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'''दीपावली''' या '''दीवाली''' अर्थात "रोशनी का त्योहार" शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है।<ref name="OED-Diwali">The New Oxford Dictionary of English (1998) ISBN 0-19-861263-X – p.540 "'''Diwali''' /dɪwɑːli/ (also '''Divali''') '''noun''' a Hindu festival with lights...".</ref><ref>[http://www.britannica.com/EBchecked/topic/166786/Diwali Diwali] Encyclopedia Britannica (2009)</ref> दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।<ref name=htoday/><ref name="ReferenceA">Jean Mead, How and why Do Hindus Celebrate Divali?, ISBN 978-0-237-534-127</ref><ref name="Demon">{{cite book|url = http://books.google.com/?id=8HhVcspIBU4C&pg=PA179&dq=lamps+kept+on+diwali+lakshmi+evil+spirit#v=fjhfgyuiuyuiyuuiyii99wtwtyeryyywruiuhyuiyy&q&f=false|title = Invisible River: Sir Richard's Last Mission|first=Zak|last=Vera|quote=First Diwali day called ''Dhanteras'' or wealth worship. We perform Laskshmi-Puja in evening when clay diyas lighted to drive away shadows of evil spirits.|accessdate = 26 October 2011|isbn = 978-1-4389-0020-9|date = February 2010}}</ref>
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भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे [[सिख धर्म|सिख]], [[बौद्ध]] तथा [[जैन धर्म]] के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे [[महावीर]] के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं<ref name="Sharma2006">{{Cite book|year=2006|title=Fairs and Festivals of India|first=S.P.|last=Sharma|first2=Seema|last2=Gupta|publisher=Pustak Mahal|isbn=978-81-223-0951-5|page=79|url=http://books.google.com/?id=wPPr9HdmnHcC&pg=PA79&dq=diwali+mahavira+527}}</ref><ref name="N. Upadhye, Review 1982 pp. 231-232">{{cite journal|title=Mahavira and His Teachings|first=A. N.|last=Upadhye|editor-first=Richard J.|editor-last=Cohen|journal=Journal of the American Oriental Society|volume=102|date=Jan–Mar 1982|pages=231–232|doi=10.2307/601199|jstor=601199|issue=1|publisher=American Oriental Society}}</ref> तथा सिख समुदाय इसे [[बन्दी छोड़ दिवस]] के रूप में मनाता है।
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे [[सिख धर्म|सिख]], [[बौद्ध]] तथा [[जैन धर्म]] के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे [[महावीर]] के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं<ref name="Sharma2006">{{Cite book|year=2006|title=Fairs and Festivals of India|first=S.P.|last=Sharma|first2=Seema|last2=Gupta|publisher=Pustak Mahal|isbn=978-81-223-0951-5|page=79|url=http://books.google.com/?id=wPPr9HdmnHcC&pg=PA79&dq=diwali+mahavira+527}}</ref><ref name="N. Upadhye, Review 1982 pp. 231-232">{{cite journal|title=Mahavira and His Teachings|first=A. N.|last=Upadhye|editor-first=Richard J.|editor-last=Cohen|journal=Journal of the American Oriental Society|volume=102|date=Jan–Mar 1982|pages=231–232|doi=10.2307/601199|jstor=601199|issue=1|publisher=American Oriental Society}}</ref> तथा सिख समुदाय इसे [[बन्दी छोड़ दिवस]] के रूप में मनाता है।


माना जाता है कि दीपावली के दिन [[अयोध्या]] के राजा [[राम]] अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।<ref>{{Cite web|url=http://www.swargarohan.org/Ramayana/Uttar-Kand.htm|title=Ramcharitmanas, Uttarkand|accessdate=1 मार्च 2019}}</ref> अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। [[कार्तिक]] मास की सघन काली [[अमावस्या]] की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर [[ग्रेगोरी कैलंडर|ग्रिगेरियन कैलन्डर]] के अनुसार [[अक्टूबर]] या [[नवंबर]] महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का [[त्योहार]] है। [[भारत|भारतीयों]] का विश्वास है कि [[सत्य]] की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।
माना जाता है कि [https://www.bharatsanket.co.in/2019/10/Dipawali.html?m=1 दीपावली] के दिन [[अयोध्या]] के राजा [[राम]] अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।<ref>{{Cite web|url=http://www.swargarohan.org/Ramayana/Uttar-Kand.htm|title=Ramcharitmanas, Uttarkand|accessdate=1 मार्च 2019}}</ref> अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। [[कार्तिक]] मास की सघन काली [[अमावस्या]] की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर [[ग्रेगोरी कैलंडर|ग्रिगेरियन कैलन्डर]] के अनुसार [[अक्टूबर]] या [[नवंबर]] महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का [[त्योहार]] है। [[भारत|भारतीयों]] का विश्वास है कि [[सत्य]] की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।


