-त्योहारों या अन्य समारोह पर बज्जिका के गीत समां बाँध देते हैं। होली पर गाए जाने वाले 'होरी' या 'चैती' या मॉनसून का मजा 'कजरी' से लेने में बज्जिका भाषी माहिर हैं।[15],[16]। सदियों से बज्जिका भाषा का प्रवाह बनाए रखने में इसके गीत ही सक्षम रहे हैं।
वर्तमान स्थिति
[संपादित करें]वर्तमान में बज्जिका का दर्जा हिंदी की लोकभाषा के रूप में है। राज्याश्रय का अभाव, विद्वानों के असहयोग एवं पर्याप्त साहित्य-भंडार के अभाव में बज्जिका की पहचान भाषा के रूप में नही बन सकी है| बज्जिका के समान ही बोली जानेवाली मैथिली को इस क्षेत्र के नेताओं के द्वारा किए गए प्रयासों के चलते अब भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर आधिकारिक मान्यता दे दी गई है। किंतु मैथिली भाषी के विपरित स्थानीय समाज के संपन्न तबकों में बज्जिका को लेकर गौरव का अभाव है। स्थिति ऐसी है कि अगर कोई अन्य बिहारी भाषा बोलने वाला सामने मौजूद हो तो दो बज्जिका भाषी आपस में हिंदी में ही बात करते हैं। भाषा विज्ञान को लेकर शोध करने वाली कई संस्थाएँ तथा बेवसाईट ने इसे विलुप्तप्राय भाषा की श्रेणी में रखा गया है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि भारत की भाषायी जनगणना 2001 में बज्जिका, अंगिका, कवारसी, दक्खिनी, कन्नौजी आदि बहुसंख्य बोलियों को हिंदी की श्रेणी से गायब कर दिया गया है जबकि सूचिबद्ध कई बोलियाँ ऐसी है जिनकी संख्या बहुत कम और अनजान है[17]।
उत्तर बिहार के महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र एवं बज्जिका क्षेत्र की हृदय स्थली मुजफ्फरपुर से कुछ बज्जिका पत्रिकाएँ निकलती हैं। बज्जिकांचल विकास पार्टी, स्वयंसेवी संस्थाएँ तथा इस क्षेत्र के कई भाषाविद बज्जिका के विकास के प्रति समर्पित हैं। भारत में राज्यों का गठन भाषायी आधार पर हुआ था। असम, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र की तरह बिहार में भी भाषा के आधार पर बज्जिकांचल बनाने की मांग हो रही है[18]। नेपाल में त्रिभुवन विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो योगेन्द्र प्रसाद यादव जैसे लेखक बज्जिका को उसका महत्व दिलाने हेतु प्रयासरत हैं। नेपाल के बज्जिका भाषी क्षेत्र में कविता पाठ एवं लेख प्रतियोगिता का आयोजन होता रहता है।[19] संभव है, प्राचीन बज्जिसंघ की लोकभाषा बज्जिका, भविष्य में विपुल साहित्य-भंडार से परिपूर्ण होकर एक भाषा के रूप में अपनी एक पहचान बना ले या ऐसी सरस भाषा की उपेक्षा राजनीतिक रंग ले ले।[20]
बज्जिका शब्दावली
[संपादित करें]बज्जिका के मानक शब्दकोश का अच्छा विकास नहीं हुआ है। कुछ वर्ष पूर्व लेखक सुरेन्द्र मोहन प्रसाद द्वारा संपादित तथा अखिल भारतीय बज्जिका साहित्य सम्मेलन, मुजफ्फरपुर द्वारा सन २००० में प्रकाशित बज्जिका - हिन्दी शब्दकोष उपलब्ध है। बज्जिका की शब्दावली को मुख्यतः तीन वर्गों में रखा जा सकता है-
तद्भव शब्द-- ये वैसे शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें काफ़ी बदलाव आया है। जैसे- भतार (भर्तार से), चिक्कन (चिक्कण से), आग (अग्नि से), दूध (दुग्ध से), दाँत (दंत से), मुँह (मुखम से)। तत्सम शब्द (संस्कृत से बिना कोई रूप बदले आनेवाले शब्द) का बज्जिका में प्रायः अभाव है। हिंदी और बज्जिका की सीमा रेखा चूँकि क्षीण है इसलिए हिंदी में प्रयुक्त होनेवाले तत्सम शब्द का प्रयोग बज्जिका में भी देखा जा सकता है।
देशज शब्द--बज्जिका में प्रयुक्त होने वाले देशज शब्द लुप्तप्राय हैं। इसके सबसे अधिक उपयोगकर्ता गाँव में रहने वाले निरक्षर या किसान हैं। देशज का अर्थ है - जो देश में ही जन्मा हो। जो न तो विदेशी है और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो। ऐसा शब्द जो स्थानीय लोगों ने बोल-चाल में यों ही बना लिया गया हो। जैसे- पन्नी (पॉलिथीन), फटफटिया (मोटर सायकिल), घुच्ची (छेद) आदि।
