"साँची का स्तूप": अवतरणों में अंतर

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सांची [[भारत]] के [[मध्य प्रदेश]] राज्य के [[रायसेन जिला|रायसेन जिले]], में बेतवा नदी के तट स्थित एक छोटा सा गांव है। यह [[भोपाल]] से ४६ कि॰मी॰ पूर्वोत्तर में, तथा [[बेसनगर]] और [[विदिशा]] से १० कि॰मी॰ की दूरी पर मध्य प्रदेश के मध्य भाग में स्थित है। यहां कई [[बौद्ध]] स्मारक हैं, जो तीसरी शताब्दी ई.पू. से बारहवीं शताब्दी के बीच के काल के हैं। सांची रायसेन जिले की एक नगर पंचायत है। रायसेन जिले में एक अन्य विश्व दाय स्थल, [[भीमबेटका]] भी है। विदिशा से नजदीक होने के कारण लोगों में यह भ्रम होता है की यह विदिशा जिला में है। यहाँ छोटे-बड़े अनेकों स्तूप हैं, जिनमें स्तूप संख्या २ सबसे बड़ा है। चारों ओर की हरियाली अद्भुत है। इस स्तूप को घेरे हुए कई [[तोरण]] भी बने हैं। स्तूप संख्या १ के पास कई लघु स्तूप भी हैं, उन्ही के समीप एक गुप्त कालीन पाषाण स्तंभ भी है। यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं। सांची का महान मुख्य स्तूप, मूलतः सम्राट [[अशोक]] महान ने तीसरी शती, ई.पू. में बनवाया था।<ref name="ITNN"/> इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान [[बुद्ध]] के कुछ अवशेष रखे थे। इसके शिखर पर स्मारक को दिये गये ऊंचे सम्मान का प्रतीक रूपी एक छत्र था।<ref>दहेजिया, विद्या (१९९७). ''ईण्डियन आर्ट''. फैदों: लंदन.
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'''सांची''' [[भारत]] के [[मध्य प्रदेश]] राज्य के [[रायसेन जिला|रायसेन जिले]], में बेतवा नदी के तट स्थित एक छोटा सा गांव है। यह [[भोपाल]] से ४६ कि॰मी॰ पूर्वोत्तर में, तथा [[बेसनगर]] और [[विदिशा]] से १० कि॰मी॰ की दूरी पर मध्य प्रदेश के मध्य भाग में स्थित है। यहां कई [[बौद्ध]] स्मारक हैं, जो तीसरी शताब्दी ई.पू. से बारहवीं शताब्दी के बीच के काल के हैं। सांची रायसेन जिले की एक नगर पंचायत है। रायसेन जिले में एक अन्य विश्व दाय स्थल, [[भीमबेटका]] भी है। विदिशा से नजदीक होने के कारण लोगों में यह भ्रम होता है की यह विदिशा जिला में है। यहाँ छोटे-बड़े अनेकों स्तूप हैं, जिनमें स्तूप संख्या २ सबसे बड़ा है। चारों ओर की हरियाली अद्भुत है। इस स्तूप को घेरे हुए कई [[तोरण]] भी बने हैं। स्तूप संख्या १ के पास कई लघु स्तूप भी हैं, उन्ही के समीप एक गुप्त कालीन पाषाण स्तंभ भी है। यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं। सांची का महान मुख्य स्तूप, मूलतः सम्राट [[अशोक]] महान ने तीसरी शती, ई.पू. में बनवाया था।<ref name="ITNN"/> इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान [[बुद्ध]] के कुछ अवशेष रखे थे। इसके शिखर पर स्मारक को दिये गये ऊंचे सम्मान का प्रतीक रूपी एक छत्र था।<ref>दहेजिया, विद्या (१९९७). ''ईण्डियन आर्ट''. फैदों: लंदन. ISBN 0-7148-3496-3.</ref>.