दीवाली [[नेपाल]], [[भारत]],<ref name="about">{{cite web|url=http://india.gov.in/calendar/calendar.php|title=Indian Government Holiday Calendar|publisher=National Portal of India|accessdate=15 March 2010}}</ref> [[श्रीलंका]], [[म्यांमार]], [[मारीशस]], [[गुयाना]], [[त्रिनिदाद और टोबैगो]], [[सूरीनाम]], [[मलेशिया]], [[सिंगापुर]], [[फिजी]], [[पाकिस्तान]] और [[ऑस्ट्रेलिया]] की बाहरी सीमा पर [[क्रिसमस द्वीप]] पर एक सरकारी अवकाश है।
दीवाली [[नेपाल]], [[भारत]],<ref name="about">{{cite web|url=http://india.gov.in/calendar/calendar.php|title=Indian Government Holiday Calendar|publisher=National Portal of India|accessdate=15 March 2010}}</ref> [[श्रीलंका]], [[म्यांमार]], [[मारीशस]], [[गुयाना]], [[त्रिनिदाद और टोबैगो]], [[सूरीनाम]], [[मलेशिया]], [[सिंगापुर]], [[फिजी]], [[पाकिस्तान]] और [[ऑस्ट्रेलिया]] की बाहरी सीमा पर [[क्रिसमस द्वीप]] पर एक सरकारी अवकाश है।

06:07, 10 अक्टूबर 2019 का अवतरण

दीवाली

रंगीन पाउडर का प्रयोग कर रंगोली सजाना दीवाली में काफी प्रसिद्ध है
अन्य नाम दीपावली
अनुयायी हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध [1]
उद्देश्य धार्मिक निष्ठा, उत्सव
उत्सव दिया जलना, घर की सजावट, खरीददारी, आतिशबाज़ी, पूजा, उपहार, दावत और मिठाइयाँ
आरम्भ धनतेरस, दीवाली से दो दिन पहले
समापन भैया दूज, दीवाली के दो दिन बाद
तिथि प्रत्येक हिन्दू पंचांग अनुसार अलग, 6 नवंबर 2018, मंगलवर (दक्षिण भारत एवं दक्षिणपूर्व एशिया), 7 नवंबर 2018, बुधवार (उत्तर भारत एवं शेष जगत)
समान पर्व काली पूजा, दीपावली (जैन), बंदी छोड़ दिवस


दीपावली या दीवाली अर्थात "रोशनी का त्योहार" शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है।[2][3] दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।[4][5][6]

भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं[7][8] तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।

माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।[9] अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।

दीवाली नेपाल, भारत,[10] श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर एक सरकारी अवकाश है।

दिवाली उत्सव
नर्क चतुर्दशी की रात्रि पर घर के अंदर दिये से की गयी सजावट
दिवाली(तिहार) के लिये रोशन एक नेपाली मन्दिर
अमृतसर में दिवाली उत्सव
दिवाली की रात में चेन्नई के ऊपर आतिशबाज़ी
ग्रामीण उत्सव – गंगा नदी में तैरता दिया
दिवाली "मिठाई"

दिवाली नज़ारों, आवाज़ों, कला, और स्वाद का त्योहार है। जिसमें प्रांतानुसार भिन्नता पायी जाती है।

शब्द उत्पत्ति

दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली जिसे दिवाली भी कहते हैं उसे अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकार जाता है जैसे : 'दीपावली' (उड़िया), दीपाबॉली'(बंगाली), 'दीपावली' (असमी, कन्नड़, मलयालम:ദീപാവലി, तमिल:தீபாவளி और तेलुगू), 'दिवाली' (गुजराती:દિવાળી, हिन्दी, दिवाली, मराठी:दिवाळी, कोंकणी:दिवाळी,पंजाबी), 'दियारी' (सिंधी:दियारी‎), और 'तिहार' (नेपाली) मारवाड़ी में दियाळी.|

