मारवाड़ी भाषा

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राजस्थान में मारवाड़ी बोलने वाले इलाक़े

मारवाड़ी राजस्थान में बोली जाने वाली एक क्षेत्रीय बोली है। यह राजस्थान की एक मुख्य भाषाओं में से एक है। मारवाड़ी गुजरात, हरियाणा और पूर्वी पाकिस्तान में भी बोली जाती है। इसकी मुख्य लिपि देवनागरी है। इसकी कई उप-बोलियाँ भी है।

मारवाड़ी की ख़ुद की लिपि जिसे मोड़िया लिपि भी हैं। परन्तु इस लिपि के विकास में राजपुताने राजस्थान के राजा-महाराजा (वर्तमान में राजस्थान राज्य) व राजस्थान सरकार ने कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। हाल ही में बीकानेर से चयनित सांसद श्री अर्जुनराम मेघवाल ने राजस्थानी भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करवाने के लिए बहुत प्रयास किये, लेकिन हिंदी भाषी लोगो के विरोध के चलते वे इसमें असफल रहे। पिछले ४०-५० सालों से इस भाषा के विकास पर बातें तो बहुत होती रही है पर कार्य के मामले में कोई विशेष प्रगति नहीं दिखी। इन दिनों सन् 2011 से कोलकाता के श्री शम्भु चौधरी इस दिशा में काफी कार्य किया है। राजस्थानी भाषा कि लिपि के संदर्भ में यह गलत प्रचार किया जाता रहा कि इसकी लिपि देवनागरी है जबकि राजस्थान के पुराने दस्तावेजों से पता चलता है कि इसकी लिपि मोड़िया है। उस लिपि को महाजनी भी कहा जाता है। हांलाकि मोड़िया लिपि को भी महाजनी लिपि कहा जाता हैं। कुछ लोग मोड़ी लिपि को ही मोड़िया लिपि मानते रहे। जब इसके विस्तार में देखा गया तो दोनों लिपि में काफी अन्तर है।

बोलियाँ[संपादित करें]

जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने राजस्थानी बोलियों के पारस्परिक संयोग एवं सम्बन्धों के विषय में लिखा तथा वर्गीकरण किया है। ग्रियर्सन का वर्गीकरण इस प्रकार है :- १. पश्चिमी राजस्थान में बोली जाने वाली बोलियाँ - मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढारकी, बीकानेरी, बाँगड़ी, शेखावटी, खेराड़ी, मोड़वाडी, देवड़ावाटी आदि। २. उत्तर-पूर्वी राजस्थानी बोलियाँ - अहीरवाटी और मेवाती। ३. मध्य-पूर्वी राजस्थानी बोलियाँ - ढूँढाड़ी, तोरावाटी, जैपुरी, काटेड़ा, राजावाटी, अजमेरी, किशनगढ़, नागर चोल, हड़ौती। ४. दक्षिण-पूर्वी राजस्थान - रांगड़ी और सोंधवाड़ी ५. दक्षिण राजस्थानी बोलियाँ - निमाड़ी आदि।

विशेषताएँ[संपादित करें]

राजस्थानी- मारवाडी भाषा में 'स़' वर्ण विशेष हैं,जो किसी अन्य भाषाओं में नहीं पाया जाता।


राजस्थानी- मारवाडी भाषा में 'सडक' को 'स़डक' बोला जाता है और कई शब्द ऐसे हैं, जो 'स़' की जगह 'स' के प्रयोग से अभिव्यक्त नहीं होते। स्वर-विज्ञान में 'स़' को sʰ दर्शाया जाता है।

मारवाड़ी भाषा की पारंपरिक लिपि[संपादित करें]

इसकी लिपि मोड़िया है। इन दिनों इसका प्रचलन प्रायः सामाप्त हो चुका है। सन् 2011 से कोलकाता के श्री शम्भु चौधरी ने पुनः इस लिपि पर नए सिरे से कार्य करना शुरु कर दिया है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]