विदेशज शब्द हिन्दी के समान बज्जिका में भी कई शब्द अरबी, फ़ारसी, तुर्की, अंग्रेज़ी आदि भाषा से भी आये हैं, इन्हें विदेशज शब्द कह सकते हैं। वास्तव में बज्जिका में प्रयोग होने वाले विदेशज शब्द का तद्भव रूप ही प्रचलित है, जैसे-कौलेज, लफुआ (लोफर), टीशन (स्टेशन), गुलकोंच (ग्लूकोज़), सुर्खुरू (चमकते चेहरे वाला) आदि।
हिन्दी के समान बज्जिका को भी देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। पहले इसे 'कैथी लिपि में भी लिखा जाता था। शब्दावली के स्तर पर अधिकांशत: हिंदी तथा उर्दू के शब्दों का प्रयोग होता है। फिर भी इसमें ऐसे शब्दों का इस्तेमाल प्रचलित है जिसका हिंदी में सामान्य प्रयोग नहीं होता।
वाक्य विन्यास
[संपादित करें]वाक्यों की संरचना हिंदी के समान ही है लेकिन 'है' की जगह 'ह्' या 'हई' लगता है। उदाहरण- सोंटा भुतलेय गेलई हिन् (डंडा खो गया है)। आबईलेय (आने के लिए)। चैल गेलई (चला गया)।
मुहावरे
[संपादित करें]हिंदी की कहावते एवं मुहावरों का प्रयोग बज्जिका में भी होता है लेकिन अशिक्षित या अल्प-शिक्षित लोग स्थानीय कहावते एवं मुहावरे ही व्यवहार में लाते हैं। गौर-तलब है कि ज्यादातर मुहावरे लक्षणा और व्यंजना के रूप में होता है। बज्जिका में खास तौर से प्रयोग होने वाले मुहावरों की बानगी नीचे है: ढींड़ फुलाना- गर्भवती होना। निमला के मौगी सबके भौजाई- गरीब की इज्जत सबके मजाक का साधन।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Dhanesh Jain; George Cardona (2003). The Indo-Aryan languages. Routledge. p. 251. ISBN 9780700711307.
- ↑ "भारत की भाषाएँ (पृष्ठ १०४), लेखक- डॉ राजमल बोस". Archived from the original on 15 दिसंबर 2012. Retrieved 17 जुलाई 2010.
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(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 18 नवंबर 2007. Retrieved 7 जुलाई 2010.
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(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 3 सितंबर 2014. Retrieved 17 जुलाई 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 10 अगस्त 2009. Retrieved 11 जुलाई 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 17 मार्च 2016. Retrieved 9 जुलाई 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 4 अप्रैल 2016. Retrieved 9 जुलाई 2010.
- ↑ [1][मृत कड़ियाँ]
- ↑ [2][मृत कड़ियाँ]
- ↑ श्री निर्मल मिलिन्द और उनके कृतित्व पर आधारित वेबजाल [3][मृत कड़ियाँ]
- ↑ "पूर्वांचल की गतिविधियों पर आधारित बेवजाल". Archived from the original on 24 अगस्त 2010. Retrieved 13 जुलाई 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 8 नवंबर 2013. Retrieved 11 जुलाई 2010.
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(help) - ↑ पटना में चैता पर झूमे श्रोता[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "मुजफ्फरपुर थियेटर एसोसिएसन का ब्लाग". Archived from the original on 5 मार्च 2016. Retrieved 13 जुलाई 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 22 जून 2010. Retrieved 9 जुलाई 2010.
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- ↑ "बज्जिका भाषामा कविता". Archived from the original on 29 नवंबर 2014. Retrieved 13 जुलाई 2010.
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