== इतिहास ==
== इतिहास ==
=== शुंग काल ===
=== शुंग काल ===
इस स्तूप में एक स्थान पर दूसरी शताब्दी ई.पू. में तोड़फोड़ की गई थी। यह घटना [[शुंग वंश|शुंग सम्राट]] [[पुष्यमित्र शुंग]] के उत्थान से जोड़कर देखी जाती है। यह माना जाता है कि पुष्यमित्र ने इस स्तूप का ध्वंस किया होगा और बाद में, उसके पुत्र [[अग्निमित्र]] ने इसे पुनर्निर्मित करवाया होगा। {{Ref_label|गाइड|क|none}}। शुंग वंश के अंतिम वर्षों में, स्तूप के मूल रूप का लगभग दुगुना विस्तार पाषाण शिलाओं से किया गया था। इसके गुम्बद को ऊपर से चपटा करके, इसके ऊपर तीन छतरियां, एक के ऊपर दूसरी करके बनवायीं गयीं थीं। ये छतरियां एक वर्गाकार मुंडेर के भीतर बनीं थीं। अपने कई मंजिलों सहित, इसके शिखर पर धर्म का प्रतीक, विधि का चक्र लगा था। यह गुम्बद एक ऊंचे गोलाकार ढोल रूपी निर्माण के ऊपर लगा था। इसके ऊपर एक दो-मंजिला जीने से पहुंचा जा सकता था। भूमि स्तर पर बना दूसरी पाषाण परिक्रमा, एक घेरे से घिरी थी। इसके बीच प्रधान दिशाओं की ओर कई तोरण बने थे। द्वितीय और तृतीय स्तूप की इमारतें शुंग काल में निर्मित प्रतीत होतीं हैं, परन्तु वहां मिले शिलालेख अनुसार उच्च स्तर के अलंकृत तोरण शुंग काल के नहीं थे, इन्हें बाद के सातवाहन वंश द्वारा बनवाया गया था। इसके साथ ही भूमि स्तर की पाषाण परिक्रमा और महान स्तूप की पाषाण आधारशिला भी उसी काल का निर्माण हैं।jjguuu
इस स्तूप में एक स्थान पर दूसरी शताब्दी ई.पू. में तोड़फोड़ की गई थी। यह घटना [[शुंग वंश|शुंग सम्राट]] [[पुष्यमित्र शुंग]] के उत्थान से जोड़कर देखी जाती है। यह माना जाता है कि पुष्यमित्र ने इस स्तूप का ध्वंस किया होगा और बाद में, उसके पुत्र [[अग्निमित्र]] ने इसे पुनर्निर्मित करवाया होगा। {{Ref_label|गाइड|क|none}}। शुंग वंश के अंतिम वर्षों में, स्तूप के मूल रूप का लगभग दुगुना विस्तार पाषाण शिलाओं से किया गया था। इसके गुम्बद को ऊपर से चपटा करके, इसके ऊपर तीन छतरियां, एक के ऊपर दूसरी करके बनवायीं गयीं थीं। ये छतरियां एक वर्गाकार मुंडेर के भीतर बनीं थीं। अपने कई मंजिलों सहित, इसके शिखर पर धर्म का प्रतीक, विधि का चक्र लगा था। यह गुम्बद एक ऊंचे गोलाकार ढोल रूपी निर्माण के ऊपर लगा था। इसके ऊपर एक दो-मंजिला जीने से पहुंचा जा सकता था। भूमि स्तर पर बना दूसरी पाषाण परिक्रमा, एक घेरे से घिरी थी। इसके बीच प्रधान दिशाओं की ओर कई तोरण बने थे। द्वितीय और तृतीय स्तूप की इमारतें शुंग काल में निर्मित प्रतीत होतीं हैं, परन्तु वहां मिले शिलालेख अनुसार उच्च स्तर के अलंकृत तोरण शुंग काल के नहीं थे, इन्हें बाद के सातवाहन वंश द्वारा बनवाया गया था। इसके साथ ही भूमि स्तर की पाषाण परिक्रमा और महान स्तूप की पाषाण आधारशिला भी उसी काल का निर्माण हैं।