इतिहास

भारत में प्राचीन काल से दीवाली को हिंदू कैलेंडर के कार्तिक माह में गर्मी की फसल के बाद के एक त्योहार के रूप में दर्शाया गया। दीवाली का पद्म पुराण और स्कन्द पुराण नामक संस्कृत ग्रंथों में उल्लेख मिलता है जो माना जाता है कि पहली सहस्त्राब्दी के दूसरे भाग में किन्हीं केंद्रीय पाठ को विस्तृत कर लिखे गए थे। दीये (दीपक) को स्कन्द पुराण में सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है, सूर्य जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता है और जो हिन्दू कैलंडर अनुसार कार्तिक माह में अपनी स्तिथि बदलता है।[11][12] कुछ क्षेत्रों में हिन्दू दीवाली को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं।[13] नचिकेता की कथा जो सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है; पहली सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व उपनिषद में दर्ज़ की गयी है।[14]

7 वीं शताब्दी के संस्कृत नाटक नागनंद में राजा हर्ष ने इसे दीपप्रतिपादुत्सव: कहा है जिसमें दिये जलाये जाते थे और नव दुल्हन और दूल्हे को तोहफे दिए जाते थे।[15][16] 9 वीं शताब्दी में राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इसे दीपमालिका कहा है जिसमें घरों की पुताई की जाती थी और तेल के दीयों से रात में घरों, सड़कों और बाजारों सजाया जाता था।[15] फारसी यात्री और इतिहासकार अल बेरुनी, ने भारत पर अपने 11 वीं सदी के संस्मरण में, दीवाली को कार्तिक महीने में नये चंद्रमा के दिन पर हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार कहा है।[17]

महत्त्व

दीपावली नेपाल और भारत में सबसे सुखद छुट्टियों में से एक है। लोग अपने घरों को साफ कर उन्हें उत्सव के लिए सजाते हैं। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है।

दीपावली नेपाल और भारत में सबसे बड़े शॉपिंग सीजन में से एक है; इस दौरान लोग कारें और सोने के गहनों के रूप में भी महंगे आइटम तथा स्वयं और अपने परिवारों के लिए कपड़े, उपहार, उपकरणों, रसोई के बर्तन आदि खरीदते हैं।[18] लोगों अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों को उपहार स्वरुप आम तौर पर मिठाइयाँ व सूखे मेवे देते हैं। इस दिन बच्चे अपने माता-पिता और बड़ों से अच्छाई और बुराई या प्रकाश और अंधेरे के बीच लड़ाई के बारे में प्राचीन कहानियों, कथाओं, मिथकों के बारे में सुनते हैं। इस दौरान लड़कियाँ और महिलाऐं खरीदारी के लिए जाती हैं और फर्श, दरवाजे के पास और रास्तों पर रंगोली और अन्य रचनात्मक पैटर्न बनाती हैं। युवा और वयस्क आतिशबाजी और प्रकाश व्यवस्था में एक दूसरे की सहायता करते हैं।[19][20]

क्षेत्रीय आधार पर प्रथाओं और रीति-रिवाजों में बदलाव पाया जाता है। धन और समृद्धि की देवी - लक्ष्मी या एक से अधिक देवताओं की पूजा की जाती है। दीवाली की रात को, आतिशबाजी आसमान को रोशन कर देती है। बाद में, परिवार के सदस्यों और आमंत्रित दोस्त भोजन और मिठायों के साथ रात को मनाते हैं।[19][20]

आध्यात्मिक महत्त्व

दीपावली को विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों को चिह्नित करने के लिए हिंदू, जैन और सिखों द्वारा मनायी जाती है लेकिन वे सब बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय के दर्शाते हैं।[4][21]

हिंदू दर्शन में योग, वेदांत, और सामख्या विद्यालय सभी में यह विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहां कुछ है जो शुद्ध अनंत, और शाश्वत है जिसे आत्मन् या आत्मा कहा गया है। दीवाली, आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है।[22][23][24][25]

हिंदू धर्म

दीपावली धन की देवी लक्ष्मी के सम्मान में मनाई जाती है

दीपावली का धार्मिक महत्व हिंदू दर्शन, क्षेत्रीय मिथकों, किंवदंतियों, और मान्यताओं पर निर्भर करता है।

प्राचीन हिंदू ग्रन्थ रामायण में बताया गया है कि, कई लोग दीपावली को 14 साल के वनवास पश्चात भगवान राम व पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण की वापसी के सम्मान के रूप में मानते हैं।[26] अन्य प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत अनुसार कुछ दीपावली को 12 वर्षों के वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं। कई हिंदु दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह दिन है जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की।[11][27] लक्ष्मी के साथ-साथ भक्त बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश; संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती; और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित करते हैं[11] कुछ दीपावली को विष्णु की वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप में मनाते है। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक दुखों से दूर सुखी रहते हैं। [28]