=== सातवाहन काल ===
=== सातवाहन काल ===
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=== पाश्चात्य पुनरान्वेषण ===
=== पाश्चात्य पुनरान्वेषण ===
एक ब्रिटिश अधिकारी जनरल टेलर पहले ज्ञात इतिहासकार थे, इन्होंने सन [[१८१८]] में, सांची के स्तूप का अस्तित्व दर्ज किया।<ref name="IGNCA">{{हिन्दी चिह्न}}[http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/mw046.htm इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20060115093822/http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/mw046.htm |date=15 जनवरी 2006 }} के जालस्थल पर</ref> अव्यवसायी पुरातत्ववेत्ताओं और खजाने के शिकारियों ने इस स्थल को खूब ध्वंस किया, जब तक कि सन [[१८१८]] में उचित जीर्णोद्धार कार्य नहीं आरम्भ हुआ। [[१९१२]] से [[१९१९]] के बीच, ढांचे को वर्तमान स्थिति में लाया गया। यह सब जॉन मार्शल की देखरेख में हुआ।<ref>{{Cite web |url=http://projectsouthasia.sdstate.edu/docs/archaeology/primarydocs/Sanchi/HistArt.htm |title=जॉन मार्शल, "An Historical and Artistic Description of Sanchi", from ''ए गाइड टू सांची,'' कलकत्ता: सुपरिन्टेन्डेंट, गवर्नमेंट प्रिंटिंग (१९१८). पृष्ठ ७-२९ on line, Project South Asia. |access-date=16 मार्च 2008 |archive-url=https://web.archive.org/web/20090210033559/http://projectsouthasia.sdstate.edu/docs/archaeology/primarydocs/Sanchi/HistArt.htm |archive-date=10 फ़रवरी 2009 |url-status=dead }}</ref> आज लगभग पचास स्मारक स्थल सांची के टीले पर ज्ञात हैं, जिनमें तीन स्तूप और कई मंदिर भी हैं। यह स्मारक [[१९८९]] में [[यूनेस्को]] द्वारा [[विश्व धरोहर स्थल]] घोषित हुआ है।
एक ब्रिटिश अधिकारी जनरल टेलर पहले ज्ञात इतिहासकार थे, इन्होंने सन [[१८१८]] में, सांची के स्तूप का अस्तित्व दर्ज किया।<ref name="IGNCA">{{हिन्दी चिह्न}}[http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/mw046.htm इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र] के जालस्थल पर</ref> अव्यवसायी पुरातत्ववेत्ताओं और खजाने के शिकारियों ने इस स्थल को खूब ध्वंस किया, जब तक कि सन [[१८१८]] में उचित जीर्णोद्धार कार्य नहीं आरम्भ हुआ। [[१९१२]] से [[१९१९]] के बीच, ढांचे को वर्तमान स्थिति में लाया गया। यह सब जॉन मार्शल की देखरेख में हुआ।<ref>[http://projectsouthasia.sdstate.edu/docs/archaeology/primarydocs/Sanchi/HistArt.htm जॉन मार्शल, "An Historical and Artistic Description of Sanchi", from ''ए गाइड टू सांची,'' कलकत्ता: सुपरिन्टेन्डेंट, गवर्नमेंट प्रिंटिंग (१९१८). पृष्ठ ७-२९ on line, Project South Asia.]</ref> आज लगभग पचास स्मारक स्थल सांची के टीले पर ज्ञात हैं, जिनमें तीन स्तूप और कई मंदिर भी हैं। यह स्मारक [[१९८९]] में [[यूनेस्को]] द्वारा [[विश्व धरोहर स्थल]] घोषित हुआ है।


== भूगोल एवं जनसांख्यिकी ==
== भूगोल एवं जनसांख्यिकी ==
सांची की भौगोलिक अवस्थिति 23.48° उत्तर अक्षांश एवं 77.73° पूर्व देशान्तर पर है।<ref>{{Cite web |url=http://www.fallingrain.com/world/IN/35/Sanchi.html |title=फॉलिंग रेन जीनोमिक्स, इंक - सांची |access-date=16 मार्च 2008 |archive-url=https://web.archive.org/web/20080213120403/http://www.fallingrain.com/world/IN/35/Sanchi.html |archive-date=13 फ़रवरी 2008 |url-status=dead }}</ref> इसकी समुद्रतल से औसत ऊंचाई ४३४&nbsp; [[मीटर]] है। [[उदयगिरि]] से साँची पास ही है। यहाँ बौद्ध स्तूप हैं, जिनमें एक की ऊँचाई ४२ फीट है। साँची स्तूपों की कला प्रख्यात है। साँची से ५ मील सोनारी के पास ८ बौद्ध स्तूप हैं और साँची से ७ मील पर भोजपुर के पास ३७ बौद्ध स्तूप हैं। साँची में पहले बौद्ध विहार भी थे। यहाँ एक सरोवर है, जिसकी सीढ़ियाँ बुद्ध के समय की कही जाती हैं।<ref>{{हिन्दी चिह्न}}{{cite web|url= http://hindi.webduniya.com/religion/religion/buddhism/0905/07/1090507114_3.htm|title= बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थस्थल|access-date= जून १४ २००९|last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= |year= |month= |format= एच टी एम एल|work= |publisher= वेब दुनिया|pages= ०३|language= हिन्दी|archiveurl= https://web.archive.org/web/20140514071049/http://hindi.webduniya.com/religion/religion/buddhism/0905/07/1090507114_3.htm|archivedate= 14 मई 2014|quote= |url-status= dead}}</ref>
सांची की भौगोलिक अवस्थिति 23.48° उत्तर अक्षांश एवं 77.73° पूर्व देशान्तर पर है।<ref>[http://www.fallingrain.com/world/IN/35/Sanchi.html फॉलिंग रेन जीनोमिक्स, इंक - सांची]</ref> इसकी समुद्रतल से औसत ऊंचाई ४३४&nbsp; [[मीटर]] है। [[उदयगिरि]] से साँची पास ही है। यहाँ बौद्ध स्तूप हैं, जिनमें एक की ऊँचाई ४२ फीट है। साँची स्तूपों की कला प्रख्यात है। साँची से ५ मील सोनारी के पास ८ बौद्ध स्तूप हैं और साँची से ७ मील पर भोजपुर के पास ३७ बौद्ध स्तूप हैं। साँची में पहले बौद्ध विहार भी थे। यहाँ एक सरोवर है, जिसकी सीढ़ियाँ बुद्ध के समय की कही जाती हैं।<ref>{{हिन्दी चिह्न}}{{cite web |url= http://hindi.webduniya.com/religion/religion/buddhism/0905/07/1090507114_3.htm|title= बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थस्थल |access-date= जून १४ २००९ |last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= |year= |month= |format= एच टी एम एल|work= |publisher= वेब दुनिया|pages= ०३|language= हिन्दी|archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref>