भारत के पूर्वी क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हिन्दू लक्ष्मी की जगह काली की पूजा करते हैं, और इस त्योहार को काली पूजा कहते हैं।[29][30] मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं। अन्य क्षेत्रों में, गोवर्धन पूजा (या अन्नकूट) की दावत में कृष्ण के लिए 56 या 108 विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और सांझे रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है।

भारत के कुछ पश्चिम और उत्तरी भागों में दीवाली का त्योहार एक नये हिन्दू वर्ष की शुरुआत का प्रतीक हैं।

दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं। राम भक्तों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी में आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था।[31][32][33] इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था[33] तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।

जैन

जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।[33] इसी दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था।

जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है।

सिख

सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था।[33] और इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।

ऐतिहासिक महत्व

पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।

आर्थिक महत्व

दीवाली का त्यौहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीवाली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी ख़रीददारी का समय होता है। इस त्योहार पर खर्च और ख़रीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है।[34][35] दीवाली भारत में सोने और गहने की ख़रीद का सबसे बड़ा सीज़न है।[36][37] मिठाई, 'कैंडी' और आतिशबाजी की ख़रीद भी इस दौरान अपने चरम सीमा पर रहती है। प्रत्येक वर्ष दीवाली के दौरान पांच हज़ार करोड़ रुपए के पटाखों आदि की खपत होती है।[38]

संसार के अन्य हिस्सों में

दीपावली को विशेष रूप से हिंदू, जैन और सिख समुदाय के साथ विशेष रूप से दुनिया भर में मनाया जाता है। ये, श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी, मॉरीशस, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, नीदरलैंड, कनाडा, ब्रिटेन शामिल संयुक्त अरब अमीरात, और संयुक्त राज्य अमेरिका। भारतीय संस्कृति की समझ और भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक प्रवास के कारण दीवाली मानाने वाले देशों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। कुछ देशों में यह भारतीय प्रवासियों द्वारा मुख्य रूप से मनाया जाता है, अन्य दूसरे स्थानों में यह सामान्य स्थानीय संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है। इन देशों में अधिकांशतः दीवाली को कुछ मामूली बदलाव के साथ इस लेख में वर्णित रूप में उसी तर्ज पर मनाया जाता है पर कुछ महत्वपूर्ण विविधताएँ उल्लेख के लायक हैं।

एशिया

नेपाल

नेपाल में, कई जानवरों को दीवाली उत्सव में शामिल किया जाता है। कौआ, कुत्ता (ऊपर), गाय और बैल को अपने त्योहार तिहार के दौरान खिलाया और सजाया भी जाता है।[39][40]

दीपावली को "तिहार" या "स्वन्ति" के रूप में जाना जाता है। यह भारत में दीपावली के साथ ही पांच दिन की अवधि तक मनाया जाता है। परंतु परम्पराओं में भारत से भिन्नता पायी जाती है। पहले दिन काग तिहार पर, कौए को परमात्मा का दूत होने की मान्यता के कारण प्रसाद दिया जाता है। दूसरे दिन कुकुर तिहार पर, कुत्तों को अपनी ईमानदारी के लिए भोजन दिया जाता है। काग और कुकुर तिहार के बाद गाय तिहार और गोरु तिहार में, गाय और बैल को सजाया जाता है। तीसरे दिन को लक्ष्मी पूजा की जाती है। इस नेपाल संवत अनुसार यह साल का आखिरी दिन है, इस दिन व्यापारी अपने सारे खातों को साफ कर उन्हें ख़त्म कर देते हैं। लक्ष्मी पूजा से पहले, मकान साफ ​​किया और सजाया जाता है; लक्ष्मी पूजा के दिन, तेल के दियों को दरवाजे और खिड़कियों के पास जलाया जाता है। चौथे दिन को नए वर्ष के रूप में मनाया जाता है। सांस्कृतिक जुलूस और अन्य समारोहों को भी इसी दिन मनाया जाता है।पांचवे और अंतिम दिन को "भाई टीका" कहा जाता, भाई बहनों से मिलते हैं, एक दूसरे को माला पहनाते व भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं। माथे पर टीका लगाया जाता है। भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और बहने उन्हें भोजन करवाती हैं। [40]