२००१ की जनगणना<ref>{{GR|India}}</ref> के अनुसार सांची की जनसंख्या ६७८५ है। पुरुष यहां का ५३% और स्त्रियां ४७% भाग हैं। यहां की औसत साक्षरता दर ६७% है, जो कि राष्ट्रीय दर ५९.५% से कहीं अधिक है। पुरुष साक्षरता ७५% और स्त्री साक्षरता ५७% है। यहां की १६% जनता छः वर्ष से कम की है।
२००१ की जनगणना<ref>{{GR|India}}</ref> के अनुसार सांची की जनसंख्या ६७८५ है। पुरुष यहां का ५३% और स्त्रियां ४७% भाग हैं। यहां की औसत साक्षरता दर ६७% है, जो कि राष्ट्रीय दर ५९.५% से कहीं अधिक है। पुरुष साक्षरता ७५% और स्त्री साक्षरता ५७% है। यहां की १६% जनता छः वर्ष से कम की है।
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== चित्र दीर्घा ==
== चित्र दीर्घा ==
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चित्र:The Great Stupa at Sanchi.jpg|मुख्य स्तूप सांची
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चित्र:Stupa no. 3, Sanchi.jpg|स्तूप सं.३
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चित्र:Sanchi2.jpg|सांची, २००३
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चित्र:Northern Gate, Sanchi Stupa built in 3rd century BC.jpg|उत्तरी द्वार, तृतीय शती में निर्मित
File:Northern Gate, Sanchi Stupa built in 3rd century BC.jpg|उत्तरी द्वार, तृतीय शती में निर्मित
चित्र:Stupa of Buddha's Disciple, Sanchi.jpg|बौद्ध भिक्षुओं का स्तूप, सांची
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चित्र:Sanchi3.jpg|सांची के महान स्तूप का रूपांकन
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चित्र:Sanchi Stupa distant view.jpg|सांची स्तूप, पुनरोद्धार के बाद, उद्यानों सहित, २००९
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चित्र:A buddhist monastery at Sanchi.jpg|सांची में एक बौद्ध मठ
File:A buddhist monastery at Sanchi.jpg|सांची में एक बौद्ध मठ
चित्र:Monks visiting the Sanchi Stupa.jpg|सांची स्तूप में दर्शनार्थी भिक्षु
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चित्र:Sanchi Stupa No.2 Front view1.jpg
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चित्र:Great Sanchi Stupa Gallery (3).jpg
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चित्र:Great Sanchi Stup masonry work.jpg
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चित्र:Ashoka’s Pillar at Sanchi Stup (2).jpg
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चित्र:Sanchi Stupa TORANAS Entry Gate3.jpg
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चित्र:Sanchi Stupa 'TORANAS' The Entry Gate4.jpg
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चित्र:Great Sanchi Stupa Side view.jpg
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<small><center>चित्र का ब्यौरा देखने हेतु माउस को चित्र के ऊपर लायें।</center></small>
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== बाहरी कड़ियाँ ==
== बाहरी कड़ियाँ ==
[https://web.archive.org/web/20120131195955/http://www.jagranyatra.com/2010/04/buddha-art/ सांची: बौद्ध कला की बेमिसाल कृतियां]
[http://www.jagranyatra.com/2010/04/buddha-art/ सांची: बौद्ध कला की बेमिसाल कृतियां]
* [https://web.archive.org/web/20060115093822/http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/mw046.htm साँची] इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के जालस्थल पर
* [http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/mw046.htm साँची] इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के जालस्थल पर
* [http://www.insighttvnews.com/go.php?show=newsdetails&id=11291 प्राचीनकालीन बौद्ध शिक्षा का केंद्र - साँची] इनसाइट टीवी जालस्थल पर
* [http://www.insighttvnews.com/go.php?show=newsdetails&id=11291 प्राचीनकालीन बौद्ध शिक्षा का केंद्र - साँची] इनसाइट टीवी जालस्थल पर
* [https://web.archive.org/web/20070927003357/http://www.bergerfoundation.ch/wat4/museum1?museum=Sanchi&col=pays&country=Inde&genre=%&cd=7256-3191-2328:7256-3191-2325:7256-3191-2326&cdindex=2"सांची (मध्य प्रदेश)", जैकिस-एदुआर्दो बर्जर फाउण्डेशन, वर्ल्ड आर्ट ट्रेज़र्स]
* [http://www.bergerfoundation.ch/wat4/museum1?museum=Sanchi&col=pays&country=Inde&genre=%&cd=7256-3191-2328:7256-3191-2325:7256-3191-2326&cdindex=2"सांची (मध्य प्रदेश)", जैकिस-एदुआर्दो बर्जर फाउण्डेशन, वर्ल्ड आर्ट ट्रेज़र्स]
* [https://web.archive.org/web/20160305123015/http://moomalyatra.blogspot.com/2009/03/blog-post.html सांची के स्तूप - पास आकर देखने की चीज]
* [http://moomalyatra.blogspot.com/2009/03/blog-post.html सांची के स्तूप - पास आकर देखने की चीज]


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13:16, 13 जनवरी 2021 का अवतरण

साँची का स्तूप

साँची का स्तूप
साँची का स्तूप is located in भारत
साँची का स्तूप
सांची
साँची का स्तूप is located in मध्य प्रदेश
साँची का स्तूप
साँची का स्तूप (मध्य प्रदेश)
सामान्य विवरण
प्रकार स्तूप
वास्तुकला शैली बौद्ध
स्थान सांची, मध्य प्रदेश, भारत, एशिया
निर्माणकार्य शुरू तीसरी शताब्दी ईसापूर्व
ऊँचाई 16.46 मी॰ (54.0 फीट)
प्राविधिक विवरण
व्यास 36.6 मी॰ (120 फीट)

सांची भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन जिले, में बेतवा नदी के तट स्थित एक छोटा सा गांव है। यह भोपाल से ४६ कि॰मी॰ पूर्वोत्तर में, तथा बेसनगर और विदिशा से १० कि॰मी॰ की दूरी पर मध्य प्रदेश के मध्य भाग में स्थित है। यहां कई बौद्ध स्मारक हैं, जो तीसरी शताब्दी ई.पू. से बारहवीं शताब्दी के बीच के काल के हैं। सांची रायसेन जिले की एक नगर पंचायत है। रायसेन जिले में एक अन्य विश्व दाय स्थल, भीमबेटका भी है। विदिशा से नजदीक होने के कारण लोगों में यह भ्रम होता है की यह विदिशा जिला में है। यहाँ छोटे-बड़े अनेकों स्तूप हैं, जिनमें स्तूप संख्या २ सबसे बड़ा है। चारों ओर की हरियाली अद्भुत है। इस स्तूप को घेरे हुए कई तोरण भी बने हैं। स्तूप संख्या १ के पास कई लघु स्तूप भी हैं, उन्ही के समीप एक गुप्त कालीन पाषाण स्तंभ भी है। यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं। सांची का महान मुख्य स्तूप, मूलतः सम्राट अशोक महान ने तीसरी शती, ई.पू. में बनवाया था।[1] इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे थे। इसके शिखर पर स्मारक को दिये गये ऊंचे सम्मान का प्रतीक रूपी एक छत्र था।[2].