Thai-Ridgeback

मलेशिया

दीपावली मलेशिया में एक संघीय सार्वजनिक अवकाश है। यहां भी यह काफी हद तक भारतीय उपमहाद्वीप की परंपराओं के साथ ही मनाया जाता है। 'ओपन हाउसेस' मलेशियाई हिन्दू (तमिल,तेलुगू और मलयाली)द्वारा आयोजित किये जाते हैं जिसमें भोजन के लिए अपने घर में अलग अलग जातियों और धर्मों के साथी मलेशियाई लोगों का स्वागत किया जाता है। मलेशिया में दीवाली का त्यौहार धार्मिक सद्भावना और मलेशिया के धार्मिक और जातीय समूहों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए एक अवसर बन गया है।

सिंगापुर

लिटल इंडिया में दीवाली की सजावट, सिंगापुर में हिंदुओं के लिए यह एक वार्षिक उत्सव है।[41]

दीपावली एक राजपत्रित सार्वजनिक अवकाश है। अल्पसंख्यक भारतीय समुदाय (तमिल) द्वारा इसे मुख्य रूप से मनाया जाता है, यह आम तौर पर छोटे भारतीय जिलों में, भारतीय समुदाय द्वारा लाइट-अप द्वारा चिह्नित किया जाता है। इसके अलावा बाजारों, प्रदर्शनियों, परेड और संगीत के रूप में अन्य गतिविधियों को भी लिटिल इंडिया के इलाके में इस दौरान शामिल किया जाता है। सिंगापुर की सरकार के साथ-साथ सिंगापुर के हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड इस उत्सव के दौरान कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन करता है।[42]

श्री लंका

यह त्यौहार इस द्वीप देश में एक सार्वजनिक अवकाश के रूप में तमिल समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इस दिन पर लोग द्वारा सामान्यतः सुबह के समय तेल से स्नान करा जाता है , नए कपड़े पहने जाते हैं, उपहार दिए जाते है, पुसै (पूजा) के लिए कोइल (हिंदू मंदिर) जाते हैं। त्योहार की शाम को पटाखे जलना एक आम बात है। हिंदुओं द्वारा आशीर्वाद के लिए व घर से सभी बुराइयों को सदा के लिए दूर करने के लिए धन की देवी लक्ष्मी को तेल के दिए जलाकर आमंत्रित किया जाता है। श्रीलंका में जश्न के अलावा खेल, आतिशबाजी, गायन और नृत्य, व भोज आदि का अयोजन किया जाता है।

एशिया के परे

मेलबोर्न में दीवाली आतिशबाजी।[43]

ऑस्ट्रेलिया

ऑस्ट्रेलिया के मेलबॉर्न में, दीपावली को भारतीय मूल के लोगों और स्थानीय लोगों के बीच सार्वजनिक रूप से मनाया जाता है। फेडरेशन स्क्वायर पर दीपावली को विक्टोरियन आबादी और मुख्यधारा द्वारा गर्मजोशी से अपनाया गया है। सेलिब्रेट इंडिया इंकॉर्पोरेशन ने 2006 में मेलबोर्न में प्रतिष्ठित फेडरेशन स्क्वायर पर दीपावली समारोह शुरू किया था। अब यह समारोह मेलबॉर्न के कला कैलेंडर का हिस्सा बन गया है और शहर में इस समारोह को एक सप्ताह से अधिक तक मनाया जाता है।

पिछले वर्ष 56,000 से अधिक लोगों ने समारोह के अंतिम दिन पर फेडरेशन स्क्वायर का दौरा किया था और मनोरंजक लाइव संगीत, पारंपरिक कला, शिल्प और नृत्य और यारा नदी (en:yarra river) पर शानदार आतिशबाज़ीे के साथ ही भारतीय व्यंजनों की विविधता का आनंद लिया।

विक्टोरियन संसद, मेलबोर्न संग्रहालय, फेडरेशन स्क्वायर, मेलबोर्न हवाई अड्डे और भारतीय वाणिज्य दूतावास सहित कई प्रतिष्ठित इमारतों को इस सप्ताह अधिक सजाया जाता है। इसके साथ ही, कई बाहरी नृत्य का प्रदर्शन होता हैं। दीपावली की यह घटना नियमित रूप से राष्ट्रीय संगठनों एएफएल, क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया, व्हाइट रिबन, मेलबोर्न हवाई अड्डे जैसे संगठनों और कलाकारों को आकर्षित करती है। स्वयंसेवकों की एक टीम व उनकी भागीदारी और योगदान से यह एक विशाल आयोजन के रूप में भारतीय समुदाय को प्रदर्शित करता है।