इतिहास

शुंग काल

इस स्तूप में एक स्थान पर दूसरी शताब्दी ई.पू. में तोड़फोड़ की गई थी। यह घटना शुंग सम्राट पुष्यमित्र शुंग के उत्थान से जोड़कर देखी जाती है। यह माना जाता है कि पुष्यमित्र ने इस स्तूप का ध्वंस किया होगा और बाद में, उसके पुत्र अग्निमित्र ने इसे पुनर्निर्मित करवाया होगा। [क]। शुंग वंश के अंतिम वर्षों में, स्तूप के मूल रूप का लगभग दुगुना विस्तार पाषाण शिलाओं से किया गया था। इसके गुम्बद को ऊपर से चपटा करके, इसके ऊपर तीन छतरियां, एक के ऊपर दूसरी करके बनवायीं गयीं थीं। ये छतरियां एक वर्गाकार मुंडेर के भीतर बनीं थीं। अपने कई मंजिलों सहित, इसके शिखर पर धर्म का प्रतीक, विधि का चक्र लगा था। यह गुम्बद एक ऊंचे गोलाकार ढोल रूपी निर्माण के ऊपर लगा था। इसके ऊपर एक दो-मंजिला जीने से पहुंचा जा सकता था। भूमि स्तर पर बना दूसरी पाषाण परिक्रमा, एक घेरे से घिरी थी। इसके बीच प्रधान दिशाओं की ओर कई तोरण बने थे। द्वितीय और तृतीय स्तूप की इमारतें शुंग काल में निर्मित प्रतीत होतीं हैं, परन्तु वहां मिले शिलालेख अनुसार उच्च स्तर के अलंकृत तोरण शुंग काल के नहीं थे, इन्हें बाद के सातवाहन वंश द्वारा बनवाया गया था। इसके साथ ही भूमि स्तर की पाषाण परिक्रमा और महान स्तूप की पाषाण आधारशिला भी उसी काल का निर्माण हैं।

सातवाहन काल

प्रमुख बौद्ध चिह्नः श्रीवत्स त्रिरत्न् के साथ, दोनों एक चक्र के ऊपर मण्डित हैं व चक्र एक तोरण के ऊपर बना है
उत्तरी तोरण के ऊपर नकाशी कृत सजावट।

तोरण एवं परिक्रमा ७० ई.पू. के पश्चात बने थे और सातवाहन वंश द्वारा निर्मित प्रतीत होते हैं। एक शिलालेख के अनुसार दक्षिण के तोरण की सर्वोच्च चौखट सातवाहन राजा सतकर्नी की ओर से उपहार स्वरूप मिली थी: "यह आनंद, वसिथि पुत्र की ओर से उपहार है, जो राजन सतकर्णी के कारीगरों का प्रमुख है।"[3] स्तूप यद्यपि पाषाण निर्मित हैं, किंतु काष्ठ की शैली में गढ़े हुए तोरण, वर्णात्मक शिल्पों से परिपूर्ण हैं। इनमें बुद्ध की जीवन की घटनाएं, दैनिक जीवन शैली से जोड़कर दिखाई गईं हैं। इस प्रकार देखने वालों को बुद्ध का जीवन और उनकी वाणी भली प्रकार से समझ में आता है।[4] सांची और अधिकांश अन्य स्तूपों को संवारने हेतु स्थानीय लोगों द्वारा भी दान दिये गये थे, जिससे उन लोगों को अध्यात्म की प्राप्ति हो सके। कोई सीधा राजसी आश्रय नहीं उपलब्ध था। दानकर्ता, चाहे स्त्री या पुरुष हों, बुद्ध के जीवन से संबंधित कोई भी घटना चुन लेते थे और अपना नाम वहां खुदवा देते थे। कई खास घटनाओं के दोहराने का, यही कारण था। इन पाषाण नक्काशियों में, बुद्ध को कभी भी मानव आकृति में नहीं दर्शाया गया है। बल्कि कारीगरों ने उन्हें कहीं घोड़ा, जिसपर वे अपने पिता के घर का त्याग कर के गये थे, तो कहीं उनके पादचिन्ह, कहीं बोधि वृक्ष के नीचे का चबूतरा, जहां उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी, के रूप में दर्शाया है। बुद्ध के लिये मानव शरीर अति तुच्छ माना गया था।[4] सांची की दीवारों के बॉर्डरों पर बने चित्रों में यूनानी पहनावा भी दर्शनीय है। इसमें यूनानी वस्त्र, मुद्रा और वाद्य हैं जो कि स्तूप के अलंकरण रूप में प्रयुक्त हुए हैं।[5]

बाद के काल

तीर्थ यात्रा
बौद्ध
धार्मिक स्थल
चार मुख्य स्थल
लुंबिनी · बोध गया
सारनाथ · कुशीनगर
चार अन्य स्थल
श्रावस्ती · राजगीर
सनकिस्सा · वैशाली
अन्य स्थल
पटना · गया
  कौशांबी · मथुरा
कपिलवस्तु · देवदह
केसरिया · पावा
नालंदा · वाराणसी
बाद के स्थल
साँची · रत्नागिरी
एल्लोरा · अजंता
भरहुत · दीक्षाभूमि

आगे की शताब्दियों में अन्य बौद्ध धर्म और हिन्दू निर्माण भी जोड़े गये। यह विस्तार बारहवीं शताब्दी तक चला। मंदिर सं.१७, संभवतः प्राचीनतम बौद्ध मंदिर है, क्योंकि यह आरम्भिक गुप्त काल का लगता है।[1] इसमें एक चपटी छत के वर्गाकार गर्भगृह में द्वार मंडप और चार स्तंभ हैं। आगे का भाग और स्तंभ विशेष अलंकृत और नक्काशीकृत है, जिनसे मंदिर को एक परंपरागत छवि मिलती है, किंतु अंदर से और शेष तीनों ओर से समतल है और अनलंकृत है।[6] भारत में बौद्ध धर्म के पतन के साथ ही, सांची का स्तूप अप्रयोगनीय और उपेक्षित हो गया और इस खंडित अवस्था को पहुंचा।

पाश्चात्य पुनरान्वेषण

एक ब्रिटिश अधिकारी जनरल टेलर पहले ज्ञात इतिहासकार थे, इन्होंने सन १८१८ में, सांची के स्तूप का अस्तित्व दर्ज किया।[4] अव्यवसायी पुरातत्ववेत्ताओं और खजाने के शिकारियों ने इस स्थल को खूब ध्वंस किया, जब तक कि सन १८१८ में उचित जीर्णोद्धार कार्य नहीं आरम्भ हुआ। १९१२ से १९१९ के बीच, ढांचे को वर्तमान स्थिति में लाया गया। यह सब जॉन मार्शल की देखरेख में हुआ।[7] आज लगभग पचास स्मारक स्थल सांची के टीले पर ज्ञात हैं, जिनमें तीन स्तूप और कई मंदिर भी हैं। यह स्मारक १९८९ में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित हुआ है।

भूगोल एवं जनसांख्यिकी

सांची की भौगोलिक अवस्थिति 23.48° उत्तर अक्षांश एवं 77.73° पूर्व देशान्तर पर है।[8] इसकी समुद्रतल से औसत ऊंचाई ४३४  मीटर है। उदयगिरि से साँची पास ही है। यहाँ बौद्ध स्तूप हैं, जिनमें एक की ऊँचाई ४२ फीट है। साँची स्तूपों की कला प्रख्यात है। साँची से ५ मील सोनारी के पास ८ बौद्ध स्तूप हैं और साँची से ७ मील पर भोजपुर के पास ३७ बौद्ध स्तूप हैं। साँची में पहले बौद्ध विहार भी थे। यहाँ एक सरोवर है, जिसकी सीढ़ियाँ बुद्ध के समय की कही जाती हैं।[9]