अकेले इस त्योहार के दौरान एक सप्ताह की अवधि में भाग लेने आये लोगों की संख्या के कारण फेडरेशन स्क्वायर पर दिवाली को ऑस्ट्रेलिया में सबसे बड़े उत्सव के रूप में पहचाना जाता है।

ऑस्ट्रेलियाई बाहरी राज्य क्षेत्र, क्रिसमस द्वीप पर, दीपावली के अवसर पर ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया के कई द्वीपों में आम अन्य स्थानीय समारोहों के साथ, एक सार्वजनिक अवकाश के रूप में मान्यता प्राप्त है।[44][45]

संयुक्त राज्य अमेरिका

संयुक्त राज्य अमेरिका में कई शहरों में दीवाली की घटनाओं और समारोहों का आयोजन किया जाता है। ऊपर: सैन एन्टोनियो, टेक्सास की एक घटना।[46]

2003 में दीवाली को व्हाइट हाउस में पहली बार मनाया गया और पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज वॉकर बुश द्वारा 2007 में संयुक्त राज्य अमेरिका कांग्रेस द्वारा इसे आधिकारिक दर्जा दिया गया।[47][48] 2009 में बराक ओबामा, व्हाइट हाउस में व्यक्तिगत रूप से दीवाली में भाग लेने वाले पहले राष्ट्रपति बने। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में भारत की अपनी पहली यात्रा की पूर्व संध्या पर, ओबामा ने दीवाली की शुभकामनाएं बांटने के लिए एक आधिकारिक बयान जारी किया।[49]

2009 में काउबॉय स्टेडियम में, दीवाली मेला में 100,000 लोगों की उपस्थिति का दावा किया था। 2009 में, सैन एन्टोनियो आतिशबाजी प्रदर्शन सहित एक अधिकारिक दीवाली उत्सव को प्रायोजित करने वाला पहला अमेरिकी शहर बन गया; जिसमे 2012 में, 15,000 से अधिक लोगों ने भाग लिया था।[50] वर्ष 2011 में न्यूयॉर्क शहर, पियरे में, जोकि अब टाटा समूह के ताज होटल द्वारा संचालित हैं, ने अपनी पहली दीवाली उत्सव का आयोजन किया।[51] संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 3 लाख हिंदू हैं।[52]

ब्रिटेन

लीसेस्टर, यूनाइटेड किंगडम में दीवाली की सजावट।[53]

ब्रिटेन में भारतीय लोग बड़े उत्साह के साथ दिवाली मनाते हैं। लोग अपने घरों को दीपक और मोमबत्तियों के साथ सजाते और स्वच्छ करते हैं। दीया एक प्रकार का प्रसिद्ध मोमबत्ति हैं। लोग लड्डू और बर्फी जैसी मिठाइयो को भी एक दूसरे में बाटते है, और विभिन्न समुदायों के लोग एक धार्मिक समारोह के लिए इकट्ठा होते है और उसमे भाग लेते हैं। भारत में परिवार से संपर्क करने और संभवतः उपहार के आदान प्रदान के लिए भी यह एक बहुत अच्छा अवसर है।

व्यापक ब्रिटिश के अधिक गैर-हिंदु नागरिकों को सराहना चेतना के रूप में दीपावली के त्योहार की स्वीकृति मिलना शुरू हो गया है और इस अवसर पर वो हिंदू धर्म का जश्न मानते है। हिंदुओ के इस त्यौहार को पूरे ब्रिटेन भर में मनाना समुदाय के बाकी लोगों के लिए विभिन्न संस्कृतियों को समझने का अवसर लाता है।[54][55] पिछले दशक के दौरान प्रिंस चार्ल्स (en:Charles, Prince of Wales) जैसे राष्ट्रीय और नागरिक नेताओं ने ब्रिटेन के Neasden में स्थित स्वामीनारायण मंदिर जैसे कुछ प्रमुख हिंदू मंदिरों में दीवाली समारोह में भाग लिया है, और ब्रिटिश जीवन के लिए हिंदू समुदाय के योगदान की प्रशंसा करने के लिए इस अवसर का उपयोग किया।[56][57][58] वर्ष 2013 में प्रधानमंत्री डेविड कैमरन और उनकी पत्नी, दीवाली और हिंदू नववर्ष अंकन Annakut त्योहार मनाने के लिए Neasden में बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर में हजारों भक्तों के साथ शामिल हो गए।[59] 2009 के बाद से, दीवाली हर साल ब्रिटिश प्रधानमंत्री के निवास स्थान, 10 डाउनिंग स्ट्रीट, पर मनाया जा रहा है। [60] वार्षिक उत्सव, गॉर्डन ब्राउन द्वारा शुरू करना और डेविड कैमरन द्वारा जारी रखना, ब्रिटिश प्रधानमंत्री द्वारा की मेजबानी की सबसे प्रत्याशित घटनाओं में से एक है।[54]