२००१ की जनगणना[10] के अनुसार सांची की जनसंख्या ६७८५ है। पुरुष यहां का ५३% और स्त्रियां ४७% भाग हैं। यहां की औसत साक्षरता दर ६७% है, जो कि राष्ट्रीय दर ५९.५% से कहीं अधिक है। पुरुष साक्षरता ७५% और स्त्री साक्षरता ५७% है। यहां की १६% जनता छः वर्ष से कम की है।

यहाँ रेल मार्ग, सड़क मार्ग और वायुमार्ग तीनों से पहुँचा जा सकता है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन तो स्वंय साँची ही है, पर बड़ी गाड़ियां वहां नहीं रुकती हैं। विदिशा या भोपाल से आप यहाँ आ सकते हैं, पर विदिशा स्टेशन सबसे नजदीक है। वायुमार्ग से भोपाल से उतर कर, सड़क मार्ग से यहाँ पहुँचा जा सकता है। विश्व दाय स्थल होने के कारण यह सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है। समीप ही मुख्य सड़क से आने पर संग्रहालय भी है।

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

क.^ (अंग्रेजी )"Who was responsible for the wanton destruction of the original brick stupa of Asoka and when precisely the great work of reconstruction was carried out is not known, but it seems probable that the author of the former was Pushyamitra, the first of the Sunga kings (184-148 BCE), who was notorious for his hostility to Buddhism, and that the restoration was affected by Agnimitra or his immediate successor." : जॉन मार्शल, अ गाइड टू सांची, पृ.३८ कलकत्ता: सुपरिन्टेन्डेंट, गवर्न्मेंट पब्लिशिंग (१९१८).
  1. (हिन्दी)["प्राचीनकालीन बौद्ध शिक्षा का केंद्र - साँची" (एच टी एम एल). ITNN. २. पृ॰ 01. अभिगमन तिथि जून १४ २००९. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद); |access-date=, |date=, |year= / |date= mismatch में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. दहेजिया, विद्या (१९९७). ईण्डियन आर्ट. फैदों: लंदन. ISBN 0-7148-3496-3.
  3. मूल पाथ "L1: रानो श्री सतकर्नीसा L2: आवेसनिसा वसिथिपूतस L3: अनामदास दानम", जॉन मार्शल, "ए गाइड टू सांची", पृ.५२
  4. (हिन्दी)इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के जालस्थल पर
  5. "ए गाइड टू सांची" जॉन मार्शल. These "Greek-looking foreigners" are also described in Susan Huntington, "The art of ancient India", पृ.१००
  6. मित्र १९७१
  7. जॉन मार्शल, "An Historical and Artistic Description of Sanchi", from ए गाइड टू सांची, कलकत्ता: सुपरिन्टेन्डेंट, गवर्नमेंट प्रिंटिंग (१९१८). पृष्ठ ७-२९ on line, Project South Asia.
  8. फॉलिंग रेन जीनोमिक्स, इंक - सांची
  9. (हिन्दी)"बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थस्थल" (एच टी एम एल). वेब दुनिया. पपृ॰ ०३. अभिगमन तिथि जून १४ २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  10. "भारत की जनगणना २००१: २००१ की जनगणना के आँकड़े, महानगर, नगर और ग्राम सहित (अनंतिम)". भारतीय जनगणना आयोग. अभिगमन तिथि 2007-09-03.

साहित्य

  • दहेजिया, विद्या (१९९२). कलेक्टि एण्ड पॉपुलर बेसेज़ ऑफ अर्ली बुद्धिस्ट पैट्रोनेज: सैकरेड मॉनुमेन्ट्स, १०० ई.पू.- २५० ई. इन बी स्टोलर मिलर (शिक्षा) द पावर ऑफ आर्ट. ऑक्स्फोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस: ऑक्स्फोर्ड ISBN 0-19-562842-X.
  • दहेजिया, विद्या (१९९७). इण्डियन आर्ट. फैदों: लंदन. ISBN 0-7148-3496-3.
  • मित्रा, देबला. (१९७१). बुद्धिस्ट मॉनुमेन्ट्स. साहित्य संसद: कलकत्ता. ISBN 0-89684-490-0

बाहरी कड़ियाँ

सांची: बौद्ध कला की बेमिसाल कृतियां