लीसेस्टर (en:Leicester) भारत के बाहर कुछ सबसे बड़ी दिवाली समारोह के लिए मेजबान की भूमिका निभाता है।[61]

न्यूज़ीलैंड

न्यूजीलैंड में, दीपावली दक्षिण एशियाई प्रवासी के सांस्कृतिक समूहों में से कई के बीच सार्वजनिक रूप से मनाया जाता है। न्यूजीलैंड में एक बड़े समूह दिवाली मानते हैं जो भारत-फ़ीजी समुदायों के सदस्य हैं जोकि प्रवासित हैं और वहाँ बसे हैं। दिवाली 2003 में, एक अधिकारिक स्वागत के बाद न्यूजीलैंड की संसद पर आयोजित किया गया था।[62] दीवाली हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। त्योहार अंधकार पर प्रकाश, अन्याय पर न्याय, अज्ञान से अधिक बुराई और खुफिया पर अच्छाई, की विजय का प्रतीक हैं। लक्ष्मी माता को पूजा जाता है। लक्ष्मी माता प्रकाश, धन और सौंदर्य की देवी हैं। बर्फी और प्रसाद दिवाली के विशेष खाद्य पदार्थ हैं।

फिजी

फिजी में, दीपावली एक सार्वजनिक अवकाश है और इस धार्मिक त्यौहार को हिंदुओं (जो फिजी की आबादी का करीब एक तिहाई भाग का गठन करते है) द्वारा एक साथ मनाया जाता है, और सांस्कृतिक रूप से फिजी के दौड़ के सदस्यों के बीच हिस्सा लेते है और यह बहुत समय इंतजार करने के बाद साल में एक बार आता है। यह मूल रूप से 19 वीं सदी के दौरान फिजी के तत्कालीन कालोनी में ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप से आयातित गिरमिटिया मजदूरों द्वारा मनाया है, सरकार की कामना के रूप में फिजी के तीन सबसे बड़े धर्मों, यानि, ईसाई धर्म, हिंदू धर्म और इस्लाम के प्रत्येक की एक अलग से धार्मिक सार्वजनिक छुट्टी करने की स्थापना के लिए यह 1970 में स्वतंत्रता पर एक छुट्टी के रूप में स्थापित किया गया था।

फिजी में, भारत में दिवाली समारोह से एक बड़े पैमाने पर मनाया जाने के रूप में दीपावली पर अक्सर भारतीय समुदाय के लोगों द्वारा विरोध किया जाता है, आतिशबाजी और दीपावली से संबंधित घटनाओं को वास्तविक दिन से कम से कम एक सप्ताह शुरू पहले किया जाता है। इसकी एक और विशेषता है कि दीपावली का सांस्कृतिक उत्सव (अपने पारंपरिक रूप से धार्मिक उत्सव से अलग), जहां फिजीवासियों भारतीय मूल या भारत-फिजीवासियों, हिंदू, ईसाई, सिख या अन्य सांस्कृतिक समूहों के साथ मुस्लिम भी फिजी में एक समय पर दोस्तों और परिवार के साथ मिलने और फिजी में छुट्टियों के मौसम की शुरुआत का संकेत के रूप में दीपावली का जश्न मनाते है। व्यावसायिक पक्ष पर, दीपावली कई छोटे बिक्री और मुफ्त विज्ञापन वस्तुएँ के लिए एक सही समय है। फिजी में दीपावली समारोह ने, उपमहाद्वीप पर समारोह से स्पष्ट रूप से अलग, अपने खुद के एक स्वभाव पर ले लिया है।

समारोह के लिए कुछ दिन पहले नए और विशेष कपड़े, साथ साड़ी और अन्य भारतीय कपड़ों में ड्रेसिंग के साथ सांस्कृतिक समूहों के बीच खरीदना, और सफाई करना, दीपावली इस समय का प्रतिक होता है। घरों को साफ करते हैं और तेल के लैंप या दीये जलाते हैं। सजावट को रंगीन रोशनी, मोमबत्तियाँ और कागज लालटेन, साथ ही धार्मिक प्रतीकों का उपयोग कर रंग के चावल और चाक से बाहर का एक रंगीन सरणी साथ गठन कर के घर के आसपास बनाते है। परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों और घरों के लिए बनाए गये निमंत्रण पत्र खुल जाते है। उपहार बनते हैं और प्रार्थना या पूजा हिन्दुओं द्वारा किया जाता है। मिठाई और सब्जियों के व्यंजन अक्सर इस समय के दौरान खाया जाता है और आतिशबाजी दिवाली से दो दिन पहले और बाद तक में जलाए जाते है।

अफ्रीका

मॉरिशस

अफ्रीकी हिंदू बहुसंख्यक देश मॉरिशस में यह एक अधिकारिक सार्वजनिक अवकाश है।

रीयूनियन

रियूनियन में, कुल जनसंख्या का एक चौथाई भाग भारतीय मूल का है और हिंदुओं द्वारा इसे मनाया जाता है।

पर्वों का समूह दीपावली

रंगोली

दीपावली के दिन भारत में विभिन्न स्थानों पर मेले लगते हैं।[63] दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाज़ारों में चारों तरफ़ जनसमूह उमड़ पड़ता है। बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे, मिठाइयाँ, खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं। स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं। दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं। रंग-बिरंगी फुलझड़ियाँ, आतिशबाज़ियाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है।भाई दूज या भैया द्वीज को यम द्वितीय भी कहते हैं। इस दिन भाई और बहिन गांठ जोड़ कर यमुना नदी में स्नान करने की परंपरा है। इस दिन बहिन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगा कर उसके मंगल की कामना करती है और भाई भी प्रत्युत्तर में उसे भेंट देता है। दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वे दूकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी। कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।

परंपरा

अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है। लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं, नये कपड़े पहनते हैं। मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बाँटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है। बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं। अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है। लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है।

दीवाली त्यौहार

विवादस्पद तथ्य

दुनिया के अन्य प्रमुख त्योहारों के साथ ही दीवाली का पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव चिंता योग्य है।

वायु प्रदूषण

विद्वानों के अनुसार आतिशबाजी के दौरान इतना वायु प्रदूषण नहीं होता जितना आतिशबाजी के बाद। जो प्रत्येक बार पूर्व दीवाली के स्तर से करीब चार गुना बदतर और सामान्य दिनों के औसत स्तर से दो गुना बुरा पाया जाता है। इस अध्ययन की वजह से पता चलता है कि आतिशबाज़ी के बाद हवा में धूल के महीन कण (en:PM2.5) हवा में उपस्थित रहते हैं। यह प्रदूषण स्तर एक दिन के लिए रहता है, और प्रदूषक सांद्रता 24 घंटे के बाद वास्तविक स्तर पर लौटने लगती है।[64] अत्री एट अल की रिपोर्ट अनुसार नए साल की पूर्व संध्या या संबंधित राष्ट्रीय के स्वतंत्रता दिवस पर दुनिया भर आतिशबाजी समारोह होते हैं जो ओजोन परत में छेद के कारक हैं। [65]

जलने की घटनाएं

दीवाली की आतिशबाजी के दौरान भारत में जलने की चोटों में वृद्धि पायी गयी है। अनार नामक एक आतशबाज़ी को 65% चोटों का कारण पाया गया है। अधिकांशतः वयस्क इसका शिकार होते हैं। समाचार पत्र, घाव पर समुचित नर्सिंग के साथ प्रभावों को कम करने में मदद करने के लिए जले हुए हिस्से पर तुरंत ठंडे पानी को छिड़कने की सलाह देते हैं अधिकांश चोटें छोटी ही होती हैं जो प्राथमिक उपचार के बाद भर जाती हैं।[66][67]

दीवाली की प्रार्थनाएं

प्रार्थनाएं

क्षेत्र अनुसार प्रार्थनाएं अगला-अलग होती हैं। उदाहरण के लिए बृहदारण्यक उपनिषद की ये प्रार्थना जिसमें प्रकाश उत्सव चित्रित है:[68][69][70][71]

असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

अनुवाद:[72][73]

असत्य से सत्य की ओर।
अंधकार से प्रकाश की ओर।
मृत्यु से अमरता की ओर।(हमें ले जाओ)
ॐ शांति शांति शांति।।

चित्र

सन्दर्भ

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